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जॉर्ज एवरेस्ट भाग तीन थोडी देर में हम दोनों बिलकुल टॉप थे जहाँ से जाता है नीचे की तरफ कर रहा था । यहाँ ऊपर ज्यादा ऊंचाई और पाॅल से हटके होने की वजह से अर्तगत कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं होगा । मैंने इस मौके को बनाने का सोचा । सोचा के सब पूछूँ कि पिछली कुछ घटनाओं का उसमें क्या समानता है । ये सोचते मैंने जल्दी उसकी तरफ नजर की अच्छा नाॅन हाथ को ऊपर उठाते हुए मुस्कुराकर भाई कहा और झरने के ऊपर से नीचे की तरफ छलांग लगा दी । पहले की मैं कुछ कह पाता मेरे बोलने आप देखने की क्षमता बाकी ही नहीं रही थी । छक्का खाने के साथ पीछे जमीन पर गिर पडा था । मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । बहुत ही ज्यादा इधर गया था और ऍम विकास के पास आया हूँ तो मुझे साल में देखते परेशान हो गया । इससे पहले वो कुछ कहता मैंने उसके हाथों को पकडा और कहा यहाँ से चलती हूँ विकास मुझे लेकर कंपनी गार्डन के बाहर ले आया पर हमारा इंतजार कर रहा है । हम तो सरकारी में बैठ गए । मेरी आंखें फटी की फटी सामने की तरफ दिखाई थी और विकास मुझे बोतल से पानी पिलाकर सामान्य करने की कोशिश में लगा हुआ था । पंद्रह से बीस मिनट में ही हम मसूरी बहुत चुके थे । ड्राइवर खाना खाने के लिए टैक्सी साइड में लगाने लगा । ऍम और हमें वहाँ हमारे ऍम छोड देते हैं । ट्राॅफी क्या हम अगले और पच्चीस मिनट ॅ के पास खडे विकास और मैं अपने कमरे में थे । रात के आठ बज रहे थे तो बाहर आकर देखने लगा तो कनेक्ट मिला नहीं । शायद वो चला गया था । विकास समझ से वहाँ की घटना के बारे में पूछा तो मैं उसको सारी बात बता देंगे । तो वो बताते हैं वो भी सोच में पड गया । चिंता की लकीरें उसके माथे पर सब सब देख रहे हैं । उसने अपने आप को संभालते हुए कहा खाज करती तो गुजारनी । फिर कल सुबह ही हमें देहरादून के लिए निकलता है, अपनी जगह से खडा होता है और उनसे खीर एॅफ क्यूँकि बोतल आता है जो कि अभी भी आधे बच्चे हुए थे । मेरे सामने रखते हुए कहता है आज की रात में किसी से काम चलाना होगा । किसी भी तरह की थकान चाहे वो मानसिक हो या शारीरिक तो अब इस से ही पटेगी । ये कहते हुए उसमें चलती है । दो बडे परिवार बनाए और हमने उन्हें फॅसे नहीं । जगह गालिया । विकास हरिद्वार की तो कभी कॉलेज के दिनों की घटनाओं को याद दिलाकर मेरा ध्यान भटकाने की कोशिश में लगा हुआ था । हालांकि अंदर से वो भी सहमा हुआ ही लग रहा था । हल्की बारिश भी शुरू हो गई थी । इस बारिश ने अब इस माहौल को और बोझिल बना दिया था । बातें करते करते हम कब हो गए पता ही नहीं लगा । हाथ को किसी वक्त लगा कि मेरे ऊपर कोई चुका हुआ है । मैंने जब आंखें खोली तो देखा तो समझ रहे और फॅमिली लडकी थी । मेरे कंधे को पकडकर मुझे उठा रही थी और मेरा नाम देव देव कहकर बाहर बार पुकार रही थी । उसकी आवाज सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी कोने से आते हो लग रहे थे । मैं हडबडाकर उठ बैठा तो लडकी मेरा हाथ पकडकर मुझे खींचती हुए अपने साथ ले जाने लगे । तक के बारे मेडिकल ऐसे कोई भी आवाज नहीं निकल रहे थे । मैंने पीछे मुडकर देखा तो विकास अपने स्तर पर ही हो रहा था । मुझे कॉलेज के पीछे बने घर के एक कमरे में ले गए । आज उस कमरे की शक्ल ही पतली हुई थी हॉल के कोने में । पर इसी चेयर पर एक्सॅन करे । साथ में बैठा हुआ पहले बजा रहा था । उस स्थान उसके आगे बंद थे तो लडकी उसके कदमों में बैठ गई और होने लगी । फॅस आदमी का हाथ अपने हाथों में थी । आपने बोली फॅमिली साथ में पर कोई फर्क नहीं पड रहा था । लडकी का चेहरा होते होते लाल हो गया था । अचानक बात पे खडा हो मेरी ओर पडने लगा । मैं ही खडा था जब से मेरी