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हूँ और हूँ हूँ हूँ कवित्व दो सौ अस्सी सद्गुरु की महिमा भारी है सारी दुनिया से तैयारी है काशी में जो कबीर चौरा है पंथ की मूलधारा हैं समता मूल्य एक साहेब कबीर जाने सब संसारी है रविदास दादू ओ तरिया सबने ही से कार्य है गंगा नदी में बहते जाते कोई न निकालन हार ही था साहेब कवीर अभय मतदाता कमाल अजीवित कर डायरी है मृतक जीवित क्या कमाली से खतरे की की बेटी प्यारी है हर्षित होकर से खतरे की ने बेटी दान देनदारी है लो ही को है । पत्नी कहते बडे बडे पंडित ज्ञान नहीं है लो ही में लपेट मिली थी तब वही लोई नामधारी हैं । सर्वानंद कहे सुन माता सबको हरा हम ये तिलक का लगाओ सर्वानंद का सर को चरण झुकाएं हैं । माता कहे सुनु सर्वानंद बात तो तुम्हारी न मानने है साहेब कबीर को हरा के आओ तब वहीं तिलक लगाते हैं आए थके हुए कबीरचौरा में अपनी प्यास बुझाएं हैं । लागी जोट शब्द की ऐसी कुल अभिमान ऑफिसर आए हैं मांस के व्यापारी थे सदना बकरा मुर्गी नित्त मारी है सत्संगति में जाकर सब वही हो गए शाह का हाल ही हैं लेके गंडासी सदना चल दिया कभी रोने धंदा बिगाडी हैं रात में पहुंचे साहेब को मारने आप ही हो गए घायल ही है दया वान ने रख देखा बहता निजी धोती पट्टी बांधी है सदना हुई ग्लानि मन में मन ही मन स्वच्छता आते हैं रो रो सदना कसाई कहते हम गुनाह बहुत कर आए हैं हम को अपनी शहर में रखो धंडा छोड सब आए हैं भारत देश पे शासनकर्ता सिकंदर लोदी अहंकारी है दर्शन से ही पाप मिटा सब तनमन सब दिया वर है भक्ति की महिमा है भारी जाने सकल संसारी है बावन कसनी लिया साहेब का से खतरे की गए हार ही है, जाए शिकायत माता लगाई भ्रमण का जी हरीश चाहते हैं वीर देव गुराह कर साहेब को मिलवाते हैं चूर चूर विमान हुआ सब क्षमा मांगने आते हैं शमा न करी हो साहेब कबीर तो नर नारी जल के मर जाते हैं तत्व जीवा सूखा वट ले घट की ये बहुत भारी है सूखी लकडी हरी भरी तीन फंसी संतों की भारी है कहने लगे कोई सन्तना जगह में डूब मारे चलो भाई है अंत समय जब साहेब पहुंचे दोनों खूब हर्ष आहते हैं चरण धोए चरणामृत डारे अंकुर निकशा भरी है गोरख जी की बात क्या कहीं रिद्धि सिद्धि में भारी है धरती में त्रिशूल को गाडी बेठे तापर आसन हमारी है साहेब कवीर ने सूत निकली दिया गगन में बहाई है तो ऊपर असन लाभ बैठे गोरख लज्जा भरी है हम्म सन्या से मुल्ला काजी झूठा न्योता दे आते हैं कवीर के घर में भंडारा रहा है कबीर के भेजे हम आए हैं सत्य कबीर का गूंजा नारा अंत सभी स्वच्छता आते हैं जो जो जय जय कार लगे हैं धम्मन मुल्ला घबराते हैं काम क्रोध हो कृष्णा कारण शांति कभी नहीं पाते हैं लाखों झुकती लगा के हारे अहंकार में मानते हैं आई काशी बिजली खान अपनी व्यथा सुनाते हैं लोग कहे जो मगहर मारेगा उनका थे का तब पाते हैं काशी छोड के मगहर जाते करनी को दर्शाते हैं पापी पडी है लाख चौरासी साथ से मुक्त हो जाते हैं राम रहीम का झगडा भारी दोनों जगह में बढाते हैं साहेब कबीर की महिमा भारी मूरख भेदना पाते हैं जो जन आते हैं गुरु शरण में अपनी बिगडी बनाते हैं हरीश कवीर जो गफलत नए हैं लख चौरासी जाते हैं सद्गुरु की महिमा भारी है सारी दुनिया से न्याय रही है
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