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ये एक सौ पाँच फुट ऊंचा था । मंदिर के कलश में विष्णु का सुदर्शन चक्र तथा पता था बनी हुई थी । मंदिर को श्री मंदिर भी कहते थे और की एक ऊंची जगह पर बना था । ऊंची जगह को नीलगिरी कहते थे । मंदिर के अंदर चार कक्ष थे मंदिर, भोग मंदिर, जगमोहन तथा गर्भग्रह । मंदिर के क्षेत्र में मूर्तियों का श्रंगार करने वाले फूलवालों, पुजारियों, रसोइयों, रक्षकों, संगीतज्ञ, देवदासियों, मशालची हों, महावतों और शिल्पकारों की भीड रहा करती थी । मंदिर में देवदासियां नृत्य करते हैं और संगीत के भजन का बहुत मंदिर में भेंट और प्रसाद स्वीकार किया जाता है और खाना बांटा जाता । जगमोहन मंदिर में लोग भगवान का ध्यान करते हैं । गर्व मंदिर में तीन मूर्तियां थी । इनमें से भगवान जगन्नाथ की, दूसरी उनके भाई बलभद्र की और तीसरी मूर्ति उनकी बहन सुभद्रा की थी । इन मूर्तियों का श्रृंगार सोने तथा जवाहरातों से किया जाता था । मंदिर के प्रांगण में मार्कंडे, इंद्रधुनष और वो ही कुंड जैसे अनेक पवित्र भी थे । कालाचंद ने इन कुंडों में स्नान किया और वो जगमोहन कक्ष के अंदर बैठ गया । उसने वैष्णव भक्तों को देवताओं के ऊपर बडे चमरू से पंखा करते देखा । उसने घंटियों, संगीत और नृत्य करती हुई बालाओं की आवाज सुनी और मुस्कुराने लगा । ये देवताओं की क्रीडा का समय था । उसने आंख बंद कर ले और शासन दंडवत की अवस्था में फर्श पर लोग गया । उस सप्ताह भर अपने चारों और की दुनिया से बेखबर होकर षाष्टांग दंडवत की किसी स्थिति में राम जगत नियंता के ध्यान में रहा हूँ और अपनी आकांक्षा की पूर्ति तथा मठाधीशों और पुजारियों के चंबल से बचने की प्रार्थना करता रहा तो तो मन की शांति के लिए भी प्रार्थना करता रहा । कोई संकेत दर्शन और सुख के लिए प्रार्थना कर रहा था हूँ । सात दिन के बाद उसने दंडवत की स्थिति छोडी दुर्गण और रखा हुआ था । उसकी आंखें भीतर दस गई थी । उसके होट सूखकर पड गए और ऍम पीना पड गया था । वो विक्षिप्त सा लग रहा था । बडा हुआ और उसने तत्काल एक बन्दे का सहारा ले लिया । कोशिश खम्बे के सहारे खडा रहा हूँ । उसकी आंखों को हर चीज रहती दिखाई पड रही थी । वो कोशिश करने के बाद जब वो अपनी नजर स्थिर कर पाया तब उसने अपने सामने पंडितों का एक समूह देखा हूँ । उसके चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव थे तो उसे कुछ ऐसा लगा जिस दिन पंडितों के चेहरे दुश्मनी और कठोरता से भरे हुए हैं । उसने गर्भग्रह की और देखा गर्भग्रह कि छोटे छोटे दरवाजे बंद थे । वो आश्चर्यचकित रह गया तो उससे फटी हुई आवाज में पूछा हूँ क्या दरवाजे तुमने बंद किए हैं? मुख्यपुजारी बृजेश्वर स्वामी ने कर्ज कर कर दिया । हाँ ने तुम्हारे बारे में सुना है तुम धर्मद्रोही हूँ तुम्हारे लिए इस मंदिर में कोई स्थान नहीं है । ऍम में विरोध करते हुए कहा लेकिन मैं एक ही नहीं अब तुम भ्रमण नहीं रहे क्योंकि तुमने एक मुसलमान लडकी से शादी करके धर्म त्याग दिया है । कैसे हमारे धर्म अलग अलग है । हम अपने भी चेक धर्मद्रोही को नहीं रख सकते हैं लेकिन लेकिन मैं ना चाहते हुए भी तुम्हारे सामने हूँ । मैं भगवान जगन्नाथ के सामने आया हूँ इससे कोई फर्क नहीं पडता । हम भगवान जगन्नाथ के पुजारी है और तुम तो मेरी मुक्ति की राह में रोडा बन रहे हो तो तुम्हारे लिए कोई मुक्ति नहीं है । मुझे विश्वास है की जगन्नाथ स्वामी प्रायश्चित करने में मेरी सहायता जरूर करेंगे हूँ । मेरे जैसे व्यक्ति जिसमें कोई बात नहीं किया है के लिए प्रायश्चित क्यों नहीं हो सकता है तो जैसे गिरे हुए व्यक्ति को बचाने की टाॅप इच्छा नहीं है । अपने क्रोध पर काबू पाते हुए कालाचंद बोला । शास्त्रों में लिखा है चार वेदों के ज्ञाता पंडित ही नहीं बल्कि वह नीचे नीचे व्यक्ति भी मुझे प्यारा है । जो मुझे श्रद्धा रखता है उसका अगर वैसे ही करो जैसे मेरा आदर करते हो । पुजारी हंसने लगे और ऍम हो गया । उसे नीचा दिखाने के लिए उसका मजाक बना रहे थे । वो अभी तक अपने गुस्से पर काबू पाने के लिए अपने ताप भेज रहा था और मन ही मन सोच रहा था ये मुझे उसका मजाक उडाने का साहस किस प्रकार कर रहे हैं । एक दूसरे पुजारी चतुर्भुज ने कहा हूँ मंदिर को दूषित कर रहे हो । फॅर देकर कहा मैं हूँ । तीसरे पुजारी योगराज ने कहा अरे तुम कभी भ्रमण थे लेकिन अब तुम जाती और छूट रहा हूँ । हमारे लिए में शुरू हो सकता हूँ, ईश्वर के लिए नहीं क्योंकि ईश्वर कृपा जाती । कुल कुछ नहीं मानती हूँ । बृजेश्वर स्वामी ने उत्तर दिया, शास्त्रों के उदाहरण देने से तुम्हारी सहायता नहीं हो सकेगी । कालाचंद तो सब फूटने लगा । फिर बोला कौन किसे दूषित करता है तो हम यहाँ उनसे शास्त्रार्थ करते नहीं हैं । हम सिर्फ ये चाहते हैं कि तुम यहाँ से चले जाओ और अगर तुम यहाँ रुकने के जब करोगे तो हम शक्ति का प्रयोग करेंगे । ऍम को चक्कर आ गया । उसने हमने का सहारा और अधिक ले लिया तो उसका चेहरा लाल हो गया । गुस्से से उसका खून होने लगा और वह पुजारियों को पूछ रहा हूँ तो ऍम करती है तुमने मेरे लिए देवताओं के दरवाजों पर ऍफ दिए तो हूँ जी सुबह चला जाऊंगा का आरक्षण रूप से भरे खडा युक्त सफर में महीने से बोला अब बिलकुल सीधा खडा ऍम जरूर रहा था तो फॅमिली तो दर्शनीय लग रहा था । उसके आंखों से घडा मिश्रत रुडकी वाला पूछ रही थी । मैं जाऊंगा ऍम फिर वापस आऊंगा । बात करने और शांति के लिए नहीं बल्कि आप और सलवार के साथ वापस आऊंगा । ऍम पंडित पुरस्कार चाह रहे थे । वो मजाक बनाते हुए बोलेंगे । मुसलमानों के प्रेमी कहीं और जाकर गप्पे यहाँ को उसे उनके थी । चौहान का अनुभव हुआ और ठंड के लिए काम उठा तो वो चलने लगा । लेकिन उनकी हाॅल हर जगह करने लगे तो तो फिर कभी बदूरिया नहीं गया तो वहाँ अपने लोगों से क्या कहेगा कि उसे अस्वीकार कर दिया गया है । तो शायद वहां पहुंचने तक उन्हें ये सब मालूम हो जाए तो किसे बुरी के पुजारियों को मालूम हो गया था । क्योंकि खबरें बडी तेजी से फैलती हैं और विशेष रूप से भूरी खबर है तो हो सकता है ब्राह्मणों द्वारा उस की बेज्जती करने का यह षड्यंत्र हूँ । पुष्ट थोडा लिया और टांडा वापस हो लिया । टांडा में बुक रूप से भरा हुआ था तो पुरानी हो तो उन्होंने मुझे बाहर फेक दिया तो कहते हैं कि मैं विधर्मी हो । मैं जिस चीज को छोडूंगा दूषित हो जाएगी । मैं हूँ जो हिन्दू और मुसलमान उन्होंने मुझे दो तीन नाम दे दिए हैं । फॅमिली नहीं रहा तो बल्कि ऍम किया हूँ तुम्हारी ने उसे सांत्वना देने की कोशिश नहीं सब से वो भी जो भी दी हो क्योंकि कालाचंद है । इससे चोट घायल हुए था । उसे इस बात का ध्यान भी नहीं था की बात बीस तक पहुंच सकती है । उसे पागलपन की हद तक प्यार कर रही थी । वो चाहती थी कि कालाचंद सुखी रहे । तुम्हारी ने कहा नहीं समझे ताकि वह सब भूल जाये । एक दो साल में