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3. Shah Ka Sangathan in Hindi

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12 K Listens
AuthorSaransh Broadways
Kaise Jitati Hai Bhajpa writer: प्रशांत झा Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Prashant Jha
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शाह का संगठन उत्तर प्रदेश में भाजपा को शानदार विजय दिलाने के एक महीने बाद अप्रैल दो हजार सत्रह में भुवनेश्वर में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह ने घोषणा की, ये आराम का समय नहीं है । उन्होंने पार्टी के लिए प्रत्येक राज्य विषेशकर दक्षिण और पूरा जीतने और पंचायत से लेकर संसद तक हर स्तर के चुनाव जीतने का नया लक्ष्य रखा । ये इस बात का द्योतक था कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह को अपने पूर्ववर्तियों के साथ ही उनके प्रमुख राष्ट्रीय प्रतिद्वंदी राहुल गांधी से अलग है । अपार और असीमित महत्वाकांक्षा भाजपा के एक अंदर के व्यक्ति जिसने काफी निकट से नेतृत्व के साथ काम किया था, संक्षेप में बताता है । अटल जी और आडवाणी जी उस समय बडे हुए जब कांग्रेस का आधिपत्य था । उन्हें हमेशा कि भाजपा की प्रादेशिक सीमाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना पडता था । मोदी और शाह दोनों ही धन है । प्रादेशिक सीमाओं और सामाजिक आधार के मामले में कठोर विस्तारवादी हैं । ये विस्तार उन पारंपरिक गढ में चुनाव जीतने के माध्यम से हासिल किया जहाँ हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हो सकता है की पार्टी डगमगा गई हो । नए भौगोलिक क्षेत्रों को लक्ष्य बनाना यहाँ पार्टी के विकल्प के लिए राजनीतिक गुंजाइश है । जैसे पूर्वोत्तर और उन राज्यों में प्रमुख विपक्षी ताकत बनना जहाँ ऐतिहासिक रूप से वो कमजोर रही जैसे पश्चिम बंगाल और ओडिशा सब कैसे हुआ? यदि मोदी का व्यापक जनसंपर्क इस कहानी का एक भाग है तो भाजपा का कायाकल्प करने में पचपन वर्षीय अमित शाह का काम इस कहानी का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा है । अमित शाह ने संगठन में ऊर्जा का संचार क्या इसकी सदस्यता का विस्तार किया? सावधानीपूर्वक मतदान समितियों को केंद्र और सारी गतिविधियों का केंद्र बिंदु बनाया । एक केंद्रीयकृत लेकिन फिर भी केंद्र ढांचा तैयार किया जहाँ ऊपर से लेकर नीचे था और दूसरी तरह से भी सूचनाओं का प्रभाव होता है और पैसे लेने की प्रक्रिया तेज की । संगठन द्वारा अपने हाथ में लिए जाने वाले उन बुनियादी मुद्दों की पहचान करने में मदद के लिए आंकडों पर आधारित सूचनाओं के लिए स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित की और ये सुनिश्चित किया कि सभी स्तरों पर नेताओं की जवाबदेही होगा । इनमें से प्रत्येक के लिए अथक प्रयास की जरूरत होती है । भाजपा की अभूतपूर्व सफलता की गुत्थी सुलझाने के लिए चुनाव प्रबंधन के अमित शाह स्कूल के घटकों को सही तरीके से समझना होगा परन्तु इससे पहले इस व्यक्ति को समझना होगा । ये कहानी है कि कैसे एक व्यक्ति ने समकालीन भारत में सबसे अधिक विकेट चुनाव मशीनरी का सृजन कर दिया । अमित शाह का जन्म उन्नीस सौ चौंसठ में मुंबई में हुआ था लेकिन उनका परिवार मूलतः अहमदाबाद के निकट मनसा से था । एक दुर्लभ इंटरव्यू में जहाँ उन्होंने अपने प्रारंभिक दिनों के बारे में बताया । शाह ने हिंदुस्तान टाइम्स के लेखक पैट्रिक फ्रेंच को बताया, उनके दादा चाहते थे गांव में ही उनका लालन पालन किया जाए । उनके पडदादा व्यापार से संबंधित मामलों में मनसा के शासक के सलाहकार हुआ करते थे । परिवार संपन्न था और शाह एक हवेली में बडे हुए तो याद करते हुए बताते हैं ये उन्हें औपचारिक पढाई पसंद नहीं थी और संघ की शाखा में खेलने जाने को महत्व देते थे । अधिकांश खेलों को इस तरह से तैयार किया गया था । इससे शारीरिक शौष्ठव बडे मुझे देश भक्ति पढाई गई थी । मुझे संस्कार सिखाए गए थे तो पंद्रह साल की उम्र में अहमदाबाद आ गए, जैवरसायन का अध्ययन किया और अठारह साल की उम्र तक पहुंचते ही ब्लॅक और पीवीसी के कारोबार में शामिल हो गया । परंतु शाह संघ की गतिविधियों में काफी अधिक शामिल थे । उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया और हम तथा भाजपा में आ गए । उनका राजनीतिक सामाजिक रन चुनावों के दस्तूर के साथ शुरू हुआ और उनकी सबसे पहला चुनावी कार्य अहमदाबाद के नारनपुरा वार्ड के चुनाव एजेंट के रूप में था । उसके बाद वो उन्नीस सौ नवासी के लोकसभा चुनाव में एल के आडवाणी के लिए चुनाव संयोजक बने । उन्नीस सौ सत्य से शाहने खुद अहमदाबाद के सरखेज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडना शुरू कर दिया और अपनी जीत का अंतर पच्चीस हजार से बढाकर उन्नीस सौ अट्ठानबे में एक दशमलव तीन शून्य लाख और दो हजार दो में डेढ लाख और दो हजार सात में दो दशमलव तीन लाख तक कर दिया । वो एक बार फिर दो हजार बारह में काफी छोटी नवसृजन नारायणपुरा विधानसभा सीट से साठ हजार मतों से विजयी हुए । उन्होंने सर आपने ही चुनाव में भूमिका नहीं निभाई बल्कि मुख्य रणनीतिकार और संगठन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सभी को एक सूत्र में करो कर गुजरात में भाजपा को अधिक पडी जीत दिलाई । मोदी की छडी हिंदू दावे का मिश्रण क्षेत्रीय गौरव या गुजरात अस्मिता विकास का वायदा और सवर्ण जातियों का व्यापक सामाजिक गठजोड पटेल अन्य पिछडे वर्गों का एक बडा वर्ग और दलितों तथा आदिवासियों के वोट अनवरत सफलता का मंत्र थे लेकिन संगठन ने जोडने का काम किया । अनेक प्रयोग जिन्हें शाह को बाद में राष्ट्रीय स्तर पर अपनाना था । पार्टी की सदस्यता में विस्तार, राजधानी से बाहर पार्टी पदाधिकारियों की निरंतर यात्रा । जनसंपर्क कार्यक्रम हूँ । पार्टी की सभी इकाइयों को ऊर्जावान बनाना गुजरात में पहले ही किये जा चुके थे । नब्बे के दशक के मध्य में शाह कांग्रेस के गढ सहकारिता गुजरात में राजनीतिक ताकत का मुफ्त स्रोत था और वस्त्रकार नाम अर्जित कर चुके थे । भाजपा अचानक ही गुजरात में सहकारी बैंकों, दुख डेरी और कृषि विपणन समितियों के चुनाव जीतने लगे । एक दशक पा उन्होंने ऐसा ही कुछ गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के साथ किया और से मोदी के लिए जीत लिया । दो हजार दस से शाह को अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजरना पडा । न्यायेतर हत्या की साजिश के आरोपी शाह को अपने ही गृहराज्य जहाँ वो गृहमंत्री रह चुके थे, जेल जाना पडा अदालत में बाद में उन्हें जमानत दे दी । परंतु साथ ही दो साल के लिए गुजरात से बाहर निकाल दिया । शाह दिल्ली आ गए और फिर पूरे देश का भ्रमण किया । दिसंबर दो हजार बारह में विधानसभा चुनाव के समय अपने राज्य लौटे देश के इतिहास का एक निर्णायक मोड था । नरेंद्र मोदी लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए विजयी हुए और उन्होंने नतीजे वाले दिन अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा साहिर की भाजपा के वरिष्ठ नेताओं विषेशकर अपने पूर्व प्रणेता लालकृष्ण आडवाणी के प्रतिरोध का मुकाबला करते हुए मोदी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी बनने तक पहुंच गए । दो हजार बारह के विधानसभा चुनाव की जीत नें शाह को भी नया जीवन प्रदान किया । कुछ महीनों के भीतर ही मई दो हजार में शाह को पार्टी का महासचिव बनाने के साथ ही उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया । जहाँ को इस राज्य के बारे में कोई जानकारी नहीं थी । अब उनके सामने सबसे चुनौती भरी जिम्मेदारी थी वो तय करती । क्या नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे? परंतु सत्ता प्राप्त करने के एकनिष्ठ दृढनिश्चय नहीं । उन्हें इसके लिए अच्छी तरह से तैयार किया था । जनवरी दो हजार चौदह में अमित शाह को मदद की जरूरत थी और उन्होंने वही किया जो भाजपा के नेता जरूरत पडने पर मदद के लिए करते हैं । उन्होंने संघ से संपर्क किया और उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान में मदद के लिए एक सहायक की मांग कि आरएसएस ने एक युवा परन्तु संगठन में उभरती प्रतिवाद चौवालीस वर्षीय सुनील बंसल को भेजने का निर्णय किया । मूल कहा राजस्थान के बंसल उस समय दिल्ली में अखिल भारतीय युवा परिषद के संयुक्त महासचिव है । इसमें उन्हें छात्र संगठन में तीसरा सबसे ताकत और व्यक्ति बना दिया । इसका मकसद संघ में नए युवाओं को शामिल करना और उनके वैश्विक नजरिए को साल दर साल विश्वविद्यालयों तक प्रभावित करना था । बंसल उस समय सत्रह रह गए जब भाजपा के प्रभारी संघ के संयुक्त महासचिव सुरेश सोनी ने उन्हें हैदराबाद में एक बैठक के लिए बडा और यहाँ उनसे कहा गया है कि अपना सामान समेट हो और भाजपा में शाह की टीम में शामिल होने जाओ । संघ भी जिम्मेदारी का मतलब जिम्मेदारी है । आप इससे इनकार नहीं कर सकते । पंद्रह जनवरी दो हजार चौदह को बंसल ने दिल्ली में पहली बार शाह से मुलाकात की । चाहने, उनसे उनके परिवार और संठनात्मक पृष्ठभूमि के बारे में पूछा । ये एक अनौपचारिक बातचीत थी । बंसल ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के काम से उत्तर प्रदेश में समय व्यतीत किया था परन्तु वो इस राज्य को अच्छी तरह नहीं जानते थे । चाहने उनसे कहा जाओ राज्य के उन छह मंडलो काशी, गोरखपुर, अवध, कानपुर, बुंदेलखंड, ब्रज और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा करो जिन्हें भाजपा ने अपने संगठानात्मक मानचित्र पर रुके रहा है और तीन सप्ताह में लखनऊ में उन से मुलाकात करूँ । अमित शाह पांच फरवरी को उत्तर प्रदेश में ढाई सौ उन प्रमुख व्यक्तियों की बैठक बुलाई । लखनऊ में पार्टी कार्यालय में भाजपा की चुनाव मशीनरी का केंद्र होंगे । इनमें भाजपा के सभी जिलाध्यक्षों, लोकसभा के सभी अस्सी निर्वाचन क्षेत्रों के प्रभारी थे और राज्य स्तर के प्रमुख लोग शामिल थे । इस बैठक में शाह ने एक निर्धारित प्रारूप में बीस सवालों पर पदाधिकारियों से रिपोर्ट । इसमें अन्य बातों के अलावा प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में सक्रिय हो चुकी बूथ समितियों की संख्या, महिलाओं, युवा वर्ग, पिछडी जातियों को लक्षित करके की गई बैठकों की संख्या और सोशल मीडिया पर पहुंच शामिल थी । दिन भर में बारह घंटे शाह ने प्रत्येक जिले की प्रगति के बारे में दी गई ताजा रिपोर्ट के बारे में सुना । उन्होंने फिर डेट दिया, संतुष्ट नहीं होने पर उनसे पूछताछ की और उन्हें निर्देश दिए । अंत में शाह ने बैठक में उपस्थित पदाधिकारियों का परिचय सुनील बंसल से कराया हूँ और कहा उपचुनावों के प्रबंधन की निगरानी करेंगे