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द बॉय हू लव्ड -02 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

द बॉय हू लव्ड -02 in Hindi

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AuthorSaransh Broadways
मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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बारह जनवरी उन्नीस सौ निन्यानवे आज नए स्कूल में मेरा पहला दिन बस दसवीं की बोर्ड परीक्षा शुरू होने में दो ही वहाँ बच्चे हैं, मामा बनी । ऐसे मुश्किल हालात में मेरा स्कूल बदलने का फैसला क्यों किया जो किसी के भी शैक्षिक जीवन का सबसे अहम साल होता है? बडी अजीब है, मेरा कोई दोस्त नहीं है । अगर तू अभी दोष नहीं बनाएगा तो कब बनाएगा? मैंने कहा उन्हें लगता था कि मेरी जिंदगी ने दोस्तों का ना होना मेरी स्कूली परेशानी थी और इस बात का इस हकीकत से कोई लेना देना नहीं था कि मेरा दोस्त रहस्यमय तरीके से मारा हुआ पाया गया । स्कूल के स्विमिंग पूल के ठहरे हुए पानी में उसकी लाश कर रही थी । उसे आखिरी बार मेरे साथ देखा गया था । कम से कम मेरी क्लास के बच्चों का तो यही कहना और मानना था । बस मैं ही सब जानता था । जब दादा ने सुबह मुझे उठाया तो उनके बाद ग्रिल क्रीम के कारण पूरी तरह सवेरे और दादा चमकते हुए देखें । वो मुझे देखकर फीसे निप्पो रहे थे तो मेरी तरह नहीं थे । उन्हें खुश रहने का दिखावा नहीं करना पडता था । ज्यादा मुस्कराना पागलपन की निशानी नहीं होता । जब उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी नौकरी को चुनने की बजाय निजी क्षेत्र में सॉफ्टवेयर जॉब करने का मन बनाया तो यही से उन्होंने पागलपन के पहले लक्षण का परिचय दे दिया था । सरकारी नौकरी में सारी जिंदगी ऐश हो सकती थी । दादा भले ही आईटी से हूँ, पर हम से ज्यादा स्मार्ट नहीं थे । प्रभु नई स्कूल के लिए तैयार हो । नई वर्दी, नए लोग, सब कुछ नया आॅटो होना चाहिए । मुझे तो दोबारा पुराना स्कूल कभी खास पसंद नहीं आया तो यहाँ नई दोस्ती बना सकते हो । ज्यादा के स्वर में जो लास्ट था, मैंने उसे महसूस नहीं किया । क्यों नहीं, बस उन्हें मेरे अंदर से मौत की गंध ना आए और बस भी करुँ । कितना समय हो गया । दो साल से ज्यादा हो गए । पता भी है वहाँ बाबा कितने परेशान हो जाते हैं । ज्यादा ने कहा मेरा यकीन करो तो मैं अपना नया स्कूल बहुत पसंद आएगा । नाश्ते की मेज पर स्वामी के बारे में बात मत करना हूँ । मैं मजाक कर रहा था । बेशक मैं स्कूल जाने के लिए उत्साहित हूं । मैंने उनकी प्रसन्नता की नकल करते हुए कहा, दादा बहुत आसानी से झूठी बातों में आ जाते थे, क्योंकि वो उनका विश्वास करना चाहते थे । जैसे मैंने भी माँ बाबा की इस बात पर यकीन कर लिया था जब उन्होंने कहा था उन्होंने शामी बहुत पसंद था वो वाकई एक अच्छा लडका था शामिल जब नहीं रहा उसे माँ बाबा ने कभी पसंद नहीं क्या? बाबा के लिए तो ये काफी था उसके माता पिता ने अपने बच्चे के लिए । मुसलमानी नाम चुनाव माँ के पास जनता के और भी