आंखों के सामने कुछ पिक्चर चल रही थी, अच्छा कुछ आदमी ने पहले नहीं रखा । न जाने उसके हाथ में कहाँ से बन्दों का गयी वो लडकी, बोली, स्टाॅक परन्तु बहुत में आगे पडता ही जाता था । तभी अचानक एक होगा और ऍम हुआ तब मेरे कल ऐसे पहली बात इतनी जोर से ठीक करने के लिए विकास उस चीज को सुनकर टाॅस कमरे में आया । नहीं नहीं उस कमरे में भी चढी खडा ही जा रहा था वहाँ इस कमरे पर पहले और विकास के अलावा कोई भी नहीं था । मैं जोर जोर से चीख रहा था । नहीं मुझे ऍम प्रकाश मुझे संभालते कोई लेकर जाने लगता भी मैंने उस वहाँ छोड है और बाहर की तरफ भाग खडा हुआ । ऍम मेरे पीछे पीछे भागा तो भी समझ चुका था कि जहाँ कोई अनहोनी हुई है मेरे पर आपको देखकर परिस्थिति को बहुत किया था । डाॅन थोडी दूर आ गया था । अभी मुझे बुढापा दिखा जान कल सुबह आलू के पराठे खाए थे । वो तो कान के अंदर से प्रकाश बाहर की तरफ आ रहा था । जिसका ये मतलब हुआ हो वहाँ जरूर कोई तो होगा ही । तब तक विकास विभाग से भागते मेरे पास करता है । बहुत चारों और सन्नाटे को मेरी आवाज फिर भी हुई पहुँच रही थी । तभी मैंने देखा कि उस स्थापित है । वही सुबह वाले उधर का आदमी नहीं । आपने दुकान का द्वार खोलकर हमें ध्यान से दिक्कत परिस्थिति का चाहता ले रहा था । थोडी देर नहीं हमें अपने हाथों से इशारे कर के अन्दर की तरफ खुला रहेगा । हम तो लगभग के अंदर घुस गए । हमारे अंदर घुस रही । उन्होंने दरवाजे में चटक नहीं लगती । अंदर चारपाई पडी थी । हम लोग वहां बैठ गए । विकास ने पूछा था समिति रात को वहाँ क्या करने गए थे? मैंने सारी बहुत उन दोनों को बताते । विकास उन बातों को सुनकर परेशान सा हो गया था । कभी तेरे में बहुत ही उम्र के बुजुर्ग तीन चाहे लेकर आए । उन्होंने बताया कि उनका नाम आनंद सिंह बिष्ट है । नौ साल पहले उनकी पत्नी और उनके बच्चे उनके पैतृक गांव पहुंचे । चले के सब पुलिस नाम के काम में पडता है, जहाँ जाते वक्त किसी बस दुर्घटना के शिकार हो गया । आप को अपनी बच्ची हुई जिंदगी के कुछ असर करने के लिए दुकान चलाते हैं और कहीं अकेले ही रहते हैं । उन्होंने बताया कि घोषित अंग्रेजों के ही नहीं था । एक बार घूमते घूमते ॅ यहाँ पहुँच जाते हैं । उनकी पत्नी उनके फॅमिली के जन्म के बाद ही दुनिया छोड कर चली गई थी । हमी को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी समझकर जो उससे बहुत प्यार करते थे । अम्मी के बाल बिल्कुल उसकी मम्मी कितना ही सुनहरे और संग्रहालय है । जॉर्ज को ये जगह इतनी पसंद आई कि उन्होंने अपनी बेटी हमी एवरेस्ट के साथ यहाँ रहने का निश्चय कर लिया । यहाँ अपनी बेटी रहने के साथ खुशी खुशी रहने लगा । छोटी बेटी की हर इच्छा को समझते हुए उसके कहने से पहले ही उसके हर ख्वाहिशों को पूरा कर देता था । उन्होंने इस पथरीली जगह पर बहुत मेहनत की और इस जगह को दर्शनीय स्थल बनाया । बहुत खुशी से उनकी जिंदगी की गाडी चल रही थी । एक दिन मम्मी को यहाँ के स्थानीय व्यवसायिक राहुल भारद्वाज से प्यार हो गया । जब जमीन अपने दिल की बात आपने पहुंॅचे की तो उस की शादी के लिए तैयार नहीं होगा । ऍम करती थी उसके लिए राहुल के बिना जिंदगी गुजारना संभव नहीं हो रहा है । एक दिन मैंने राहुल से ये सोच कर कोर्ट मैरिज कर्ली की । उसके पिता चौंच उसे बहुत प्यार करते हैं । उसकी खुशी के लिए मैं कुछ दिन बाद अस्सी तो को ही जाएंगे । जब की बात उसके पिता को पता चली तो कुछ दिनों तक नाराज रहे लेकिन एक दिन उन्होंने फैसला किया है की बहुत ही बेटी के सवाल जाकर उसको मनाएंगे । अपनी गलती के लिए उसे जमा मांगेंगे । मम्मी का सवाल यहाँ पास के काम धनोल्टी नहीं था । एक फॅमिली से मिलने राहुल भारद्वाज के यहाँ पहुंचे तो देखकर तंग रह जाते हैं कि उस घर से लडने