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द्वितीय परिचय भाग आठ मलिका गए तो गोपाल ने एंथनी का पत्र खोलकर पढा लिखा था गोपाल तो तुम भूल गए हो कि तुम्हारे भैया तुमको अपना पुत्र बना चुकी है । इस पर भी तुम पूछ रहे हो? दिल्ली आओ अथवा नहीं तो उनको यहाँ ऐसे ही आना चाहिए जैसे अपने माता पिता के घर पर आया जाता है । सीधे बिना सूचना दिए धडधडाते कोठी में पहुंच हूँ । मैंने तुम्हारे लिए कोठी में एक सेट कमरों का खाली करा लिया है । साथ ही उसमें फर्नीचर आदि लगवा दिया है । इसके बाद गोपाल के लिए कुछ अधिक विचार करने के लिए नहीं था । मलिका आपने होस्टल में गई और पिता के पास जगह दिए जाने के स्थान पर जालंधर अपनी बहन के घर जा पहुंचे । जब तक वहां पहुंची रानी उसको एक ओर समाचार सुनने के लिए तैयार थी । मलिका की रोनी सूरत देखकर वहाँ पडी और पूछने लगी क्यों? क्या बात है? जगह भी नहीं गई हूँ । वहाँ क्या करती जा कर दी थी तो हमारा गोपाल तो सरोथा पशु है । वे उस राधा रानी को स्वर्ग की देवी समझ उसके गीत गा रहा तो रो क्यों रही हो की तरह हो तो उनको एक वस्तु देखो । रानी मालिक को अपने सोने के कमरे में ले गई । वहाँ कपडों की अलमारी में से एक लिफाफा निकाला । उसमें एक चित्र निकालकर दिखाते हुए पूछने लगी की है कैसा है? मल्लिका ने तस्वीर को देखा की है एक योग की तस्वीर थी । बहुत ध्यान से देख कर बोली यदि तस्वीर को सोलह आने भी सत्य मान लो तो गोपाल से सेवेंटी फाइव परसेंट है तो गोपाल के अभाव में ठीक रहेगा दीदी ये सब तुम और जीजाजी ठीक समझो करूँ मुझे पागल से मत पूछो ये लडका तुम्हारे जीजा जी नहीं देखा है । अमृतसर के सेट सुदर्शन करोडों रुपये के आसामी हैं । ये उनके सुपुत्र है । नाम है श्री केसी वर्मा । तुम्हारे पिता को लिखा है । उनकी स्वीकृति आते ही लडकी वो यहाँ बुला लेंगे । फिर तुम दोनों परस्पर देखकर पसंद कर लेना । तत्पश्चात रीवा हो जाएगा । मल्लिका क्रोध और निराशा से बडी हुई आई थी । इसका उसको इसने संबंध के विषय में इंकार करने का साहस नहीं हुआ । गोपाल से संबंध का वार्ता लाभ तो मलिका के कहने पर ही हुआ था । मलिका की दृष्टि गोपाल पर तब हो गई थी जब वह ॅरियर में पडता था तो वह नहीं जानती थी कि वह उसकी बहन का देवर हूँ । वह तो उसके रूप लावण्य पर की । मुझे हुई इसके पश्चात कालेज की साहित्यिक सभा में उसके व्याख्यान ने तो उसके हाथ पर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली थी । उसने अपनी बहन को लिखा कि उनके कॉलेज में गोपाल नाम का एक सुंदर मिल जाती है । मैं उससे विभाग की इच्छा करती है । जब रानी ने मलिका का पत्र महेंद्र को पढकर सुनाया तो खिलखिलाकर हंस पडा । उसने बताया है तो अपना गोपाल ही है । बस पत्रव्यवहार अरुण हुआ हूँ । एक और महेंद्र ने अपने पिता को लिखा है और दूसरी ओर रानी ने अपने पिता को । पत्रव्यवहार में दहेज आदि के लिए बातचीत चली और निश्चित हो गया । एक दिन उनकी कंपनी का सेक्रेटरी जगह ही आकर मैनेजर के घर ठहरा । बातों ही बातों में उसने बताया कि लाला मुलखराज के साले फकीर चलने कंपनी के बहुत से हिस्से खरीद लिए हैं । यह निश्चित है कि वह इस बार मैनेजिंग डायरेक्टर चुन लिया जाएगा । इस सोचना ने नंदलाल के मन में गोपाल के विषय में दुविधा का अंत कर दिया । अगले दिन ही नंदलाल ने महेंद्र को लिखा और बात हो गई और पीछे लडकी को दिखाने के लिए जगह भी लाया गया । मल्लिका के मन में अभी भी गोपाल का सम्मोहन उपस्थि था । मैं