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डाॅ । कहते हैं कि भूत चुडैल से तो किसी ओझा पंडित से मिलकर पीछा छुडा सकते हैं लेकिन जिसके पीछे डायन पड जाए उसका कुछ नहीं हो सकता है । ये बात आज से पच्चीस वर्ष पहले क्या मेरा नाम राकेश पंडित है? अठारह साल की उम्र में ही पहुंच में भर्ती हो गया था । इंटरमीडिएट करने के बाद ही गांव में दोस्तों के साथ समूह बनाकर सुबह प्रमुख सूरत में एक गांव से दूसरे गांव तक दौड लगाते गांव में उस वक्त सुबह सुबह लॉन जब रस्सी कूद, दंड बैठक ये सपने पैकेट के हिस्से जैसे हो गए थे । शायद यही कारण रहा कि इंटरमीडियट के बाद फौज की भर्ती में पहली बार में ही फिर अच्छा हो गया था । वो जमाने में गांव के लगभग हर लडके की फौज की नौकरी पहली पसंद होती थी । मेरा चयन गढवाल राइफल्स में सूबेदार के पद पर हुआ था । ट्रेनिंग के बाद मेरी पहली नियुक्ति जम्मू में पठानकोट नामक जगह पर हुई थी । कुछ वक्त के बाद मेरी छुट्टी की अर्जी मंजूर हो गई थी और लगभग डेढ साल बाद में आपने गांव जाने वाला था । मेरे गांव का नाम नया काम है जो देहरादून रेलवे स्टेशन से सत्रह किलोमीटर की दूरी पर ग्रामीण क्षेत्र में पडता है । उस दिन मैंने अपना सामान पडा । बट क्या और अपने काम के लिए निकल पडा । मैं पठानकोट से दिल्ली ट्रेन आया । उसके बाद उसे शाम तक ठीक छह बजे दिल्ली से देहरादून के लिए मैंने बस पकडी । मैं ठीक रात सवा बारह बजे देहरादून बस स्टैंड पर पहुंच चुका था । इतनी रात को नया गांव जाने के लिए कोई भी बस किसी तरह की गाडी नहीं थी । गांव जाने के लिए सुबह साढे सात बजे पहली बस थी । मैंने अपने गांव पैदल ही जाने का निश्चय किया । कुछ आज भी बिलकुल ठीक ठीक है तो अक्टूबर का महीना था । साल का ये एक महीना ऐसा होता है जिसमें ना तो ठंड का अनुभव होता है नहीं करने का । मैं अपने काम की तरफ बढ चला हूँ । लगभग दो घंटे पैदल चलते चलते हैं । मैं छोटी गांव पहुंच गया । बहुत सालों से प्यास लगी थी । भुट्टी गांव में ही सडक किनारे कब्रस्तान था जिसके कैसे तरह से अंदर जाते ही हैंड था । मैंने अपने पिट्ठू बैग को नीचे उतारा और पानी पीने के लिए अंदर चला गया । मेरी नजर वहाँ कब्रस्तान में दफनाए हुए हैं । एक कमरे पर पडी खबरकी ताजी मिट्टी को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि आज सुबह ही यहां किसी को दफनाया गया होगा । मेरे मन में विचार आया कि ये भी क्या जगह है । इंसान को मरने के बाद उसके अगले का दिखाती है । लोग पूरी जिंदगी इसी धोके में जीते हैं कि जहाँ जो कुछ भी है सब मेरा है । किसी ने सच ही कहा है कि खाली याद आए थे, खाली हाथ ही जाएंगे । लेकिन इंसान के मरने के बाद क्या होता होगा वो सच में अपना होती है क्योंकि मृत्यु के बातचीत को छोड कर जाती है या वो आत्माएं हमारे यहाँ तक करते ही मौजूद रहते हैं । अच्छा के पहुंचने की आवाज से मेरे विचारों की श्रृंखला टूटी पटना पानी पीने के लिए हैंड की तरह पर जैसे ही मैंने हैंडपंप के हफ्ते को अपनी हथेली पढकर नीचे की तरफ क्या हुई, इतनी इनकी आवाज करते हुए पानी आने लगा । ऍम की हालत हूँ जैसे हैं । पाकिस्तान के अंदर होने की वजह से स्थानीय लोग इसका उपयोग बहुत काम करते थे । अपनी प्यास