और जब वो कुछ कहीं तो ये समझे कीजिए मैं कह रहा हूँ । बंसल आधिकारिक रूप से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर पहुंच चुके थे । उस शाह सबसे नजदीकी सहयोगियों में से एक बनाए जाने वाले थे । उत्तरप्रदेश अमित शाह की जिम्मेवारी थी । उनके सहयोगी के रूप में बंसल को चुनावों का एक विहंगम दृश्य मिल चुका था । किसी और नहीं । पार्टी के भावी अध्यक्ष को काम करते हुए इतने नजदीक से नहीं देखा था । भारत में अब सबसे अधिक मिस्टर लोगों में शामिल और बेहद सफल चुनाव प्रबंधक माना जा रहा व्यक्ति किस तरह काम करता है? बंसल बताते हैं, चुनाव पूर्व अमित भाई पहला काम बहुत ही गहराई से वस्तुस्थिति का अध्ययन करते हैं । उन्हें दो हजार तेरह में ही उत्तर प्रदेश का प्रभार मिला था । हम तो छह महीने के भीतर ही उन्होंने राज्य के प्रत्येक होने की यात्रा कर डाली थी । वो प्रत्येक क्षेत्र के मुद्दों से अवगत थे । वो जानते थे कि कौन सा नेता कहाँ उपयोगी है । व्यापक यात्राओं और अध्ययन ने अमित शाह को चुनावों की तैयारी के लिए बुनियादी दांवपेचों से सुसज्जित कर दिया था । उनकी समझ में आ गया कि पार्टी संगठन में जंग लगा हुआ है और इसलिए उन्होंने मतदान केंद्र स्तर पर समितियां बनाने पर ध्यान केंद्रित किया । ये पार्टी संगठन की सबसे छोटी इकाइयां होती हैं तो मैदान में काम करती हैं । यहाँ किसी भी चुनाव में मत डाले जाते हैं । ये समितियां ही मतदान से पहले समुदाय के लोगों को मत देने के लिए तैयार करने में अहम भूमिका निभाती हैं और वास्तव में मतदान के दिन मतदाताओं को बाहर आने के लिए प्रेरित करने का काम करके स्थानीय स्तर पर अनुकूल माहौल तैयार करती है । उत्तर प्रदेश में बीस करोड से ज्यादा आबादी वाले इस राज्य में एक दशमलव चार लाख मतदान केंद्र थे । समितियों को सुदृढ बनाना आसान काम नहीं होगा । उन्होंने देखा, स्थानीय नेतृत्व कमजोर है और पूरी तरह से गुटबाजी में उलझा हुआ है और उन्हीं की वजह से पार्टी की लगातार पराजय हुई है । इन नेताओं को किनारे लगना ही होगा लेकिन ये बंदोबस्ती करना होगा कि उनमें कोई विद्रोही ना हो । ये भी देख सकते थे कि नरेंद्र मोदी की अपील है परंतु लोग मोदी को ठीक से नहीं जानते हैं परन्तु शाह खुद भी अपेक्षाकृत अनजान व्यक्ति ही थे । ऐसी स्थिति में चुनाव जीतने का एकमात्र रास्ता मोदी का अथक इस्तेमाल किया जाए । यही वह बिंदु था जब शाह की मशीनरी को एक्शन चुनाव रणनीतिक, क्या प्रशांत कुमार और गांधीनगर स्थित उनके दल से बहुमूल्य मदद मिलेगी? उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए जनसभाओं, होलोग्राम, रथयात्राओं, चाय पर चर्चा, मीडिया, व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से मोदी घर घर पहुंच गए । बंसल बताते हैं, चुनाव में शाह का दूसरा मंत्र सामाजिक संरचना का सावधानीपूर्वक अध्ययन कर रहा था तो प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र कि जातीय गणित से परिचित थे । चाह को महसूस हुआ । पार्टी की सारी गलत गलत है । मुसलमान पार्टी को वोट नहीं देंगे । यादव समाजवादी पार्टी के प्रति ही वफादार रहेंगे । गलत समुदायों में जाटव पूरी तरह मायावती के साथ थे । इस सब मिलाकर आबादी का करीब चालीस प्रतिशत थे । भाजपा के पास अन्य पचपन से साठ प्रतिशत मतदाता ही थे और उसके बावजूद इससे पहले के दशक में पार्टी मुख्य रूप से सवर्ण जातियों बीस प्रतिशत से कम तक सीमित रही और उसने दूसरी जातियों तक पहुंचने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए थे । उन्होंने सवर्ण जातियों को एकजुट करने पर तो ध्यान केंद्रित किया परंतु पिछ्डे वर्गों और दलितों में भी अपनी पहुंच बनाई । बंसल बताते हैं, अमित भाई का अपना स्वतंत्र सूचनातंत्र भी है और वो जानते हैं कि प्रत्येक जिले में क्या चल रहा है । हम हर एक घंटे पर बात किया करते थे और वो अक्सर मुझसे कहते थे चेक करो, हम उस जगह क्या चल रहा है । मुझे तब वहाँ कुछ गतिविधियों का पता चलता था, ये बताते हुए उनकी आवाज में आदर स्पष्ट रख रहा था । सूचना पार्टी और वैचारिक संगठनों से आई स्वतंत्र फीट तक तंत्र से मिली ये उस पेशेवर टीम से मिली जिसकी सेवाएं वास्तविक वस्तु स्थिति की जानकारी देने के लिए ली जा रहे हैं । इसी विशेषता ने शाह को सारे विवरण पर नियंत्रन प्रदान किया और इस तरह उन्हें अपनी व्यापक रणनीति को माइक्रो तस्वीर के साथ जोडने में मदद मिलेगी । पूरे दिन बैठकर उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले से वे निर्देश की जानकारी प्राप्त कर सकते थे और उसके पहलुओं पर गौर करके स्पष्ट जानकारी देना और किसी भी समय इसकी अपने स्वतंत्र सूचनातंत्र से इसकी पुष्टि कराना चुनाव प्रबंधन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण था । शाह के दृष्टिकोण का चौथा महत्वपूर्ण पहलू गुजरात में उन के साथ व्यापक रूप से काम कर चुके लोगों से सूचना प्राप्त करके चुनाव में विपक्ष के आधार को तार तार करने पर ध्यान केंद्रित करना है । अपने आप में ये ऐसा तरीका है इसका प्रत्येक राजनीतिक दल चुनाव से पहले इस्तेमाल करता है तो भाजपा में एक ऐसी विचारधारा भी है जो बाहरी तत्वों को संदेह से देखती है और इसे वैचारिक रूप से प्रदूषित मानती है । हालांकि अमित शाह के लिए चुनावी बाध्यताएं सर्वोपरि थी । उन्हें भरोसा था इन बाहरी लोगों को स्वीकार कर लिया जाएगा और पार्टी के प्रचार एक वैश्विक दर्शन का आत्मसात कर लेंगे । भरत पंड्या भाजपा की गुजरात इकाई के प्रवक्ता हैं तो विधायक और पार्टी के कार्यालय सचिव रह चुके हैं । उन्होंने नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों के साथ ही कई वर्षों तक निकटता से काम किया है । दो हजार चौदह के चुनाव में वो बडोदरा सहित मध्य गुजरात के जिलों के प्रभारी थे । वडोदरा वो दूसरी सीट थी । यहाँ से नरेंद्र मोदी ने चुनाव लडा था । बंसल ने कहा, वह विपक्ष की ताकत को छिन्न भिन्न करने में यकीन रखते हैं । अमित भाई हमेशा ही आश्चर्य करते हैं । दशकों से कडी मेहनत कर रही भाजपा को अभी तक उस तरह की सफलता क्यों नहीं मिल सके तो हमें पहले ही मिल जानी चाहिए थी । उनका जवाब है, ये सब पाँच से दस प्रतिशत मतों की कमी की वजह से हुआ और इसे प्राप्त करने के लिए वो दूसरे दलों के लोगों अपने यहाँ लाने के लिए तैयार है । ये विरोधियों को कमजोर करेगा और हमें ताकत देगा । इससे कम हो रहे मतों की भरपाई होगी । और शाह के दृष्टिकोण का अंतिम पहलू साधारण लगने वाली गुणवत्ता है । इसे हम महत्व नहीं देते । वह कठोर परिश्रम और ध्यान केंद्रित करना । प्रवेन्द्र जायसवाल नहीं जो वाराणसी उत्तर से विधायक हैं । दो हजार चौदह के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव के दौरान चाह के साथ मिलकर काम किया था । वो याद करते हैं कि पार्टी मोदी की रैली के आयोजन की अनुमति के लिए जिला प्रशासन के साथ उलझी हुई थी । तभी ये फैसला किया गया है कि वो इसके बजाय पूरे शहर में मोदी का रोडशो आयोजित करेंगे । उन्होंने कहा, रोडशो से पहले की रात अमित शाह ने इस आयोजन के प्रत्येक पहलू की बारीकी से योजना तैयार की । ये काम हमने देर रात तक किया और फिर उन्होंने मुझे साढे सात बजे रोड शो शुरू होने वाले स्थान पर मिलने के लिए कहा ताकि हम इसके रास्ते इसमें लगी होर्डिंग्स लोगों की भीड के आने की व्यवस्था पर एक बार फिर से और कर रहे हैं । मैंने कहाँ रहा और घर चला गया? जायसवाल ने सही मायने में उस भारतीय परंपरा के बारे में सोचा । सवेरे सात बजे का मतलब सुबह नौ बजे हैं और अभी भी सुन ही रहे थे । शाम का सवेरे सात बजे फोन आ गया और पूछा कि वो कहाँ है । घबराए हुए उन्होंने कहा कि रास्ते में हूँ पंद्रह मिनट बादशाह ने फिर फोन किया और तब भी वो तैयार हो रहे थे । एक बार फिर उन्होंने झूठ बोला और रहा । मैं करीब करीब पहुंच गया हूँ । जब तक वो बैठक वाले स्थल पर पहुंचे तब तक आठ बज चुके थे । उन्होंने बनारस में आपने अलीशान घर में मुझसे कहा अमित भाई अपनी कार में बैठे इंतजार कर रहे थे । वो आदर्श पेश करते हैं । बंसल ने इस से सहमती जताते हुए कहा कि उन्हें अक्सर सवेरे ढाई बजे जहाँ से पूरा जाता था फिर सवेरे सात बजे वो कहते हैं, मैंने इस बार उनसे पूछ लिया आप सोते कम है । अमित भाई ने कहा वो योगनिद्रा जहाँ सिर्फ शरीर नहीं बल्कि मस्तिष्क भी शाम होता है और आराम करता है, करता हूँ । इसके तीन चार घंटे ही शरीर की स्फूर्ति और पूरे दिन ऊर्जा बनाए रखने के लिए पर्याप्त है । उन्होंने मुझसे भी ये करने के लिए कहा और क्या उन्होंने इसका पालन किया? पहुंचते हुए बताते हैं, भाई संघ में सीखा था, हमने भी बस किया ही नहीं लेकिन इससे आगे किसी भी चुनाव के लिए बहुत ही सावधानी भरे प्रबंधन की आवश्यकता होती है और यही वजह है कि शाह ने दो हजार चौदह में मदद के लिए बंसल की और देखा । बंसल ने विभिन्न राज्यों से साठ लोगों को अपने मूल दल में शामिल किया । इनमें से अधिकांश अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के समय से उनके सहयोगी थे । उन्हें उन्नीस समूहों में विभक्त किया गया । एक समूह मीडिया पर नजर रखता तो दूसरा भाजपा की ओर से निरंतर सोशल मीडिया पर था । तीसरा समूह पार्टी के वॉर रूम को देखता था और चौथा निर्वाचन क्षेत्रों से चुनिंदा नेताओं के लिए मिल रहे अनुरोधों को देखता हूँ और उनके प्रचार का समन्वय करता हूँ । एक उड्डयन मामले आधार सभी प्रमुख प्रचार करता हूँ के लिए हेलीकॉप्टर की अनुमति लेना तो दूसरे दल के पास प्रशासन के साथ मधुर रिश्ते बनाते हुए आयोजनों की अनुमति लेने की जिम्मेदारी थी । प्रत्येक जनसभा के पीछे की नजर नहीं आने वाली एक प्रमुख गतिविधि थी । वो बताते हैं, हम पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले थे और नजर आ रहे प्रचार अभियान को सहयोग प्रदान करते थे । इस दौरान वो डायरी भी रखते थे और रोजाना रात में इतने वो सब लिखते थे जो उन्होंने दिनभर देखा । इसमें पार्टी की ताकत और कमजोरी तथा अमित शाह के चुनाव प्रबंधन स्कूल से मिले सबका शामिल थे मोदी हवा को इस घंटे का प्रचार बारीकी से किया गया । संठनात्मक कार्य, व्यापक सामाजिक गठबंधन और संघ के खून पसीने के प्रयासों ने उत्तर प्रदेश में दो हजार चौदह के चुनावों में भाजपा के पक्ष में सुनानी लादी । पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपने दम पर इकहत्तर सीटों पर जीत हासिल की और उसके एक सहयोगी दल ने भी उसे दो अतिरिक्त सीटें प्रदान की । सोलह मई दो हजार चौदह को चुनाव के नतीजों के बाद अमित शाह दिल्ली में सत्ता हस्तांतरण के प्रबंधन में मदद और नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल होने वाले मंत्रियों के नाम चुनने में