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एच एम चुनाव तेईस फरवरी दो हजार सत्रह को इलाहाबाद में होटल का प्रबंधन कर उसे अपनी उंगली पर लगी शाही दिखाता है । मैंने मत दिया है और साइकिल जीतेगी । साइकिल समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह है । उसने तब मतदान केंद्र की एक कहानी सुनाई । लाइन में लगा एक व्यक्ति से देख नहीं पा रहा था और उसने मदद मांगी । वो पवन का बटन दबाना चाहता था । मैंने कहा कि मैं मदद नहीं कर सकता । लेकिन वहां मौजूद पुलिस ने कहा कि उन्हें दिखा दो थोडा रुका । फिर शरारती मुस्कान के साथ बोला मैंने कमाल के बजाय उसे साइकिल दिखाई और उसमें वह बटन दबा दिया । हमारे लिए एक और वोट आ गया । होटल के स्वागत कक्ष पर उसके आस पास मौजूद दूसरे लोग होने होने मुस्कराये जब वो चला गया तो उसके सहयोगी ने कहा आपने देखा उसमें क्या क्या क्या गलत नहीं है । वो मुसलमान है, ये सब लोग ऐसे ही है । ये पूरी कॉम ही इसी तरह की है । प्रदेश को बर्बाद कर दिया है । होटल का ये दूसरा कर्मचारी ब्राह्मण था और उसने कहा कि वो बाद में भाजपा के लिए वोट करेगा, भाजपा ही जीतेगी लेकिन ये लोग भी बडी संख्या में है । थोक में वोट देते हैं । वे तो ब्रश से अपने दान साफ किए बगैर ही वोट देने पहुंच जाते हैं और इसलिए ये चुनौती होगी पर इनको हराना है । सपा कांग्रेस गठबंधन मुस्लिम मतदाता की ऊर्जा और उत्साह देखकर बहुत ही खुश होते हैं और अंतर इसकी प्रतिक्रिया भी भाजपा के लिए बेहद कर्णप्रिय होती क्योंकि इस से पता चला कि चुनाव को धार्मिक पहचान के चश्मे के जरिए देखने की प्रवृत्ति बढती जा रही है । भाजपा अपने वर्तमान वैचारिक रूप रेखा के सहारे उत्तर और पूर्वी भारत ने दिल्ली की सीमा से उत्तर प्रदेश और बिहार होते हुए पश्चिम बंगाल के रास्ते असम जबरदस्त सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बगैर चुनाव जीत नहीं सकती थी । इसकी वजह साफ थी । इन सभी राज्यों में मुस्लिम आबादी बीस प्रतिशत या इससे अधिक है और पार्टी बीस प्रतिशत के नुकसान के साथ शुरू करती है क्योंकि मुस्लिम न तो पार्टी के लिए वोट करते हैं और नहीं पार्टी की उनके वोटों में कोई दिलचस्पी है । शीर्ष मतदाताओं के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उसे अंदरूनी तरीके से हिंदू जातियों की सरकार होगी जिसके लिए कोशिश कर रही है तो इसके लिए उसे मुस्लिमों को अन्य बनाकर पेश करना होगा क्योंकि अगर दूसरे जीत गए तो ये समुदाय अकूत ताकत का इस्तेमाल करेगा और उसे एक सबक सिखाने की जरूरत है । उसे मौजूदा पूर्वाग्रहों का दोहन करना होगा, उसे असंतोष पढाना होगा, उसे हिंदुओं में भय और आक्रोश पैदा करना होगा और इसके लिए संवेदनाओं से खेलने की जरूरत है । अक्सर हकीकत में दूसरों का ध्यान मुस्लिम मतदाताओं को जीतने में लगा होता है । इसे हासिल करने के लिए भाजपा और उसके वैचारिक संगठनों ने अत्यधिक प्रगतिशील फिर भी सर्वाधिक बहुत प्रचार को आधार बनाया । प्रगतिशील क्योंकि ये नवाचार और प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल का था और थोडा क्योंकि इसके संदेश के लिए सीधे झूठ का सहारा लिया गया था, मुस्लिम विरोधी दंगों और हिंसा में सक्रिय रूप से भागीदार रहे हैं और ऐसे क्षणों, सोपन, क्रोध और उत्तेजना से लाभान्वित हुए हैं । उन्होंने कम तीव्रता वाले परन्तु सतत तनाव को बढावा दिया और धार्मिक आधार पर दोस्तों, पडोसियों, गांव और श्रमिकों के बीच विश्वास की कमी को और बडा विभिन्न जातियों से एक साथ मतदान कराने के लक्ष्य को हासिल करने और हिंदू समाज को एकजुट करने के व्यापक वैचारिक लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार था और जब पार्टी चुनाव को एच एम ग्यारह हिंदू मुस्लिम चुनाव की शक्ल देने में सफल हुई तो हिंदू बहुल्य परिदृश्य में उसकी विजय निश्चित हो गई । एक बाकी पहचान संगीत सोम हिंदू पहचान संगीत सोम चुनाव प्रचार की गाडी पर लगा । इस नारे ने घोषणा की उत्तर प्रदेश के दो हजार सत्रह के चुनाव में संगीत सोम मेरठ की सरधना सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं । हाल ही में भंग हुई विधानसभा के विधायक सोम को दो हजार तेरह के मुजफ्फरनगर दंगों में आरोपी बनाया गया था । इन दंगों में करीब पचास व्यक्ति मारे गए थे और चालीस हजार से ज्यादा लोग प्रस्थापित हो गए थे । हिंसा के दौरान ही जाट समुदाय ने एक महापंचायत आयोजित की । इसमें सोम नहीं कथित रूप से भडकाने वाले भाषण दिए और फर्जी वीडियो आप लोग किए । इसी तरह के एक वीडियो में जाहिर तौर पर ये दिखाया गया था कि मुजफ्फरनगर के चावल गांव में मुसलमानों ने किस तरह दो जातियों को सचिन और गौरव की हत्या की । इसमें बताया गया की वो एक मुस्लिम व्यक्ति से अपनी बहनों के सम्मान की रक्षा कर रहे थे और इसके लिए उन्हें अपनी जान गंवानी पडी । दंगा भडकने के बारे में अलग अलग बातें सामने आ रही थी और सचिन और गौरव के साथ झगडे में शामिल मुस्लिम व्यक्ति की मौत कैसे हुई परन्तु बाद में पता चला कि उन मान और आक्रोश पैदा करने के इरादे से अपलोड किया गया ये वीडियो दो हजार बारह पाकिस्तान के प्रांत का था । इन दंगों की घटनाओं की जांच के लिए गठित न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग का निष्कर्ष था । जब तक उन्हें यानी वीडियो क्लिप हटाया गया, उस समय तक मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में इसकी वजह से हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव बहुत अधिक बढ चुका था । इसके लिए जिम्मेदार ठहराए गए व्यक्तियों में सोम भी शामिल थे । उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया गया । फर्जी वीडियो कब बात नहीं था? संघ से संबद्ध संगठनों ने अपनी कहानी गढने के लिए किस तरह से मुस्लिम हिंदू लडकियों को अपने जाल में फंसा रहे हैं और रंगों में हिन्दू लडकों की हत्या कर रहे हैं । इस तरह की सामग्री बहुत सपने संदेह और ऑडियो वीडियो के जरिए प्रसारित । इनमें अधिकांश फर्जी थे । गौरक्षा सहित हिंदू संतों के चरमपंथी संगठनों से संबंध होने की वजह से तो उनका व्यक्तिगत रिकॉर्ड भी कम साफ था । मेरठ से हिंदुस्तान टाइम्स ने रिपोर्ट किया था । सोम मांस के प्रसंस्करण और उसका निर्यात करने वाली एक कंपनी के डायरेक्टर थे । इसके बारे में जब पूछा गया तो उनका जवाब था, मैं कट्टरपंथी हिंदू हूँ और इसलिए ऐसी किसी गतिविधि में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता है जो मेरे धर्म के खिलाफ है । हालांकि ये पाखंड उन्हें कट्टरपंथी पृष्ठभूमि से