बुझाते ही मैंने अपने पिट्ठू बैग को पीछे ज्यादा और अपने गांव की तरफ चल पडा । यहाँ से नया काम डेढ किलोमीटर ही दो छुट्टी गांव और नया गांव के बीच एक बडी से पुलिया पडती थी । दुनिया के उस तरफ नया गांव की सीमा लगती थी तो इस तरह से बुड्ढी का उनका क्षेत्र आरंभ हो जाता था । घडी में ठीक ढाई बज रहे हैं पर कोई भी नहीं रखा था । चारों तरफ अंधेरा पसरा हुआ हूँ । इस वक्त काम में कोई जंगली जानवर भी नहीं देख रहा हूँ । मैं जैसे पुल पर पहुंचता हूँ आपने मुझे कुछ हलचल सुनाई दे दिया । जब मेरी नजर सामने पडती है तो मैं अपनी जगह पर ही खडे खडा रह गया था । मैंने देखा सामने पीपल के पेड के नीचे जहाँ करते हैं जिनके जिस्म पर एक भी कपडा नहीं है, उस पीपल के पेड के नीचे भी चल रही है । एक औरत हाथ में किसी जानी खोपडी का कंकाल लेकर बैठी हुई है । अब बाकी के तीन पार्ट कुछ मंत्र पुत्तुर आते हुए उस भारत के कौन खोल चक्कर काट रही है । जब मैंने ध्यान देकर उन और उनको देखा तो तीन और तुम को तो बिल्कुल ही नहीं पहचान पाया । लेकिन चौथी औरत का चेहरा देखते हैं मेरे हो गए उस औरत को मैं पहचानता था तो मेरे बचपन के मित्र कुमार की धर्मपत्नी थे । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । मैंने आज तक अपनी जिंदगी में इस तरह की विचित्र स्थिति का सामना नहीं किया था । पाल को लगा कि ये मेरा बहन है लेकिन जैसे ही अपनी आंखों को मीचकर तुम्हारा देखने की कोशिश के तो वही नजर मेरे सामने था हूँ । वहीं पुल के ऊपर किसी कोने में दुबक कर ये सब देखने लगा कि आखिर महाजन क्या है । थोडी देर में जो भारत बैठी हुई थी वो अपनी जगह से उठी और दोनों हाथों को ऊपर कर चंद की तरफ देखते हुए अजीब अजीब सी आवाजें निकालने लगे । कुछ देर चंद की तरफ देखने के बाद तो लोग हाथों को उठाकर पीपल के पेड के उल्टे चक्कर यानि मामा वक्त दिशा में काट रहे । लगभग तीन चक्कर लगाने के बाद उसके साथ के तीनों औरतें भी उसी तरह अपने हाथों को उठाकर पीपल के चक्कर काटने लगी । मेरी समझ में बिल्कुल नहीं होता की तरह अपना होकर कौन चीज हो रही है । उनकी की अच्छी हरकते देखकर ये समझ में इतना तो आ रहा था कि ये जरूर अंतर साधना कर रही हैं । मैं उन लोगों की अच्छी तंत्र साधना में इतना हो गया कि मुझे ही नहीं रहा कि इन लोगों ने उस पीपल के पेड के कितने चक्कर काटे । फोन आॅस्ट्रिया बहुत ही अच्छे लग रहे हैं । मैं थोडी देर के लिए ना चाहते हुए भी अपनी ही हटा ली । इस तरह की घटना मैंने पहले कभी नहीं देखी थी । जब मैंने थोडी देर में तुम्हारा देखा तो अपने अपने कपडे पहनकर गांव की तरफ जाने लगी । मेरे अंदर इतना साहस नहीं ताकि मैं उनका पीछा कर । जब मैं तीन सरकारी पर पडी तो देखा सुबह के साढे तीन हो गए । मैंने तकरीबन चार बजे तक वहीं पुल पर बैठकर इंतजार किया । उसके बाद वहाँ से अपने काम की तरफ बढ गया । ठीक चार बजकर पैंतीस मिनट पर आपने कहाँ पहुंच गया था? मैंने सोचा कि बहुत दिन हो गए । अपने बचपन के मित्र कुमार से भी नहीं मिला । ब्रेक के घर का नाम है गुड्डू था अपने घर में और सभी परिचितों के बीच में गुड्डू के नाम से ही प्रचलित था । सुबह होकर मैं सबसे पहले गुड्डू के पास जाऊंगा और सारी सच्चाई उसके सामने रखता