झगडने की आवाज जा रहे हो । जब उन्होंने ऍसे सुनने का प्रयास किया । पता लगा कि उसकी बेटी की होने की आवाज आ रही है क्या भाषण करते रहेंगे और उसी वक्त अंदर जाकर अपनी बेटी को ही है । यहाँ आते ही हमी ने बताया की उसका शादी का फैसला गलत था । राहुल ने सब पहले से योजना बनाकर रखी हुई थी कि कैसे उसको प्यार फसाना है और कैसे उसका इस्तेमाल उसकी दौलत हथियाने के लिए करना है । मम्मी ने ये भी बताया कि राहुल पहले से ही शादीशुदा था, उसको प्रतिदिन मारता पीटता और तरह तरह के सोलह करता हूँ ताकि हमें मजबूर होकर जाँच के पास जाकर अपनी व्यथा, समय और सारा धन और बहन के सारी प्रॉपर्टी राहुल के नाम करते हैं । जॉॅब कि अगले कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा । बस तुम कुछ दिन ऍम ऍम जनता से चौकी से हफ्ते करती जा रहे थे । हम अपने पता चौंच को इस तरह तरह का रास्ता देख नहीं पाए और अपने की कोई गलत फैसले पर बहुत बचत आने लगी । फॅस छोटी से भी चढाई की तरफ छलांग लगा नहीं चपेट में कितना कोई बात पता लगी तो उन्होंने अपनी लाइसेंसी बंदूक से खुद को उडा लिया । कहते हैं कि कुछ दिनों बाद ही राहुल अपने ही घर में रहस्यमय तरीके से बना हुआ पाया गया । जब राहुल के इलाज को देखा था उसके हम के बाहर की तरफ निकली हुई थी और उसकी चीज लटकी हुई थी । उसके शरीर से बहुत ही गंदी पत्तो आ रही थी । कहते हैं कि एमी और जॉर्ज की आत्मा आज भी यहाँ बढती रहती है और दस जगह किसी ना किसी को भी अक्सर नजर आ ही जाती है । जब के अच्छे कामों और उसके एक जिम्मेदार पिता होने की वजह से आज इस छोटी का नाम ऍम सबसे बडी उपलब्धि तो है क्योंकि नहीं का नाम उस पर्वत की चोटी को दिया गया है । पूरे विश्व में सबसे बडी है जो आज पूरे विश्व में माउंट एवरेस्ट के नाम से प्रसिद्ध है । आनंद अच्छे की बात सुनकर हम दोनों के सामने खडे हो गए । आनंद जी की बातों से मुझे पता लगा कि उस सुनहरे रंग कंगाले पालो वाली लडकी का नाम ऍम प्राथमिका । तीसरा बहस चल रहा था । घडी में देखा तो तीन बज रहे थे । आनंद जी ने बताया कि देहरादून जाने के लिए सबसे पहली बस आठ बजे सुबह आती है । उन्होंने बताया कि हमारा पिट्ठू बॅायकॅाट एज में ही पडा है । आनंद जी ने भरोसा दिलाया कि वह खुद सुबह वहाँ से बाहर ले जाएंगे । उसकी चलता नहीं हूँ । बातें के अनुसार आनन्द जी हमारा पिट्ठू बैग लेकर हम एबॅट के पास मिले थे । दोनों ने हाथ जोडकर उनको इस मदद के लिए शुक्रिया कहाँ देहरादून जाने वाली बस में फॅसे दूर जा रहे थे, मेरे शरीर में जाना रहे थे । मैं देहरादून चाहते, व्यक्ति ही सोच रहा था की है मैंने मुझे क्या था? क्या वो कुछ बताना चाहती थी? मुझे इशारा कर के कुछ समझाना चाहती थी । आखिर उसके अतृप्त आत्मा को मुक्ति कैसे मिलेंगे? यही सब सोचते सोचते कब हो गया पता ही नहीं लगा । जब बस से हम उतरे तो समय के दस बज रहे थे । सुबह हमेशा एक जैसे ही होती है ऍम एक रुपए । जीवन में बहुत कम ही सुबह ऐसी होती है जो उम्र भर याद रहेगा । मैंने विकास से कहा हम आपकी इस खतरे को खुल जाना चाहता हूँ । मंच पर पूछ जैसा है ऍम जब विचारों और दलीलों से आप लाख हम अपने प्रतिकृत बनाने में कर सच्चाई का पहुँच आप महसूस करते ही हैं । मेरी बातों को सबका विकास भी चैन विधा और परेशान भी । मैंने विकास से गले लगकर बधाई दी और आपको में बैठकर अपने घर की तरफ रवाना हो गया । विकास भी देहरादून आईएसबीटी की तरफ निकल चुका था । वो भी इस बार अपने साथ बहुत से यादे लेकर साथ जा रहा था । इन यादव को इतनी चलती दिमाग से निकाल पाना हम दोनों के लिए फिलहाल कोई आसान काम ॅ बिल्कुल नहीं होगा ।
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Writer
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