अलग करने में बहुत अधिक मददगार नहीं हुआ और सोम निरंतर हिंदू कार्ड का इस्तेमाल करते रहे । दो हजार सत्रह के चुनावों में स्थानीय पर्यवेक्षक में इस बात की और इशारा भी किया कि उनके लिए कडी चुनौती है और सो एक बार फिर मुजफ्फरनगर को बुरी तरह प्रभावित करने वाले दंगों को बनाने में लग गए । इसमें लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में पार्टी को मदद पहुंचाई थी । चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने दंगों की भडकाने वाली सीडी वितरित नहीं थी और एक बार फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया । उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में मामला भी दर्ज हुआ । जिदंगी चार साल बाद भी भाजपा की मदद कर रहे थे । ये बोर का बहन था जो प्रत्याशियों के अपने क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में चुनाव अभियान पर निकलने से पहले मिलने का सबसे उचित समय था । श्रद्धालुओं में संगीत सोम के घर के बाहर मेरी बडो का पार्टी के समर्थक राजकुमार सैनी से हुई इस राज्य में हिंदुओं पर अत्याचार और उनका शोषण होता है । मुजफ्फरनगर दंगों के सिलसिले में हिन्दू लडके अभी भी जेल में हैं परंतु सभी मुस्लिम मौज कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश में हिन्दू लडकियों से बलात्कार किया गया लेकिन मुस्लिम लडकियों को सर पर बिठाया गया । अब जरूरत ये है हिंदू वोट एक साथ पढे दंगों के दौरान जो कुछ भी हुआ उसके अनुभूति और प्रचार हकीकत से बहुत दूर था । दंगों में मुसलमान ज्यादा मारे गए थे । मुसलमानों को बहुत ही तकलीफ परिस्थितियों में शिविरों में रहना पडा था । मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार के बारे में भरोसेमंद रिपोर्ट आई थी । फिर भी हिंदू में उनका उत्पीडन होने का भाव बहुत ज्यादा था । अनिल सैनी की बातचीत से अच्छा लगता था कि सरकार उनकी है । उन्होंने ही दंगा शुरू किया । उसके बाद भी आजम खान अपने लडकों को रिहा करा लिया और फिर मुआवजा भी लिया है । उन्हें बहुत सारा धन मिला । हिन्दू क्या मिला? समाजवादी पार्टी में मुसलमानों के सुप्रीम नेता आजम खान को लेकर यही कहा जाता रहा है । सचिन और गौरव की हत्या में शामिल मुस्लिम लडकों को संरक्षण प्रदान करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई । उनकी सांप्रदायिक रूप से भडकाने वाली टिप्पणियों ने भाजपा को अपने समर्थकों को एकजुट करने में मदद की । लेकिन ये विश्वास करना मुजफ्फरनगर में आजम खान की वजह से मुसलमानों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं । सरासर पसंद था परन्तु तथ्यों से किसी को कुछ लेना देना नहीं था । हिन्दुओं को एकजुट करने के प्रयास में जून लगातार ये बता रहे थे इस सभा के शासन नहीं किस तरह से हिंदुओं का उत्पीडन किया गया । सैनी से बात करने के बाद में दरवाजे के बाहर हुए तैनात सुरक्षाकर्मियों के पास से गुजरता हुआ सीढियों के रास्ते छह से होता हुआ एक बडे से कक्ष में पहुंचा । यहाँ तीन बडी बडी भेजे लगी हुई थी । लोग दोनों और बैठकर इलाकेके ताकत और व्यक्ति के साथ बातचीत के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे तो मैं घायल हो गए थे । उनके बाद हाथ में प्लास्टर लगा हुआ था । इसके बावजूद ठाकुर नेता की गतिविधियां धीमी नहीं हुई थी । उन्होंने फोन से खिलवाड करते हुए अपने सहायक को निर्देश दिया उसके कार्यक्रम में कुछ और गांवों को शामिल किया जाए । साम्प्रदायिकतावाद के बारे में मेरे सवाल के जवाब में जो उनको कोई ग्लानि नहीं थी और पूरे विश्वास से भरे हुए थे तो हम करते हैं । सपा ने कब्रिस्तान के लिए चारदीवारियों का निर्माण क्यों कराया? शमशान भूमि और रामलीला मैदान के लिए नहीं । उन्होंने गाजियाबाद में हज हाउस के निर्माण पर हजारों करोड रुपये क्यों खर्च किए लेकिन कांवडियों के लिए जो उसी रास्ते से यात्रा करते हैं, विश्रामगृह बनाने पर एक पैसा खर्च नहीं किया । सरकार ने सिर्फ मुस्लिम लडकियों के लिए छात्रवृत्ति दी और हमारी लडकियों को नहीं । मुलायम सिंह ये क्यों कहते हैं कि सिर्फ सपा ही मुसलमानों का ध्यान रख सकती है कि अखिलेश यादव ने सिर्फ मुस्लिम वोटों के लिए ही नहीं कांग्रेस के साथ तालमेल किया है । क्या हिंदू इस राज्य में नहीं रहते हैं? वो जो भी चाहे मुसलमानों को दे सकते हैं, मैं उसके खिलाफ नहीं हूँ परन्तु नहीं वही सब हिन्दुओं को भी देना चाहिए । सोम उसी मुद्दे पर लौट रहे थे जो भाजपा की राजनीतिक कथन का केंद्र रहा है । ये है तुष्टिकरण । ये इस दावे पर आधारित है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति का तात्पर्य मुस्लिम समर्थक राजनीति है । धर्मनिरपेक्ष दल मुस्लिम समर्थक हैं और इस प्रक्रिया में हिन्दू कहीं पीछे छूट चुके हैं और यही वो मुद्दा है जिसे हम उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान बाहर बाढ सुन रहे थे और इसीलिए देश की राजधानी से करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में भाजपा का प्रचार अभियान हिंसा के महिमामंडन, उत्पीडन और पूर्वाग्रहों की कहानियों पर आधारित था । उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार को एक समान रूप से कानून लागू करने के बजाय अल्पसंख्यकों के पक्ष में भेदभाव करने वाली सरकार के रूप में देखा जाता था और भाजपा ने इसे भी शामिल कर लिया । इसमें काम भी किया । ग्यारह मार्च को संगीत सिंह सोम सरधाना सीट से विधायक निर्वाचित हुए । उन्हें सत्यानी हजार नौ सौ इक्कीस मत मिले जबकि उनके सबसे नजदीकी प्रतिद्वंदी तीस हजार से भी अधिक मतों से पीछे रहे । संगीत सोम इसी बात का नहीं बल्कि उन्हीं मापदंडों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे । अमरोहा से पूर्व टेस्ट क्रिकेटर खिलाडी चेतन चौहान विधान सभा चुनाव लड रहे थे । उनके निर्वाचन क्षेत्र में उनके साथ चाय की चुस्कियों के दौरान चौहान ने कहा, इस क्षेत्र का बहुमत वाला समुदाय महसूस करता है । उनके साथ न्याय नहीं किया गया है । सिर्फ मुस्लिम लोगों का ही काम हुआ है । उनका आरोप था कि सपा विधायक में उन लोगों को संरक्षण दिया । उन्होंने जमीन छीनी और लूटपाट की । इनमें से अधिकांश अपराध मुस्लिम समुदाय नहीं किए थे । उनके गुंडागर्दी के खिलाफ ही प्रतिक्रिया हुई थी और उन्होंने स्वीकार किया कि भाजपा इस गुस्से को बनाएगी । पांच साल तक हिन्दुओं को तोडा गया है, वो एकजुट होंगे । यह उल्लेखनीय प्रचार मंच था । किसी प्रत्याशी के लिए इतना खुलकर बोलना । अपराध के लिए एक समुदाय विशेष