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द बॉय हू लव्ड -18 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -18 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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एक मई सुनया अरुंधति और हमारे घर के बीच कॉमन बॉल है । दीवार के उस और उसका कमरा है और हर रोज मेरी आंख उसके पॉप कानों की आवाज से खुलती है । मैंने कभी नहीं सुनी । हमारे कमरे गैरकानूनी तरीके से बने हैं । दो बैडरूम के घर में तीसरा बेडरूम बना दिया गया है । मेरा कमरा तो दिल्ली का नगर निगम दो बार लगभग तोड ही चुका है । माँ बाप को पूरा यकीन है कि मित्रों ने ही हमारी शिकायत की होगी । हमें उन अधिकारियों की मुक्ति गर्म करनी पडी तब जाकर मामला थोडा शांत हुआ था । मीना कोई गाने अच्छे लगते हैं । वो अक्सर इन्हें सुनकर दीवार खुरचने लगती है । मुझे भी कोई हर्ज नहीं है । मीना के पंजे और गाने दोनों मिलकर मेरी सुबह वाली बेचने को थोडा काबू कर लेते हैं । अरुंधति रोज मीना से खेलने आती है और ये बात रिचा मित्तल को खत्म नहीं हो रही है जिसे मीना को छूने की मनाही है । मित्रों को लगता है कि हम उसे कच्चा मांस खिलाते हैं । मैं लंका रेजिडेंट वेलफेयर की साप्ताहिक मीटिंग में चला रहे थे । हम जाने अपने खुद तो क्या खिलाते हैं । मैं तो सबको पहले से आधा कर रहा हूँ कि ये बिल्ली बडी होकर हम सबकी आफत बन जाएगी । रजनी मेरी बेटियों को काट लिया तो आपके बेटे फॅसा कौन भरेगा? बॅाबी जो काम नौटंकीबाज नहीं है ना उनसे कौन जीत सकता था । बाबा चीजें लाए । सब तरीके से हाथ पैर चलाते हुए अपनी बात कही है और यहाँ तक कह दिया मीना उनकी मरी हुई बेटी का ही पुनर्जन्म है । ये सुनकर माँ और कुछ दूसरी और सुबह मैं लगी महा बाबा जो कुछ भी करते हैं वाकई हर चीज में जान डाल देते हैं । भले ही वजह कोई भी क्यों ना होगा । मित्तल बुरी तरह से अपमानित हुए । जब भी रिचा, मीना, अरुंधति और मुझे देखती तो उसकी आंखें गुस्से से सुनाई थी तो शायद उसके उसका नहीं था तो हमारे सामने से निकलते हुए पाल के तक नहीं । जब कहती थी उसके जीवन का प्यार होने के बावजूद मैंने बाबा को मना नहीं किया । वो उसके पापा की सरेआम बेइज्जती न करें । जब मैं सुबह स्कूल के लिए निकलने लगा तो भट्टाचार्य आंटी माँ के पास कुछ नहीं है कि घर के आस पास को मंदिर होगा । प्रत्या में स्कूल के बाद अरुंधति को वहाँ ले जा सकता हूँ । उन्होंने माँ से कहा अरुंधति हर मंगलवार हनुमान मंदिर जाती हैं । स्कूल के बाद दोपहर को मैंने उनके घर की घंटी बजाई । अरुंधति घर को ताला लगाकर साथ आ गई । वह भी स्कूल की वर्दी में थी । स्टार्ट से कमीज बाहर आ रही थी । जुराबें टखनों के पास इकट्ठा हो गई थी और जो थी टीचर से लगभग थे । लगता था कि उनका स्कूल कुछ ज्यादा ही दरियादिल था । टीचर कुछ कहती नहीं । मैंने उसके जूतों की ओर इशारा किया । स्कूल में तो सब ऐसे ही आते हैं । मेरे बैच में सात सौ बच्चे हैं । इसको परवाह पडी है । कई तो स्नीकर ही पहनाते हैं । कोलकाता में तो हमारे टखनों पर लकडी के फट्टे मना करते थे । उसने कहा, मंदिर वो घुटनों