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हूँ और गवित दो सौ सत्तर पद पाये कर बहुरा या एहतेराम मर्म नहीं पाया धनसंपदा संग्रह के कारण सत्य दया को बुलाया जज वकील नेता सिपाही बनकर जगह को सत्ता या पद पाए कर फोर आया रहते राम उमर मन नहीं पाया धम्मन पंडित मुल्ला काजी बनकर जगह भरमाया ए श्वर अल्लाह वाहेगुरु गोल्ड का झगडा जगह नहीं बढाया पद पा एक कर बहुरा या हृदय राम मर्म नहीं पाया जिनके लिए अपराध क्या वह हूँ उनसे ही दुख फिर पाया जैसी करनी वैसी भरनी साथ सी कहे हरीश पाया पद पाए कर बहुरा या रहते राम अमर नहीं पाया ।
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