व्यस्त हो गए । बंसल भी कुछ दिन के अवकाश पर राजस्थान अपने घर चले गए । जून में शाह ने उन्हें वापस दिल्ली बुलाया और कहा कि वह संगठन महामंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश जाए । भाजपा में ये महत्वपूर्ण पद है जिसमें इस पद पर आसीन व्यक्ति के पास पर्दे के पीछे से पार्टी के कामकाज के मामले में और सीमित अधिकार होते हैं । राष्ट्रीय स्तर पर रामलाल संगठन महासचिव थे । पार्टी के कामकाज का केंद्र थे नरेंद्र मोदी गुजरात में भाजपा के संगठन महामंत्री रह चुके थे । पद छंग के पूर्व प्रचारक के लिए सुरक्षित रहता है । सचिव आम तौर पर पार्टी मुख्यालय में ही रहता है और अक्सर वो पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष है । कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है । बंसल सपोर्ट कर रहे थे । उत्तर प्रदेश बहुत बडा राज्य है जहां अनेक वरिष्ठ नेता थे तो हो सकता है इतने युवा व्यक्ति के साथ सहज नहीं हूँ । ऐसी स्थिति में फैसला लेना और उन्हें लागू करना बेहद कठिन होगा । उन्होंने शाह से कहा कि बेहतर होगा कि उन्हें कुछ छोटा राज्य दे दिया जाए चाहने इसी पर जोर दिया । बंसल ने उनसे कहा, मेरी सिर्फ की शर्त है आपकी उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव मेरे प्रभारी होने चाहिए । चाहने जवाब दिया उछल, आप जाइए, मैं आपका ध्यान रखूंगा । कुछ सप्ताह के भीतर ही अमित शाह राज्य के प्रभारी महासचिव नहीं बल्कि पूरी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने वाले थे । हंसल इस बार जून दो हजार चौदह में वापस लखनऊ पहुंचे तो इस स्पष्ट आदेश के साथ दो हजार सत्रह का विधानसभा चुनाव जीतना है । अमित शाह को जुलाई दो हजार चौदह में पार्टी अध्यक्ष की बागडोर संभालने के साथ ही मैदान में उतरना था । तीन महीने के भीतर दो राज्यों महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव होने थे जहाँ के पास पार्टी के लिए दीर्घकालीन योजना थी परन्तु उनकी तात्कालिक प्राथमिकता इन राज्यों को जीत रही थी और इसके लिए उन्हें अपनी रणनीति का उसी तरह उपयोग करना था जिसमें लोकसभा में भाजपा के शानदार प्रदर्शन में मदद की थी । महाराष्ट्र में चुनौतियां बहुत ज्यादा थी भाजपा आपने एक महत्वपूर्ण नेता गोपीनाथ मुंडे को जून के शुरू में ही एक दुर्घटना में खो चुकी थी । हाल ही में केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्री नियुक्त किए गए मुंडे महाराष्ट्र में सबसे अधिक गहरी पैठ वाले भाजपा नेता थे । अन्य पिछडे वर्ग की पृष्ठभूमि वाले मुंडे उस समय राज्य के उपमुख्यमंत्री थे । पार्टी शिवसेना के साथ सप्ताह पहुंच चुकी थी । मोदी और शाह ने सीटों के बंटवारे को लेकर उत्पन्न मतभेदों की वजह से तब अपनी पुरानी सहयोगी शिवसेना से संबंध विच्छेद करने का फैसला किया था । लेकिन तकनीकी नहीं एक राजनीतिक मुद्दा था । भाजपा की दो हजार चौदह के चुनावों में विजय और मोदी तथा शाह के पास पार्ट डोर होने के बाद भाजपा अब जूनियर सहयोगी की भूमिका स्वीकार नहीं करेगी । इसका संदेश सभी सहयोगी दलों के लिए स्पष्ट था । रास्ते पर आ जाओ एक ऐसा राज्य भी था जहाँ भाजपा सारी सीटों पर चुनाव लडने के लिए संगठानात्मक दृष्टि से तैयार नहीं थी । उसने दो सौ छियासी निर्वाचन क्षेत्रों में आधे से ज्यादा सीटों पर चुनाव में प्रत्याशी ही नहीं उतारे थे । भाजपा की गतिविधियों पर पैनी निगाह रखने वाले श्रेष्ट जानकार राजनीतिक पत्रकारों में से एक छिला भटकने लिखा था । एक बार जब अकेले ही चुनाव लडने का निर्णय ले लिया गया, शाह ने मुंबई के भाजपा कार्यालय में ही डेरा डाल दिया और महाराष्ट्र के छत्तीस जिलों के लिए प्रभारी नियुक्त कर दिए गए । जिला पार्टी अध्यक्षों के लिए कार्यशालाएं आयोजित की । सभी दो सौ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में जीपीएस सुविधा से लैस कार में एक व्यक्ति तैनात किया और उन्हें मतदान संपन्न होने तक अपने अपने क्षेत्र में ही रहने का निर्देश दिया गया । इसके बाद चाहने बहुत ही सावधानी के साथ राज्य में नरेंद्र मोदी की जनसभाओं की योजना तैयार की क्योंकि वो जानते थे ये सिर्फ मोदी हवा है तो भाजपा का बेडा पार कर सकेगी । प्रधानमंत्री ने जनसभाएं की, भाजपा अपनी ताकत बढाने के लिए दूसरे दलों के दल बदलुओं को भी अपनाने में खुश थे । चुनाव के बाद अंततः पार्टी राज्य में सबसे बडे दल के रूप में उभरी और उसने सरकार बनाई । चुनाव में मोदी हवा की तरह ही भाजपा की कौशल पोर्ट, सामाजिक गठबंधन, राजनीतिक संदेश और सरकार विरोधी लहर ने भी अहम भूमिका निभाई । लेकिन स्पष्ट लग रहा था कि शाह बहुत बडा जोखिम लेने के लिए तैयार थे क्योंकि शिवशरण से संबंध तोडने का उल्टा असर हो सकता था । लेकिन इससे उन्हें उन राज्यों में भी चुनावी सभाओं का सृजन करने का मौका मिल गया जहाँ भाजपा बहुत अधिक ताकतवर नहीं थी । हरियाणा का मामला भी कमोबेश ऐसा ही था । सिर्फ शहरी केंद्रों तक सीमित रहने और पार्टी का व्यापक समर्थन नहीं होने के बावजूद भाजपा चुनाव में सफाया करने में सफल रही, इसमें कोई संदेह नहीं । दो हजार चौदह के बाद मोदी के साथ हनीमून अभी भी सही सलामत था और जीतने ये प्रमुख पहलू था । परन्तु सफलता की एक और विशेषता थी । ये वैसा नहीं था जिससे भाजपा पारंपरिक तरीके से काम कर दी थी या उसे सफलता मिलती थी । रूढिवादी टीकाकार और अब राज्यसभा में भाजपा के नामित सदस्य फॅस कुत्ता बताते हैं, अनवरत संगठानात्मक कार्यों की वजह से चुनाव में सफलता की बजाय चुनावों में विजय के बाद संगठानात्मक आधार का सृजन किया गया । वो बताते हैं कि ये समय सारणी थी । इसमें भाजपा को दोनों राज्यों में बात है । क्या चाहने दिखा दिया था कि वह लहर पर सवार होकर और चतुर चुनाव प्रबंधन से नतीजे ला सकते हैं परन्तु उनकी महत्वाकांक्षा भाजपा संगठन के विस्तार और उसमें बदलाव से कहीं अधिक बडी थी । एक नवंबर दो हजार चौदह को अमित शाह ने सर्वाधिक महत्वाकांक्षी सदस्यता अभियान शुरू किया । दुनिया में कहीं भी किसी दल द्वारा किया गया सबसे बडा था । इसमें सभी राज्यों के संगठन के प्रमुख व्यक्तियों का आह्वान करते हुए उनके लिए सदस्यता का लक्ष्य निर्धारित किया था । सशक्त भाजपा सशक्त भारत अभियान में पार्टी के प्रत्येक पदाधिकारी प्रधानमंत्री से लेकर मतदान समिति कार्यकर्ताओं था और शामिल किया गया । उसका एकमात्र लक्ष्य भाजपा में नागरिकों को लाना था । बाहर के अधिकांश लोग भाजपा के सदस्यता अभियान को लेकर सशंकित थे और उन्होंने सोचा कि जनसंपर्क कवायद है । विपक्षी नेताओं ने उपहासपूर्ण तरीके से इसे भाजपा को मिस कॉल कहने का अवसर प्रदान किया । इसमें सिर्फ एक मोबाइल नंबर पर फोन करके ही पार्टी के सदस्य के रूप में पंजीकरण कराया जा सकता था । लेकिन यही पार्टी के अनुसार में एक निर्णायक मोड था । इस संबंध में उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए । दिल्ली से बैठक के लिए लखनऊ आये सुनील बंसल से शाह ने पूछा, इस बार उत्तर प्रदेश कितनी सदस्य बनाएगा? उत्तर प्रदेश में करीब चौदह लाख सदस्य थे जिन्हें पुरानी ऑफलाइन प्रणाली के जरिए फॉर्म भरने की प्रक्रिया और इसकी औपचारिक रसीद देने के प्रावधान से बनाये गए हैं । बंसल हिचके जाए और जो उन्होंने अपने भरोसे के आधार पर कहा, ऍम जहाँ पे अपना सिर हिलाया और कहा नहीं, एक करोड का लक्ष्य बंसल नहीं । तभी जवान में कहा ये काफी मुश्किल लगता है । शाह ने जवाब दिया, करना है, यही करना है । लखनऊ में पार्टी ने चार आयामी योजना शुरू की । इस रणनीति का पहला हिस्सा मतदान केंद्र स्तरों पर काम करने की रणनीति थी । दो हजार चौदह के चुनावों के एक लाख इकतालीस हजार मतदान केंद्रों में से भाजपा को तेरह हजार मतदान केंद्रों पर एक भी मत नहीं मिला । पार्टी का आकलन था इनमें से अधिकांश मतदान केंद्र मुख्यतय मुस्लिमबहुल होंगे । पार्टी ने ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों को सहज भी अपने चुनावी रण से बाहर रखा था । इन पर समय गंवाने की बजाय पार्टी ने अपनी ऊर्जा शेष मतदान केंद्रों पर लगाने का फैसला किया । पार्टी ने एक लाख बीस हजार मतदान केंद्रों की पहचान की और मतदान केंद्र समिति के अध्यक्षों से कहा कि उन्हें प्रत्येक मतदान केंद्र से कम से कम एक सौ सदस्य बनाने होंगे । ये प्रक्रिया रामक रूप सरल थी । हर घर जाएँ और इसमें दिलचस्पी दिखाने वाले व्यक्तियों के फोन नंबर से मिस कॉल भिजवायें । उसके बाद उन्हें एसएमएस के माध्यम से सदस्यता नंबर मिलेगा और वे पार्टी के प्राथमिक सदस्य बनेंगे । बंसल ने मुझे बताया कि एक महीने के भीतर ही उत्तर प्रदेश भी एक लाख मतदान केंद्रों पर ये सदस्यता अभियान सफल रहा था । वे शाह द्वारा निर्धारित लक्ष्य के काफी करीब अस्सी लाख सदस्य बनाने में सफल हो गए थे । उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में वरिष्ठ पत्रकार अब है मोहन छाने इस पर सवाल उठाया, क्या हमें इस संख्या पर भरोसा करना चाहिए? मैंने लिखा कि उन्हें किस तरह से पार्टी में स्वागत करते हुए फोन कॉल और एसएमएस मिला । जब उन्होंने जवाब दिया कि वह सदस्य बनने के छुट नहीं है तो उन्हें दूसरा लिखित संदेश मिला । इसमें कहा गया था कि वह अपने परिवार के सदस्यों को भी इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित करें । पत्रकार होने के नाते झांसें बिहार में भाजपा नेता सुशील मोदी से बात की । इन्होंने संकोच के साथ उनसे कहा तक नहीं होंगी । और बाहरी होती है वो इसमें सुधार कराएंगे । झा का नाम सदस्यता सूची से निकाल दिया गया लेकिन इस तरह की घटनाओं पर भाजपा ने जोर देकर कहा, ये अफवाह है । इस कवायद का असली उपयोग तो कहीं और होना था । बंसल ने मुझे बताया सोचिए इसका भारत नहीं । क्या क्या पिछले मतदान केन्द्र के स्तर पर समितियों को सक्रिय किया जो आम तौर पर चुनावों के बीच की अवधि में निष्क्रिय रहती हैं । पिछले हमारे कार्यकर्ताओं को बाहर निकालकर क्षेत्र के लोगों से परिचय बढाने और उनसे संपर्क स्थापित करने के लिए बात किया और इसी वजह से भाजपा हर जगह नजर आने लगी । लेकिन लक्ष्य अभी भी पूरा नहीं था । इसका दूसरा हिस्सा व्यक्तिगत रूप से लोगों को लक्षित करके उन्हें पार्टी का सदस्य बनाना था । मतदान केंद्र स्तर के अभियान नहीं । कार्यकर्ताओं को एक क्षेत्र विशेष तक सीमित कर दिया । अब भाजपा कार्यकर्ताओं से कहा गया, किसी परिवार के सदस्यों, पडोसियों किसी को भी सदस्य बना सकते हैं । सभी को एक बार फिर नए सदस्य जोडने के लिए तौर लगानी पडी । इस रणनीति का तीसरा ब्लॉक स्तर पर शिविर लगाने से संबंधित था । उत्तर प्रदेश में बहुत अधिक अंतरराज्यीय विस्थापित है । महिलाओं की शादी उनके गांव से बाहर होती