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तृतीय परिच्छेद: भाग 6 in Hindi

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AuthorNitin
कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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होती परिचित भाग छह कॉलेज में गोपाल जगह भी नहीं गया । मैं दिल्ली अपने भाई सुरेंदर के पास रहने चला गया । जब से वो जगह से आया था नियंत्रन माँ को लिख रहा था । इस बार दिल्ली पहुंचने पर उसने यही लिखा मैं सुरेंदर भैया की कोठी पर ठहरा हुआ हूँ परीक्षा बल्कि यही रहकर प्रतीक्षा करना चाहता हूँ । इस पत्र के साथ ही राधा का पत्र भेज रहा हूँ उसको पढकर बताना कि मुझ को क्या करना चाहिए । जहाँ तक मल्लिका का प्रश्न है मैं उससे विवाह नहीं करूंगा । मैंने उसको भी स्पष्ट रूप से कह दिया है । जहाँ तक राधा की बात है वह तुम्हारे विचार करने की बात है । उसके उत्तर में उसके माता पिता दिल्ली आगे उन को मल्लिका के विवाह का निमंत्रण मिला था । अपनी कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर की लडकी के विवाह पर पोस्ट होना आवश्यक मान । नंदलाल आया तो साथ में मोहिनी भी आगे वो अपने लडकी कोठी पर ऍम निमंत्रण सुरेंद्र और एंथनी को भी आया था । एंटनी ने निमंत्रण पढा तो गोपाल को दिखा दिया भोपाल नहीं पढा और फिर उसे बाहर को वापिस करते हुए मैं कुछ ऐसी ही आशा करता था । एक बात की मुझ को पसंद आता है की मलिका को जीवन का किनारा मिल गया है । एंटनी ने मुस्कुराते हुए कहा, परन्तु गोपाल का किनारा कहा है मेरा किनारा बछरावा जिला रायबरेली के समीप एक छोटे से गांव में वहाँ जाने का मार्ग अवरुद्ध है । मार्ग अवरुद्ध है तो यहाँ भी सेटल क्यों नहीं हो जाते हैं । बहुत तो कोई अपने समुदाय की लडकी ढूंढी जाए भावी तो तुम समझ नहीं सकती मेरा राधा से जन्म जन्मांतर का संबंध मुझको स्मरण ज्यादा जब बच्ची थी तभी मेरे मुंह से निकल जाता था । गोपाल की रहा था । वह भी कहा करती थी मैं राधा तुम गोपाल हम तब बिल्कुल व्यवस्था हुए थे और हमारी बातें सुन सब ऐसा करते थे । जब राधा विवाह के लिए गांव जा रही थी तो मेरे हर डे में तीस से उठी थी । तब तो मैं इसका अर्थ नहीं समझ सका परंतु जब वह विधवा होकर पुणे हमारे घर में आई है तो मुझको उस तीस का अर्थ समझ में आने लगा था । कई वर्ष तक मैं उससे भी वहाँ के विषय में विचार करता रहा था । पिछली बार ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों के बाद जब मैं काले जाने वाला था तो एक दिन दादा की भावी रुकमनी ने माता जी से का ज्यादा का विवाह हो जाना चाहिए । इस बात को सुनकर मेरे मन में बहुत संभाल गया कि कहीं ज्यादा का उन्हें विवाह हो जाये और मैं मुख् देखता रहता हूँ । इस कारण इस बार बडे दिन की छुट्टियों में मैं उससे भी बात करने का पक्का निश्चय बना बैठा । राधा को जो मैंने अपने मन की बात कही तो वह बोली मन से तो मैं आपकी बाल्यकाल से ही हूँ परन्तु इस शरीर बनाने वाले नहीं जानते और इसको दूसरे के हवाले करने की योजनाएं बनाया करते हैं । मेरा कहना था उनका विरोध नहीं करना चाहिए क्या? मैं नहीं जानती कैसे करूँ । इस पर मैंने उसको चोरी चोरी विभाग कर पीछे घोषणा करने की बात कही तो वह गंभीर विचारमग्न हो गई । एक दिन रात के मनन के पच्चास उसने कहा विवाद तो मेरा आपके साथ हो चुका है, अब संसार की दृष्टि से भी कर लीजिए परन्तु जब तक संसार चूका नहीं करेगा ये शरीर आप के सरीर से प्रत्येक रहेगा । संसार से किसके इसका मतलब है तुम्हारा । मैंने पूछा आपकी माँ से ही है । यदि वे मुझको अपनी पता हूँ के रूप में स्वीकार कर लेंगे तो मेरे लिए संसाधन पूरन हो जाएगा भाभी मैंने उसका अंतिम पत्र माता जी के पास भेज दिया है । पर अभी तक माता जी का कोई उत्तर नहीं आएगा । मेरे चलने से कम नहीं बन सकता हूँ । जमा करना भावी तुम्हारा हूँ । रंग और पहरावा तो उन गरीब अनपढ देहातियों को और भी बढ कर देगा । अगले दिन नंदलाल और मोहिनी मलिका की वहाँ पर भेज देने और उसको आशीर्वाद देने के लिए आगे आते गोपाल से भेंट हुई । भोपाल ने माता पिता के चरण हुए तो ननद ने कह दिया इन दिखावे की बातों में क्या रखा है वो तो महान नालायक तुम्हारे बाप से कई गुना अधिक धनवान के लडके ने ये संबंध स्वीकार कर लिया । उत्तर एंथनी नहीं दिया डर्ट ऍम मिट्टी पर मिट्टी जमती है । मालूम होता है