जिम्मेदार था । दूसरे समुदाय में यानी ज्यादा प्रभुत्वशाली हूँ, असंतुष्ट पैदा करता है और उम्मीदवार का उम्मीद करना किससे उसे फायदा होगा, ये भाजपा द्वारा धर्म की राजनीति के से निकल उपयोग को उजागर करता है । मुजफ्फरनगर के आसपास घटनाओं के बारे में बताई जा रही बातों के समर्थन में कोई तथ्य और साक्ष्य नहीं थे । व्हाट्सएप्प का और व्यापक संगठनात्मक नेटवर्क का इस्तेमाल करके तस्वीरों और लेकिन संदेशों के आधार पर इस निष्कर्ष तक पहुंचना असम था । ये मुसलमान ही अपराधी और हिंदू पीडित है और दूसरे सभी राजनीतिक दल सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लिए ही काम कर रहे हैं और भाजपा हिंदुओं के हितों की रक्षा करने वाली एकमात्र पार्टी है । चुनाव में इसमें काम किया चेतन चौहान नौगांव की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक के रूप में आराम से चुनाव जीत गए । उन्हें सत्य में हजार तीस मत मिले । उनकी जीत का अंतर भी संगीत सोम की तरह ही बीस हजार मतों से अधिक था । वो आज देश के सबसे बडे राज्य के खेलमंत्री हैं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है । अनेक लोगों ने भाजपा द्वारा विकास कार्ड, ऍम व्यवस्था कार्ड और हिंदू कार्ड इस्तेमाल किए जाने की खांचों में रखा और उसे एकदम अलग प्लेटफॉर्म के रूप में लिया । इसे नजरअंदाज कर दिया कि भाजपा कितनी चतुराई से अक्सर ही तीनों का एक ही कहानी में इस्तेमाल करती है और इस प्रक्रिया में वो चीज का इस्तेमाल करके खुश है जिसे झूट करते हैं । दूसरे मुद्दों को ही लीजिए जो उसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उठाए । पार्टी ने दावा किया कि मुस्लिम गैंगस्टरों की वजह से हिंदू कैराना में असुरक्षित है । उन्हें इस भय के कारण वहाँ से भागना पड रहा है और कैराना नया कश्मीर बन गया है । वस्तुस्थिति का पता लगाने वाले सभी स्वतंत्र दलों ने इस दावे को असत्य पाया । पलायन बेहतर अवसरों की तलाश के लिए हुआ था । एक बार फिर जैसे मुजफ्फरनगर भी मुसलमानों को किस्मतवाला या अमरोहा में मुस्लिमों को अपराधी बताने । जैसे ही कथानक की पुनरावृत्ति कैराना में हुई जहां मुस्लिमों को गैंगस्टर और हिंदुओं को जबरन विस्थापित बताया गया । हालांकि ये झूठ था । बहुत सब समूहों और भाजपा का लखनऊ कार्यालय खुद ही आठ सौ से ऐसे अधिक समूह और सोशल मीडिया विषेशकर फेसबुक पर चला रहा था । इसमें हिंदुओं में और सुरक्षा की कहानी कडी गई थी । पार्टी के एक नेता से जान पत्तियों के साथ कहा गया कि ये सच नहीं है तो उसने मुझे स्वीकार किया सही साहब इससे कोई फर्क नहीं पडता । सवाल ये है हम दिखाना चाहते हैं कि हम उत्पीडित हैं । इससे हिंदू नाराज होंगे । उन्हें तभी ऐसा होगा कि उन्हें मुसलमानों के खिलाफ एकजुट होना है । इसी तरह की एक और कहानी गैरकानूनी बूचडखानों के बारे में गढी गई । बताया गया कि किस तरह से मुस्लिम समर्थक सपा सरकार में से बढावा दिया गया । आधिकारिक रूप से से कानून और व्यवस्था, पर्यावरण और सफाई और स्थानीय निकायों के नियमों के पालन करने से जोड दिया गया था । परन्तु वही नेता साफ तौर पर आपने गलत पर भी जोर देता है । जब आपन बूचडखानों के बारे में सोचते हैं । आपके दिमाग में कैसी तस्वीर बनती है? मैं एक मुस्लिम कसाई, गोवर और सडकों पर पहले फोन के बारे में सोचता हूँ । मैं सोचता हूँ कि किस तरह से मुसलमानों ने हमारे सार्वजनिक जीवन पर कब्जा कर लिया है । मैं कैसे हमारी संस्कृति और जीवन शैली को बर्बाद कर रहे हैं । किस तरह से आज चिकन और मांस की दुकानें हर जगह हैं और किस तरह से ऐसा करके हो रही बन गए, इस सवाल उठाकर हम हिन्दुओं को जागृत करना चाहते हैं, उन्हें गुस्सा दिलाना चाहते हैं परन्तु भाजपा और उससे संबद्ध संगठनों ने उत्तर प्रदेश और यहाँ तक कि देश के दूसरे हिस्सों में सबसे अधिक संदिग्ध कहानी गढी होती । लव जेहाद के बारे में शब्द मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान उस समय प्रचलित हुआ जब संघ कार्यकर्ताओं ने इस कहानी को आगे बढाया । मुस्लिम लडके हिन्दू लडकियों को अपने जाल में फंसाने के लिए उनसे झूठ बोलकर संबंध स्थापित करते हैं और उन का धर्म परिवर्तन कराते हैं । वो दलील देते हैं कि ये जनसांख्यिकी आप प्रमुख थी । ये मुस्लिम जनसंख्या बढाने और हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने की एक सुनियोजित साजिश तो तीन साल में लव जेहाद की कहानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रत्येक समाज और बातचीत का हिस्सा बन चुकी थी । सच्चाई इस दावे से अलग थी । पहली बात तो अंतर धार्मिक और ऐसी शादियों की संख्या बढाने का कोई सबूत नहीं था । दूसरी बात यह यदि ऐसी संख्याओं में वृद्धि हुई थी तो भी ऐसा कोई सबूत नहीं था । ये किसी सुनियोजित मुस्लिम साजिश का हिस्सा था । ये हो सकता है कि ये मिली जुली आबादी वाले क्षेत्र में विश्वविद्यालयों और बाजारों जैसे धर्मनिरपेक्ष स्थानों पर विभिन्न धर्मों के व्यस्कों के बीच बढते मिलजुल के कारण हुआ हो । और तीसरी बात यह क्या नहीं दर्ज मामलों और आरोपों से पता चलता है कि महिलाओं को ऐसे संबंधों से रोकने के लिए पित्र सत्तात्मक प्रयास थे । लेकिन भाजपा ने मुसलमानों के प्रति असंतोष और संदेह उत्पन्न करने के लिए सफलतापूर्वक इसका इस्तेमाल किया था । उसने सफलतापूर्वक हिंदू माता पिता और हिंदू लडकियों में भर बता दिया था । पार्टी ने से अपने चुनाव अभियान से जोड दिया था । भाजपा के राज्य प्रवक्ता चंद्रमोहन ने स्पष्ट रूप से कहा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार में हमारा ये एक बडा मुद्दा एंटीरोमियो दस्ता है । ये कानून और व्यवस्था का मसला है । महिलाओं को सुरक्षा वास्तव में एक बडा मुद्दा है । परंतु यह लव जिहाद के बारे में भी है । लेकिन दो हजार सत्रह में साफ तौर पर इसका इस्तेमाल करने के बजाय भाजपा ने एंटी रोमियो दस्ते गठित करने का वायदा किया तो मुस्कुराते हुए कहते हैं, एंटीरोमियो ट्रस्ट वास्तव में एंटी सलमान सस्ते हैं । एंटी नौशाद सस्ता है । उत्तर प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद भाजपा सरकार ने अपनी पहली नीतिगत कार्यवाही में एंटी रोमियो दस्ते तैनात किए और गैरकानूनी बूचडखानों के खिलाफ कार्रवाई की । ये तरीका साथ था । भाजपा ने प्रचार के ही मुद्दे को उठाया था तो हिंदू के बीच उत्सुकता और क्रोध को जान देगा और मुसलमानों के प्रति समझे और नफरत पैदा करेगा । उसके संदेशों में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं थी और निश्चित ही उसने मुजफ्फरनगर