है और वे अपना घर बदलती हैं । आदमी रोजगार के लिए जाते हैं । छात्र कॉलेज की शिक्षा के लिए बडे शहरों में चले जाते हैं । भाजपा के बैनर के साथ एक शिविर का उद्देश्य इस वर्ग को आकर्षित करना था । मतदान केंद्र, व्यक्तिगत और शिविर केंद्रित प्रयासों के अलावा पार्टी ने हिंदू समाज के प्रत्येक वर्ग को छूने के मकसद से सोच स्पर्शी अभियान चलाया । अन्य पिछडे वर्गों और दलित समुदाय से सात सौ अस्सी कार्यकर्ताओं की पहचान की गई और उन्हें राज्य में उन जगहों पर भेजा गया जहां उनकी अपनी जातियों के सदस्य बडी संख्या में थे । इसका उद्देश्य पार्टी का उन वर्गों की आबादी तक था जो अभी तक भाजपा के स्वाभाविक मतदाता नहीं थे । मार्च दो हजार पंद्रह तक राज्य में भाजपा के नए सदस्यों की संख्या एक दशमलव आठ करोड थी । शाह द्वारा निर्धारित लक्ष्य का लगभग दोगुना था । पार्टी ने इसे उत्तर प्रदेश मॉर्डल के नाम से जाना गया । इसमें बंसल के अपने अंदाज में ही एक संगठक के रूप में पहुंचने की शुरुआत थी कि इस अवधि में उन्होंने प्रदेश के प्रत्येक जिले का दौरा कर लिया था । उन्होंने सभी चार अभियानों की योजना तैयार की थी और उन पर अमल भी किया था । उत्तर प्रदेश के अनुभव नहीं ये अहसास कराया कि मैदान में किस तरह से सदस्यता अभियान पर अमल किया जा सकता है । यद्यपि उत्तर प्रदेश में पार्टी की झोली में सबसे अधिक नहीं सदस्य दिए थे । फिर भी अभियान उत्तर प्रदेश केंद्र सही था । ये अभियान के दूसरे राज्यों में भी चलाया गया और ऐसे अलग अलग सफलता मिली । मसला झारखंड को ही लें । यहाँ सदस्यता अभियान शुरू होने के तुरंत बाद दो हजार चौदह के अंत में चुनाव हुए । अमित शाह ने अपनी रैलियों में टोल फ्री नंबर पढकर सुनाए और लोगों से इस पर फोन करने का आह्वान किया । बिहार में पार्टी ने पचास लाख नए सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा । महाराष्ट्र में नेताओं ने दावा किया कि उन्होंने दो हजार पंद्रह के मध्य तक एक करोड से अधिक नए सदस्य बनाए । तीस मार्च तक एक समाचार में कहा गया कि भाजपा नौ करोड नए सदस्य बनाने भी सफल रही है । पार्टी ने दस करोड सदस्यों का लक्ष्य पूरा करने के लिए इस अभियान को एक महीने के लिए और बढा दिया था । पत्रकार संजय सिंह ने इस संदर्भ में लिखा, पूरी कवायद दूसरे मायने में भी भाजपा के लिए बहुमूल्य रही है । पार्टी ने अपनी मिस कॉल सदस्यता अभियान पर अमल के लिए जो तकनीक अपनाई उसने भाजपा को विशाल डाटाबैंक थी उपलब्ध कराया । इसका उपयोग नरेंद्र मोदी के भविष्य के कार्यक्रमों में जनता तक पहुंचने के लिए हो सकता है । ये भाजपा को उन राज्यों में भी पहुंचाने में मदद करेगा जहाँ उसकी संस्थानात्मक ताकत सीमित है । ये अभियान समाप्त होने तक भाजपा ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया था । कुछ रिपोर्ट में कहा गया था कि पार्टी का ये दावा बढा चढाकर किया गया है । स्वतंत्र रूप से पार्टी के इस दावे की पुष्टि करना मुश्किल था । या तो दुनिया का एक सबसे बडा राजनीतिक दल है । परन्तु भले ही इसमें कुछ संदेह हो फिर भी यदि उसके दावे से कुछ लाख संख्या कम भी हो तो भी संगठन का व्यापक विस्तार हुआ था । इस अभियान के असली हीरो थे अमित शाह । उन्होंने सदस्यता अभियान शुरू किया था जिसे अधिकांश लोगों ने नाटक बताते हुए नकार दिया परन्तु ये कम से कम कागजों पर ही दस करोड सदस्य बनाने के साथ संपन्न हुआ । पार्टी को लोकसभा चुनाव में करीब सत्रह करोड मत मिले थे इसलिए चढाने वाला आंकडा था जहाँ पार्टी में ऊपर से लेकर नीचे नई ऊर्जा का संचार किया और एक सामान मिशन दिया था । चुनाव में अभूतपूर्व विजय के तुरंत बाद पार्टी के मशीनरी आत्ममुग्धता की अवस्था में आकर आसानी से थोडा शिथिल हो सकती थी । परंतु पार्टी की सदस्यता अभियान ने ऐसा करने से रोक दिया । लेकिन यही नहीं रुका । मई दो हजार पंद्रह में भाजपा ने फैसला किया । सदस्यता अभियान के बाद अब महासंपर्क अभियान चलाया जाएगा । कार्यकर्ताओं का वापस जाकर उन लोगों से संपर्क करना था जिन्हें उन्होंने सदस्य बनाया था और उनसे विस्तृत फॉर्म भरवाने थे । इसमें आयु, आर्थिक स्थिति, पेशा, परिवार में सदस्य और लेंगे जैसी अनेक जानकारियां मांगी गई थी । ये प्रकार से पुष्टिकरण और ये पता करने की प्रक्रिया थी कि कहीं इसमें बडे पैमाने पर विसंगतियां तो नहीं है । उत्तर प्रदेश वापस आने पर बंसल ने खुद भी लखनऊ स्लम में एक मतदान केंद्र की जिम्मेवारी ली । जहाँ उन्होंने एक सौ सदस्य बनाए थे । वो लोगों से फॉर्म भरवाने के लिए वापस मतदान केंद्र गए । उन्होंने महसूस किया ये काफी समय लेने वाली पेचीदा प्रक्रिया है और प्रत्येक फॉर्म भरने में चालीस मिनट या इससे अधिक समय लगा । इससे स्पष्ट था ये पुष्टि कर नहीं और सदस्यों से संपर्क करने का अभियान उन्हें सदस्य बनाने जैसा सफल नहीं होगा । फिर भी भाजपा चालीस लाख फॉर्म भरवाने में सफल रही जिनमें आवेदक की विस्तृत जानकारी थी । यहाँ के चुनावों के लिए अब एक नया हथियार था और ये कवायद बहुत ही उपयोगी थी । सदस्यता अभियान और संपर्क अभियान एक साथ शुरू करने से राज्यों में भाजपा का संगठन पुनर्जीवित हो गया । गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ जैसे राज्यों को छोडकर जहाँ भाजपा काफी लंबे समय से सत्ता में है, अन्य राज्यों में पार्टी का ढांचा खस्ता हाल था । लोकसभा के दो हजार चार के चुनाव में पराजय और दो हजार में हुए सफाई के बाद किसी ने भी संगठन में इतने बडे पैमाने पर समय नहीं दिया था । पार्टी बमुश्किल नए सदस्य बना पाई थी । मैदान में तो ये कहीं नजर ही नहीं आ रहे थे । अधिकांश राज्यों में उसका वोट प्रतिशत कम हो गया था । ये मुश्किल से ही एक पार्टी थी बल्कि इसके इतर ये प्रत्येक जिले में विभिन्न गुटके नेताओं के प्रति वफादार लोगों का सबूत बन कर रह गई थी । इसलिए दो हजार चौदह की जीत पार्टी संगठन की उतनी बडी विजय नहीं थी जितने की व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र मोदी की उनके स्वतंत्र अभियान की व्यवस्था और संघ से मिल रहे समर्थन की थी । अमित शाह उनके दल ने संठनात्मक विस्तार करके भाजपा का आधार बढा, पार्टी संगठन को पुनर्जीवित किया । पुराने नेताओं को किनारे लगाया, बेशुमार आंकडे एकत्र किए और ये सुनिश्चित किया दो हजार चौदह का चुनाव सिर्फ अचानक मिली सफलता भर नहीं रहेगी । दो हजार पंद्रह की शेष अवधि के लिए पार्टी ने अंदरूनी स्थिति पर गौर करने का निर्णय लिया । सदस्यता के विस्तार और संपर्क अभियान के बाद अमित शाह का ध्यान अब पार्टी में प्रशिक्षण भरथा । यदि सदस्यता अभियान का उद्देश्य राज्यभर में भाजपा की उपस्थिति दर्ज कराना और सत्ता के लिए खुद को मजबूत दावेदार के रूप में पेश करना था तो उसका दूसरा चरण पार्टी की आंतरिक व्यवस्था को चाकचौबंद करना, कौशल का विकास करना और नए सदस्यों में पार्टी के सिद्धांतों को समझाना था । पार्टी के प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए कार्यकर्ताओं और सदस्यों को पार्टी के सिद्धांतों से रूबरू कराया गया । पार्टी में पहले मतदान केंद्र से लेकर ब्लॉक स्तर तक और फिर जिले तथा राज्य स्तर पर संठनात्मक चुनाव कराए गए । उत्तर प्रदेश में समझना तक ढांचे को दुरुस्त करते समय भाजपा ने ब्लॅक भूत के बीच एक और स्तर सुदृढ किया । सेक्टर स्तर समितियां होंगी । प्रत्येक सेक्टर करीब एक दर्जन मतदान केंद्रों का प्रभारी होगा । इस प्रक्रिया से पार्टी ने तेरह हजार पांच सौ सेक्टर इकाइयों को सक्रिय किया । इस तरह नेताओं का एक पुल तैयार किया गया जो प्रचार में जाने के लिए तैयार थे । संगठनात्मक चुनावों के माध्यम से सबसे अधिक महत्वपूर्ण बदलाव भाजपा के पदाधिकारियों के जातीय समीकरण था । मुख्य रूप से सवर्ण जाति की पार्टी से उत्तर प्रदेश इकाई कहीं अधिक सर्वहारा इकाई में तब्दील हो चुकी थी । लेकिन ऍन आत्मक चुनाव उस व्याप्त की धारणा के लिए महज दिखावा थे । ऐसे लगता था कि भाजपा एक केंद्रीय पार्टी है । इसके सारे फैसले सबसे ऊपर अमित शाह द्वारा ही लिए जाते हैं । सुनील बंसल इस तरह की दलीलों को पूरी दृढता से खारिज करते हैं और मुझसे कहा कि संगठनात्मक ढांचा ही खुद को विकेंद्रीकृत फैसले वाला बनाता है । बंसल कहते हैं, कोई भी तो बीस करोड लोगों वाले उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अपने आप एक पार्टी नहीं चल सकता । देखो मैं एक संगठनात्मक सिद्धांत का पालन करता हूँ तो काफी समय पहले मैंने एक किताब में पढा था । निर्णय लेने वाले अपने में से एक स्तर नीचे के लोगों को शामिल करो और अपने से एक स्तर ऊपर के प्राधिकारी को रिपोर्ट करूँ । भाजपा में भी निर्णय लेने का ढांचा व्यापक रूप से यही है जहाँ नहीं एक बार कहा था वो एक घंटे के अंदर उत्तर प्रदेश में ग्रामीण स्तर से लेकर लाखों लोगों पर अपना संदेश भेज सकते हैं और इस बारे में विस्तार से बताते हैं । यदि कोई संदेश है अमित भाई हम से कह सकते हैं, मैं ये जोनल प्रमुखों से बात कर सकता हूँ कि वह सेक्टर और मतदान केंद्र स्तर पर बात कर सकते हैं । अमित भाई जोनल प्रभारी से बात नहीं करेंगे । मैं जिला अथवा मतदान केंद्रों के लोगों से बात में शामिल नहीं होंगा । उत्तर देते हैं ये सहज लगता होगा और हम तो इससे पार्टी में कुछ सामंजस्य प्रदान की है । इस नहीं निचले स्तर को स्वायत्तता दी है और जवाबदेही के स्तर बनाए हैं जहाँ और बंसल के बीच बेहतरीन कामकाजी रिश्तों के कारण हो सकता है । ये उत्तर प्रदेश में सफल हो गया हो परन्तु निर्णय लेने की प्रक्रिया पार्टी में अधिक जटिल है । पार्टी संगठन में निश्चित ही एक नई संस्कृति आई है और इसमें जनता को चल दिया है जहाँ पार्टी के मुखिया थे । केंद्रीय पदाधिकारियों, अपनी अपनी राज्यों के प्रभारियों की अपने क्षेत्र में चलने वाले अभियान के प्रबन्धन के मामले में प्रमुख भूमिका थी । राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के प्रभारी महासचिव जो आरएसएस से होते हैं, सभी राज्यों को आदेश दे सकते थे । संगठन के सभी अवयवों का कामकाज प्रत्येक राज्य में राष्ट्रीय स्तर के नेता, राज्य इकाई के अध्यक्ष और संगठन महासचिव से संवाद करते हैं और यदि पार्टी सत्ता में है तो मुख्यमंत्री से संवाद करते हैं । राज्य के ये वरिष्ठ पदाधिकारी फिर उन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों, जिलों और मतदान केंद्रों का प्रबंधन देखते हैं । लेकिन व्यवहार में ये व्यवस्था असंतुलित तरीके से काम करती है । इसमें केंद्रीय और राज्य स्तर के पदाधिकारियों के बीच व्यक्तिगत तालमेल मायने रखता था । अमित शाह ने ये भरोसा किया कि राज्य अध्यक्ष अपने आप नतीजे दे सकते हैं । क्या राज्य स्तर के संगठन मुखिया