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द बॉय हू लव्ड -31 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -31 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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चौदह जून नहीं महा बाबा ने मुझसे बात करना बंद कर रखा था क्योंकि मैंने उनसे दादा का राष्ट्र पाया था तो क्या है कि मैं स्कूल जाने लगा ताकि मेरा ध्यान पढ सकें । मैं जानता था कि वह मुझे स्कूल भेजकर चैन से शोक बनाना चाहते थे । हमारे घर की पतली दीवारों में माकर होना नहीं समझता था । उधर स्कूल ध्यानी और साहिल बडी उत्सुकता से मेरा इंतजार कर रहे थे । किसी ने भी वो बात नहीं उठाई । देवरानी कुछ दिन पहले हम से नाराज होकर चली गई थी । साइलो से मेरे घर के हालात की जानकारी दे दी होगी । वो कुछ ज्यादा ही मिठाई से पे जा रही थी । उसके स्वभाव में नहीं था और यही बात मुझे खल रही थी । साहिल और भ्रमित अब और बेहतर दोस्त थे । वही हकीकत ही जो मेरे लिए पहले जलन का कारण रही । धामी को बहुत काटना था कि वही उसे चूहेदानी में पकडकर लाई थी पर जाना चाहिए । देखते ही उस बडे से छोडने का नाम छोटू रख दिया । हमेश चूहे का नाम सुनने के बाद उसे काटने को राजी नहीं हुई तो इसका नाम के रख दिया । कोशिश करती हूँ उसमें क्या है अगर किसी को मार नहीं जा रहे हो तो कम से कम से नाम तो देना चाहिए । क्या तुम कायल चलाने से पहले सारे बच्चों के भी नाम रखती हूँ । सही और संपर्क क्या मैं उन्हें मलेरिया और डेंगू से मिलवा सकता हूँ? साहिल ने कहा हो सकता है की बातों में प्लेग से मिलवा एक तुम जीती । साहिल ने कहा, जब मैंने दवा के नशे में बेसुध चूहे को काटने के लिए पिन किया तब रानी और साहिल कारगिल मसले पर भारत की पोजीशन के बारे में बहस कर रहे थे । आने वाले समय में अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों को अपनी और मिलने का ये कोई तरीका नहीं कि पाकिस्तान को बम से उडा दिया जाए । इस तरह बहुत से लोग अनावश्यक मारेंगे । धामी ने अपनी बात पर जोर दिया और सैनिक तो मर ही रहे हैं ना । अगर कुछ पाकिस्तानी नागरिक भी मारे तो किसको परवाह पडी है? जनता नहीं, एक बॉस निरंकुश सरकार चुनी है । अगर भारतीय सिपाहियों की बजाय उनकी मौत हो तो ये कोई बडा नुकसान नहीं होगा । नहीं ये बात नहीं है । धामी ने कहा, सेनाओं में शामिल हर इंसान को पता होता है कि ऐसा कोई देना सकता है और नागरिकों की मौत ये एक समानांतर नुकसान होगा । तो तुम कुछ नागरिकों की बजाय अपने ज्यादा से ज्यादा सिपाहियों की मौत का होगी हूँ तो दुश्मन की तरफ से बोल रही हूँ । साहिल ने कहा मेरे हाथ से चाकू फैसला और बचा । छोटों के दिल पर जाना पडा नहीं । ग्रामीण किसी पिचकारी की तरफ के शरीर से खून की धार निकलती देखी तो चिल्लाई कुछ लगता है की छोटू मर गया । साहिल तभी तभी हंसी ऐसा हम तीनों की ये सामान तक हानि मेज पर मरी पडी थी । अगर विचार करें तो कह सकते हैं कि मैं और माँ बाबा हम सभी ज्यादा की प्रेम कहानी की समानांतर पानी थे । तू पर वापस आते हैं । धामी ने कहा कि हमें उसे नाम मेंढकों की तरफ फेंकने के बजाय दफनाना चाहिए । साहिल ने इसमें हिस्सा नहीं लिया । हमने शहरजाद के पास उसकी कब्र बनाएंगे । हमारे के हाल है । हमी ने पूछा पहले तीन किलोमीटर के दायरे में सत्रह मार्च देंगे, नहीं तो अच्छी बात नहीं है । अभी माँ बाप को मेरी जरूरत है और मैं शायद मैं नहीं मानती । मैं कभी नहीं बताया कि हमारे बाबा कितने खिलाफ होंगे । एक लंबी कहानी है हमारे पास बहुत समय बहुत दुख भरी है । हमारे लिए नहीं । बात नहीं है । ठीक है कहाँ से शुरुआत हो? अगर मैं ये बता दूँ कि बाबा जन्म से भारतीय नहीं पाकिस्तानी है तो क्या तो नहीं होगी क्या बांग्लादेश पाॅर्न नहीं ये पाकिस्तान या पूर्वी पाकिस्तान था । मैंने बाबा से ही कई अंशुल से सुना है । उनकी राष्ट्रीय पहचान को अपनाने की कहानी परिवार में कोई नहीं सुनाता । पता नहीं मैंने तो सुना है वो सच भी है या नहीं । बताओ तो सही ठीक चल रही है कि बाबा अपने तीन भाई बहनों में दूसरे नंबर पर थे और में पूर्वी पाकिस्तान में हुए