में मुसलमानों को लाभवाला समुदाय इंगित करके अमरोहा में सारे अपराधों के लिए मुस्लिम को जिम्मेदार ठहराकर कैराना में सारे हिन्दुओं को बाहर जाने पर मजबूर करने का आरोप, मुस्लिम गिरोहों पर लगाकर मुस्लिम कसाइयों पर सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करने और राज्य में मुस्लिम युवकों द्वारा हिंदू महिलाओं को अपने जाल में फंसाने के बारे में सरासर झूठ बोला था । इन सभी में यही कहानी दोहराई गई की विपक्षीदल मुस्लिम का साथ दे रहे हैं । भाजपा हिंदुओं के है तो अधिकारों, मूल्यों और संस्कृति की रक्षा करेगी और इसके लिए उसे उनके वोट चाहिए । ये बहुत ही सोचा समझा वोट बांट नहीं या फिर राजनीतिक भाषा में कहें तो रविकरन करने का प्रयास स्वार्थ भरा और खतरनाक प्रयास था । मुसलमानों के तुष्टिकरण का मुद्दा उच्च स्तर पर पार्टी नेतृत्व नहीं चुना था । पीलीभीत में डूमंड कॉलेज के मैदान नहीं जब अमित शाह का हेलीकॉप्टर उतरा हूँ । उनका सम्मान शहर के सिख समुदाय नहीं किया था । उन्होंने जहाँ को पगडी बांधे प्रधानमंत्री और शाह ने इस तरह की रियायत मुस्लिम टोपी पहनने के लिए नहीं दी थी । अपने भाषण के दौरान केंद्र सरकार के रिकॉर्ड का बचाव और सपा के रिकॉर्ड की आलोचना के बादशाह ने हमले की दिशा बदली । उन्होंने सवाल किया, क्या आपको अखिलेश के वायदे के अनुसार लेपटॉप मिले? उन्होंने ही जवाब दे दिया, आपको नहीं मिलेगा क्योंकि आपकी जाती सही नहीं थी । आपको नहीं मिला क्योंकि आपका धर्म सही नहीं था कि आप की लडकियों को अखिलेश के वायदे के अनुसार छात्रवृत्ति मिली । साथ ही शाह ने जोडा नहीं आपको नहीं मिला क्योंकि आपका धर्म सही नहीं है । इसके समर्थन में जोरदार आवाज केसरी आधारत युवकों के एक छोटे से समूह से आई जिन्होंने जय श्री राम का उद्घोष किया । शाह उन अंतर्निहित भावनाओं को बनाने को उभार रहे थे जिन्हें सोम और चौहान ने तैयार और पल्लवित किया था । वो था सपा के शासनकाल में भेदभाव परन्तु सोम और चौहान के दावों की तरह ये पूरी तरह तथ्यों पर आधारित नहीं थे । कुल मिलाकर लेपटॉप वितरण निष्पक्ष और भेदभाव नहीं था । चुनाव प्रचार के अंतिम क्षणों में अखिलेश यादव ने उन छात्रों के नाम लेने शुरू किए ऍफ मिले थे और इसमें सभी जातियों और समुदायों के बच्चे और युवा वेस चावल थे । परन्तु शाह की बात लोगों के मन भी बैठ गई और अनेक लोगों को ये विश्वास हो गया । इस सपा सरकार मुसलमानों की हितैषी है । इसके लिए कोई और नहीं बल्कि सपा खुद ही दोषी है क्योंकि पार्टी ने अल्पसंख्यकों के वोटों को आकर्षित करने के लिए मुलायम सिंह के समय से ही बहुत ही गर्व के साथ ये छडी बनाई थी जो अब ऐसे वक्त में उस पर भारी पडने लगी जब एक राजनीतिक ताकत सुनियोजित तरीके से बहुमत के मतों को अपनी और करने में जुटी हुई थी । चाहने दूसरी जगह भी जनसमूह में यही संदेश गहराई तक पहुंचाया । पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने दो हजार चौदह के चुनाव में सफाया कर दिया था । दंगों के बाद समाज का ध्रुवीकरण हो गया था । हिंदू मुस्लिम के बीच दूरी बढ गई थी और विशेष कर जाटों ने बढ चढकर भाजपा को वोट दिया था । और अंतर इस बार ऐसा लग रहा था कि कई कारणों से चाट पार्टी से नाराज है । भाजपा को लेकर ये मानना जाट समुदाय को केंद्रीय अन्य पिछडे वर्गों की सूची में शामिल कराने के प्रति अनिच्छा या असमर्थता, हरियाणा में जाटों के प्रति उसका रवैया और एक गैरजाट को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना । दंगों में आरोपी बने चार युवकों को जेलों से रिहा कराने में उसकी असमर्थता । चौधरी चरण सिंह के प्रति उसका अनादर जिनकी जयंती पर प्रधानमंत्री ने ट्वीट नहीं किया था और जिनके परिवार को दिल्ली में लुटियन क्षेत्र के बंगलों से बेदखल कर दिया गया था । इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय के साथ करार अभी भी बनी हुई थी । जो कुछ भी हुआ उसके लिए दोनों समुदाय एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे । मुस्लिम समुदाय चार्टों को हमलावर हिंसा के लिए जिम्मेदार और हजारों लोगों के विस्थापित होने की वजह से उनके शिविर में रहने के लिए बाध्य करने वालों के रूप में देखते थे । जाटों का कहना था कि मुस्लिम समुदाय नहीं लडाई शुरू की और बजकर भी निकल गए क्योंकि लखनऊ में उनकी ही सरकार थी जिसने उन्हें राहत प्रदान कर के सिर पर बैठा और उन्हें ही अपने समुदाय के युवकों की गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार ठहराया । उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान होने से एक दिन पहले अमित शाह का एक वीडियो टेप लीक हुआ । उन्हें दिल्ली में जाट नेता और केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह के आवास पर जांच समुदाय के नेताओं से बात करते सुना गया । जाट समुदाय से पुरजोर अपील कर रहे थे तो वही भाजपा के साथ ही डटे रहे हैं और वायदे कर रहे थे । उन्होंने उन सभी से एक साधारण सवाल पूछा यदि हम हार गए तो कौन जीतेगा? लोगों के फुसफुसाहट सुनाई पडी ये गठबंधन शाहने जवाब दिया सपा गठबंधन कौन बनेगा मुख्यमंत्री और आपको क्या मिलेगा? इस बार किसी को जोर से जवाब देते सुना गया मुजफ्फरनगर के दंगे । इस रिकॉर्डिंग में शाह ने कुछ समय बाद फिर सवाल दोहराया, इतिहास होने वोट नहीं देंगे तो क्या होगा? भाजपा हार जाएगी इस पट्टी पर हम आप पर ही निर्भर है । हम आपका बगैर जीतने की बात सोच भी नहीं सकते । लेकिन बिरादरी बिहार जाएगा । उनके बारे में सोचिए तो सत्तासीन होंगे उन सब के बारे में सोच ये जो उन्होंने बिरादरी के लिए क्या सोचिए की वह बिरादरी का क्या करेंगे, ये कहाँ छोड दिया गया? परंतु शाह ये संकेत जरूर दे दिया । सत्ता में कौन आ रहा है और ऐसा नहीं था कि शाह सिर्फ एक पार्टी और एक नेता का जिक्र कर रहे थे । जाट समुदाय को फैसला करना था कि वे किसी अधिक ना पसंद करते हैं मुस्लिमों और उन दलों को जिन्होंने उनकी हिमायत की या फिर भाजपा को एक अन्य चुनावी सभा में वो और अधिक मुखर थे और उत्तर प्रदेश को कसाब, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी साफ और बहुजन समाजवादी पार्टी बहुत के खिलाफ चेतावनी दे रहे थे । ये न सिर्फ प्रतिद्वंद्वी दलों को मुसलमानों के साथ जोडता है बल्कि उस पाकिस्तानी से भी जोडता है जो मुंबई हमले में अपनी भूमिका की वजह से भारत में आधुनिक आतंकवाद की परिभाषा बन गया । अच्छा ठीक वही कर रहे थे जो पार्टी की मशीन रही चुनावी मैदान में कर रही थी । हिन्दू को उद्वेलित करना और मुसलमानों को संधि का प्रतीक बनाना