हूँ । मन में से भरने का विचार लेकर उसके घर की तरफ चल पडा । अपने घर से कुछ दूरी पर ही चला था कि मैंने देखा कि कुछ लोग किसी की लाश कंधे पर रखकर क्या कहते हैं । वही कोने में सहन कर खडा हो गया । जब थी वहाँ से चली गई । तब मैं कुड्डू के घर की तरफ चल पडा । थोडी देर में ही मैं कुट्टू के दरवाजे पर खडा था । ऍर के दरवाजे को ठीक लगाया । देखते ही मेरी आंखें फैल गई की खुद क्यूँकि घरवाली ने दरवाजा खोला तो मुस्कुराती हुई बोली अरे वाह! बहुत दिनों बाद दर्शन हुए । आपके आई है, अंदर आ जाइए । मैं मत नहीं जुटा पा रहा था कि उनसे कुछ कह सकते हैं । मैं करते हुए उन्हें देख रहा था और कुछ भी कहने में असमर्थ था । अभी अचानक उन्होंने हफ्ते हुई मेरे दाहिने हाथ की कलाई पकडी और अन्दर की तरफ खींच लिया । अब दरवाजे में कुंडी लगती मेरा मित्र को टोकते हुए आया । बोला क्या हुआ होते होते हुए अपने आप को संभाला । बनावटी हंसी बहुत बनाता हूँ । फिर बोला नहीं नहीं हूँ मैं बिल्कुल ही सही वो लगता है । उन्होंने अभी इस गांव के मुख्य जी की शवयात्रा देखिए तो उसकी वजह से ये आहत हो गए । बडे भलेमानस से बचा रहे लेकिन नियति के आगे किसकी चली है? भाभी ये कहकर हफ्ते होंगे । शायद चाहे नाश्ते के लिए रसोई घर की तरफ चल पर जाते हैं । मैंने सोचा यहाँ इस पता बताना सही नहीं होगा । मेरी बातों पर विश्वास भी नहीं करेगा । फॅमिली घर में जाते हैं । गुड्डू से कहा ऍम मुझे तो बहुत जरूरी बात करनी है । ठीक है तो कर कुछ क्या कहना को तो पूछ कर भाई बहुत मैं यहाँ नहीं बता सकता हूँ नहीं बाहर चलते हैं । मैंने तुरंत उसे जवाब दिया ठीक है मैं थोडी देर में तेरे घर पर आ जाता हूँ । ये सही रहेगा । कुछ ये कहकर मुस्कुराने लगा नहीं पिछले बात इतनी गोपनीय है कि मैं इस बात को अपने घर पर भी नहीं बता सकता हूँ । मैंने इस बार भारी आपसे का ऍम शाम को हम अपने गांव के पाउँगा जमाने वाला पुलिस हाँ मिलते । ऍम को दो ये कहकर मेरी तरफ देख लूँगा मैं भी उसको हाँ तब यही सब बातें हो रही थी की भाभी चाहे और इसको लेकर आ गई । मैं अंदर आप इतना साधा डाल समझ गया था कि मैं अपनी जगह से झटके से उठा और गुड को ये कहते हुए चला गया । मुझे बहुत जरूरी काम याद आ गया है । यहाँ जाना किस पर आपको देखकर वो नाटक कैसे रह गए? दिन में खाना खाकर छत पर थोडी देर पहले चला गया । जैसे मेरी नजर अपनी गली में, पर एक पूरे होशोहवास छोडकर एक के पीछे एक बारी परी से पांच शवों को लेकर लोग राम नाम सत्य कहते हुए आगे पढ रहे थे ऍम चल पड गए । मुझे लगा शायद हमारा गांव किसी महामारी की चपेट में आ गया है । बहुत विचलित हो गया था मैं । मैं आज तक अपनी जिंदगी में काम में एक साथ इतने लोगों को मारते हुए नहीं देखा था । विचारों में खोया हुआ था कि अचानक बडी चाची वहाँ गई । उन्होंने मुझे इस तरह परेशान होते देखा तो मुझे नीचे साथ चलने को कहा तो मुझे अपने साथ लेकर पूजा वाले कमरे में लेकर आते हैं और होली पिटा । लोग उनको बताना नहीं चाहते थे लेकिन मुझे लगता है अब वक्त आ गया है तो मैं भी सच्चाई से वाकिफ करा दिया । पिछले एक साल से अपने गांव में ऍम ऍसे बातें कर रही है । मैंने छंद झुलाकर का
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