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कवित दो सौ तिहत्तर मेरे दोस्त मेरे जानी जी गए थे तो मुझे याद आता है बहुत तेरे जैसा जहाँ में न दूजा मिला जो मिला वो मुझे दे गया है तो कर याद आता है वो याराना से रहा देख कर के मुझे मुस्काना तेरा तेरे जैसा जहाँ में न दूजा कोई तेरे जैसा किसी तो न मेरी फिकर तो ही तो याद आता है जहाँ हूँ जिधर क्यों तू देख कर गया मुझको दर्द जीगर दुनिया की भीड में वो अकेला खडा लोगों की नजरों में बन गया बे कदर क्यों अकेला हरीश को तो छोड गया टाॅम तनहा ही रहता हूँ नहीं रे हम नजर मेरे दो है मेरे ऍम
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