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तृतीय परिच्छेद: भाग 10 in Hindi

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AuthorNitin
कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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हूँ । तृतीय परिच्छेद भाग दस मल्लिका अपने पति को अपने पिता की कोठी में ले आई और उसके साथ ही वहीं एक कमरे में रहने लगी । कोठी में छह बैडरूम थे । सब कमरों के साथ थक बाथरूम भी थी । ड्राइंग रूम साझा था । खाने के लिए दो डाइनिंग रूम थे । एक घरवालों के लिए, दूसरा बाहर के मेहमानों के लिए दोनों मध्यांतर चार बजे दिल्ली पहुंचे थे । पहुंचते ही हूँ । चाय का प्रबंध हो गया । वर्मा पिछली रात का था का हुआ था । मार्ग भर होता जाता आया था । उसने चाहे ली और सोने के लिए कमरे में चला गया और जाते ही हो गया । हम मलिका ने पति के मंडल में से निकले रुपए अपने पर्स में से निकाल गिन डालेंगे । तीस नोट थे । इसका अभिप्राय था पंद्रह हजार । एक बार उसके मन में आया था कि पति को बता दें । फिर विचार करने लगेगी की जब बात होगी तो बता देगी कि उसने निकले थे । उन्हें पांच बजे का सोया वर्मा रात्रि भोजन के समय उठा । अब मैं तरोताजा था । उठकर गुसलखाने में गया और जेब के नोट निकालकर गिनने लगा । तीन सौ सत्तर नोट थे उसने । फिर ये नहीं इतने ही निकले । वह विचार करने लगा कि कम कैसे हो गए । जब उसने नोट लिए थे तो वह बहुत थका हुआ था । इस कारण उसने पहले तो ये समझा कि पिछली रात गिनने में उसने भूल से चार सौ के स्थान पर तीन सौ सत्तर लिए थे । एकाएक उसको विचार आया कि जब प्राप्त निकाल मैं उठा था तो नोट उसकी जीव के बाहर पलंग पर पडे थे । उसे विश्वास हो गया कि उस समय भी नोट किसी ने निकले हैं । यदि उसने सोने का कमरा खुला होता हूँ तो उसका संदेह अपनी माँ पर जाता हूँ । उसकी माँ को अपने पुत्र की टीम में से ज्यादा कदम पैसे निकाल लेने का स्वभाव था । परन्तु उस दिन मलिका कमरे में थी और उसने पिता के बहन के मारे कमरे का द्वार बंद कर रखा था । वो मैं समझ गया आपके निश्चय ही मल्लिका ने रुपये निकाले होंगे । वह गुसलखाने में से बाहर निकला है तो मलिका खाने के कमरे में जा चुकी थी । मल्लिका का फर्स्ट पलंग के साथ लटक रहा था । एक्शन विचार कर वर्मा ने पर्स खोला । उसमें उसे अपने गुम हुए नोट दिखाई दिए गए । साथ ही सौ सौ रुपए के कई अन्य नोट भी थी । वर्मा ने अपने पांच पांच सौ वाले नोट निकाल लिए और अपनी जेब में रखे हैं । तत्पश्चात उसका पर्स बंद कर मुस्कराता हुआ वो डाइनिंग हॉल में चला गया । फकीर जान जगह ही से आया हुआ था और वर्मा के आते ही कारोबार के विषय में बातें होने लगी । वर्मा ने बात आरंभ कि उसने कहा मलिका कह रही थी कि मुझे दिल्ली में कोई काम आरंभ करना चाहिए । मेरे पिता जी अकेले अमृतसर में काम नहीं चला सकते हैं । इसका मैं कुछ परेशानी अनुभव कर रहा हूँ । फकीर चंद ने कह दिया मैं नहीं जानता कि आप कितनी पूंजी लगा सकते हैं । हाँ ये मैं कह सकता हूँ कि उस पूंजी से जितना लाभ आप अमृतसर में उठाते थे उससे कई