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द बॉय हू लव्ड -12 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -12 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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वो अठारह मार्च में ये लिखते हुए मेरे हाथ कांप रहे हैं । दादा ने हूँ जो आर बी नाइस मेरे और हमारे परिवार की सामूहिक पीठ में भूखा है । धीरे धीरे घूमते हुए मेरी बातों को बाहर निकाल रहा है । आपको पता चलेगा तो क्या होगा? इससे भी बत्तर बात ये है कि जब बाबा को पता चलेगा ज्यादा नहीं ऐसा कैसे हो ना दिया । क्या उनके मन में जिम्मेदारी का कोई ऐसा नहीं? क्या उनके नाम से कोई अंदाजा नहीं हुआ? ये तो रिहान या समीर जैसा और स्पष्ट नाम नहीं था । इस बात को कैसे भूल गए । ये तो उनके बनाम हमारी बात है । ये हमेशा से थी । कम से कम हमारे घर में तो थी क्या बाबा की बातों पर ज्यादा का कोई असर नहीं हुआ । क्या माँ की चेतावनियां भी बेअसर रही । ज्यादा केशव मेरे कानून जा रहे हैं । उन्होंने कैसे बिना सोचे समझे, बिना किसी शर्मिंदगी के झट से वो सब कह दिया । उनकी आंखों में एक अजब सीधे वानगी देखिए शायद हमारे परिवार में ही आत्महत्या की प्रवृत्ति पाई जाती है । मैं दिलोजान से जुवैदा काजी से मोहब्बत करता हूँ । मैंने बंगलौर का एक एक पल उसका हाथ अपने हाथों में थामकर बताया । उन्होंने मुझे मुस्कराकर कहा मैं मुसलमान हैं । मैंने कहा हम सच में एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं । वो एक मुस्लिम है, ज्यादा तो उससे मिलना चाहिए । मुसलमान है । मैंने जुबेदा को तुम्हारे बारे में बताया हो । तुम से वो मुसलमान है, ज्यादा चुप करो । आप ऐसे नहीं बोल सकते कि आप उस से प्यार है और शायद आप उससे शादी भी करना चाहते हो और आप से शादी नहीं कर सकते हैं । वहाँ बाबा किसी को भी मंजूर कर लेंगे पर उससे नहीं करेंगे । हमने शादी के बारे में अभी कुछ तय नहीं किया है । अब कहना चाहते हैं अभी आप नहीं तो कहा कि आप से प्यार करते हो रहा ना, वो ऐसा क्यों कहेगा । मैं अपने रिश्ते के बारे में सोचने के लिए कुछ बाकी चाहिए । आप से प्यार करते हैं ये बताने के बाद आप रिश्ते के बारे में सोचेंगे । अगर आप साथ नहीं रहना चाहते थे तो प्यार करने की हामी भरने का क्या मतलब था? ये तो केवल शब्द हैं । ये केवल शब्द नहीं और जुबेदा काजी । क्या आपने एक बार भी नहीं सोचा? नहीं प्लीस नहीं हाँ, तुम भी रोना मत शुरू कर देगा । अब तुम वहाँ जैसा तो मत बन देख रिहा आँसू निकल रहे हैं । पहुंचने लगे माँ को बताना ही होगा तो किसी को नहीं बताने जा रहे । जब सही वक्त आएगा तब मैं अपने आप सब कुछ बता दूंगा हूँ । उन्होंने कहा तो फोन की बस्ती घंटे का जवाब देने के लिए कमरे से बाहर निकल रहे हैं । ये बात वहाँ से छिपी नहीं रह सकती थी । वो किसी तरह सुनकर सब पता कर लेंगे । इससे पहले की ज्यादा कोई गलत कदम उठाएं । मुझे माँ को बताना ही होगा । वो किसी के लिए बिहार शब्द का इस्तेमाल इतनी आसानी से कैसे कर सकते थे । और इससे भी अहम बात ये थी वो उसने स्वार्थ प्रेम को नहीं नकार सकते थे । जो माँ बाबा और मेरे साथ उनका था वरना हमारे एक परिवार होने का मतलब ही क्या है? ज्यादा और मैं हम माँ बाबा के जीवन की सबसे बडी खुशी हैं । पूरा मानवीय अनुभव पाना चाहते हैं हम बच्चे और क्या है हम समझदार, सब कुछ सीखे हुए मांस और मज्जा से बने वैज्ञानिक खिलौने ही तो हैं हूँ हमने और ऍम से बने खिलोनों में यही तो अंतर है जिन्हें मल्टीपल डिफिकल्टी लेवल के साथ बनाया जाता है ताकि खिलाडी का ध्यान लगा रहे हैं । बच्चों ये खेल किसी लडकी तरह हो जाते हैं और पसंद नहीं किए जाते । इन खिलाडियों का फर्ज बनता है की एक खिलाडियों को प्यार दें और उनके लिए आभार प्रकट करें । अगर ज्यादा हमारे माँ बाबा को ना यूज करते हैं तो वह डिफेक्टिव मौन है । एक ऐसा वीडियो गेम इसकी स्क्रीन टिमटिम करती है । ऐसा किलो ना जिसका सौंपे ढीला हो गया है । अब तो वे भी मीना या मेरे जैसे ही हैं । मैं तो चाहता था कि वह परफेक्ट बने । माँ बाबा की देख रेख कर दायित्व लें । उन्हें बहुत सुन्दर बहू और पोता पोती दें क्योंकि हमेशा से चलते हैं ज्यादा कोई प्यार और लाडला बेटा बनना होगा तो माँ बाबा की हर इच्छा पूरी करता है । सारी सालगिरह और जन्मदिन मनाता है । उनकी दवाओं के लिए अपने खर्च में कटौती करता है जो उन्हें उनके बुढापे में नहीं लाता है । उनकी बार बार दोहराई जाने वाली कहानियों को पूरी दिलचस्पी से सुनता है । उनकी मौत का सोच करते हुए उनकी चिता को अग्नि देता है । मैं ज्यादा कोई अवसर नहीं दूंगा, ये पूरे परिवार को बिखेर नहीं । मैं नहीं चाहता की ज्यादा मुझे देखरेख करने वाला बेटा बना दें । मैं इस परिवार का अतिथि हूँ । पहले ही मुझे यहाँ रहते बहुत समय हो गया । पर देर सवेर मुझे मीना के पास वापस जाना होगा । मतदाता को अपनी योजनाओं में इस तरह खलल नहीं डालने दे सकता ।

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Voice Artist

मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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