हमेशा जाती हूँ । अभी तक आप सुन रहे थे चाणक्य नीति का सातवां अध्याय । अब हम शुरू करने जा रहे हैं आठ है फॅमिली के साथ । तो चलिए आरंभ करते हैं आठ देगी शुरुआत में श्री चढा के कहते हैं कि निकृष्ट लोग सिर्फ धन की कामना करते हैं । मध्यम लोग धन और यश दोनों की चाहत रखते हैं और उत्तम लोग केवल यश की चाहत रखते हैं क्योंकि मान सम्मान सभी प्रकार के धनों से श्रेष्ठ है । जिस जीवन में मनुष्य को मान सम्मान नहीं मिलता है वहाँ जीवन धन से भरपूर होने पर भी व्यर्थ है । धन नष्ट हो जाता है परंतु आदमी का यश उसके मरने के बाद भी अमर रहता है । आगे समझाते हैं कि दीपक का प्रकाश अंधकार को खा जाता है और कालिख को पैदा करता है । उसी तरह मनुष्य सदेव जैसा अन्य खाता है वैसे ही उसकी संतान होती है । यदि मनुष्य गलत तरीके से कमाए गए धन का अन्य खाता है तो उसकी संतान भी उसी तरह के गलत कर्मों में लग जाएगी और यदि आदमी ईमानदारी से कमाए गए अन्य को खाता है तो उसकी संतान भी ईमानदार होगी । इसलिए परिश्रम, ईमानदारी से प्राप्त अन्य खाना है श्रेष्ठ होता है । आगे समझाते हैं कि है बुद्धिमान पुर । धन गुड वालों को ही दे, अन्य को नहीं देखो । समुद्र का जल मेघु के मूड में जाकर सदेव मीठा हो जाता है और प्रति के चर अचर जीवों को जीवन दान देकर भी कई करोड गुना होकर फिर से समुद्र में चला जाता है । मतदान की महिमा अपरंपार है, परंतु दान उसी को देना चाहिए जो सुपात्र हो । सुपात्र के पास जाने से दान दी गई वस्तु अथवा धन का समुचित उपयोग होगा । दूसरे के पास जाकर दान की गई वस्तु का उपयोग स्वार्थ से प्रेरित होकर ही हो पाता है । मेरे घर के पास जाकर समुद्र का खारा पानी भी मीठा हो जाता है और करोडों जीवों की प्याज को बुझाता है । फिर से सागर में मिल जाता है । आगे समझाते हैं कि तेल लगाने पर, चिंता का, धुंआ लगने पर, स्त्री संभव करने पर, बाल कटवाने पर मनुष्य तब तक चांडाल था, अशुद्ध बना रहता है जब तक कि वहाँ नहीं कर लेता । इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि इन चीजों के बाद हमेशा सबसे पहले स्नान करें । आप होने पर पानी दवा है, बचने पर बल देने वाला है । भोजन के समय थोडा थोडा जल अमृत के समान है और भोजन के अंत में जहर के समान फल देता है । इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि भोजन के अंत में पानी ना पी है या तो भोजन के दौरान थोडा थोडा पानी पी है या भोजन समाप्त होने के आधे से एक घंटे के बाद पानी का सेवन करें । बुढापे में स्त्री का मर जाना, बंधु के हाथों में धन का चला जाना और दूसरों के आसरे पर भोजन का प्राप्त हो ना ये तीनों ही स्थितियां पुरुषों के लिए दुखदायी है । ये ये ना करने वाले का बेद करना व्यर्थ है । बिना दान के यज्ञ करना व्यर्थ है । बिना भाव के सिद्धि कभी नहीं होती है । इसीलिए भाव अर्थात प्रेम ही सब में प्रधान है । भाव के बिना कोई भी कार्य संपन्न नहीं होता । अतः सभी कार्यों में आस्था जरूरी होती है । शांति के बराबर दूसरा कोई तब नहीं है । संतोष से बढकर कोई सुख नहीं है । लालच से बडा कोई लोग नहीं है और दया से बडा कोई धर्म नहीं है । क्रोध यमराज की मूर्ति है । लालच नरक में बहने वाली नदी है । विद्यार्थी कामधेनु गाय हैं और संतोष इंद्रा के नंदनवन जैसे सुख देने वाला है । क्रोध आदमी को हमेशा मृत्यु की ओर धकेलता है । लालच अनेक कष्टों को जन्म देता है । विद्या मनोवांछित फल देने वाली है और संतोष से आत्मसुख मिलता है । गुड से रूप की शोभा होती है । शील से कुल की शुभावती है । सिद्धि से विद्या की शोभा होती है और भूख से धन की शोभा होती है । यहाँ भूख से आशय यह है कि धन का उपयोग जब तक स क्रमों के लिए नहीं किया जाता तब तक धान की शोभा नहीं की जा सकती । आगे चला के कहते हैं कि गुणहीन व्यक्ति की सुंदरता व्यर्थ है । दुसरे स्वाभाव वाले व्यक्ति का कुल नष्ट होने योग्य है । यदि लक्ष्य की सिद्धि न हो तो विद्या व्यर्थ है और जब धन का सदुपयोग हो वह धन व्यस्त है । आगे श्री चाइना के कहते हैं की भूमि के भीतर प्रविष्ट हुआ जल्द ही पवित्र होता है । वर्ष का अधिकांश जल तो बहकर नाले नदियों द्वारा समुद्र में चला जाता है । जो जल बचा हुआ है वहाँ वो नदियों और तालाबों में भूमि के श्रोत से आता रहता है । आगे कहते हैं कि लोग से प्रेरित ब्राह्मण आदर का पात्र नहीं रहता है । पांच महत्वकांशा ना रखने वाला राजा आलसी और अकर्मण्य होकर नष्ट हो जाता है । संकोच करने वाली वैश्याएं ग्राहकों को प्रश्न न करने के कारण अपना धंधा चौपट कर लेती है और बेशर्म कुलीन स्त्री दूसरों का विषय वासना का शिकार हो कर पतित हो जाती हैं । संसार में विद्वान व्यक्ति की प्रशंसा होती है । मैं देखती ही सभी जगह पूछे जाते हैं । विद्या से ही सब कुछ मिलता है । विद्या ही सब जगह पूजा जाता है । जो व्यक्ति मांस मदिरा का सेवन करता है वे इस पृथ्वी पर बोझ है । इसी प्रकार जो निरक्षर है वे भी पृथ्वी पर बोझ है । इस प्रकार के मनुष्य रूपी पशुओं के बाहर से यह पृथ्वी हमेशा पीडित और कभी भी रहती है तो आप जिंदगी में कोशिश करे कि निरक्षक ना बने, अनपढ ना बने या फिर पडे हुए अनपढ ना बनें । ये था अध्याय आठ अब हम बढेंगे अध्याय नौ की और आप सुन रहे हैं फॅमिली साथ ऍम तो हाँ हूँ हूँ ऍम फॅस