के पास वही कौशल है? बंसल में है क्या राज्य का नेता? आपने आपने ताकतवर था या मोदी और शाह के संरक्षण की वजह से उसे ऐसी स्थिति प्रदान की गई थी कि सब तय करेंगे केंद्र का नियंत्रन और राज्य को कितनी स्वायत्तता दी जा सकती है? मोदी के समर्थन और शाह के ट्रैक रिकॉर्ड से एक बात साफ है कि पार्टी में शाह की ताकत बडी है और सत्ता के कई केंद्रों और अलग अलग प्राधिकार का दौर हो गया है इसमें संदेह नहीं । इससे अहम को आघात लगता है, मौजूदा वरिष्ठता बाधित होती है और असंतोष पैदा होता है । भाजपा में अनेक नेता उनसे कई साल जूनियर जहाँ के अधीन दूसरे दर्जे की भूमिका को लेकर नाराज है, अफवाह है । कई वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को पार्टी अध्यक्ष और उनके विश्वासपात्रों से आदेश लेने पडे । शाह का मुंहफट अवसर अहंकारी अंदाज है जिससे और सस्ता बडी है । उनके प्रमुख हैं सहायक नेता । इनका अपना कोई जनाधार नहीं है और ये उन लोगों में आक्रोश पैदा करता है तो समझते हैं कि राजनीतिक दृष्टि से अधिक अनुभवी हैं भाजपा बीट के एक संवाददाता इसमें सालों में पार्टी में हो रहे बदलाव को देखा है । कहता है इसमें कोई संदेह नहीं कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर सरीखे वयोवृद्ध नेताओं से लेकर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह जैसे और सुषमा स्वराज सरीखे वरिष्ठ नेता और वसुंधरा राजे जैसी मुख्यमंत्री भी अमित शाह के साथ सहज नहीं है । हम तो उनके पास कोई विकल्प नहीं है । उन्हें सिर्फ मोदी का ही समर्थन हासिल नहीं है बल्कि अपनी तरह से परिणाम भी दे रहे हैं और जब तक वो नतीजे दे रही हैं तो कुछ नहीं कर सकते हैं । लेकिन एक ऐसा भी साल था जब वह नई संठनात्मक संस्कृति की स्थापना कर रहे थे । अमित शाह नतीजे नहीं दे पा रहे थे । पार्टी अध्यक्ष के लिए दो हजार पंद्रह एक गंभीर झटका देने वाला साल बन गया । जब सदस्यता अभियान जोर पड रहा था उसी दौरान दो हजार पंद्रह के शुरू में भाजपा ने दिल्ली का चुनाव लडा । भाजपा संगठन के कार्यक्रम के अनुरूप जब सदस्यता अभियान, संपर्क अभियान और प्रशिक्षण का कार्यक्रम समाप्त होने वाला था तो उसने दो हजार पंद्रह के अंत में बिहार का चुनाव लडा । इस तरह की मशीनरी के स्वजन और इतने बडे पैमाने पर व्यवस्था के बगैर ही महाराष्ट्र, हरियाणा पता यहाँ तक कि झारखंड के चुनाव जीतने के बावजूद भाजपा दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में विफल क्यों हो गई? इसका जवाब आसान है । संगठन तो चुनावी गठित का एक अंग है । ये मूल नहीं बल्कि पूरक है । अन्य पहलुओं के साथ ही मूल मुद्दा, नेतृत्व का आकर्षण, सामाजिक गठबंधन और विपक्ष की स्थिति होता है । उदाहरण के लिए, दिल्ली में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के लिए किरण बेदी के चयन का संगठन पर नकारात्मक असर हुआ । मुख्यमंत्री पद के लिए पुराने कार्यकर्ता उनके प्रति इतने वफादारी नहीं जुटा सकें, उनके लिए काम नहीं कर सकें । अधिकांश बाहर निकले ही नहीं है । बिहार में सर्वाधिक सौ संगठन और अप्रत्याशित रूप से उसकी तैनाती पड रहा है परन्तु व्यापक सामाजिक आधार और सशक्त स्थानीय नेतृत्व का अभाव मुख्य कारण रहे । शाह के लिए ऐसा सोचना सरल होगा । इससे पहले के साल में संगठन को सुदृढ बनाने के लिए उनके प्रयास व्यस्त हो गए । क्या वो कुछ गलत कर रहे थे? ये सत्ता प्राप्त करने का रास्ता नहीं था । इसके बाद थी । यदि संगठन अपने आप में पर्याप्त हथियार नहीं था तो भी आवश्यक हथियार है तथा अमित शाह ने दिल्ली अथवा बिहार के नतीजे को उन्हें हताश नहीं करने दिया । वो जानते थे कि अपनी प्रतिष्ठा बचाने और ये साबित करने के लिए दो हजार चौदह के चुनाव के नतीजे सिर्फ हुक्का नहीं थे । उनके पास एक ही रास्ता था उत्तर प्रदेश में काम में जुट चाहूँ दो हजार सोलह के शुरू में ही शाह अपने चालीस सूत्रीय कार्यक्रम के साथ लखनऊ पहुंचे । इन पर पार्टी को ध्यान देना था । इसमें अन्य बातों के साथ ही नए मतदाताओं को लक्ष्य करना कि सुनिश्चित करना कि मतदान केंद्र स्तर की समितियां काम कर रही हैं । दलितों और अन्य पिछडे वर्गों सहित दूसरे हिस्सों पर ध्यान देना केंद्र सरकार के कामों को प्रचारित करने के तरीके खोजना, पार्टी के सांसदों को अपने संसदीय क्षेत्र के विधानसभा हिस्सों में काम करने के लिए लाना और मूल मुद्दों की पहचान करना जो पार्टी का केंद्रीय मंच बनेंगे । इस पर अमल की जिम्मेवारी राज्य की टीम पर छोड दी गई थी और अमित शाह पर पैनी नजर रखे थे और वो एक एक करके इस काम में जुट गए और मुद्दों की पहचान करने के लिए जो मतदाताओं और उनकी मुख्य चिंताओं को प्रतिध्वनित करते हो तो भाजपा ने भी चुनावी राजनीति में अधिकांश दलों की तरह ही स्वतंत्र एजेंसियों से सर्वेक्षण कराने का तरीका अपनाया । कुछ मुद्दों के साथ वापस आए कि जनता के दिलो दिमाग पर छाए हुए हैं । इनमें कानून व्यवस्था, महिलाओं की सुरक्षा, भ्रष्टाचार, रोजगार, पलायन और पुष्टिकरण शामिल थे । सपा सरकार कार्यकाल के अंत में ये आश्चर्यजनक नहीं था । ये मुद्दे जनता के दिमाग में छाए रहते थे । इलाहाबाद के एक स्थानीय समाचारपत्र प्रयागराज एक्सप्रेस के संपादक और राज्य की राजनीति के अंदरूनी विश्लेषण करने वालों में शामिल अनुपम मिश्रा इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हैं । वो कहते हैं, सपा के शासन में प्रत्येक जिले का नेता खुद को मुख्यमंत्री समझता है । वो अपनी ताकत का इस्तेमाल करता है और जिला प्रशासन को प्रभावित करता है । वो उन पर दबाव बनाने के लिए लखनऊ फोन करता है और स्थानीय कारोबारियों से किराया और संसाधन की वसूली करता है । और इसी वजह से बसपा के उलट जहाँ अधिकार और भ्रष्टाचार दोनों ही पूरी तरह केंद्रीकृत है । सपा के शासन में यहाँ भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी का लोकतंत्रीकरण हो गया । इसका मतलब ये हुआ कि उत्तर प्रदेश का प्रत्येक निवासी किसी न किसी तरह से सपा के कुशासन से प्रभावित हैं । अगर निष्पक्ष होकर देखें तो दो हजार सोलह में उत्तर प्रदेश की यात्रा करने वाले हम सभी को ऐसा लगा कि मुलायम सिंह का कार्यकाल समाप्त होने पर जो सरकार विरोधी भावना होती थी उससे कहीं काम अखिलेश यादव के खिलाफ नजर आ रही थी । परन्तु एक व्यक्ति जिसे सकारात्मक नजरिये से देखते हैं और शीर्ष पार्टी जिससे अराजकता को बढावा देने वाले रूप में लिया जाता है, अंतर होता है । भाजपा के लिए अपना प्रचार इसी के इर्दगिर्द केंद्रित करने के लिए इतना ही पर्याप्त था भाजपा का चुनाव अभियान । व्यापक रूप से भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी इन दो मुद्दों के इर्द गिर्द रहेगा । बंसल ने कहा, इस अवसर पर हम ने नारा दिया न गुंडाराज न भ्रष्टाचार इस बार भाजपा सरकार भाजपा ने मतदाताओं के पंजीकरण का अभियान चलाया । इसका गणित साधारण था । पहली बार मतदान करने वाले अधिकांश मतदाता मोदी को पसंद करेंगे परन्तु ये काम पार्टी के तत्वावधान में नहीं किया गया । इसकी बजाय एक तटस्थ ही नजर आने वाले गैरराजनीतिक संस्था के तत्वावधान में ये किया गया । इसे नाम दिया गया ऍम एटी । इस अभियान के अंतर्गत नए मतदाताओं का मतदाता सूची में पंजीकरण कराने के लिए उनसे फॉर्म सिक्स भरवाने के लिए छह सौ कार्यकर्ताओं को लगाया गया था । बंसल बताते हैं, इस प्रायोगिक प्रक्रिया के जरिए हमें सबसे अच्छी कार्यप्रणाली और जो युवा मतदाताओं को पंजीकरण के लिए प्रेरित करें, उसका चयन किया और फिर पार्टी के प्रावधान में मतदाता पंजीकरण अभियान शुरू किया । प्रत्येक ब्लॉक में शिविर लगाए गए और हमने करीब दस लाख नए मतदाताओं का पंजीकरण किया । उत्तर प्रदेश के आकार के राज्य में दस लाख मतदाताओं के पंजीकरण के बहुत अधिक मायने नहीं है, लेकिन नए मतदाताओं को अपनी और करने पर ध्यान केंद्रित करना और इस काम नहीं संगठानात्मक ऊर्जा लगाना उल्लेखनीय था । इसके बाद सबसे अधिक चुनौती वाली हिस्सा आया और चुनाव प्रबंधन के बारे में अमित शाह स्कूल का मूल सिद्धांत मतदान केंद्र स्तर की समितियों को क्रियाशील और सक्रिय बनाए रखने का काम आया । ध्यान रखना चाहिए कि सदस्यता अभियान और संठनात्मक चुनावों के माध्यम से पार्टी ने मतदान समितियों की मूल इकाइयों को सक्रिय कर रखा था । पार्टी ने लखनऊ में अपने कार्यालय की पहली मंजिल से चुनाव के दौरान अठारह सदस्यीय कॉल सेंटर बनाया । यहाँ से युवा लडके, लडकियों को एक लाख अट्ठाईस हजार मतदान केंद्र स्तर के पार्टी अध्यक्षों को टेलीफोन करके संपर्क करने और उनकी पहचान, उनके संपर्क के विवरण और पार्टी से उनकी संबद्धता की पुष्टि करने के लिए तैनात किया गया था । पहले दौर में उन्हें पता चला कि सिर्फ छिहत्तर हजार मतदान केंद्र स्तर के प्रमुखों का विवरण सही है । चेंज किया तो नाम या अन्य विवरण सही नहीं है । इसका मतलब ये हुआ की पचास हजार से अधिक के नाम सही नहीं थे कि संगठन नेतृत्व के लिए खतरे का सूचक था । क्या पिछले साल किया गया काम था? क्या ये पचास हजार इकाइयां सिर्फ कागजों पर ही थी? इसमें तत्काल सुधार की जरूरत थी । ये नाम पार्टी की जिला और ब्लॉक इकाइयों के पास स्पष्ट निर्देश के साथ भेजे गए नामों को और उन के विवरण तक पडता से दुरुस्त किए जाए । ये वापस लखनऊ भेजा गया जहाँ पार्टी ने मतदान केन्द्र के अध्यक्षों के विवरण के साथ उससे कम प्रकाशत की । पार्टी जब अपनी इस कवायद को बंद करने की तैयारी कर रही थी तभी निर्वाचन आयोग ने मतदान केंद्रों की संख्या एक लाख इकतालीस हजार से बढाकर एक लाख सैंतालीस हजार कर दी है । जनता पार्टी को फिर से नई मतदान केंद्र इकाइयों का सृजन करके अतिरिक्त नामों के साथ नई पुस्तिका प्रकाशित करनी पडेगी की प्रक्रिया लगाने वाली थी परंतु उसने पार्टी को निचले स्तर तक अपने लोगों के आंकडे उपलब्ध कराए जिनसे दो हजार सोलह के मध्य तक सिर्फ टेलीफोन से संपर्क किया जा सकता था । अगला कदम इन मतदान केंद्र स्तर की इकाइयों से सीधे रूबरू होना था । अमित शाह ने एक बार फिर इसकी कवायद अपने हाथ में ली । उन्होंने उत्तर प्रदेश में बनाए गए भाजपा के सभी छह मंडलों का दौरा किया । इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय, गाजियाबाद ब्रिज का मुख्यालय, आगरा, कानपुर और बुंदेलखंड का कानपुर, अवध का लखनऊ, गोरखपुर और राशि शामिल थे । प्रत्येक मंडल में राष्ट्रीयध्यक्ष नहीं बीस हजार से अधिक मतदान केंद्र समिति के अध्यक्षों के साथ मंत्रणा की । बंसल स्पष्ट करते हैं ये मतदान केंद्र इकाइयों के नेताओं को बेहद सशक्त बनाने वाला था । उन्होंने कभी ये सोचा नहीं था कि वे अध्यक्ष से मिलेंगे । उन सभी को भेज दिए गए थे । उनके पद को मान्यता दी गई