नमस्कार हूँ । आप सुन रहे हैं चाणक्य नीति कॅश इनके साथ अभी तक आपने तीसरा अध्याय सुना था । अब हम पढते हैं चौथे अध्याय क्या जहाँ चाणक्य हमें समझा रहे हैं कि शरीरधारी जीत के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचों की सृष्टि साथ ही साथ हो जाती है । इस नीति के द्वारा चाहे के मानव जीवन की सभी बातों को पूर्वनिर्धारित मानते हैं । उनका मत है कि मनुष्य जीवन काल की अवधि, मृत्यु, सुख दुख, मान अपमान, विद्या और संपत्ति का भोग सभी ईश्वर के आधीन है । बिना उसकी मर्जी के पत्ता तक नहीं हिलता था । सब कुछ उस पर छोडकर मनुष्य को अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए । आगे जाने के समझाते हैं कि साधु महात्माओं के सबसे से तृत्य मित्र बंधु और जो अनुराग करते हैं, वे संसार के चक्र से छूट जाते हैं और उनके कुल धर्म से उनका कुल उज्वल हो जाता है । भाव है कि जिस स्कूल में साधु महात्मा जैसा कोई पुत्र उत्पन्न हो जाता है, उसके सक्षम से बाकी सभी लोगों का भी सांसारिक परिष्कार हो जाता है । आगे समझाते हैं कि जिस प्रकार मछली देख रेख से कच्ची चिडिया इस परसे सदेव अपने बच्चों का लालन पोषण करती है वैसे ही अच्छे लोगों के साथ से सर प्रकार से रक्षा होती है । यहां सडक सत्संगति पर जोर देते हैं और कहते हैं की अच्छे लोगों का साथ होने पर किसी प्रकार की हानि नहीं होती हैं । सज्जनों का साथ सदेव, सुखकारी और हितकारी होता है । चाइना की कहते हैं कि ये नश्वर शरीर जब तक निरोग स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती हैं जब तक मनुष्य को अपने सभी तो निकल कर लेने चाहिए क्योंकि अंत समय आने पर वहाँ क्या कर पाएगा । समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, समय गुजरता जाता है इसलिए किसी भी कार्य को कल पर नहीं छोडना चाहिए और कहाँ भी जाता है । कल करे तो आज कर आज करे तो आप बाल में पर ले होएगी फिर करेगा काम । अतः समय का कोई भरोसा नहीं जो पुण्य कर्म करने हैं अभी कर लेना चाहिए फिर समय नहीं मिलेगा । आगे कहते हैं कि विद्या कामधेनु के समान शिक्षक पूरी करने वाली होती है । विद्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते हैं । विदेश में विद्या माता के समान रक्षा करती है । विद्वानों ने विद्या को गुप्त धन कहा है अर्थात विद्या वह धन है जो आपातकाल के समय काम आती है । इसका न तो हरण किया जा सकता है और ना ही इसे कोई चुरा सकता है । विद्या सभी प्रकार से सुरक्षित पास समय पडने पर रक्षा करने वाली है । इसे जितना दिया जाता है यह उतनी ही बढती जाती है । आगे श्री जाने के एक बहुत ही कठिन बात कहते हैं । कहते हैं कि बहुत बडी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया वहाँ अच्छा है क्योंकि मारा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए कष्ट देता है परन्तु मुर्हुत जीवन भर चलता है । आगे फिर चला के कहते हैं कि उस गाय से क्या लाभ चुना, बच्चा जने और ना ही दूध देंगे । ऐसे पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ चुना तो विद्वान हूँ, करना ही है किसी देवता का भक्त हो । भाव यह है कि दूध देने वाली गाय के समान ही ऐसा पुत्र की कामना की गई है जो विद्वान भी हो । पांच