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द बॉय हू लव्ड -40 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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अट्ठाईस जुलाई ऋषभ, साहिल और मैं ऋषभ के अलिशन घर की छत पर बैठे क्लास की लडकियों के बारे में बातें कर रहे थे । ऋषभ और साहिल बडे ही सहज भाव से स्कर्ट होगी, लंबाई कॅाल पद्मनेत्रे हूँ और टेस्ट के साइज वगैरह की बातें कर रहे थे । पर मेरे लिए सब थोडा अटपटा था क्योंकि दूसरे भी मेरे और ग्रामी के बारे में ऐसी बातें करते होंगे । ऋषभ ने हमें पिछले स्कूल के किस्से सुनाए । आपने लीजेंड्री सीनियर्स के बारे में बताया जो आपस में दोस्त रहे और कईयों ने तो कॉलेज जाने वाली लडकियों से भी दोस्ती की और कुछ मामलों में टीचर्स का भी नाम लिया ताकि मुझे ये स्वच्छ नहीं लगा । साहिल बोर होने लगा । बोला अब वो शुरू करे जिसके लिए हमें आए हैं । हम यहाँ आए हैं । मैंने पूछा दिशा बहुत कर गए और छक्का दरवाजा बंद कर दिया । साहिल आपने पिछली जेब से सिगरेट का पैकेट निकालकर मेरे आगे लहराया । बोला वैसे तो मैं क्रिकेट नहीं पिता पर कभी ना कभी तो पहली बार होती है तो पहले कौन आजमाने जा रहा है । मुझे तो उसकी बहुत पर यकीन नहीं आया । मुझे सिगरेट को थाम रहा था । देख कर नहीं लगता था की ये उसकी पहली बार होगी । ऋषभ के मामले में सोच लगा क्योंकि उसने सिगरेट को चाकू की तरह पकडा । ये तो एक नई तरह से जिंदगी में आने वाला बदलाव था । हर कुछ महाबाद माँ बाबा अपना राग अलापने लगते हैं कि उन्होंने किसी सिगरेट पीते हुए देखा । माँ कहती बनर्जी की लडकी को देखा । कितनी सिगरेट पीता था । पैंतीस साल में ही फेफडे खराब हो गए और छुट्टी हो गई । इतना दुःख लगता है । नाम भले ही अलग होते हैं, पर हर कहानी का अंत मौत से ही होता है । मैं कब तक माँ बाबा की कहानियों पर यकीन करता रहा । जब तक दादा ने ये नहीं बताया कि हम सभी सिस्टमेटिक तरीके से कहानियों पर आधारित ब्लॅक की शिकार थे । सिगरेट पीने से मरने वाले एक्सीडेंट खराब शादियों की वजह से मरने वाले अधिकतर इससे काल्पनिक थे तो जी हाँ, मैंने भी सिगरेट पीने का निर्णय लिया । साहिल ने दूसरी ही कोशिश में सिगरेट जला दी । साइन कहा, तुम दोनों पक्के दोस्त हूँ । अगर तुम्हारे साथ सिगरेट का पहला सुट्टा ना लिया तो ऐसी दोस्ती का क्या फायदा? पद हैं । उसने सिगरेट को हमारी और बढाया । मैंने उसे ले लिया पकाना वो पक्का जी । उसके बाद अगले आधे घंटे तक हमने सिगरेट भी यहाँ से हमारे फेफडे वह सिगरेट चलती रही । हमें कुछ ही देर में पैकेट ठोक दिया । ऍम अगर बत्ती के धुएं से कितना ज्यादा नुकसान करती जो माँ बाबा घर से बुरी बला को टालने के लिए चलाते थे । तीन पंडित हमारे घर में चार घंटे बिता चुके थे ताकि गांगुली परिवार की खुशहाली वापस लाये जा सके । उन्होंने माँ बाबा ये कहा कि हवन करने से घर की बुरी नजर उतर जाएगी । उसी नजर में सब गडबड की थी । ये बहुत ही के नाम की बढिया बनवाकर उसके पेट में सोनिया चौहाने जैसा काम करने से ज्यादा दूर नहीं थे । साहब और मैंने ऋषभ के घर ही लंच किया । उसकी दो बडी बहनें और छोटा भाई भी वहीं थे । विश्व आपस में बातें करते हुए हस रहे थे । मुझे जलन ने किसी लगता की तरह घेर लिया और मेरा सारा मजा जैसे कहीं रह गया ।

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मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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