थी और इसमें उन्हें प्रेरित किया । इसी तरह की एक बैठक में पहली बार मुख्यमंत्री पद के संभावित प्रत्याशी के रूप में योगी आदित्यनाथ का नाम आया । शाह और उनकी टीम को ये आभास हुआ कि राज्य में पार्टी के बॉर्डर में योगी लोकप्रिय हैं और गोरखपुर में ऐसे ही मतदान केंद्र स्तर के समागम में ऐसा समझा जाता है । शाह ने उत्तर प्रदेश को दयनीय स्थिति से उभारने की भूमिका के लिए योगी को अपनी तैयारी शुरू करने का संकेत दे दिया था परन्तु बडी सभाएं और इसमें हजारों लोगों की उपस् थिति संदेश देने के लिए एक बडी तस्वीर का मकसद पूरा कर सकती है । चुनावों के नजदीक समय इसी तरह की बैठकें निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर और फिर सेक्टर और मंडल स्तरों पर आयोजित की गई थी तथा मतदान केंद्र समिति के अध्यक्षों की अपनी पार्टी अध्यक्ष के साथ चार बार मुलाकात हुई और उनसे निर्देश लेना और अपने इलाके की गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी भी दी । मतदान केंद्र समितियों को अपने इलाकों में जातीय समीकरण की सूची तैयार और ए, बी या सी श्रेणी के तहत घरों की पहचान करने की जिम्मेवारी सौंपी गई थी । एक मतलब ऐसा परिवार जो भाजपा का मतदाता था, बी श्रेणी में किसी भी तरह जा सकने वाले और अस्थाई मतदाता थे जबकि चीज श्रेणी के अंतर्गत आने वाले मतदाता किसी भी स्थिति में भाजपा को मत नहीं देंगे । इसमें भाजपा को पूरे राज्य के बारे में बहुत ही उपयोगी आंकडे उपलब्ध कराए थे । दो हजार चौदह में रणनीतिकार प्रशांत किशोर की टीम ने भी कुछ इसी तरह करने का प्रयास किया था और उसने मतदान केंद्रों के हिसाब से एक पुस्तिका में प्रत्येक प्रत्याशी के मजबूत और कमजोर क्षेत्रों का विवरण दिया था । भाजपा का एक नारा था, उसके पास मैदान में काडर की उपस्थिति है । उसके पास मतदाताओं के बारे में उपयोगी आंकडे हैं और उसके पास मतदान केंद्र इकाइयां और ऐसी सभी इकाइयों का विवरण है । क्या प्रचार अभियान शुरू करने का सही समय है? भाजपा ने पांच नवंबर को अपनी परिवर्तन यात्रा को हरी झंडी दिखाई । इस राज्य के चार छोडो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, बुन्देलखंड में झांसी, पूर्वांचल में बलिया और सोनभद्र से इसे साधारण लक्ष्य के साथ रवाना किया गया । बंसल बताते हैं, भाजपा को छा जाना था बस भाजपा ही भाजपा दिखाना चाहिए था । लगभग इसके साथ ही यह भी निर्णय किया गया की अन्य पिछडे वर्गों, युवाओं और महिलाओं को ध्यान में रखते हुए बैठके शुरू की जाए । इन तीनों को भाजपा चुनाव में एक स्वतंत्र वर्क की तरह अपना लक्ष्य बना रही थी । बंसल ने इसके समय के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए कहा हमारा मकसद प्रत्येक जिले में प्रत्येक पखवाडे में एक बडी गतिविधि का आयोजन होना चाहिए । इसके अंतर्गत या तो जिले से एक यात्रा निकलनी चाहिए या फिर महिलाओं, युवाओं या अन्य पिछडे वर्गों के साथ इस तरह की एक बैठक होनी चाहिए । इसका ताक पर ये हुआ की मुख्य आयोजन से पहले के दिनों और आयोजन के बाद के कुछ दिनों तक लोग अपने जिले में सिर्फ भाजपा के बारे में ही बात करते रहे । लालकृष्ण आडवाणी की सर्वाधिक प्रसिद्ध रथयात्रा के साथ ही भाजपा का रथयात्राएं आयोजित करने का इतिहास रहा है । नरेंद्र मोदी स्वयं भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी कि कन्याकुमारी से कश्मीर की यात्रा में उनके साथ थे । लेकिन परिवर्तन यात्राएं भिन्न थी क्योंकि ये किसी नेता के इर्द गिर्द नहीं घूमती थी । बंसल गर्व के साथ बताते हैं, इस संगठन की यात्रा थी और ये प्रदेश के चार सौ तीन निर्वाचन क्षेत्रों में से प्रत्येक में पहुंची । बिस्तर समय राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था । यात्रा पांच नवंबर को शुरू हुई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने के कठोर निर्णय की घोषणा आठ नवंबर को हुई थी । इसका मतलब ये हुआ की जबरदस्त सामाजिक और आर्थिक अव्यवस्था जिसमें प्रत्येक भारतीय नागरिक एक सीमा तक और सुविधा में था, जब राजनीतिक माहौल प्रधानमंत्री के खिलाफ हो सकता था, के दौर में भाजपा की सारी मशीन रही मैदान में सक्रिय थी । इस यात्रा के माध्यम से प्रत्येक जिले में प्रत्येक छोटी जनसभाओं में भी छोटे बडे नेताओं को ये समझाने के लिए उतारा गया । राष्ट्र के लिए अर्थव्यवस्था के लिए, समाज के लिए आखिर नोटबंदी क्यों अच्छी है और मोदी ने पडे कालेधन वालों के खिलाफ कैसे मोर्चा खोला है और किस तरह से उन्होंने अपना मुख्य वायदा पूरा किया है । यात्रा में लगाए गए अनेक नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को शायद खुद भी इस पर भरोसा नहीं था और कुछ नहीं तो निजी मुलाकातों में अपनी आशंका को छिपाया भी नहीं परन्तु जनता को समझाने के लिए बाहर निकले थे । मोदी ने खुद भी परिवर्तन यात्रा के हिस्से के रूप में छह जनसभाओं को संबोधित किया और प्रत्येक पडाव पर उन्होंने नोटबंदी के पक्ष में दृढता से अपनी बात रखें । कहा ये त्याग परिहार्य था, परमप्रिय राष्ट्र के लिए हितकारी होगा, नोटबंदी के राजनीतिक प्रभाव पर नहीं और चर्चा हुई थी परन्तु यहाँ सवाल भाजपा की मशीन देखा था । इसमें यात्रा की व्यवस्था की थी और पडे राजनीतिक क्षेत्र की जनता था । सीधे पहुंचने के लिए प्रधानमंत्री को मंच उपलब्ध कराया था । इसमें उनका राजनीतिक संदेश पहुंचाने में मदद की और राजनीतिक संदेश देने की कवायद नहीं । उन्हें उस स्थिति पर काबू पाने में मदद की जो दुनिया के किसी भी लोकतंत्र या अधिनायकवादी व्यवस्था में किसी राजनीतिक नेता के लिए आत्मघाती कदम हो सकता था । ये यात्रा दो जनवरी को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल की सबसे बडी जनसभा के साथ संपन्न हुई जिसमें उपस्तिथ हजारों लोगों को नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया । रैली आपने आपने भाजपा की संतित ताकत का प्रतीक थी । अब अंतिम चरण के लिए आगे बढने का समय था । तीन दशक तक चुनाव प्रबंधन से जुडे रहने वाले अमित शाह जानते थे आप सुदूर राजधानी ने अपने और रूम में एक बेहतरी नक्शा तैयार कर सकते हैं । आधे एक संरचना का दर्शाने वाला खुबसूरत चार्ट तैयार कर सकते हैं । आप टेलीफोन करके नम्बरों की पुष्टि कर सकते हैं और अब तो संगठन की असली परीक्षा तो नजदीक आ रहे चुनाव के दौरान मैदान में ही होती है । मैंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा की यात्रा ये समझने के लिए कि कि मैदान में भाजपा संगठन किस तरह काम कर रहा है । चंद्रमोहन लखनऊ में भाजपा के राज्य प्रवक्ता हैं और उन्हें भी जिले का प्रभार सौंपा गया था । पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के मूल का निवासी चंद्रमोहन पाल स्वयं सेवक थे और वो उन्नीस सौ में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद नहीं शामिल हो गए थे । चार साल के भीतर ही वो इसके पूर्णकालिक हो गए और परिषद के संगठन सचिव के रूप में काम करने लगे । इसे एटा कासगंज क्षेत्र में आरएसएस के छात्र प्रकोष्ठ को इसी नाम से बुलाया जाता है । अंततः स्वदेशी जागरण मंच में चले गए और वहां उसकी राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य बने । दो हजार तेरह में आरएसएस ने उन्हें भाजपा में भेज दिया, जहाँ वो पार्टी के लिए मीडिया प्रभारी बनाए गए । पार्टी ने प्रत्येक सीट के लिए मध्यम स्तर के कार्यकर्ता को प्रभारी के रूप में लगाया था और नवंबर से सारा ध्यान जैसा के नेतृत्व ने सोचा था । संगठन की जनसभाओं और जनसंपर्क बढाने पर था । चंद्रमोहन याद करते हैं, हमने अन्य पिछडे वर्गों की एक सभा के लिए दो निर्वाचन क्षेत्रों को मिला दिया । इसका संदेश आसान था की सरकार पिछडे वर्ग के प्रति अन्यायपूर्ण है । हम निष्पक्ष हैं और मोदी जी सबका साथ में विश्वास करते हैं । प्रत्येक जिले में आयोजित महिलाओं के केंद्र उनको रखकर आयोजित बैठकों का मुख्य मुद्दा, कानून व्यवस्था, लडकियों का अपहरण और उन्हें परेशान किया जाना था और युगों के साथ भी राज्य के प्रत्येक जिले दे बैठके आयोजित की गई है । इस परिवर्तन यात्रा के दौरान प्रभारी को यह भी सुनिश्चित करना था कि उसके अंतर्गत आने वाले जिले में मोदी की जनसभाओं के लिए पर्याप्त संख्या में लोग पहुंचे । विमुद्रीकरण के बाद मोदी की पहली रैली अमरोहा के निकट मुरादाबाद में हुई । हमारे कार्यकर्ताओं को लक्ष्य दिया गया था । इसी जनसभा में मोदी ने गरीबों का आह्वान किया था कि उनका धन वापस नहीं लौटाए जिन्होंने विमुद्रीकरण के दौरान अपनी संपदा को ठिकाने लगाने के लिए उनके जनधन खातों का इस्तेमाल किया है । आमतौर पर ये माना जाता है कि इन रैलियों में शामिल होने के लिए लोगों को भाजपा पैसे देती है परन्तु चंद्रमोहन ऐसे तर्कों को पूरी तरह अस्वीकार करते हैं । वो कहते हैं, बिल्कुल नहीं । हम परसों की व्यवस्था करते हैं और जिला स्तर के पार्टी के नेताओं से कहते हैं अस्सी निजी गाडियों की व्यवस्था में वे खुद करें । हम सामूहिक भोजन और चाय की व्यवस्था करते हैं । ये भी इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें अपने घर से रैली स्थल तक पहुंचने में इतना समय लगा । मोदी जी की सभाओं के लिए लोग अपने आप आना चाहते थे । हमारा लक्ष्य अमरोहा से तीस हजार लोगों का था परंतु पहुंचे अस्सी से नब्बे हजार और इनमें से अधिकांश अपने आप आए थे । चुनाव की तैयारियों के दौरान प्रभारियों के पास दूसरा काम स्थानीय कार्यकर्ताओं और जिले के नेताओं से परामर्श करना और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से ऐसे प्रत्याशियों की छोटी सूची तैयार करना हो जिन्हें चुनाव में टिकट किया जा सकता है । इसके मुख्य आधार में प्रत्याशी के जीतने की संभावना, सामाजिक समीकरण और जाती प्रत्याशी का नाम लोग जानते हो और उसकी आर्थिक स्थिति जैसे बिंदु शामिल थे । उदाहरण के लिए पूर्व क्रिकेटर और भाजपा के पूर्व सांसद चेतन चौहान का नाम अमरोहा के एक निर्वाचन क्षेत्र के लिए भेजा गया । उन्हें लोग अच्छी तरह जानते थे । आर्थिक स्थिति ठीक थी और निर्वाचन क्षेत्र के सामाजिक समीकरण के लिए पूरी तरह सही थे । चंद्र बताते हैं, हमने उन प्रमुख नेताओं की सूची भी तैयार की जिनके साथ संभावित प्रत्याशी की नजदीकी थी ताकि यदि उसे टिकट नहीं मिले तो हम जानते थे इसके लिए किस से संपर्क करें । असंतुष्ट को साधना महत्वपूर्ण है परन्तु अवसर चुनावी काला में कमतर आते हैं । इन सामर्थ्यवान प्रत्याशियों की सूची फिर राज्य स्तर के नेतृत्व तक भेजी जाती हैं और उसके बाद बंसल से शाह तक ले जाएंगे । बंसल सिर्फ जिला इकाई पर ही नहीं बल्कि टिकटों के लिए नामों की सिफारिश करने से पहले पांच अन्य स्रोतो