के बल बैठी, अपने हाथ जोडे और हनुमान जी की मूर्ति के आगे मन ही मन प्रार्थना करने लगी । उसे संस्कृत श्लोक नहीं आते थे । पर बाबा ने मुझे सिखाए हुए थे । वो अपने भगवान से इंग्लिश में बात करती थी । पंडित ने अरुंधति को बताया कि मैं विद्वान पंडितों में से था । उसने कहा कि नौ से भी कोई शोक से खाता हूँ । जब हम बाहर भिखारियों को प्रसाद बांट रहे थे तो वो मेरा सिखाया मंत्री याद कर रही थी । उसके मुंह से सुनकर और भी अच्छा लग रहा था । मनो जब हम मारुततुल्यवेगं हम जितेंद्र नाम बुद्धि मतदान वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं हूँ श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये । इस बात सही बोला है ना मुझे इसका मतलब क्या है? मैं उनको प्रणाम करता हूँ । जो विचार से भी वेगवान है, जो वायु से भी बलशाली हैं, जिन्होंने अपनी इंद्रियों को जीता है तो सारे बुद्धिमानों मेरी सर्वश्रेष्ठ हैं । फॉरेन के पुत्र हैं । वन के सभी जीवों की सेना के सेनापति हैं । भगवान राम के दूत । मुझे शरण दो ए अतुलनीय भगवान हनुमान अपने चरणों में मुझे और मेरी विनती को स्वीकार करो तो बहुत अच्छा है । अरुंधति चाहेगी अच्छा उन क्लास में से लडकियों को इंप्रेस करने के लिए इस्तेमाल करते हो गए ना । इसी तरह तुमने ग्रामीण को अपना बनाया होगा । अरुंधति पूछा मुझे पसंद नहीं करती है । अच्छा जी उसे अपने मिलने का क्या नाम रखा? ऍम नाम तो अच्छा है । उसने मुझे कुछ और मंत्री पढने को कहा और हर बार छोटे बच्चों की तरफ तालियाँ बजाने लगी । मुझे धन्यवाद करने के लिए उसने अपने मनपसंद अंग्रेजी गानों का टेस्ट भी दिया । जब कॅरियर भूल गया तो मुझे सिर झुकाकर दादा से उनका वॉक मान मानना पडा हो गया । हम बताना नहीं चाहते हैं कि तुम्हें क्यों चाहिए? ताजा ने पूछा मैं बता दूंगा आपको जब आपको बताने की जरूरत नहीं रहेगी । प्रभु ज्यादा कल दिल्ली आ रही है तो उससे मिलना जाएगा । मैंने उसे कहा तू मिलना चाहता है । बोले मैं अपनी जुबान काट लूंगा मैं उस मुसलमान लडकी से वो वो बिना हद है । मैं तूफान की तरह के कमरे से बाहर आ गया और अपने कमरे में लेकर गाने सुनने लगा हूँ । उसका एक अक्षर भी पल्ले नहीं पड रहा था । माने बिरयानी बनाई थी और सरस्वा मेरा राष्ट्र जैसा लगा क्यूँ नहीं आई? मैंने पूछा अब ज्यादा से क्यों नहीं पूछती कि उन्हें अच्छी लगी या नहीं? लगता है उन्हें तो बिरयानी बहुत पसंद आने लगी है । क्यों ज्यादा रहो बकवास मकर हूँ आजकल आप बकवास बंद करवाने में पड एक्सपर्ट हो गए हो तुम दोनों के बीच चल क्या रहा है इस बात को मेरी खाने की नहीं इस पर मतलब वो माने बाधा दी पी एस स्कूल बस में आते हुए एक इमारत पर नजर गई घर से बस प्रकार से बीस मिनट की दूरी पर है पश्चिम भारत है । जल्दी देखने आऊंगा । बारा मंजिला तो होगी ही नहीं लग रही है इसलिए थोडा सिक्योरिटी का मामला हो सकता है तो उसे भी देख लेंगे । बस यूँ ही बता रहा हूँ

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Voice Artist

मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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