गुना अधिक यहाँ प्राप्त कर सकेंगे । मैं कुछ खुल्ला रुपया अपने साथ लाया हूँ परन्तु उसके साथ कुछ किताबी रूपया भी लगाना पडेगा । वह मैं ला नहीं सरकार । वैसे मैं पिताजी से राय के भी नहीं आया हूँ । विचार कर रहा हूँ कि कोई कारोबार आरंभ कर पिताजी को भी यहीं बुला लूंगा । कितना कितना भी रुपया चाहिए बीस तीस हजार तो मैं अपना डेढ लाख उसमें समाज सकूंगा । यह मिल जाएगा । आप कोई कारोबार आरंभ करिए, रुपये का प्रबंध मैं करवा दूंगा तब तो ठीक है । मलिका विचार कर रही थी कि वर्मा की जिम में तो दो लाख था और ये डेढ लाख कह रहे हैं । उस ने समझा कि चोरी के माल कर रुपया चोरी चोरी प्राप्त किया गया है और संभव शराब के नशे में किया गया हूँ और गिनती ठीक नहीं की जैसे की हो । वह मन में विचार कर रही थी कि पंद्रह हजार सुगमता से उसके अपने हो सकते हैं । खाना खाने के बाद दोनों अपने कमरे में आए तो मलिका की दृष्टि अपने पर्स पर पड गई है । मैं उसे पलंग की पीठ पर लटका कर गई थी और ऍम पलंग पर पडा था । वर्मा जल्दी में उसी लटकाना भूल गया था । मालिक को संदेह हुआ कि उसके पति ने उसको देखा है । उसने पलंग पर बैठते हुए और उसको खोला । उसने पांच पांच सौ वाले नोट गायब थी । उसने अपने पति के मुख पर देखा तो वहाँ पडा । मल्लिका ने पूछा भला हासिल क्यों हैं? चोर को मोर पड गए । इसलिए क्या मतलब? मतलब ये है कि मैं ये रुपया पिताजी से चोरी लेकर आया हूँ । तुम ने उसमें से पंद्रह हजार चुरा लिए थे । मैंने वापस ले लिए हैं और मैंने चुराए नहीं थे तो मुझसे पूछ कर लिए थे । पूछ कर तो तब लिए जाते जब किसी दूसरे से लिए जाते हैं । मैंने अपने समझ कर लिए थे वो तो तुम भी मेरे साथ व्यापर करती हो । व्यापार पुरुष करते हैं इसलिए तो भूख करती है । उसके लिए पंद्रह हजार की क्या आवश्यकता थी मगर आपके पास तो रूपये पूरे थे बल्कि ये कहूँ कि डेढ लाख नहीं अपनी जेब में बच्चे देकर एक लाख हजार रुपए कर दिए थे । तो तुमने सब दिन डाले थे जी और वही हिसाब भी बडा था जो उन नोटों के साथ रखा था वो तो तुम एक बहुत ही बडी चोर हो जोर की बीवी जो भी मैं छोड नहीं हूँ खून पसीना एक रूपया कमा कर लाया था । डेढ लाख मैं आप अपना डेढ लाख ले लीजिए । चीज मुझे मिल जाना चाहिए । मैं लिखा उठी और अपने पति का कोर्ट जो उसने वार्डों में लटका दिया था उतारने चल पडी । वर्मा अभी भी डेढ लाख बाद समझने सकता था और इसका और समझने के लिए मलिका का मुख देख रहा था । उसके देखते देखते हैं । मलिका उसका कोर्ट निकाल नहीं हूँ और नोटों का बंडल उसकी जेब से निकालने लगी हूँ । वर्मा ने जब टूटकर कोर्ट छीन लिया और डांट के भाव से बोला ये क्या कर रही हो? आपके डेढ लाख आपको दे रही हूँ । मेरे तो दो लाख है । अभी तो पिताजी को कह रहे थे कि आप के पास डेढ लाख हैं । वो डेढ लाख तो में उनको दे रहा था । शेष पचास हजार आपने एस छुडाने के लिए अपने पास रखना चाहता था पचास हजार मैस करने के लिए क्या करते हैं रुपये का इससे तुमको क्या मुझको? रुपये से तो इतना मतलब नहीं जितना आपकी ऐसी है । सब बकवास है । इतना के वर्मा उठकर कमरे से बाहर निकल गया । सारा रुपया उसके हाथ में हो मलिका मुख देखती रहेगी । उसने समझा कि वर्मा अपने स्वभाव के अनुसार किसी विषय की खोज में गया है । दस मिनट में ही वर्मा लौट आया । उसके हाथ खाली थी । मल्लिका ने पूछ लिया रुपया कहाँ फैक आए हैं तुम्हारे पिता की सेफ में सब था दो लाख का दो लाख मालिक वो इसे संतोष हो गया । इस समय वर्मा ने कहा मैं घूमने जा रहा हूँ । मैं भी साथ चलो नहीं तुम जैसी कुरूप । इस तरी के साथ भला कौन सरीफ आदमी रात के समय निकलेगा तो मैं कुरूप हूँ । बिल्कुल ये वर्मा कमरे से निकल गया है । मल्लिका जिस मतलब के लिए अमृतसर गई थी और जिस प्रयोजन से अपने पति को दिल्ली लाई थी, वह पूर्ण नहीं हुआ । ऊपर से करू होने का फतवा और मिल गया था, उसका दिल भूल गया था । इस पर भी वह अब अपने पिता के अधीन है । उसका सब रुपया उनके पास है । वो उस पर दबाव डालकर उसे सद्मार्ग पर ला सकेंगे । रात भर वर्मा नहीं लौटा । मैं रात के एक बजे तक उसकी प्रतीक्षा करती रही और फिर हो गई पाते । काल भी वर्मा नहीं । छोटा मलिका समाजवादी से अवकास पाकर अल्पहार लेने के लिए डाइनिंग हॉल में चली । फकीरचंद आपने सीरीज परिवार के साथ बैठा था । मैं मालिक को के लिए आते देख पूछने लगा । वहाँ साफ नहीं आ रहे हैं । मलिका की आंखों में आंसू आने वाले थे । उसने यत्नपूर्वक उन्हें रोक लिया और चुपचाप खाने के लिए बैठ गई । इस परफॅार्म को विश्व में हुआ । उसने अपने पुत्र को कहा विनोद जाओ, जी जी से हो । उनकी प्रतीक्षा हो रही है । विनोद जाने लगा तो मलिका ने कह दिया, विरोध मत जाओ । पिताजी भीतर नहीं है । रात नौ बजे के लगभग घूमने निकले थे और फिर नहीं आएगी तो तुमने पहले क्यों नहीं बताया ये तो चिंता की बात है । उसकी जेब में डेढ लाख रुपया था और रात के समय इस जंगल में फकीर चंद तमक कर उठ खडा हुआ है । मालिक आने का पिताजी आप बैठे है । रुपया तो सारा आपको दिए गए हैं और रात बाहर घूमने फिरने की उनकी आदत है ही । रुपया मुझे दे गए हैं । क्या दे गए हैं । उनके पास दो लाख रुपया था । मैं कह रहे थे कि उन्होंने आपको सेट में रखने के लिए दे दिया है । मेरी सेफ में कुछ नहीं रखा गया था । मुझे तो रात खाना खाने के बाद मिला भी नहीं तो फिर किसी वेश्या के कोठे पर गए होंगे । दिल्ली में अब वेश्याओं कोठी नहीं है परन्तु वैश्याएं तो बहुत होंगी । कहीं मर तो नहीं गई होंगी । अकीचंद मुख देख कराया गया । उसे पंजाब नेशनल बैंक में कुछ आवश्यक काम था तो उसने जल्दी जल्दी से नास्ता लिया और मोटर पर सवार हो कोठी से निकल गया । ग्यारह बजे के लगभग वर्मा लोटा मल्लिका उसका मुख देखती रह गई है ।

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कामना जैसा कि नाम से ही विदित होता है यह गुरुदत्त जी का पूर्ण रूप में सामाजिक उपन्यास है इस उपन्यास में इन्होंने मानव मन में उठने वाली कामनाओं का वर्णन किया है और सिद्ध किया है कि मानव एक ऐसा जीव है जो कामनाओं पर नियंत्रण रख सकता है Voiceover Artist : Suresh Mudgal Producer : Saransh Studios Author : गुरुदत्त
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