स्थानीय सांसद, क्षेत्रीय नेताओं, संघ की मशीन रही हूँ । सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियों और जिलों में तैनात किए गए श्रम सेवकों से मिलने वाली जानकारी पर भी निर्भर कर रहे थे । चुनावों में बहुत ही विवाद वाले मुद्दों में एक बनता जा रहा टिकट वितरण का काम संपन्न हुआ और एक अवसर तो ऐसा लगा ये भाजपा कोई सारी संभावनाओं को ही खतरे में डाल देगा । लखनऊ और वाराणसी में प्रचार के दौरान जब हम पाँच साल से मिले तो उन्होंने इस विवाद को पूरी तरह दरकिनार कर दिया । उनका कहना था, आपको पार्टी के प्रति आकर्षण को बताता है कि प्रत्येक निर्वाचन सीट के लिए पंद्रह पंद्रह लोग टिकट चाहते थे कि स्वभाव देखी है । जिन्हें टिकट नहीं मिला वो आक्रोशित और राहत महसूस करेंगे । पर अब तो ये पर्याप्त तरीके से उस नाराजगी के पैमाने को नहीं बता सकें जो हमने टिकटों को लेकर जिलों में देखी थी । आवश्यकता पडने पर विपक्ष को तोडने की कम हुए मतों के लिए छतिपूर्ति की अमित शाह की रणनीति से बंधी भाजपा नहीं बेहिचक कांग्रेस रीता बहुगुणा और बसपा से स्वामीप्रसाद मौर्य तथा प्रजेश पाठक जैसे जाने माने नामों सहित दूसरे नेताओं को थोडा बंसल समझाते हैं । साठ से अधिक ऐसी सीटें थी जहाँ हम कभी नहीं जीते थे और बीस अन्य सीटों पर हमारी स्थिति कमजोर थी । इन सीटों के लिए हमने सपा और बसपा के उन नेताओं को लिया । दिन का वहाँ पर अपना जनाधार था । इसका अभिप्राय यह था कि मत उन मतों को लाएंगे और हम संगठन सहयोग उपलब्ध कराएंगे । उन सीटों पर लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे भाजपा कार्यकर्ता नाराज थे । परिवार के जो लोग टिकट की उम्मीद लगाए थे उन्हें लगा कि यदि नया प्रत्याशी जीत गया तो अगले कुछ चुनावों के लिए उन की संभावना तो खत्म हो जाएगी । इसीलिए ये नाराजगी थी । आखिरकार ऐसे सीटों में से भाजपा बयालीस ही जीत चुकी । ऐसे तेरह जिलों में जहाँ भाजपा पहले कभी नहीं जीती थी, उन पर दूसरे दलों से आया था । नेताओं की बदौलत वो चुनावी सफलता दर्ज कराने वाले थे । क्या यह वैचारिक शुद्धता की कीमत पर था? पाँच साल तक देते हुए कहते हैं, भाजपा इतनी विशाल है । इसमें शामिल होने वाले नए लोग सहजता से पार्टी की संस्कृति और वैचारिक दायरे को आत्म साफ कर लेते हैं । वो कहते हैं, मैंने इस बात को नोटिस किया है । इनमें से अधिकांश नेता पहले ही हमें भाईसाहब कहने लगे हैं । लोगों का स्वागत करने के हमारे तरीके को भी आत्मसात करने लगे हैं आपने हमारी संस्कृति में हमने लगे हैं भाजपा भी उत्तर प्रदेश चुनाव का इस्तेमाल नेताओं कि नई पीढी के सृजन के लिए कर रही थी । इसके लिए पुराने नेताओं की पीढी को अब सेवानिवृत्त होने की कगार पर है । पार्टी अब प्रत्येक जिले में उन लोगों को एक दो टिकट देने की तैयारी कर रही है तो चालीस और पचास साल के प्रारंभिक तौर की उम्र के हैं । बंसल स्पष्टीकरण देते हुए कहते हैं, एक समुदाय विशेष के उस आयु वर्ग के व्यक्ति के बारे में सोची तो पार्टी में है और से टिकट नहीं मिला है । वहाँ संतुष्ट ही होगा । ऐसा ही कुछ एक सबसे अधिक निगाहों में रहे । निर्वाचन क्षेत्रों में सही एक वाराणसी दक्षिण में हुआ । इस सीट का प्रतिनिधित्व श्यामदेव रायचौधरी करते आ रहे थे । वो असाधारण रूप से बंगाली भ्रामरों में लोकप्रिय है और ज्यादा के नाम से जाने जाते थे । पूरी तरह से अपने क्षेत्र में रचे बसे थे और एक एक व्यक्ति को जानते थे और रोजाना अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याओं पर विचार करते थे । दादा को इस बार टिकट नहीं दिया गया बल्कि उनके स्थान पर एक युवा नीलकंठ तिवारी हो पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया । एकदम क्या दर्शाता है? क्या इसकी वजह उम्र थी? भाजपा के एक नेता ने कहा हूँ । उम्र एक पहलू था परन्तु हूँ । भविष्य के लिए निवेश भी था । देखिए हम एक स्थानीय भ्रमण की आवश्यकता थी । अपने समुदाय के लिए एक नेता के रूप में बढेगा और जिसे उत्तर प्रदेश के पंडित राज्य में जोड सके । मुरली मनोहर जोशी अब अप्रासंगिक हो चुके हैं । कलराज मिश्र पचहत्तर साल पार कर चुके हैं । हमें दादा के बारे में तकलीफ हुई परन्तु हमें भविष्य की और देखना है इस से एक बार फिर बढता और जोखिम की कहानी ही सामने आती है । प्रत्याशियों के चयन में व्यापक स्तर पर की गई करवाया और विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने की व्यवस्था का तृण प्रभाव नजर आता था । यदि किसी प्रत्याशी के नाम की सिफारिश जिला इकाई द्वारा संबंधित पटरी के नेताओं द्वारा संघ द्वारा स्थानीय सांसद द्वारा सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा स्वतंत्र स्वयंसेवकों द्वारा की गई हो तो वह स्वाभाविक पसंद करेगा अथवा यदि इसके नाम को इन सभी में से अधिकांश ने आगे बढाया आपको उसका चयन किया जाएगा । हालांकि अंतिम निर्णय लेने का अधिकार अमित शाह, प्रभारी महासचिव ओम माथुर, प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद और बंसल के पास ही था तो किसी भी सिफारिश को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते थे । परन्तु इसमें भी जोखिम था क्योंकि जो पार्टी की संरचनाओं से बाहर थे उन्हें भरोसेमंद कार्यकर्ताओं को नाराज करने की कीमत पर लाया गया था । दूसरे समुदायों से आए नई पीढी के नेताओं के लिए जगह बनाने के लिए पुरानी और सफल उम्मीदवारों के नाम हटाए गए थे । क्रिकेट मिलने की आशा में पिछले कुछ सालों में अपनी ऊर्जा और धन लगाने वाले अधिकांश लोगों ने अचानक ही खुद को दौड से बाहर पाया । उनके पास कहीं और जाने का रास्ता नहीं था । ये सब एक साथ होकर भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकते थे । ये पार्टी के लिए बेचारी का दौर था परन्तु उसने स्थिति का सामना करने का फैसला किया । वापस अमरोहा में पार्टी संगठन अंतिम चरण की तैयारी कर रहा था । प्रारंभिक बैठकों का दौर शुरू हो चुका था । व्यापक जनसंपर्क स्नातक किया जा रहा था । मोदी इस इलाके में रैलियों को संबोधित कर रहे थे और टिकटों को अंतिम रूप दिया जा चुका था । चंद्रमोहन ने अमरोहा के मुख्य राजमार्ग पर गजरौला में उडूपी कैसे मैं दूसरा खाते हुए मुझे बताया । पार्टी ने प्रत्येक उम्मीदवार को डायरी और एक एंड्राइड दी थी । इसमें मतदान केंद्र स्तर के आंकडे थे जिन्हें दो सालों में बहुत ही सावधानी के साथ तैयार किया गया था । इसमें प्रत्येक मतदान केंद्र पर सदस्य बनाए गए लोगों के नाम, समिति के सदस्यों की सूची और प्रत्येक केंद्र की कमियों और ताकतों का विश्लेषण था । चंद्र बताते हैं, जैसे जैसे चुनाव नजदीक आया पार्टी ने निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर एक और व्यवस्था का सृजन किया । पार्टी ने विनिर्दिष्ट जिम्मेदारी के साथ बारह से पंद्रह सदस्यों की चुनाव संचालन समिति का गठन किया । इसमें एक व्यक्ति उम्मीदवार के दैनिक कार्यक्रम और क्षेत्र में उसके दौरे का प्रभारी होगा । दूसरा जनसभाओं के लिए तालमेल में मदद करेगा । तीसरा व्यक्ति राष्ट्रीय और राज्य स्तर के प्रचारकों के लिए मंडल मुख्यालय के पास अनुरोध भेजेगा और प्रचारक के कार्यक्रम के साथ तालमेल करेगा । एक उम्मीदवार के सोशल मीडिया कोशिश कर फेसबुक पेज और वाट्सऐप समूहों पर प्रचार में सहयोग करेगा । एक अन्य वित्तीय मामलों का प्रभारी होगा । एक पर्मिट के लिए जिला प्रशासन के साथ सामंजस्य बनाएगा और एक व्यक्ति प्रचार सामग्री का प्रभारी होगा । रोजाना शाम को समिति की बैठक होगी जिसमें दिनभर की गतिविधियों का आकलन किया जाएगा । इसमें चुनाव सहायक थे जो मतदान केंद्र समितियों की निगरानी कर रहे थे । प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में करीब साढे तीन सौ मतदान केंद्र थे । निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक पंद्रह से बीस मतदान केंद्रों के लिए बैठी हुई जिसमें मतदान केन्द्र के कार्यकर्ताओं को आने जाने वाले मतदाताओं की पहचान करने और उनके लिए काम करने का निर्देश दिया गया । चंद्रमोहन बताते हैं, हमारे पर जिला स्तर पर थोडे वरिष्ठ नेता भी थे जिन्हें विरोधियों पर नजर रखने और उन्हें अपनी और आकर्षित करने और यदि आवश्यक हो तो उन्हें कुछ महत्व देने तथा अपने पाले में लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी । सपा और बसपा दोनों में नेता ही चुनाव लडते हैं । उम्मीदवार अपने पैसे से भी लडते हैं । सीट की जिम्मेदारी उसी व्यक्ति विशेष को दे दी जाती है । भाजपा में संगठन चुनाव लडता है और हमने यही अंतर जिले में पाया । वो निश्चित ही उम्मीदवार को कडी मेहनत करनी होती है परंतु यहाँ उसका साथ देने के लिए पूरी मशीनरी है । निश्चित ही भाजपा में संगठन लडा और चुनाव जीता । सदस्यता का दायरा बढा नहीं । सदस्यों के साथ संपर्क को नए सिरे से स्थापित करने, प्रशिक्षण शिविरों के आयोजन, संठनात्मक चुनाव कराने, मुद्दों की पहचान के लिए स्वतंत्र एजेंसियों की सेवाएं लेने, मतदान केंद्र स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ कई दौर की बैठकें करने और सेंटर चला नहीं और निर्वाचन क्षेत्रों का माइक्रो स्तर पर डाटा तैयार करने, राज्यव्यापी यात्राओं और जनसभाओं का आयोजन करने, उम्मीदवारों और निर्वाचन क्षेत्र स्तर की चुनाव समितियों का समर्थन करने, विरोधियों को प्रलोभन और दूसरे तरी कों से पार्टी में शामिल करने, प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय प्रभावशाली नेताओं की तरह सभाओं का आयोजन करने, गाडियों का बंदोबस्त करने, स्टार प्रचारकों के लिए हेलीकॉप्टर, जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के लिए कारों और मोटरसाइकिलों के लिए ईंधन से लेकर जनसभाओं तक लोगों को लाने के लिए बसों और कारों का बंदोबस्त करने, प्रचार सामग्री का प्रकाशन और फिर प्रचार सामग्री । विज्ञापन पट से लेकर ऍम प्रत्येक गांव, कस्बे और नगर में पहुंचाने और समाचार पत्रों और टेलीविजन चैनलों में विज्ञापन देने आदि के लिए धन की आवश्यकता होती है । राजनीति में वित्तपोषण के बारे में खोज करना सबसे अधिक दुर्गु कामों में से एक है । दलों और नेताओं ने अपनी सबसे अंदरूनी राजनीतिक रणनीति का खुलासा किया परंतु संसाधन जुटाने के बारे में सवाल आने पर चुप्पी साध लेते हैं क्योंकि रिश्तों को बचाए रखना जरूरी होता है और अनुचित और गैरकानूनी कारोबारों को छुपाना होता है । ये भारत में अनोखा नहीं है । राजनीतिक वैज्ञानिक देवेश कपूर और मिलन वैष्णो राजनीतिक वित्तपोषण के बारे में आने वाले नए खंड में अपने परिचय में लिखते हैं, कम विकसित देशों, कम जवाबदेही, कमजोर अथवा आंशिक पारदर्शिता और सार्वजनिक घोषणा करने वाले मानदंडो और