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द बॉय हू लव्ड -44 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -44 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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बारह अगस्त उन्नीस सौ निन्यानवे ब्राहमी उसी दिन से स्कूल नहीं आ रही थी जब उसने मेरे माथे पर बैंडेज लगाई थी । पहले दो दिन से फोन लगता रहा और वो लगातार बिजी जाता रहा । माँ की सख्त पहरेदारी थी इसलिए रात को निकलना भी मुश्किल था । तीसरे दिन लगा की भी पागल ही ना हो जाऊँ इसलिए स्कूल के टाइम में ही उसके घर चला गया । ना उसके घर के आस पास ही रहा और हर दस मिनट बाद वहाँ से हो जाता है । उम्मीद नहीं था कि शायद आपको कहीं देख रहे हैं । मैंने ऐसे कई राउंड लगाएगी । देखा बार देखी भी पर हमारी नजरें नहीं मिल सके । उस साढे ग्यारह के करीब बॉलकनी पर गीले कपडे डालने आई थी और फिर तीन बजे के करीब सूखे कपडे समझ में आई । ठीक दिख रही थी पर ये समझ नहीं है कि वो स्कूल को नहीं आ रही थी । कल मैंने उसके ऊपर और नीचे वाले फ्लैटों के दरवाजे खटखटाए और उनके आसपास रहने वालों के बारे में सवाल पूछे । मैं टिकट बेचने के बहाने बात करता था पर वो जवाब देने की बजाय झट दरवाजा बंद कर देते हैं । आज कुछ किस्मती से उसे कपडे ड्राइविंग करने के लिए भेजा गया । मैं उससे मिला । हम कुछ दूरी तक अलग अलग चले ताकि पडोस में किसी को शक ना हो तो स्कूल में होना चाहिए । उसने कहा तो मैं भी तो मैंने कहा ताईजी अपनी मम्मी के घर गई हैं । मुझे घर में खाना बनाना होता है क्या तुम परेशान हो गए थे? उसने पूछा मैं क्यों परेशान होने लगा? अच्छा अभी पिछले कुछ दिनों से घर के बाहर घूम रहे हो । मैं तो नहीं था । उम्मीद करता हूँ कि मेरे स्वर्ग व्यंग्य तुम तक पहुंच गया होगा । एक मील की दूरी से बोली और वहीं इंतजार करने को कहा । पर हमने कोना खोजा जहाँ कोई देखना चाहिये । मैंने विधान को फोन किया था । उसने कहा वाह कोई नौकरी भी हो सकता है । मैं घर छोड देंगे और मुड कर भी नहीं देखेंगे । उसने कहा और में रहा दबाया उनके माँ बाप खून मम्मी पापा को समझाना होगा । उसके बाद सामने आएगी तो देख लेंगे उसके आंख । एक अजीब सी बे परवाह खुशी से जमा कोठी । क्या तुम उनसे पैसा नहीं मान सकती हैं? ताऊ जी और ताई जी नहीं मानेंगे । अगर मदद चाहिए तो बालों से घसीटकर दोबारा घर पटक देंगे । अपनी खुशी के लिए उन पर निर्भर नहीं होना चाहती हैं । उन्हें समय रहते मेरी बात करनी चाहिए थी । उसने कहा, और पहली बार मैंने उसके स्वर में अपने माँ बाप के लिए मायूसी को पहचाना जिनसे मैं जीभरकर नफरत करने लगा था । उन्हें अच्छी तरह से सोच लिया है ना मेरे कॅरियर उठाया । मैं सुरक्षित घर की चारदीवारी छोडकर दुनिया में अकेला होने को तैयार होता था । रही वो मेरे लिए कितना भी पीडादाई क्यों ना होता, नौकरी तलाशता, खाने के लिए जीने के लिए काम आता, किसी ऐसे भविष्य को लगातार ताकता, इसके बारे में कुछ पता ही ना हो । अब तक मैंने जो भी क्लास पडी, जो भी टेस्ट लिए वो सब मेरी उत्तरजीविता नहीं, सफलता के लिए थे । नौकरी से मेरा मतलब पेट भरना नहीं बल्कि करियर था और एक ऐसी बहादुरी की भाषा में बात कर रही थी कि सुनने में ही डर लग रहा था । तुम चोरी चला रहे हो तो स्कूल में नहीं रहूँगी तो मुझ से सौ प्रतिशत खुशी की उम्मीद कैसे रख सकती हो? पर नहीं घर से निकल सकूंगी और तभी तो मैं अस्सी प्रतिशत खुश रहूंगा की विधान कैसा लडका है सब से मिलना चाहता हूँ । मैंने कहा को हस्कर बोली तुम करना चाहते हो उसे भी रोड से बेटों के इस बार निशाना पक्का होगा । स्वीट है तो अब घर जा स्कूल जाना शुरू कर हम दोनों अनपढ नहीं रह सकते । समझ गया स्कूल को तुम्हारी बाय बाय हो गई । मेरा यकीन करो तो भरे सेवक किसी को फर्क नहीं पडने वाला । मैं घर आया तो माँ बाबा एक दूसरे पर चला रहे थे और नीचे तक आवाज जा रही थी । मुझे अपने कमरे में जाने को कहा गया । समझ नहीं आया कि क्या बात हो रही थी । पर ये सब एक घंटे चला । बाबा शाम को ट्यूशन सेंटर निकल गए और माँ सामान पैक करने लगी । हाँ, अपनी जा रही हैं, ज्यादा से मिलने जा रही हैं । अब तेरे बाबा के पागलपन के साथ नहीं देख सकता है । अगर वो अपने बेटे से दूर रहना चाहते हैं तो उनकी मर्जी पर ऐसा नहीं करूंगी । भाई क्या आप की मर्जी थी? सिर्फ एक माँ है । उसे क्या लगता है कि मैं इतना उसे कितने समय तक दूर होंगी? तो मैं अपने बेटे से दूर नहीं रह सकती । हर जाके से मुझे देर हो रही हैं और वाली गाडी में हो जाएगी । मैं वहाँ के कपडों के ढेर पर बैठा था हूँ तो माँ के थरथराते हूँ । कहती उंगलियाँ और अचानक हुए इस विजय परिवर्तन से मैं आश्चर्य में था तो होली हो गया तुम्हारे दादा ने हमारे दिल थोडे अगर हमने उसे माफ ना किया तो हम कैसे माँ बाबा हुए, आपने लेने जा रही हैं । मैं खुशी से किलकारी भरना चाहता था । उसी एक्शन में मैंने आने वाले कल की कल्पना कर ली जैसे मकसद करता था । दादा सऊदी नन्ना मेहमान धामी संस्करण । उसने वेदराम के घर जाने की बजाय हमारे घर रहना पसंद किया था । सवाल मक्कर देर हो रही है । हाँ, उन्होंने मेरी पीठ पर धौल मार । इससे पहले कि मैं कुछ कहता उन्होंने मुझे अपने पास पहुँच गया । उन्होंने मेरा चेहरा थामकर माफी मानी । क्या आप बहुत ही को यहाँ आने दूंगी? पता नहीं बाबा घर में आने देंगे या नहीं और एक माँ अपने बेटे से कितने समय तक दूर रह सकती है । पर जब तक मैं बाहर हूँ तो बाबा का ध्यान रखना । उन की हर बात मानना ठीक जो कहीं वहीं करना । अब सूटकेस बंद करवा हूँ । ऐसे ही मैं जल्दी वापस आ जाऊँ । जब बाबा आए तो मैंने उन्हें माँ के जाने की खबर और मनी मन खुश हुआ । वो सकपकाई से खडे रह गए । फिर रसोई में ओझल हो गए । उन्होंने अपने और मेरे लिए डिनर तैयार किया । हमें जल्दी ही खाना खा लिया और उसके बाद भट्टाचार्य अंकल आ गए । दोनों की लाइफ भी बोतल से शराब पीके रहेगा । उसके बाद बाबा काउच पर ही लेट गए । वो माँ के बिना वो बहुत बेचेन महसूस कर रहे थे ।

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Sound Engineer

Voice Artist

मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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