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4 minsहाँ हूँ ऍम रहे हैं जिम्मेदारी किसकी लेखक ऍम पुस्तक का सारा कॅश सहज और सरल भाषा शैली में लिखें प्रस्तुत पुस्तक का हर एक पहलू इस और इशारा करता है कि विश्व की हर एक मानव रूपी समस्या का जिम्मेदार सिर्फ मानव भी है । हर मानवरूपी समस्या का जिम्मेदार मानव को इसलिए ठहराया जाता है क्योंकि इस संपूर्ण पृथ्वी जगत में भारत परिस्थिति मानव शक्ति के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है । शायद यही कारण है कि भ्रष्टाचार, आतंकवाद, सहिष्णुता, जीवहत्या, दुष्कर्म, राजनीति, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा नैतिकता जैसी अनेक समस्याओं का जिम्मेदार केवल मानव को ही ठहराया जाता है । अधिकांश से लेकर वर्तमान तक के मानव इतिहास पर यदि हम अनुसंधान करें तो हम पाएंगे कि जब तक मानव अपनी जिम्मेदारियों को ठीक ढंग से निभाता रहा, तब तक वो बहुत सुखी रहा । किन्तु जब जब मानव अपनी जिम्मेदारियों से हटा गया, तब तक उसे उसके कई दुष्परिणाम नहीं भुगतनी पडीं । प्रकृति के ऐसे कई नियम है जब प्रारंभ से लेकर वर्तमान तक आज भी उसी गति से कार्यरत है, जिस गति से उन की शुरुआत हुई थी । यही कारण है कि दिन राज, सर्दी, गर्मी तथा बरसात जैसी अनेक प्राकृतिक क्रियाओं में आज तक कोई परिवर्तन नहीं आया हूँ । मानव और प्रकृति का संबंध आज भी हमें यही दर्शाता है कि मनुष्य हमेशा ही प्रकृति के अधीन रहा है ना कि प्रकृति मनुष्य के अधीन । माना कि परिवर्तन का होना प्रकृति का नियम है । केंद्र कभी कभी कुछ परिवर्तन ऐसे भी होते हैं जो हमारे विनाश तक का कारण बन सकते हैं । उदाहरण केदारनाथ यदि हम पिछली पर आतंक मचा आएंगे तो इससे जनहानि होगी । यदि हम अपने मन में लालच पैदा करेंगे तो इससे भ्रष्टाचार ही फैलेगा । यदि हम प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करेंगे तो इसका परिणाम भी भूकंप सुनामी ही होंगे । ठीक इसी तरह से जब परिवर्तन हमारे द्वारा किए गए हैं, उसके परिणाम भी हमें ये भुगतने पडेंगे । ऐसी स्थिति में यदि प्रकृति एक तरह से मशीन है तो मानव को वहाँ इसका संचालन करता तो ठहराया जा सकता है । विश्व में आज ऐसी कई समस्याएं हैं जिनकी उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से न होकर मानवीय सोच के कारण हुई है । चाहे शिक्षा का व्यवसायीकरण हो, चाहे आतंकवाद या फिर धर्म आधारित समस्याएँ ही चुनाव हो । इन सब का जिम्मेदार सिर्फ मनुष्य ही हो सकता है । अगर ये सभी समस्याएं प्राकृतिक होती तो साथियों रहता युद्ध आरी कालों में भी मौजूद रहती साडियाँ पुराने धर्मग्रंथ आज भी हमें यही शिक्षा देते हैं । यदि हम इस पृथ्वी पर प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी की ढंग से निभाएंगे तभी हमारी पहचान और अस्तित्व जिंदा रह सकते हैं । अन्यथा फिर परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है । कहने का सीधा जाता पर यही है कि यदि हम पृथ्वी पर अत्याचार करेंगे तो पृथ्वी हमारा अस्तित्व क्षणिक समय में ही मिटाने का साहस रखती है । हूँ । एक नई युवा सोच के साथ लिखी गयी प्रस्तुत पुस्तक एक जिम्मेदार नागरिक के अस्तित्व पर भावी प्रकाश डालती हैं तथा विश्व की मुख्य बुराइयाँ चाहे भ्रष्टाचार हो, चाहे आतंकवाद, राजनीतिक तथा धार्मिक करते हो, चाहे दुष्कर्म, शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, पर्यावरण हूँ, चाहे तो सहिष्णुता हूँ आदि । सभी के समाधान रुपये जिम्मेदारी आम जनता एक मानवीय सोच के साथ पुस्तक स्वर्ग पहुंचाने का प्रयास करती है । ये एक तरह से वास्तविक हकीकत है कि मानव की क्रियाओं के द्वारा ही युवाओं का निर्धारण होता है । यदि हम चाहे तो कलयुग है और यदि हम चाहे तो हो सकता है हूँ ।
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