सब ठीक हो जाएगा । उसने थके हुए स्वर में कहा हूँ तुम हमारे लोगों को कितना काम जानती हूँ । ब्राहमन बहुत खातक होते हैं । पत्थरों को गला सकती हूँ लेकिन पुजारियों के व्यवहार में परिवर्तन नहीं कर सकती । मैं सर्वोच्च जाती का सदस्य था । ऍम मेरी कोई जाती नहीं है । मैं मनी हूँ तुम्हारी ने अपनी हथेलियों से उसका मुंह बंद कर दिया । ऐसी बात नहीं कही । आप निरर्थक ही दीन बन रहे हैं । मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि आप ध्यान दे रखी है सब ठीक हो जाएगा । उसने अपना सिर हिलाया हूँ तो तुम्हारी को कैसे समझाएं कि आप कभी कुछ ठीक नहीं होगा । उसमें सुल्तान से भेंट की । सुल्तान ने सहानुभूतिपूर्वक कहा कहाँ हो मैंने तुम्हारी समस्या काॅन् लिया है । आगे जा मेरा अपमान किया गया । कुछ लज्जित किया गया और मेरे साथ गाली गलोच की गई । मैंने ऐसा अपमान कभी नहीं साहब, उनके व्यंग्यों ने मुझे चाबुक से लगाएगा । इसका इसका बदला लिया जाएगा । ऐसी साधारण की बात के लिए तुम बदला लोगे । कालेक्शन मैं जानता हूँ कि तुम चोट लगी है पर वक्त तुम्हारे खाओ भर देगा, ऐसा कभी नहीं होगा । लिहाजा मैं आपका एक अनुग्रह चाहता हूँ । कालाचंद हम बिना जाने वायदा करते हैं कि तुम जो चाहते हो देंगे । पर हम चाहते क्या हूँ? मैं तब मुसलमान होना चाहता हूँ, क्यों फॅार हुआ वो अपने दामाद को प्यार करता था और उसके लिए अब धर्म का कुछ ज्यादा नहीं था । अब धीरे धीरे इस देश को समझने लगा था और हिन्दू धर्म की अच्छाई अभी क्या होने लगी थी? अनिषा मेहरबानी करें, मैं मुसलमान बनूंगा । मुझे धर्म परिवर्तन में सहायता करेंगे । तुमने तुम्हारी की सलाह ले ली है । नहीं, मुझे हर बात में और अब की सलाह नहीं चाहिए । क्या आप मेरी मदद करेंगे? आनी चाहिए । कोई भी मुसलमान किसी भी व्यक्ति को कलमा पढवाकर मुसलमान बना सकता है । लेकिन मैं काजी अताउल्ला खान को बुलवा लेता हूँ । कैसे संतुष्ट हूँ । मैं मुसलमान बनना चाहता हूँ और मैं स्वेच्छा से ऐसा चाहता हूँ क्या? पर सब से परेशान है हूँ । एक तरह से मैं परेशान है । तुम्हारी शादी के बाद मैंने कभी इस विषय में नहीं सोचा था और अब जितना महत्वपूर्ण है भी नहीं । ऍम अब ये मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण बात है । ठीक है तुम्हारी इच्छा पूरी की जाएगी । काजी अताउल् लाख तेज था । वजीर भी मुसलमान सामंतों और दरबारियों के बीच काला चमका । धर्म परिवर्तन आरंभ हुआ । धर्म परिवर्तन की क्रिया बहुत साधारण जी नहीं । सबसे पहले कंचन का खतना किया गया । खून रुकने के बाद कालाचंद स्थान किया और उसके बाद वो काजी के सामने बैठा हूँ । उन दोनों के बीच पवित्र कुरान की प्रति रखी हुई थी । ऍम तो मुसलमान बनना चाहते हो । हालांकि हम लोग कर दिया था झेग हैं हम धीरे धीरे मेरे बात कल मैं की हर लव इसको मेरे साथ हो रहा हूँ । कालाचंद सहमती से लाया लाॅस अल्लाह मोहम्मद रसूलल्लाह वाला सन दो तीन बार कलमा बढा । इसके मायने हैं कि तुम विश्वास करते हो कि अल्लाह केवल एक है, उसके अलावा और कोई अल्लाह नहीं है और मोहम्मद उसके पैगंबर हैं । गाजी ने व्याख्या काला समय से हिलाया क्या तुम अपना नाम बदलना चाहते हो था? कोई खास नाम तो मैं पसंद है नहीं लेकिन अगर नाम बदलना ही है तो मैं चाहूंगा शिक्षण के लिए काला चंद्र और बोला हूँ मुझे मोहम्मद फर मूली कहा जाए । ठीक है अब तो मैं सिर्फ इसी नाम