विषय थे जैसे उसका पढाई में अच्छा ना हो, ना उसके बैग में सिगरेट का पकडा जाना और स्वामी के भाई का स्कूल से निकलना । सामी की मौत के पहले कुछ महीनों के दौरान उन्होंने मुझ पर जितना भी प्यार उडेला उसके बावजूद मुझे लगता है कि उनके लिए यही बात बहुत बडी तसल्ली थी । इस सामी जैसी बुरी संगति से मेरा बचाव हो गया था । अब वो अक्सर उसी का नाम लेकर बातें बनाते हैं । अगर सामी होता तो ये भी ये ही चाहता हूँ कि तुम अपने लिए नए दोस्त बनाओ । मैंने स्वामी के जाने के कुछ समय बाद से माँ के हाथों सुबह खाना शुरू किया था जो आज तक जारी है । माँ का मेरे लिए दुलार उनके हाथों में मेरे मुंह में दिए गए निवालों से नापा जा सकता था । आज उनके हाथों में चावल और मसले आलू के कौन बहुत बडे बडे थे । मुझे खाना निकलते हुए ऐसे देख रही थी जिससे मैं कोई जीती जाती कला का नमूना हूँ और मैंने खा लिया क्योंकि मेरा मानना था की किसी को भी मूड बनाने का यही तरीका था कि अपने भीतर मत देखो ताकि तुम जान न सको । जो इंसान अच्छी तरह खाता है वो कभी उदास नहीं होता । जब हम खाना खा रहे थे बाबा ने भारतीय क्रिकेट टीम की दयनीय फील्डिंग को कोशामिल और उसके साथ ही भारत की विदेश नीति पर भी सवाल उठाया । लडी पाकिस्तानी सीमा पर हमारे सैनिकों को शूट करते हैं । फिर अपने क्रिकेटरों को दोस्ताना क्रिकेट सीरीज खेलने भेज देते हैं । आतंकवादियों को होटल कोई हम से उडा देना चाहिए जिसमें वो ठहरे हुए हैं । कम से कम नीचे से मैं तो बाहर थे । पापा के स्वर में गुस्सा और चीज दोनों ही शामिल थे । बाबा एक सही कदम है । अगर आपको उसमें कोई परेशानी है तो मैं आपको याद दिला दूँ कि हमारे कप्तान भी मुसलमान ही है । ज्यादा बोले अनिरबान यही तो मैं भी कह रहा हूँ । हम से आशा रखी गई है कि हम पाकिस्तान का हिंदू संस्करण होंगे । सभी हिंदुओं के लिए पवित्र भूमि और देखो हम क्या है अब सैक्यूलर डोंगियों का देश इनका तो बाबा ने कहा । बाबा ने अपने मुख से निकलने वाले अपशब्दों को काट के भीतर ही कुछ लिया । पर वो अपनी धार्मिक पहचान का आदर करते हुए उसे बनाए रखते हैं । तो हमारी तरह नहीं कि अल्पसंख्यकों की हर बात कॅश नहीं । मुझे पूरा यकीन है कि वो लोग हमारा मजाक उडाते होंगे । अब दोबारा शुरू मत करो, चुप करो । दोनों माँ अपने हाथों से बहुत का एक निवाला दादा के मुंह में ठूंस दिया और धार्मिक भावनाओं से भरपूर बातचीत को वहीं ब्रेक लग गया । बाबा हमारे हिन्दू देवी देवताओं की प्रार्थना करने के लिए अकेले रह गए ताकि हमारी छटपटाती क्रिकेट टीम को सौरभ गांगुली का नेतृत्व मिले जो एक बंगाली हिंदू ब्राह्मण था । दादा ने जाने से पहले कहा स्कूल के लिए मेरी फॅस । मुझे बस स्टॉप तक छोडे आई और जब बस उनके प्यारे बेटे उनसे दूर ले जाने लगे तो होने लगी । मैं उन्हें तब तक हाथ हिलाता रहा जब तक बसने मोड नहीं काटा । इससे उन्हें खुशी होती थी । मेरे लिए माँ का प्यार और जुनून पुरानी बात हो गई है । इस बारे में माँ के पास कोई चुनाव नहीं है । ज्यादा थोडे जल्दी ही बडे हो गए । जब मैं बारह वर्ष का था तो ज्यादा हॉस्टल चले गए और अपना मन हॉस्टल के दोस्तों और परिवार के बाहर मिलने वाली खुशी में रमा लिया सिस्टर है । माँ के दिल में बेटे के दुलार की तमन्ना अधूरी रह गई । तभी माँ दिलासे के लिए अपनी आंखों के तारे यानी मेरी और आई और मुझे एक हजार सूर्यों की शक्ति के बराबर बिहार देने लगी । वो भी मेरे पुराने कपडों से लिपटकर शोक बनाती हैं कि अब मैं वो बच्चा नहीं रहा जो अपने हर चीज के लिए उन पर निर्भर रहा करता था । जब मैं बस में अपनी सीट पर बैठा तो बस के सभी बच्चे अजीब नजरों से मुझे ताकने लगे । उन्होंने मुझे माँ को इस तरह ताकतें देख लिया था जैसे किसी कुत्ते के पिल्ले को किसी जगह अकेला छोडा जा रहा हूँ । मैं उन्हें दोष नहीं देता और नहीं मुझे किसी की परवाह है । जब तक हो सकेगा माँ का राजा बेटा बना रहूंगा । पर ये ख्याल भी मन में आता है । कैसा भला तब तक संभव हो सकेगा जैसा कि दादा ने कहा था । मैंने स्कूल में अपनी और से अच्छा बनने की कोशिश की मेरा स्कूल अचानक और मिड टर्म में बदल गया था । बहुत सारे स्कूलों ने मुझे दाखिला देने से इंकार कर दिया था । मेरा नया स्कूल पिछले स्कूल जितना अच्छा नहीं । यहाँ काफी छूट है । अध्यापक पढाने में ज्यादा यकीन नहीं रखते और बच्चे थोडे लवैंडर के सुनके हैं । मैंने किसी से बात नहीं की और ना ही किसी से दोस्ती की है । मैंने खाली पडी हुई है । पहली बेंच अपने लिए चुनी और वहां बैठ गया । ब्लैकबोर्ड को ताकते हुए दिन के खत्म होने का इंतजार करने लगा । पिछले स्कूल में बस सात सौ दिन जिस भी कॉलेज में जाना होगा, वहाँ बारह सौ दिन और फिर कुछ और कुछ और और फिर मैं मर जाऊंगा । एक दिन किसी समय जब तक उसमें साहस नहीं आता कि मैं

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मैं रघु गांगुली हूँ। आज मैं अपनी आपबीती लिखने बैठ ही गया हूँ। कागजों की सरसराहट और उस पर चलती हुई कलम की तीखी निब, धीरे-धीरे स्याही का सोखना तथा इन अजीब से लगने वाले मुड़े हुए अक्षरों को देखना निश्चित तौर पर संतुष्टि दे रहा है। मैं कह नहीं सकता कि मेरे जैसे मौनावलंबी (सिजोफ्रेनिक) के लिए इस डायरी लेखन में ही सारे सवालों के जवाब होंगे; पर मैं आज कोशिश कर रहा हूँ। मेरा सिर बुरी तरह से चकरा रहा है। पिछले दो साल से मैं जिंदगी की सबसे ऊँची लहरों पर सवार था। अधिकतर दिनों में मैंने जान देने के लिए तरह-तरह के साधनों की तलाश की—मेरे घर के आस-पास की सबसे ऊँची इमारत, रसोई का सबसे तेज धार चाकू, सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन, कोई केमिस्ट शॉप—जो बिना कोई सवाल किए सोलह बरस के लड़के को बीस या उससे ज्यादा नींद की गोलियाँ दे दे, एक पैकेट चूहे मारने की दवा और कभी-कभी तो यह भी चाहा कि माँ-बाबा से गणित के पेपर में अच्छे नंबर न लाने के लिए फटकार मिले। सुनिये क्या है पूरी कहानी| writer: दुर्जोय दत्ता Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Durjoy Dutta
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