कि तुम नहीं गोपाल का दिमाग खराब कर रखा है । नहीं नहीं पिताजी महिंद्रा ने अपनी पत्नी की रक्षा के लिए कह दिया । हमारा कहना मानता तो वह राधा को बलपूर्वक हर कर ले आता हूँ । ये बिलकुल हिंदुस्तानी रस्मोरिवाज के अनुकूल होता । परन्तु ये है और राधा तो आदर्शवादी बने का एजुकेशन ऑफ मैरिज विवाह का भोग ये तब तक करना नहीं चाहते हैं जब तक आप इनको आशीर्वाद नहीं देंगे । ये मैं कभी नहीं करूंगा । मैं आपसे इतने युक्तिसंगत व्यवहार की आशा नहीं करता हूँ । अपने विषय में आपका व्यवहार देखा तो मैं आपको अभी उदार हरदे वाला मानता था । मैंने तब भूल की थी वैसी भूल में दोहराना नहीं चाहता । यदि में गोपाल के स्थान पर होता है तो आपके आशीर्वाद की कोई आवश्यकता ही नहीं समझता हूँ । आपको तो विवाह भोग के बाद ही सोचना भेजता है । इस पर गोपाल ने कह दिया नहीं भैया मैं इस विषय में ज्यादा कीमत का समर्थन करता हूँ । बात यहीं समाप्त होगी । माने एक कान ढूंढ कर भोपाल से पूछ लिया विवाह हुआ उसका गोना जब आएगा तब देखा जाएगा । अभी उसके खर्च के लिए कुछ भेजा है अथवा नहीं जानते होने की उसके पिता की नौकरी छोटी हुई है और वह अवश्य आर्थिक कष्ट में होगी, हाँ भेजा था परन्तु उसने इंकार कर दिया । उसने लिखा है कि धन पार्थिव है, ये है पार्थिव शरीर का ही मूल्य हो सकता है आपको मिला नहीं, इसका रुपया लेना उचित नहीं । बहुत हठीली लडकी है । इस पर भी मैं उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकती । मैं तो जाकर उसको ले आती है परंतु तुम्हारे पिताजी की इच्छा के बिना नहीं जा सकती । माता पिता के चले जाने पर चार गोपाल ने राधा को लेकर हाँ तो तुम को ले जाने के लिए तैयार है परन्तु पिताजी नहीं मानते हैं । माताजी पिताजी के आदेश के बिना जाना नहीं चाहते हैं । गोपाल ने मल्लिका के विवाह की बात भी दिख । इस पर राधा का उत्तर आएगा मल्लिका बिचारी का उद्धार हो गया । इससे प्रसन्ता हूँ । यदि आपको जल्दी नहीं तो आप माता जी के आने की प्रतीक्षा करें । दिवस करने की आवश्यकता नहीं मैं ये संभव प्रतीत होता है । असल बात है हृदय परिवर्तन । उसके लिए अभी वो तपस्या क्या हो सकता है । जुलाई के अंत में परीक्षाफल घोषित हुआ । मल्लिका फैल हो गई थी । परंतु गोपाल यूनिवर्सिटी में प्रथम आया था । उसके नौ सौ अंकों में से सात सौ अस्सी अंक आए थे । यूनिवर्सिटी का उससे पहला रिकॉर्ड था सात सौ बासठ । इस कारण परीक्षाफल घोषित होते ही एक सप्ताह के भीतर दिल्ली में ही लेक्चर के स्थान पर नियुक्त हो गया । इस नियुक्ति के लिए सुरेंदर को भाग दौड करनी पडी थी । जब गोपाल को नियुक्ति पत्र मिला तो एंटनी ने पूछ लिया क्योंकि ऊपर प्रसन्न हो अभी क्या वेतन मिलेगा । अभी तो तीन सौ रुपये ही मिलेगा । इससे क्या होगा? निर्वात होगा ही निर्वाह तो हमारी चपरासी का सत्तर रुपए होता है । उसके पांच बच्चे हैं परन्तु हमारे कुत्ते का खर्च पचास महीना । इससे मैं निर्वाह की बात नहीं कर रहे हैं । मैं कहती हूँ कि इससे इंसान की भर्ती रहा जा सकेगा । क्या इंसान की भर्ती तो सत्तर रुपये से कम में भी रहा जा सकता है? बहुत रुपया तो हम पढे लिखे मेहमान बनने पर ही क्या करती हैं? तो मैं कैसे भावी राधा और उसके पिता स्वाभिमान का जीवन व्यतीत करने के लिए दो सौ रुपये वार्षिक पर्याप्त समझते हैं । इसमें भी वे सुख अनुभव करते हैं । किसी को मैं इंसानियत मानना जहाँ स्वाभिमान नहीं, वहाँ पशु बना जाते हैं । भला कभी आपने चपरासी से पूछा था वैसे चुकी है अथवा दुखी है । पूछा था मैं कहता था तो नहीं । हाँ, जीवन में असुविधा बनी रहती है । मैं उसकी इस फिलॉस्पी को समझती नहीं है । सुविधा और दुःख में वह कैसे भेद कर सकता है? मैं ठीक कहते हैं । दुख आत्मा का विषय ऐ सुविधा शरीर वहाँ एक हिंदू होने के नाते शरीर और आत्मा का भेद समझते हैं । आपको नास्तिक रहना अच्छा ऍम इस कारण आप आत्मतत्व को मानती नहीं और किसी का दुख और ये सुविधा में अंतर नहीं जान सकती हूँ । एंटनी को इस प्रकार की बातों में सोची नहीं थी । उसको तो जीवन का बढिया वस्त्र, भूषण श्रृंगार सामग्री, बहुजन कोठी और फर्नीचर मात्र ही थी । इसके लिए वह तीन सौ रुपए अपर्याप्त मानती हूँ हूँ ।

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कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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