और सभी दूसरे दलों को सिर्फ मुस्लिमों और संभावित आतंकवादियों के विदेशी के रूप में दिखाना । संदेश स्पष्ट था । उत्तर प्रदेश को मुसलमानों से बचा नहीं और इस तरह उत्तर प्रदेश को आतंकवादियों से बचाने के लिए हिन्दुओं को जागरूक होना पडेगा और भारतीय जनता पार्टी को वोट देना होगा । यदि प्रतिद्वंदियों को मुसलमानों के मददगार के रूप में पेश करना था । भाजपा के लिए भी शुद्धता बनाए रखना महत्वपूर्ण है, जहाँ के नेतृत्व में भाजपा ने एक भी मुसलमान को पार्टी का टिकट नहीं दिया । उधर आलोचकों के लिए ये पार्टी की कमजोरी थी । इससे वह सब पर लक्षित हो रहा था । पार्टी ने क्या गडबडी है और इसलिए ये भाजपा को कटघरे में खडा करने की एक वजह भी थी । पार्टी के निष्ठावान और उसकी वैचारिकता से संबंध लोगों का मानना था । ये पार्टी की शक्ति का प्रतीक है । पार्टी का आधिकारिक स्पष्टीकरण साधारण सा था । प्रत्याशियों के जीतने की क्षमता के आधार पर फैसला करते हैं । मुस्लिम में कोई भी जीतने योग्य उम्मीदवार नहीं था । मुसलमानों ने पार्टी को वोट नहीं दिया था और ये अपेक्षा करना ही गलत और भोलापन होगा की पार्टी उन्हें टिकट देंगे । दो हजार चौदह के चुनाव के तुरंत बाद में अशोक सिंघल के यहाँ गया था । छियासी वर्षीय सिंगल भाजपा से संबंध रखने वाले एक मीडिया उद्यमी के साथ बातचीत कर रहे थे । मेरी उपस् थिति में उनसे कहा, आपके संबंधों मुसलमानों से भी है । उनसे कह दीजिए, दो हजार चौदह में दिखा दिया है कि मुस्लिम समर्थन के बगैर भी चुनाव जीते जा सकते हैं । यही समय है कि वे इससे समझे और हिंदू भावनाओं का सम्मान करें । सिंघल ने विस्तार से कहा, बहुत लंबे समय तक मुस्लिम ये समझते रहे कि राष्ट्र पर उनका वीटो है परंतु इसमें भी हिन्दुओं को संगठित कर दिया है । आज हिंदू एकजुट हो गए । सात सौ साल बाद एक स्वाभिमानी हिंदू दिल्ली पर राज कर रहा है और मुस्लिम अब अप्रासंगिक हो गए हैं । ये उनके लिए झटका है । अवस्थिति बदल गई है । सिंगल का दो हजार सोलह में देहांत हो गया, लेकिन उनका नजरिया फल फूल रहा है । दो हजार सत्रह के चुनाव के बीच में भाजपा के एक नेता ने लखनऊ में सिंगल के विचारों को दोहराया । हम मुस्लिम विरोधी द्रवीकरण चाहते हैं । दूसरी तरह का नाटक क्यों? हम मुस्लिम को एक टिकट देकर दिल्ली वालों को खुश करने में यकीन नहीं करते हैं । जहाँ तक मुसलमानों की बात है वो भी जानते हैं कि वे किसे वोट नहीं कर रहे हैं । लखनऊ के अहमद नगर पार्क में एक युवा मुस्लिम कहता है कि वह नरेन्द्र मोदी को दो हजार दो के लिए कभी माफ नहीं करेगा । देवबंद में एक मुस्लिम छात्र ने कहा तो वो सोचता था ये मोदी ने सुधार हुआ है । लेकिन योगी और साक्षी महाराज के बयानों पर वो नाराज हो जाता है । बरेली में सबसे प्रभावशाली मकसदों में एक दरगाह है । हालत हजरत के मौलानाओं का कहना था कि समान नागरिक संहिता और हाल ही में तीन तलाक के मसले पर भाजपा के रुख ने उन्हें बहुत आहत किया है । झांसी में एक मुस्लिम कारोबारी ने कहा कि मोदी के सत्ता में आने से वह परेशान नहीं है क्योंकि इस भय के बावजूद की बहुत खून खराबा होगा लेकिन उनके प्रधानमंत्रित्वकाल नहीं । कोई दंगा नहीं हुआ है । लेकिन परेशानी ये है कि जब भाजपा सत्ता में होती है तो मुसलमानों की सरकार तक कोई पहुंच नहीं होती । कोई सुनवाई नहीं, कोई आवाज नहीं कानपुर देहात के अकबरपुर बाजार में एक मुस्लिम मैकेनिक में इस पर विस्तार से कहा, भाजपा हम सभी को मार नहीं सकती तो हमें पाकिस्तान भी नहीं भेज सकते । वो सिर्फ सत्ता से बाहर रखना चाहते हैं । उन्होंने अलग रखना चाहते हैं । वो हमें गुलाम बनाना चाहते हैं । विश्व भर में प्रभावशाली एक और इस्लामी मगर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के देवबंद में एक मुस्लिम धर्मगुरु का एक अलग ही नजरिया था । उनका कहना था कि भाजपा को खुद ही मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए क्योंकि वे हमें एक समस्या के रूप में दिखाकर सभी को एकजुट करना चाहते हैं । ऐसी स्थिति में किसी प्रकार की वार्ता कैसे हो सकती है । लेकिन जब मुस्लिम जानते हैं कि वे भाजपा को वोट नहीं देंगे इसलिए इसका ये तात्पर्य जरूरी नहीं है कि उन सभी ने एक साथ वोट देने या भाजपा को हराने की योजना तैयार की है । वैसे अनेक साक्ष्य उपलब्ध हैं । मुस्लिम समुदाय में भी शहरी ग्रामीण जाति वर्ग और दलीय समीकरण के आधार पर विखंडन होता है और कांग्रेस और सपा दोनों के गठबंधन तथा बसपा द्वारा मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश के कारण मुस्लिम मत बढ गए । मुस्लिम समुदाय का मानना था कि भाजपा को ध्रुवीकरण का अवसर प्रदान करने का खतरनाक और गहरा असर होगा । हिंदू भी संगठित होंगे । भाजपा के रणनीतिकार ने स्वीकार किया हाँ ऑपरेशन हमने इसका इस्तेमाल किया । हर कोई मुस्लिम मतदाताओं को लुभा रहा था । हमने हिंदुओं से कहा एकजुट हो जाएंगे तो हम हमेशा ही बढते हुए रहेंगे । अमेरिकी चुनाव में ट्रंप ने दिखा दिया निकले इस पहले और मुस्लिम निर्णय नहीं करेंगे । अमेरिका का राष्ट्रपति कौन होगा? श्वेत लोग ये करेंगे । यहाँ भी मुसलमान ये निर्णय नहीं करेंगे । उत्तर प्रदेश में शासन कौन करेगा? ये काम हिंदू करेंगे । उन्होंने हराना चाहते हैं । हम उन्हें और उनके दलों को पराजित करना चाहते हैं । ये संघर्ष है इस लडाई में उनका पक्ष जीता । नई विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या में जबरदस्त गिरावट आई और उनकी संख्या किसी रह गई जबकि दो हजार बारह के चुनाव में मुस्लिम विधायक निर्वाचित हुए थे । देश के सबसे बडे राज्य में सत्ता पक्ष की सीट पर एक भी मुस्लिम नहीं था जबकि उत्तर प्रदेश में इनकी आबादी चार करोड से भी अधिक है । प्रधानमंत्री मोदी के चुनाव प्रचार में उतरने से पहले उनके कार्यालय को पार्टी से एक ईमेल मिला । इसमें उनकी जनसभाओं से संबंधित क्षेत्र का राजनीतिक महत्व मुख्य मुद्दे हैं । क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों के संक्षिप्त इतिहास के साथ ही भाजपा द्वारा उठाए जा रहे राजनीतिक मुद्दे भी शामिल थे । प्रधानमंत्री ने स्टाॅपर एक नजर डाली और जनसभा में उठाए जाने वाले प्रमुख मुद्दों को आत्मसात कर लिया । लेकिन इस बात की कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती । प्रधानमंत्री अपने भाषण में किसी पटकथा तक सीमित रहेंगे । प्रधानमंत्री के साथ निकटता से काम करने वाले एक अधिकारी ने उनकी वाकपटुता और विभिन्न मुद्दों को जनता के सामने रखने में उनकी दक्षता की प्रशंसा करते हुए