ईश्वर में आस्था रखने वाला भी हो और ऐसे बच्चे सदैव सुख देने वाले और माँ बाप का नाम रोशन करने वाले होते हैं । आगे चल के समझाते हैं कि राजा एक ही बार बोलते हैं मतलब आज्ञा देते हैं । पंडित लोग किसी कर्म के लिए एक ही बार बोलते हैं । मतलब बार बार श्लोक नहीं पढते हैं और कन्याएं भी एक ही बार दी जाती है । ये तीन एक ही बार होने से विशेष महत्व रखती हैं । राजा का, विद्वान का और कन्या के पिता का वचन अथवा कथन अटल होता है । आगे समझाते हैं की तपस्या अकेले में, अध्ययन या पढाई दो के साथ और गाना तीन के साथ । यात्रा चार के साथ खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत की सहायता से होने पर ही उत्तम होते हैं । फिर आगे कहते हैं की पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है । पति व्रता है । पत्नी वही है जिसपर पति का प्रेम है । पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती हैं । आगे समझौते कि बार बार अभ्यास न करने पर विद्या विश्व बन जाती है । बिना बच्चा भोजन विश बन जाता है । दरिद्रों के लिए सज्जनों की सभा या साल पार बन्दों के लिए युवा स्त्री भेज के समान होती है । अभ्यास से ही शिक्षा अथवा विद्या का विकास होता है । जो भोजन पचता नहीं है वह शरीर पर कोई प्रभाव डालता है । एक दरिद्र परिजन अपने है । लोगों को प्रवेश के समान दिखाई पडता है । उन्हें भार स्वरूप दिखाई देने लगता है । यदि किसी वृद्ध को युवा इस्त्री मिल जाए तो वहाँ उसे संतुष्ट न करने की स्थिति में इस जहर दिखाई देने लगती है । प्रत्येक वस्तु का अपना उचित स्थान और महत्व होता है । आगे कहते हैं कि दयाहीन धर्म को छोड दो, विद्या विहीन गुरु को छोड दो, झगडालू और क्रोधी इस्त्री को छोड दो और इसलिए विहीन बंधु बांधवों को छोड दो भाव है कि ऐसे धर्म को कभी नहीं अपनाना चाहिए जिसमें प्राणी मात्र के लिए दयाभाव न हो । ऐसे गुरु को नहीं अपनाना चाहिए जिसमें विद्वता या ज्ञान ना हूँ । ऐसी पत्नी को कभी स्वीकार नहीं करना चाहिए जो क्रोधी स्वभाव की हो और कलह करने वाली हो । साथ ही ऐसे पर इंजनों से संबंध नहीं रखना चाहिए जो सुख दुःख में काम ना आए । बहुत ज्यादा पैदल चलना मनुष्य को बडा पाला देता है । घोडे को एक ही स्थान पर बांधे रखना, स्त्रियों के साथ पुरुष का समागम न होना और मस्त को लगातार धूप में डालने से उनका बुढापा आ जाता है । बुद्धिमान व्यक्ति को बार बार यह सोचना चाहिए कि हमारे मित्र कितने हैं, हमारा समय कैसा है, अच्छा है या फिर बुरा है । यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाए । हमारा निवास स्थल कैसा है? हमारी आई कितनी है और कितना है? मैं कौन हूँ, आत्मा हूँ अथवा शरीर, स्वाधीन अपना पराधीन तथा मेरी शक्ति कितनी है । आगे चल के कहते हैं कि राजा की पत्नी, गुरु, किस तरीक, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता अर्थात साथ और अपनी जनानी ये पांच माताएं मानी गई हैं । इनके साथ हमेशा माँ का व्यवहार करना चाहिए । यदि आप इन सभी बातों का ध्यान रखेंगे तो अपने जीवन में सफलता के मार्ग पर आगे बढते चले जाएंगे । आप सुन रहे थे संपूर्ण जाने की नीति का चौथा भाग अब बढते हैं पांचवें वहाँ की और आप सुन रहे हैं फॅमिली ऍम के साथ हूँ ।