कानूनों को लागू करने की प्रक्रिया का अभाव ऐसा मार्क उपलब्ध कराते हैं । इसके जरिए बगैर हिसाब वाले धन का प्रभाव हो सकता है । फिर भी कालेधन के प्रवाह के बारे में अस्पष्ट पर भाषा के कारण हम इसके आकार और तरीके के बारे में बहुत ही कम जानते हैं । वो इस तथ्य को इंगित करते हुए कहते हैं, अकेले भारत में उन्नीस सौ से ही अर्थव्यवस्था और मतदाताओं के आकार में प्रति हुई है । जीत का अंतर घटने के कारण अब चुनाव बहुत अधिक प्रतिस्पर्धी हो गए और स्थानीय शासन के स्तर पर निर्वाचित पदों की संख्या बढकर तीस लाख तक हो गई है । इन सपने खर्च में इजाफा किया है मैंने भाजपा के दर्जनों नेताओं, राष्ट्रीय पदाधिकारियों से लेकर राज्य स्तर के मुख्य पदाधिकारियों और हायक उम्मीदवारों से लेकर मैदानी स्तर के कार्यकर्ताओं तक हैं । चुनावी खर्च के बारे में पूछा इनमें से अधिकांश स्पष्ट रूप से कुछ भी बताने के प्रति अनिच्छुक थे । अधिकांश के पास पूरी बहुत जानकारी जी परबातचीत कल्पना और अक्सर अनुमान के इर्द गिर्द ही घूमती रही था । मैं जो कुछ जानकारी जुटा सका वो अधूरी तस्वीर भारतीय राजनीति का सबसे अधिक अंधकार में और कडी सुरक्षा वाला गोपनीय पहलू हैं । उत्तर प्रदेश के दो हजार सत्रह के चुनावों पर भाजपा द्वारा खर्च की गई राशि के बारे में मुझे कम से कम सोलह करोड रुपये से लेकर ज्यादा से ज्यादा बारह सौ से पंद्रह सौ करोड रुपये का आंकडा दिया गया । यहाँ पर ये बताना भी महत्वपूर्ण है । स्वतंत्र रूप से इन आंकडों की पुष्टि करने का कोई तरीका नहीं है । पार्टी ने इस तरह से धन जुटाया इसके लिए पहला तो नीचे से ऊपर तक संसाधन जुटाना था । इसका मतलब ये हुआ कि निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर ही प्रत्याशियों के आर्थिक रूप से मजबूत होने की अपेक्षा की गई ताकि वे अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर सकें । ये उनकी अपनी निजी संपदा के रूप में हो सकता है या फिर उन्हें वित्तीय मदद के लिए तैयार स्थानीय व्यापारियों का नेटवर्क हो या फिर स्थानीय उद्यमियों के साथ बेहतर रिश्ते हो । जो गाडियां जब कारों के ईंधन का खर्च दे सकें, संचालन की व्यवस्था कर सकें और अंतिम क्षणों में चुनावों में जरूरत पडने पर नकदी मुहैया करा सकें । जिला स्तर के भाजपा के एक नेता ने बताया, यदि किसी उम्मीदवार के पास अपने ही चुनाव के लिए धन एकत्र करने के संसाधन नहीं है तो वो निर्वाचित होने के लायक नहीं है । परंतु ध्यान रहे तीस सपा और बसपा में उम्मीदवारों को अपने आप ही चुनाव लडना होता है । लेकिन हमारे मामले में उम्मीदवार के खर्च किंचित सीमित रहते हैं क्योंकि संगठन तमाम खर्चों को वहन कर लेता है । उसे हमारे ऑर्डर को पैसा नहीं देना होता हूँ । उसे संघ परिवार के प्रचार हूँ और सहानुभूति रखने वालों को कुछ नहीं देना होता है । उसके प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर से आने वाले स्टार प्रचारकों का खर्च वहन करने की पार्टी उससे अपेक्षा नहीं करती । पार्टी मुख्यालय से तमाम प्रचार सामग्री भी आती है लेकिन हाँ उसे भी चुनाव में अपना धन खर्च करना होता है । वो वित्तपोषण का दूसरा सौ राज्यस्तर के बडे कारोबारी हैं और वे कई तरह से योगदान करते हैं, नकदी देते हैं । ऐसा ठेकेदारों, बिल्डरों, सरकारी रेवडियों और भविष्य में लाइसेंस के लिए निर्भर रहने वालों के मामले में ही सही है । भविष्य में संभावित सहयोग को ध्यान में रखते हुए सेवा भी करते हैं । भाजपा के एक नेता ने लखनऊ में पार्टी कार्यालय में कहा, अक्सर लोग सिर्फ जुडना चाहते हैं और किसी प्रकार के धन की मांग भी नहीं करते । वो जानते हैं, दिल्ली में हम सत्ता में है । वो जानते हैं कि हमारे पास सांसद है और एक बार की सुगबुगाहट हो कि हम राज्य के चुनाव जीत सकते हैं तो किसी ना किसी तरह पार्टी से जुडना चाहते हैं । पहले ही हम उनसे ये कहे कि हम उन्हें कोई पैसा नहीं देंगे । पता हो सकता है कि कोई पेट्रोल पंप का मालिक हूँ जो हमारे ईंधन की आवश्यकता का ध्यान रखेगा । ऐसे ट्रांसपोर्टर हैं जो उन्होंने कार्य मुहैया करा देंगे और ऐसे कारोबारी भी हो सकते हैं । ये नहीं कि वह किराए पर हेलीकॉप्टर की व्यवस्था कर देंगे । लखनऊ के कारोबारी जो पारंपरिक भाजपा परिवार से है नहीं इस तरह के कारोबार के चरण की पुष्टि की । वो कहते हैं, उन्हें मुझसे कहने की जरूरत नहीं है । चुनाव नजदीक आते ही मैं उनके पास पांच कार्य भेज देता हूँ और राज्य स्तर के शीर्ष पदाधिकारियों को कुछ नकदी भी भिजवा देता हूँ । मेरे जैसे इस स्तर के सैकडों होंगे अगर निर्वाचन क्षेत्र और राज्य स्तर पर जुटाए गए संसाधन पार्टी के खाते में जुडते हैं । हम तो उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए अधिकांश संसाधन जुटाने का काम केंद्रीय स्तर पर ही हुआ था । चुनाव को मोदी और शाह दोनों के द्वारा अत्यधिक महत्व दिए जाने के कारण पार्टी के व्यापक नेटवर्क से धन जुटाने के लिए कहा गया था । केंद्र में भाजपा के मंत्रालय है वो प्रमुख राज्यों में सत्ता में है और उसके पास सांसद विधायक हैं । भारतीय राजनीति की अर्थव्यवस्था से दूर से नहीं परिचित कोई भी व्यक्ति ये मान सकता है । पार्टी ने इन सभी स्तरों पर संसाधन जुटाने के लिए अपनी सत्ता का इस्तेमाल किया होगा । परम तो इस मामले में वो सावधान और काफी हद तक कांग्रेस के कार्यकलापों से भिन्न थी । भाजपा की कार्यशैली से परिचित एक रणनीतिकार ने मुझे बताया कांग्रेस में यदि पार्टी नेतृत्व उदाहरण के लिए पचास करोड रुपए चाहे तो वो अपने प्रमुख सहायक को इस बारे में संदेश देगा । वो सहायक मंत्रियों क्या राज्यों में तीन चार मुख्यमंत्रियों से सौ सौ करोड रुपये के लिए कहेगा । इसके बाद मुख्यमंत्री स्थानीय कार्यवाहियों, ठेकेदारों, नौकरशाहों हूँ, मंत्रियों से कहेंगे और प्रतिदान की पेश करेंगे और तत्काल ही धन की व्यवस्था करेंगे । अच्छा पचास करोड रुपये प्राप्त करने के लिए पार्टी द्वारा तीन सौ करोड रुपए लिए जाएंगे । इस प्रक्रिया के दौरान नीचे स्तर तक जुडे लोग बहुत धन अर्जित कर लेंगे । भ्रष्टाचार स्पष्ट नजर आएगा और अक्सर सौदेबाजी काफी जगजाहिर हो जाएगी । भाजपा में बताते हैं और इसे वह देखते हैं तो शीर्ष पर आसीन होते हैं । वो जानते हैं क्या सरकार देने वाला वही है? तो फिर इतनी कडियों से गुजरकर क्यों जाएँ पता? पार्टी नेतृत्व ये जानता है कि किस राज्य में कौन सा मंत्रालय अवसर प्रदान करेगा और वो सीधे संबंधित कारोबारी अथवा व्यक्ति से बात करेगा । उधर जुटाते हैं, जरूरी है वो बीच से बिचौलियों को हटा देते हैं की सौदेबाजी इतनी अधिक साहिल नहीं होती है, उधर पर नियंत्रण रखते हैं और फिर सावधानी से उसका वितरण करते हैं । उत्तर प्रदेश में मोटे तौर पर यही तरीका था । उत्तर प्रदेश में एक और पेंच था नोटबंदी । इससे राजनीतिक खर्चों पर असर पडने की संभावना थी परन्तु ऐसा नहीं हुआ । राजनीतिक वित्तपोषण कर आपने खंड के अंतिम अध्याय नहीं । कपूर, वैष्णो और श्रीधरन इस बात का जिक्र करते हैं इस कदम नहीं । चुनाव के दौरान नकदी अथवा प्रलोभन देने की दूसरी सामग्री पर आश्रित रहने में बहुत अधिक कमी नजर नहीं आई । अकेले उत्तर प्रदेश में ही आदर्श आचार संहिता लागू होने के दिन से एक सौ पंद्रह करोड रुपए जब्त किए गए । ये दो हजार बारह के विधानसभा चुनाव में बरामद राशि से घूमी थी । इससे पता चलता है कि नोटबंदी के बाद जैसी अपेक्षा की जा रही थी उस तरह का नकदी का बहुत अधिक संकट नहीं था । भाजपा हो या सपा दोनों पर इसका असर कम था । सत्तारूढ दलों ने कारोबारियों से सीधे नकदी नहीं मांगी । भारत के चुनावों में नकदी केंद्र में होती है । कोई भी दल आर्थिक ताकत के बगैर चुनाव नहीं जीत सकता है । फिर भी ध्यान रखना जरूरी है कि ये सिर्फ अकेला फैसला लेने वाला एकमात्र मुख्य पहलू नहीं है । यदि ये संसाधनों का संघर्ष होता है, भाजपा दिल्ली या बिहार का चुनाव या फिर दो हजार चार के चुनाव में नहीं, हर थी । लेकिन यह संसाधन मददगार होते हैं और प्रत्येक दल को चुनाव में गंभीर दावेदार बनने के लिए एक न्यूनतम मात्रा में संसाधनों की जरूरत होती है । संगठन की तरह ही यह भी आवश्यक है । परंतु ये तत्व पर्याप्त नहीं है । अब जैसा कि उत्तर प्रदेश में स्वागत हुआ, भाजपा ने सभी स्तरों पर संसाधन जुटाने और प्रभावी तरीके से उसके इस्तेमाल की क्षमता दिखा दी है । संगठन जो भी है, अमित शाह की बदौलत है । उन्होंने सदस्यता अभियान की परिकल्पना की और तमाम उपहास के बीच इसे अंतिम नतीजे तक पहुंचाया । उन्होंने संपर्क अभियान के माध्यम से उन लोगों से संपर्क स्थापित करने के लिए कार्यकर्ताओं को तैनात किया तो सदस्य बने थे । उन्होंने कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण, संगठानात्मक चुनाव और संगठन में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने की आवश्यकता को आगे बढाया । इस बारे में अगले अध्याय में और अधिक शाह ने मतदान केंद्र स्तर की समितियों को सक्रिय क्या उन्हें कार्यशील बनाया, इसकी सदस्यता की सावधानीपूर्वक निगरानी सुनिश्चित की और इसे पार्टी के तंत्र का अभिन्न हिस्सा बनाया । उन्होंने मतदाताओं से संबंधित मामलों पर स्वतंत्र रूप से जानकारी हासिल की और उसके इर्द गिर्द प्रचार और जनसंपर्क को मूर्तरूप दिया । उन्होंने उम्मीदवारों के चयन के लिए बहुत ही सावधानी भरा तरीका तैयार किया और उन्हें अपने चुनाव लडने के लिए संगठन के ठोस समर्थन और आंकडों से सुसज्जित किया और इन सब के लिए धन का पंद्रह वर्ष किया और सब दिल्ली के अशोका रोड पर स्थित पार्टी के वातानुकूलित कार्यालय में बैठने से नहीं हुआ । अगस्त दो हजार चौदह से मार्च दो हजार सत्रह के दरमियां शाह ने विधानसभा चुनावों और दो हजार उन्नीस के संघर्ष को ध्यान में रखते हुए वस्तुस्थिति को समझने, उसका प्रबंधन देखने और पार्टी इकाइयों को निर्देश देने के लिए दो बार देश में प्रत्येक राज्य का दौरा किया । उन्होंने दो सौ छियासी दिन दिल्ली से बाहर रहते हुए पांच लाख किलोमीटर की यात्रा की और इस दौरान चौंसठ दिन उत्तर प्रदेश में रहकर व्यक्तिगत रूप से राज्य में और साधारण काम किया और ऊर्जा लगाई । उत्तर प्रदेश की जीत के बाद शाह देश की पिक्चर दिन की यात्रा पर निकल गए । नरेंद्र मोदी का जनता के बीच करिश्मा और अमित शाह के अथक संठनात्मक कौशल । दोनों ने मिलकर सामाजिक समरसता के आपने अतिमहत्वाकांक्षी प्रयोग के बीच में ही नई भाजपा की आधारशिला रखी है ।

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Kaise Jitati Hai Bhajpa writer: प्रशांत झा Voiceover Artist : Ashish Jain Author : Prashant Jha
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