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द बॉय हू लव्ड -48 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -48 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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तो पांच सितंबर में मैंने आज फिर उसकी बैंडेज बदली । हमने साहिल और सबसे झूट कहा । हम मैच प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं । टीम में किसी और को नहीं ले सकते । हम ने उनसे कहा, हम बेसमेंट में थे । उसने अपनी शर्ट उतारी और उसे आगे वाले हिस्से में पहन लिया । इस दौरान मेरा चेहरा दूसरी और था । उस दिन की तरह जो कम्बल में नहीं थी । दर्द में हमारे बीच की झिझक मिटा दी थी मैंने । थोडे संकोच और दुख से उसकी नंगी पीठ देखिए क्या दर्द हुआ था? मैंने अपना काम करने के बाद पूछा । मैंने चेहरा घुमाया और उसने शर्ट सही तरह से पहली पिछली बार से कम हुआ है तो बोली उसके ताऊ जी को पर से निकले । पैसों का पता चल गया था । ग्रामीणों चोरी नहीं मानी और से फिर से बोल तो समर गया । कई साल मैं उन निशानों कैसे घावों की तरह देखूंगा जिन पर मैंने बैंडेज लगाई थी और उसे परवाह ही नहीं थी तो बडे ही अटपटे तरीके से मुस्कुरा रही थी । कुछ दिन की तो बात है तो बोली कुछ दिन पहले भी तो कुछ दिन की बात थी । हमारे माँ बाप वापस नहीं आएगा । नहीं भगवान करे कि मेरे जाने तक वापस आ सके । इस तरह मेरे लिए सब बहुत मुश्किल हो जाएगा तो बोली क्या वो तुम्हें खोजेंगे नहीं । मैं उन्हें मिल होंगी तो सब समझ जाएंगे । उसने कहा मैं तुम्हें और तुम्हारी खिडकी को बहुत याद करने वाला हूँ । मैं तो बहुत याद करूंगी । उसने कहा पता है कल मैं क्या सोच रहा था । मैंने कल्पना कि की माँ बाबा का दिल ज्यादा के लिए नहीं पिघलता और हालत बिगड जाते हैं तो मैं भी घर से भागकर तुम्हारे साथ रह सकता था । अगर मेरे साथ रहना मुश्किल हुआ तो तुम्हारे साथ जीने से तो मुश्किल नहीं हो सकता ना आए हम इतना प्यार करता हूँ । नहीं मैं नहीं हूँ । अच्छा हो सकता है । तुम्हारे साथ अच्छा बर्ताव करता हूँ कि ऐसा करना आसान है । तुम्हारी वाकई बहुत याद आएंगे आपका मुझे ऐसे जाना पडता है । उसके बाद हम स्कूल की दीवार टाइप कर दिल्ली यूनिवर्सिटी चले गए । उसने कहीं से सुन रखा था कि मिरांडा हाउस के बाहर एक अंकल बडी अच्छी मैजिक मैगी बनाते हैं । ये बात झूठी नहीं थी तो मसाला नूडल्स के पाइड पाइपर निकाले । हमने बेटिकट सफर किया और तीन ट्रेड मैगी खा गए । स्कूल आते हुए लग रहा था कि हमें उस मैगी की लग तो नहीं पड गई । समय बीतने के साथ साथ ब्राहमी के लिए प्यार बढता जा रहा है । उसे दोपहर जाते देखना मुश्किल हो रहा है और रात को मिलने का मौका मिलना और भी कठिन हो गया है । अब उसके बिना क्या नहीं जाता है? जब मैं स्कूल से वापस आया तो बाबा घर में ही थे तो कुछ पेपर पलटते हुए लैंड लाइन पर चला रहे थे । जब तक बात करते करते बंगला ना बोलने लगे तब तक मैंने इतना ध्यान नहीं दिया । उनके दूसरी और दादा थे । मैं अपने कमरे में काम लगाकर सुनने लगा । उनकी स्वर्ण तेज था पर वह पैसे यह बहुत ही के बारे में बात नहीं कर रहे थे । दादा को बेपरवाह, मूर्ख और काम अखिल रहा गया । बाबा ने एक घंटे बाद फोन रखा तो उन्होंने मुझे बताया कि दादा की टैक्स फाइलिंग में कितनी गडबड है और एक इंक्वायरी उन्हें जेल में डाल सकती थी । मुझे कोई संदेह नहीं था । बाबा अक्सर बढा चढाकर बात करते हैं । बाबा एक घंटे तक बंधक करते हुए दावा के वित्त संबंधी कागजों पर काम करते रहे । घर से निकल गया मानव सारी दुनिया की जानकारी हो गई । अब देखो देखो क्या कर रहा है । आप एक्सपोर्ट भर रहा है और माँ उसकी गर्भवती पत्नी के लिए शहरभर में डॉक्टर हो रही है । पापा बोले बाबा दोपहर से रात तक लगातार काम करते रहे । उन्होंने कागजों कैसे थाम रखा था मानो दादा के साथ उनके संबंधों की पतवार हो । उन्होंने वहाँ से कहा की दादा से दोबारा कुछ मामलों में बात करनी होगी । मैं सोच रहा था कि क्या उनको दादा से बात करना अच्छा लग रहा था ।

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Voice Artist

मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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