से जाना जाएगा । अब तुम नमाज पढना सीखो । मकता की और भूल कर के दिन में पांच बार नमाज पढो । पहली नवाज हम सुबह पढो । इससे फजर की नमाज कहते हैं । इसके बाद तुम चौहार असार, फिर मगरे और रात में ईशा की नमाज पढोगे । अब तुम एक मुसलमान हो । ऍम जिस कालीन पर बैठा था उस से उठा और उसने झुककर काजी को जमीन तब सलाम किया । इसके बाद वो सुल्तान की तरफ बडा और झुक करके उसने सुल्तान को भी सलाम किया । सुल्तान ने खडे हो कर सकता से लगाया तो मैंने अपने लिए बढिया नाम छाडा । मुझे विश्वास है तो मैं अच्छा मुसलमान साबित हो गई । सुल्तान ने कहा शुक्रिया आना जाना मुझे सिर्फ आपकी दुआओं की जरूरत है लेकिन जब उसकी मुलाकात तुम्हारी हुई तो कुछ फूट पडेगी । तुलानी ने कहा तो पागल है आपको धर्म परिवर्तन की क्या आवश्यकता भी तुम्हारी । मैं किसी का होना चाहता था । जब हिंदुओं ने मुझे अस्वीकार कर दिया तब मुसलमानों ने मुझे शरण दी और मेरा नैतिक समर्थन दिया । अब मैं किसी समाज का अंग हूँ । मेरे मालिक एक अच्छा मुसलमान बनना बहुत मुश्किल है । मैंने अभी धर्म परिवर्तन किया है मुझे सब सिद्ध करने के लिए । वक्त तो मेरे ख्याल से किसी समाज से संबंधित होने के बहाने के अलावा भी आप के धर्म परिवर्तन के पीछे कोई उद्देश्य है मेरे वाले वो क्या है? कुछ भी तो नहीं दुलारी ऍम ऐसी वैसी कल्पना कर रही हूँ मैं वाले मैं और और मेरी अंतरात्मा कह रही है कि इस धर्म परिवर्तन के पीछे कोई दुराग्रह सहु छुपा हुआ है । आप अपने सहकर्मियों से बदला लेना चाहते हैं तो बहुत अधिक समाज करती हूँ और इनमें से कुछ सवाल बेहुदा और फूहड हो सकते हैं । देखिए, आप रहस्यमय बनती जा रहे हैं तो आपकी पत्नी हूँ । मुझसे भी दुराव छिपाव करेंगे । बिना वजह परेशान कर रही है । बुला रही हूँ । अरे नया मुसलमान हूँ और मुझे हर हालत में अच्छा मुसलमान बनना चाहिए । मुझे नमाज और कुरान पढना सीखना चाहिए और इस काम में तो मेरी मदद करोगी । उसने कातर आंखों से कालाचंद की और ऍम मेरे मालिक में जरूर मदद करूँगी । पर पर मैं भयभीत हूं । बहादुरी ने कालाचंद के धर्म परिवर्तन की खबर सुनी । ज्ञानेंद्र नाथ दुख से पछाड खाने लगे । कराचम की पत्नी अच्छा पीटपीटकर विधवाओं की तरह मिलाप करने लगे । हिन्दू वाला देवी व्यक्ति और गेंद संभालकर काशी चली गई और वहाँ से वो कभी वापस नहीं लौटे । चंद्रादेवी चोट को सहना पाई । सारी गृहस्ती हो गई थी । काॅपी सीमा पर पहुंच गया था जहां से लौटा नहीं जा सकता और यही हालत इस साडी गृहस्ती की भी हो गई थी । ज्ञानेंद्र नाथ से कम हूँ । वो हमारे लिए मर चुका है । ऍम को देखने की बजाय मैं इस दिन को देखने की बजाय मर जाना चाहता था । वो अपने हाथों की तरफ देखकर कहने लगा नहीं पिछली खातों से उसे पाला पोसा और उसकी आंखें भराई । कंधे पाप जोर किशन बहुत हैं । ऍम भोपाली और पानी तौर पर उसकी बाहों में समा गयी । अगर आप मर गए तो हमारी देख रेख कौन करेगा? दादू हम सभी भी नहीं हो सकती क्योंकि वो जिन्दा है । हम उनके पास चाहती नहीं सकती क्योंकि इसका निश्चित है । नृत्य ज्ञानेन्द्र कराने उसने श्राप दिया हम ही नहीं पडने जी की वजह से हमारा पुत्र हमसे प्रमुख हुआ है । अच्छा उस जमा करे ईश्वर मैं भी अपने संप्रदाय से ना तोड दूंगा । उसने अब तक पहले में पडेगी जब को ट्वीट को एक झटका तोडकर भेज दिया हूँ फिर पछाड खाकर गिर पडा है ।
Producer
Sound Engineer
Voice Artist