तो निराशा और अपमान से वह छटपटा रही थी । जब से सुदर्शन के सुपुत्र किसी वर्मा का प्रस्ताव उनके सामने आया तो वह मान गई । फकीरचंद की अनुमति आई हूँ वर्मा जालंधर लडकी वो देखने चलाया था । उसने लडकी के गुंडों को तोलते समय लडकी के साथ मिलने वाले दहेज को भी साथ ही पडे पर रखा । पांच मई को परीक्षा समाप्त हुई थी और पंद्रह मई को विवाह हो गया । बी वासेपुर दिल्ली के कॅश में एक नई इमारत के कागजात वर्मा के नाम पर दिए गए । इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार का फर्नीचर तथा अन्य सामान दिया गया । लडकी के लिए बढिया से बढिया भूषण तथा वस्त्र दिए गए । लडके के लिए एक साथ सीट की शेवरलेट कार जो ब्लैक मार्केट में सत्तर हजार की खरीदी गई थी, दी गई एक सहस्त्र बरातियों के आने जाने का रेल वाडा तथा सबको दस दस रूपये का एक एक नोट विदाई के रूप में मिला हूँ । डोरी एक के पास हो जाने के पश्चात ये हुआ और सब कह रहे थे जब नहीं अभी भी राजी तो क्या करेगा । काजी फकीर चंद भी मित्रों के सामने इस चमत्कार की विवेचना करते हुए कहा मुझ को कोई दिक्कत नहीं हुई है । मैंने ये मकान ढाई लाख रुपये में वर्मा साहब के पास बेच दिया है । इस प्रकार यह डोरी की तक काम नहीं रही । मेरा इस पर दो लाख साठ हजार रुपया आया लिखा है और मैंने बेचा है दो दो लाख पचास हजार में । इससे कैपिटल ये नहीं हुआ और इनकम टैक्स वालों को ठेंगा दिखा दिया गया है हूँ दो लाख पचास हजार मेरे पास ऊपर का आया रखा था । जो हिसाब किताब में दर्ज नहीं था वह मैंने किताबों में जमा कर बैंक में भेज दिया है । देखो जी, नेकी और ईमानदारी और दहेज कुप्रथा इत्यादि नैतिक बाद कानून से लागू नहीं हो सकती हूँ । हमारी सरकार ने प्रत्येक सामाजिक कार्य को कानून से चलाना चाहती है । शासन तो कानून से चल सकता है और ईमानदारी कानून से निर्माण नहीं हो सकती । मेरे एक मित्र दिल्ली में सीनियर सुप्रीडेंट ऑफ पुलिस है । मैंने एक दिन उनसे पूछा हूँ पंडित जी यहाँ दिल्ली में ऍम नाक के नीचे नीति, कत्ल, डाके, चोरियां होती हैं । पुलिस तो राम कोड नहीं हो गई क्या बहस कर कहने लगा कितनी पुलिसा दिल्ली में मैंने पूछ लिया तो भी बताऊँ । उसने कहा अब सर और ऍम मिला का तीन हजार से कुछ ही ऊपर है और दिल्ली की जनसंख्या पच्चीस लाख से ऊपर हो गई । ये पच्चीस लाख चौबीसों घंटे शरारत करने की सोचते रहते हैं । हम नहीं जानते की किस समय कौन क्या शरारत करते हैं । पुलिस कर्मचारी आठ घंटे से अधिक कार्य नहीं करते । इस प्रकार गन्ना कर लीजिए । एक पुलिस में दो हजार पांच सौ नागरिकों की देख रेख करते हैं । एक समय था कि बदमाशों बेईमानो फोर्ड दुराचारियों की संख्या दस सहस्त्र जनता के पीछे एक होती थी । अब ये संख्या बढकर सो के पीछे अस्सी तक चली गई । लाला जी हिसाब लगाई जहाँ पहले एक बदमास के लिए चार पुलिस में होते थे वहाँ अब दो हजार बदमाश ऊपर एक पुलिस मैन है । इसके साथ यदि यह भी समझ लिया जाए कि पुलिस महीनों की नैतिकता भी उसी अनुपात से गिरी है जिससे जनसाधारण की गिरी है तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि कैसे पुलिस इस अनैतिकता को रोक सकती है । फॅसा पुलिस अथवा सेना नहीं रोक सकती । कुछ काल के लिए इसपर रोक लग सकती है । परंतु ये निर्मूल अथवा काम भी नहीं हो सकता । इसके लिए धर्मप्रचार की आवश्यकता है और हमारे बुद्धिमान नेता तो धर्मनिरपेक्ष सरकार बना बैठे हैं ।
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