नरसंहार से दूर साल पहले भारत आए थे । क्या वो तब वहीं थे? नहीं, उनका पूरा परिवार नहीं था । तकनीकी तौर पर मेरा परिवार भी तो क्या हुआ । उस हमारे गए तो आराम से सुन नहीं सकती है और सारी आगे बोलो । उन्हें शिमला के बिशप कॉटन स्कूल में पढने भेजा गया । ढाका की दीवानगी और अनिश्चितता से परे था । मेरे दादा सुकुमार गांगुली के पागलपन से भी पडे थे । किसी दिन उनकी तस्वीर दिखाऊंगा तो किसी भी गांगुली पुरुष से कहीं सुंदर थे । उन्होंने बंगाली और उर्दू में डबल डॉक्टरेट की थी और उन्हें अपने बंगाली प्रेम के लिए जान देने पडी । पूर्वी पाकिस्तान में अधिकतर रोक बैंक वाली थे इसलिए ज्यादा दूसरों के साथ लडे की बंगालियों को सरकारी कामकाज की भाषा का दर्जा दिया जाए तो क्या उन्हें मार दिया गया? नहीं डर से पश्चिमी पाकिस्तान का उर्दूभाषी कुलीन वर्ग उन्हें पिछडे हुए बंगाली करता था । बंगला बोलने वाले व्यक्ति ने पाकिस्तान का पहला आम चुनाव जीता तो उनके प्रेसिडेंट यहाँ खान ने आदेश दिया कि पूर्व पाकिस्तान से बंगालियों का सफाया कर दिया जाए । चाहेंगे मुसलमान हो या न हो, बाबा का परिवार भी सारो परिवारों की तरह निकाला गया । मरने वालों की पहली सूची में दादू भी शामिल थे । पाकिस्तानी सेना ने बुद्धिजीवियों को चुन चुन कर मारा । मुझे हैरानी है कि मुझे इस पूरी तरह से याद है । उस समय हमारे बाबा स्कूल में थे । अच्छा तो वो अपनी परीक्षा दे रहे थे जब मेरी बुआ पिसी रूपा गांगुली को उनकी यूनिवर्सिटी से उठाकर एक सैन्य शिविर में ले जाया गया और उनके साथ लगातार बलात्कार किया गया । जब वो गर्भवती हुई तो उन्हें मार दिया गया है । उनके बडे भाई है हिंदू । गांगुली की दोनों आंखों को भाडे से तब तक छेडा गया जब तक वोटरों से भेजा बाहर निकलकर ढाका विश्वविद्यालय के गलियारे में नहीं गिर गया । जहाँ गणित ने मास्टर्स की डिग्री ले रहे थे । भारतीय सेना के वहां पहुंचने के बाद ही वहशीपन का नाच रोका जा सका तो बहुत भयानक है । मैंने सुना उसके अनुसार बाबा नहीं युद्ध से पूर्व बंगलादेश में बारह महा बिताए ताकि उनके कमरे खोज सके । तब मेरी उम्र के रहे होंगे । मैंने कहा मेरी तरह उसने भी सारी बात सुनने के साथ साथ उन घटनाओं को अपने दिमाग में छवियों के साथ देखा । हमने छोटों को दफनाया और स्कूल में योगी चक्कर लगाते रहे । मैं घर से यथासंभव दूर रहा । घर वापस आया तो बाबा टीवी से चिपके बैठे थे । पाकिस्तान ने जाट रेजीमेंट के छह सैनिकों की लाशें लौटा दी थी । सैनिकों को बहुत प्रताडित किया गया, उनके जननांग काट दिए गए, उनकी आगे भेज दी गई । सात निकाल लिए गए और उन्हें सिगरेट के टोटो से दागा गया । मैंने बाबा से कहा कि वह टीवी पंद्रह देखना तो बाबा नहीं हो रहा । इस तरह मैंने वो सब देखा और हिंसा फॅार में उनके साथ हुआ होगा । मैंने स्क्रीन पर उन सैनिकों के नाम देखे । मैं सोच रहा था कि अगर वो मेरे भाई होते हैं, मैं आप दवाइयों के खिलाफ अपनी नफरत तब तक बनाए रखता हूँ । बाबा के परिवार को ही देश की सेना ने मारा जिससे वो अपना मानते थे । इसका राष्ट्रगान गाते थे जिस पर झंडा फहराते थे एक हाँ कितना गहरा रहा होगा । कभी कभी सोचता हूँ कि क्या बाबा को भी बचपन से ही भारत से नफरत करना सिखाया गया होगा । जैसे मुझे पाकिस्तान से नफरत करना सिखाया गया है और तब पुलिस कैसा लगा होगा जब भारतीय सेना की मदद से वो सारे अत्याचार बंद हुए होंगे । क्या अचानक उन के मन में भारत के लिए प्रेम उमडा होगा और उनका मन बदल गया होगा? मैंने अपनी आंखों को धुंधला किया और एक हेडलाइन पडी कैप्टन अनिर्बान गांगुली और पांच अन्य सैनिकों को प्रताडित करने के बाद उनकी हत्या कर दी गई । मेरी रगों में बिखलते लावे की तरह गुस्सा दौड रहा है । पर मुझे जुवैदा काफी पसंद है और उसका इस बात से कोई लेना देना नहीं है । बाबा इस बात को इस तरह क्यों नहीं देख सकते हैं । ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि वो वहाँ थी

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मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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