कहा कि वो जनसमुदाय का मूड और उसकी प्रतिक्रिया को देखते हुए बहुत ही सरल शब्दों में अपनी बात रखते हैं तो चंदा बातों की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं परन्तु अक्सर उनका भाषण मूल ही होता है । वो बिना किसी तैयारी की ही भाषण देते हैं । अफसर जनसभा में लिए जाने वाले नामों और स्थानों के अलावा नोट से किसी तरह की मदद नहीं लेते हैं । इस सबका मतलब ये हुआ कि किसी को नहीं मालूम होता कि मोदी अपने भाषण में क्या बोलने वाले हैं । शायद ये वजह है कि अमित शाह के अलावा किसी को देश के प्रधानमंत्री द्वारा ये कहे जाने की अपेक्षा नहीं थी तो उन्होंने अवध इलाके में तीसरे चरण के मतदान के दौरान नहीं फरवरी को फतेहपुर में कहा था । मोदी ने हमेशा की तरह ही भारत माता की जय के उद्घोष के साथ अपना भाषण शुरू किया । जनता ने भी हमेशा की तरह ही पूरे जोश के साथ इसका प्रस्तुत कर दिया । इसके बाद उन्होंने मंच पर उपस्थित सभी पदाधिकारियों के नाम लिए । ये मंच पर उपस्थित नेताओं के महत्व को दर्शाने का सामान्य तरीका है और जनसमूह को ये आभास चलाना के मंच पर विभिन्न समुदायों के नेतागणों का प्रतिनिधित्व है । उसके बाद जिले से चुनाव लड रहे प्रत्याशियों का परिचय कराया । प्रत्येक उम्मीदवार आगे आया और उसके बगल में खडा हुआ जहाँ पार्टी का चुनाव चिन्ह कमल लहरा रहा था । प्रधानमंत्री विकास की गंगा वायदा करते हैं । वो सपा कांग्रेस गठबंधन का मजाक भी बनाते हुए उनकी अवश्यंभावी पराजय के बारे में बोलते हैं और सपा पर पुलिसथानों को पार्टी कार्यालय में तब्दील कर रहे हैं तथा अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप डालते हैं । किसानों का कर्ज माफ करने की प्रतिबद्धता करने और केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए दूसरे विकासकार्य के बारे में बोलते हैं । परन्तु मोदी ने अपने पैंतीस मिनट के भाषण नहीं तुष्टीकरण की राजनीति का एक बार भी जिक्र किया । बगैर ही अपने ही अंदाज बहुत ही विस्तार से सब कुछ कह डाला । प्रधानमंत्री ने कहा, हम सबका साथ, सबका विकास में विश्वास करते हैं । सभी के साथ न्याय होना चाहिए । उज्ज्वला योजना के अंतर्गत हमने रसोई गैस के सिलेंडर वितरित किए । हमने ये नहीं कहा कि मोदी चुकी बनारस से सांसद हैं इसलिए सिर्फ बनारस के निवासियों को ये मिलेगा नहीं । उत्तर प्रदेश के प्रत्येक कोने कोने में रहने वाले व्यक्ति को ये मिलेगा । हमने ये नहीं कहा कि सिर्फ हिन्दुओं को ही मिलेगा, मुस्लिम लोगों को नहीं मिलेगा । सभी को ये मिलेगा लाइन में लगे प्रत्येक व्यक्ति को मिलेगा । हम ने ये नहीं कहा कि इस जाती को मिलेगा और इस जाती को नहीं मिलेगा । नहीं । गांव की सूची के अनुसार नंबर आने पर प्रत्येक व्यक्ति को ये मिलेगा और प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों को आने वाले दिनों में पूरा किया जाएगा । मेरा पराया नहीं चलता । सरकार को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है । और इसी वजह से मोदी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में भेदभाव, पक्षपात उसकी सबसे बडी समस्या है । अन्याय की जड यही पक्षपात है । आप मुझे बताएं यहाँ पक्षपात है या नहीं । जनता ने जोर से कहा हाँ, मोदी ने अपना भाषण जारी रखा । मैं हैरान हूँ । उत्तर प्रदेश में आप एक दलित से पूछे और वह कहता है, मुझे मेरा हिस्सा नहीं मिलता । अन्य पिछडे वर्ग से ले जाते हैं । ओबीसी कहते हैं कि हमें हमारा हिस्सा नहीं मिलता, ज्यादा उसे ले जाते हैं । यादवों से पूछे वो कहते हैं, जो परिवार से जुडे हैं सिर्फ उन्हें ये मिलता है और बाकी मुस्लिमों में चला जाता है और यहाँ तक कि हमें भी नहीं मिलता । हर व्यक्ति शिकायत कर रहा है कि पक्षपात काम नहीं कर सकता । हर एक को उसके अधिकारों के अनुसार मिलना चाहिए । यही है सबका साथ सबका विकास और भाजपा इसके लिए प्रतिबद्ध है और फिर अपनी बात के संदर्भ और दर्शन की भूमिका बांधने के बाद मोदी ने नॉकआउट पाँच हमारा इसके बारे में निश्चित ही वो जानते थे । ये दो हजार सत्रह के चुनाव का संघर्ष का नारा बन जाएगा । इसीलिए किसी गांव में कब्रिस्तान बनता है तो एक शमशान घाट का निर्माण भी होना चाहिए । यदि रमजान के अवसर पर बिजली आपूर्ति की जाती है, दिवाली पर भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए । होली के अवसर पर बिजली की आपूर्ति की जाती है तो ईद के मौके पर भी की जानी चाहिए । इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए कि सरकार का कर्तव्य है कि वह पक्षपातरहित प्रशासन उपलब्ध कराए, न धर्म के आधार पर, न कभी जाति के आधार पर और नहीं । कभी ऊच नीच के आधार पर किसी प्रकार का न्याय नहीं होना चाहिए । यही है सबका साथ सबका विकास । ये एक असाधारण मैं तो वाला भाषण था । इसे पूरा पढिए । संदर्भ से हटकर इसका एक भी शब्द नहीं था । मोदी ने सही धर्म पर बहस के लिए तैयार नहीं किया था । जाती परहेज के लिए नहीं । भाजपा के अतिप्रिय शब्द पुष्टिकरण के लिए तैयार किया था बल्कि इससे सरकार के संवैधानिक कर्तव्य को ध्यान में रखकर तैयार किया था कि सभी नागरिकों से एक समान व्यवहार हो । कई लोग ये तर्क दे सकते हैं कि मोदी खुद मुख्यमंत्री के रूप में दो हजार दो गुजरात में ऐसा करने में विफल रहे परन्तु फतेहपुर में उनकी अपील ऐसी भाषा में कडी हुई थी जो आपत्तिजनक थी । लेकिन जब से उस राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में रखते हैं इसमें ये कहा जा रहा था तो मोदी का इशारा एकदम स्पष्ट था । मोदी ने जो कहा था और सरधाना नहीं, संगीत मोम नहीं । अमरोहा में चेतन चौहान ने जो कहा था और जो पार्टी के मुखिया अमित शाह पीलीभीत ने कहेंगे उन में कोई विशेष अंतर नहीं था । इसका मकसद ही हिंदुओं में उसके लिए कडवाहट पैदा करनी थी जो उन्हें नहीं मिल रहा था । उसमें असंतोष का ये भाव पैदा शर्मा था कि मुस्लिमों को सिर पर चढाया जा रहा है । उसका मकसद बाकी सभी राजनीतिक दलों, धर्म आधारित हितों की हमारे करने वाले दलों के रूप में पेश करना था । आम नागरिकों और भेदभावरहित शासन के नाम पर इसका मकसद समुदायों को बांटना था । और जैसा कि दूसरों ने दावा किया, मोदी के तरफ भी पूरी तरह साक्ष्यों पर आधारित नहीं थे । मतलब ऐसा कोई संकेत नहीं था की सरकार ने जानबूझकर निर्बाध रूप से बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करके ईद को होने दिया और दूसरे त्यौहार में ऐसा नहीं करके बाधा डाली । जैसे ही ये संदेश नीचे तक पहुंचा उनकी कब्रिस्तान, शमशान, रमजान, देवाली और किस तरह से सरकार दूसरे की कीमत पर पहले की हिमायत कर रही है, जैसी तुलना की शब्द रचना सबसे अधिक लोकप्रिय हो गई । इस की इस तरह व्याख्या की गई इस सरकार इस तरह से हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों का पक्ष दे रही है और इसी वजह से इस ने सरकार के खिलाफ ही नहीं बल्कि दूसरे समुदाय इस मामले में मुस्लिम के खिलाफ भी लोगों में गुस्सा पैदा कर दिया । मिर्जापुर बाजार में एक कुर्मी कारोबारी राम पटेल ने मुझसे कहा, मोदी सही कह रहे हैं, सब मुसलमानों के लिए कम हो रहा है । मोदी जैसी कुशाद राजनीतिक बुद्धि वाला व्यक्ति ही जनता था की संदेश को किस तरह सुना जाएगा । उसने काम किया । मोदी का संदेश और भाजपा का बहुत संदेह, विशेष रूप से । इस विषय पर दो हजार चौदह और दो हजार सत्रह में दोनों में क्यों देख पूजा मैंने दिन से अधिक समय उत्तर प्रदेश में बताया । इसमें पूरा एक महीना चुनाव के दौरान, दो हजार सोलह के अंदर और दो हजार सत्रह के शुरू का समय शामिल था । मैंने राज्य के प्रत्येक क्षेत्र का और अक्सर कई बार दौरा किया और मेरी मुलाकात प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में सैकडों व्यक्तियों से हुई । परन्तु अपने इस पूरी यात्रा के दौरान मैंने एक भी हिंदू से इतने लंबे समय तक राष्ट्रीय राजनीति को परिभाषित करने वाला धर्मनिरपेक्षता शब्द बोलते नहीं सुना है । मुस्लिम हूँ लगातार शब्द का इस्तेमाल करते थे । वे ललक के साथ धर्मनिरपेक्ष दलों की और देखते थे और उसमें कांग्रेस, सपा और यहाँ तक कि कुछ हद तक बसपा को भी इसमें शामिल करते थे । राजनीतिक दल भी कभी करी अल्पसंख्यकों से वोट की अपील करते समय शब्द का इस्तेमाल करते थे परन्तु यहाँ तक कि वे हिंदू जो भाजपा को वोट नहीं देते थे, सपा परिवार के थे जो पारंपरिक रूप से बसपा के साथ थे तो कांग्रेस के साथ उसके पास अपने दलों का समर्थन करने के लिए अपने अपने कारण थे । इन कारणों में उन्होंने कभी भी धर्मनिरपेक्षता को नहीं गिराया । रोज मर्रा की राजनीतिक परिचर्चा हूँ, धर्म निरपेक्षता के खत्म होने की वजह जानने के लिए और गहराई में जाकर जांच पडताल की आवश्यकता है । एक अच्छा विषय बन सकता है । किस प्रकार संघ का दशकों से चल रहा अनवरत सांप्रदायिकता का प्रचार अंततः अब इसके परिणाम दे रहा है । इसके संकेतों का पैमाना और कई बार सीधे धूर्तता, संदेशों के प्रसार के लिए प्रौद्योगिकी और संगठानात्मक नेटवर्क का इस्तेमाल । ये संदेश आंशिक रूप से ही सही और कई बार एकदम हालत होते थे और उस व्यवस्था तरीके नहीं जिसमें पार्टी प्रधानमंत्री से लेकर मतदान केन्द्र के कार्यकर्ता काम करते हैं । बातचीत के तरीके को ही पूरी तरह बदल कर रख दिया है । एक नजर ये ये भी हो सकता है ये दलों की प्रशासनिक और शासन की विफलता है । इसमें सार्वजनिक रूप से खुद को धर्मनिरपेक्षता के विचार से संबद्ध करके धर्मनिरपेक्षता को ही कलंकित कर दिया हूँ । ये भी दृष्टिकोण हो सकता है कि शब्द का प्रयोग खत्म होने का काम कर रहे हैं । ये नहीं है कि लोगों को सद्भाव, सहिष्णुता के श्रद्धान और धर्म के मामले में सरकार की तटस्थता प्रिया नहीं है । क्या वे प्रतिगामी हो गए? लेकिन एक सबसे प्रभावशाली तर्क ये भी हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में धर्मनिरपेक्ष दलों ने खुद ही अल्पसंख्यकों से वोट की अपील करके धर्मनिरपेक्षता के विचार को ही कमतर कर दिया । जितना अधिक उन्होंने ये किया, उतना ही अधिक इसने हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए भाजपा को अवसर प्रदान किया । निश्चित ही बिहार के दो हजार पंद्रह के चुनाव के नतीजे दर्शाते हैं । यदि विपक्ष सही तरीके से अपनी राजनीति करें, पैसा नहीं है । हिन्दू कार्ड के आधार पर चुनावी जीत हो, टाला नहीं जा सकता हूँ । लालू प्रसाद यादव जैसे बिहार चुनाव को अगडे बनाम पिछ्डे की शक्ल देने की उम्मीद करते हैं, वैसे ही भाजपा चुनाव को हिंदू बना मुस्लिम बनाना चाहती है । यदि हिंदू एकजुट होते हैं तो खेल खत्म हुआ । ईमानदारी से कहा जाए तो धर्म का इस्तेमाल करना उनके लिए कोई नई बात नहीं । नहीं नीतीश लालू कांग्रेस गठबंधन मुस्लिम मतों की एकजुटता सुनिश्चित करने न कि दो हजार चौदह की तरह ठंडी कर रहे हैं, के इरादे से ही बनाया गया था । ऐसा करने के लिए पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी ने ध्रुवीकरण की भाषा का इस्तेमाल किया । अमित शाह ने घोषणा की, यदि भाजपा चुनाव हार गई, पाकिस्तान में दिवाली मनाई जाएगी, एक पर्यवेक्षक के लिए चुनाव के दौरान कहीं जाने वाली सामान्य बात हो सकती है । मंत्री इस बयान के कहीं मायने थे । इसमें पहले तो इस तरह से पेश किया कि भाजपा एक पार्टी के रूप में भारत की रक्षा कर रही है । इसमें ये तथ्य भी छिपा था । चुनाव मैदान में उतरे दूसरे दल राष्ट्रविरोधी थे तो इसमें अपने जनाधार को भेजा गया । दूसरा छुपा हुआ मतलब और ज्यादा स्पष्ट था । यह कोई छुपी हुई बात नहीं है । राज्य में पर्याप्त संख्या वाली अल्पसंख्यक आबादी चाहती थी कि भाजपा चुनाव आ रहे हैं और इसलिए बिहार के मुसलमान भाजपा की हार का जश्न मनाएंगे । कट्टरपंथी हिंदुओं की परिकल्पना में भारतीय, मुसलमान और पाकिस्तानी एक जैसे थे और इसलिए भाजपा की पराजय का जश्न पाकिस्तान में मनाया जाएगा । शाह ने संघ कि उस तकनीकी व्यवस्था को अपनाया था जिसमें राष्ट्रवाद और धर्म को मिलाकर तथा अकेले खुद को राष्ट्र के एकमात्र रक्षक के रूप में पेश किया जाता है । उन्होंने उत्तर प्रदेश के चुनाव में कसाब का जिक्र करके एकदम यही किया था । भाजपा ने बीस कार्ड भी खेला है । उत्तर प्रदेश के दादरी में सितंबर दो हजार पंद्रह में मोहम्मद अखलाक को कथित रूप से गौमांस का सेवन कर रहे हैं और इसे घर में रखने के कारण उग्र भीड ने बीट बीट कर मार डाला था । भाजपा ने दावा किया, ये कानून और व्यवस्था का मामला था । पड चुकी कानून व्यवस्था राज्य का विषय था । इसलिए इसमें वह बहुत अधिक कुछ नहीं कर सकती थी परन्तु उससे संबद्ध संगठन कथित हत्यारों के बचाव में कूद पडे और उन्होंने सारा ध्यान हत्या की बजाय गोमांस के मुद्दे पर ही केंद्रित किया । इस हत्या के तुरंत बाद लालू प्रसाद यादव ने अपने भाषण नहीं कहा था । हिन्दू भी गोमांस खाते हैं और उन्होंने संघ और भाजपा को चेतावनी दी थी इस मुद्दे का सांप्रदायीकरण नहीं करें । भाजपा को इतना मौके की गंधा । पार्टी ने तत्काल आकलन किया कि महागठबंधन को कोवर और उसके मांस के सेवन का बचाव करने वालों के रूप में पेश करने से हिंदुओं और यादवों को भी लालू से दूर कर सकता है । मोदी ने स्वयं भी कहा, इस टिप्पणी ने यदुवंशियों का अपमान किया है । लालू भी तत्काल इस कथन से पीछे हट गए । फिर भी इन प्रयासों के बावजूद और जिसे लालू प्रसाद के कैंप में भी अधिकांश लो बहुत बडी भूल के रूप में देख रहे थे । हिंदू कार्ड बिहार में नहीं चला हूँ । क्यों हो भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने इसका स्पष्टीकरण दिया । पहले तो आपको समझना होगा कि बिहार उत्तर प्रदेश नहीं है । उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण का इतिहास रहा है । अयोध्या, काशी, मथुरा सभी वहाँ है । भागलपुर के उम्मीद तो नौ उसी के दंगों के बाद बिहार में कोई बडा दंगा नहीं हुआ । विभिन्न समुदायों के बीच संबंध बहुत अधिक कटुतापूर्ण नहीं है । हमें इस सब के बारे में ध्यान देना चाहिए था परन्तु ये सिर्फ अंतर समुदाय समीकरण नहीं था । ये राजनीति थी नीतीश कुमार हमेशा से ही चौकस नहीं की । वो स्वयं को मुसलमानों के नेता के रूप में पेश नहीं करें तो किसी भी कीमत पर उनके हितों की खाते हैं, किसी भी सीमा तक जा सकता है । उन्होंने मोदी से संबंध तोडकर उनका विश्वास जीत लिया था तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की जा रहे उन्हें कभी नहीं सिर्फ समुदायके नजदीकी के रूप में नहीं जाना गया था । इसने पुष्टिकरण की भाषा के प्रयोग और सरकार द्वारा हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों का अधिक पक्ष लेने जैसे मुद्दे के इस्तेमाल को भाजपा के लिए बहुत ही मुश्किल बना दिया था । लालू प्रसाद का मामला अलग था । उनकी राजनीति ही मुस्लिम यादव गठबंधन पत्ते की थी और वो मुस्लिम मुद्दों पर काफी प्रखर भी रहे हैं । परन्तु दो हजार पंद्रह में उनकी आलंकारिक भाषा में नरमी आ गई थी और चुनाव के अधिकांश समय वो धर्मनिरपेक्ष सांप्रदायिक की बहस में पडने से दूर ही रहे । राजद के एक प्रमुख नेता ने इस बारे में सफाई दी । मुस्लिम नेता हमारे पास आए थे और उन्होंने हमसे साफ शब्दों में कहा, वे गठबंधन के साथ रहेंगे । हमें उन के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है और फिर उन्होंने कहा कि हमारे बारे में बात मत कीजिए । इससे उन्हें हिन्दुओं को एकजुट करने में मदद मिलेगी । दूसरे विषयों के बारे में बात कीजिए । हम चुप रहेंगे, आएंगे और आपको वोट करेंगे । भाजपा भी चुनावी मैदान में ये देख रही थी । यही नहीं पर्याप्त संख्या में मुस्लिम माओवादी वाले कटिहार और अररिया जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में गठबंधन ने भाजपा को इस चुनाव को हिंदू बनाम मुस्लिम का रंग देने से रोकने के इरादे से हिंदू प्रत्याशी खडे किए । इसमें सफलता मिली । मुसलमानों ने गठबंधन के हिंदू प्रत्याशी को वोट दिए । भाजपा के एक नेता ने इस की प्रशंसा करते हुए स्वीकार किया वो इस तरह की चतुराई से मतों के ध्रुवीकरण को रोकने में कामयाब रहे । इस सब का नतीजा ये हुआ कि भाजपा की पाकिस्तान और गोमांस की रणनीति उल्टी पड गई । उन्होंने सिर्फ हिंदुओं को एकजुट करने में विफल हो गई बल्कि इसमें मुस्लिमों को एकजुट होने और अधिक आक्रमक तरीके से वोट करने में मदद की । किसी भाजपा नेता ने कहा, वैसे भी वो गठबंधन के साथ ही होते हैं परंतु हमारी आप प्रवक्ता ने उन्हें असुरक्षित बना दिया । बडी संख्या में मतदान करने आए और बडी चतुराई से खामोश भी रहे । ऐसी कोई निश्चित फार्मूला नहीं है । भाजपा के हिंदू कार्ड नहीं सुनंदा परिस्थितियों में पार्टी के लिए जबर्दस्त काम किया था । मगर बिहार में ऐसा नहीं हुआ । बिहार के राजनीतिक परिदृश्य की विलक्षण कहाँ के अलावा इस संकेत भी देता है? सिर्फ हिंदू कार्ड ही पर्याप्त नहीं है और ये बेहद जटिल समस्या का एक अंश हो सकता है । हालांकि बिहार का अनुभव ये भी बता रहा है किस तरह से समाज और राजनीति बदल रही है । बिहार में धर्मनिरपेक्ष दल अपनी धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीट कर नहीं बल्कि इससे कम महत्व देकर चुनाव जीते । सार्वजनिक रूप से अल्पसंख्यकों की अपेक्षाओं की चर्चा करके नहीं बल्कि खामोशी के साथ । इस पर फैसला करके जीते । महागठबन्धन को मुस्लिम मतों के बारे में भरोसा दिलाया जा चुका था और उन्हें इसके लिए प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पडी और इसे इसी तरह से चलने दिया । उत्तर प्रदेश में धर्मनिरपेक्ष दलों ने अपने धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे को बखूबी उछाला । दो धर्मनिरपेक्ष वोटों पर सपा और सपा कांग्रेस उन्ही मुस्लिम मतों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं जिनके लिए उनकी आक्रमक अपेक्षाएँ थी । इसने भाजपा को इसका जवाब करने का अवसर प्रदान किया । एक सिद्धांत के रूप में धर्मनिरपेक्षता का अंत होने का अपने आप में एक गंभीर चुनावी नेता है और यदि भाजपा की असाधारण से निकल बहुसंख्यक परस्त राजनीतिक परियोजना इसकी एक वजह है तो धर्मनिरपेक्षता को महज अल्पसंख्यक मतों तक सीमित कर देने की धर्मनिरपेक्ष दलों की भूमिका इसकी दूसरी वजह है । उत्तर प्रदेश के नतीजों से मजबूत हुए आरएसएस और भाजपा का विश्वास है । उनकी वैचारिक योजना सही रास्ते पर है । अंदरूनी गतिविधियों से जुडे भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा, राष्ट्र का निर्माण बहुसंख्यकों की पहचान पर होता है । भारत एक अपवाद था क्योंकि उदार अभी आपके वर्ग के पास अकूत ताकत हिंदू संगठन नहीं थे । सच्चाई तो यह है कि यह हिंदू राष्ट्र है । हम जो कुछ देख रहे थे वो मतपेटियों पर यही दावा है । इस प्रारूप में सही नहीं बैठेंगे जो बहुमत के सिद्धांतों को स्वीकार नहीं करेंगे, हाशिया पर चले जाएंगे । यही संघ की पुरानी सोच रही है । हमें से चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से ऐसा होते देख रहे हैं । वह जोर देकर कहते हैं, चुनावों के माध्यम से एक हिन्दू राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में है । अनेक लोगों ने भी इस लडाई को इसी नजरिए से देखा । दो हजार सत्रह के विधानसभा चुनाव के बाद नई दिल्ली में खान मार्केट के एक कॉफी शॉप नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश से नवनिर्वाचित एक युवा भाजपा विधायक अपनी चीज के बारे में बताता है । बडी प्रसन्नतापूर्वक कहता है, ये भारत पाकिस्तान का चुनाव था । भारत जीता हिन्दू दो हजार चौदह में जीते थे । उसके बाद अनेक राज्यों में चुनाव जीते और दो हजार सत्रह में सबसे बडे राज्य उत्तर प्रदेश पर कब्जा कर लिया ।
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