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हूँ और हूँ कवित दो सौ उनसठ गोरे तलवाते काहे गुमान करें भाई माटी के दही या एक दिन मार्टी में मिली जाइए जब बने रुकवा पे फिर एला तू इधर लगाई टन टन के चलेला तो खूब तराई गोरे तनवा से कहे हो मान करे भाई जब नी तनवा नहीं नवाते नारी तराई सोने जईसन तनवा एक दिन खाक बन जाईए गोरी तनवा पे काहे गुमान करें भाई जब अपनी गाडी बंगलवा पे फूल अल फिरे भाई रूपया पर दवा के फिर एला तू रूप दिखाई गोरी धन्यवाद से काहे गुमान करे भाई जगिया लेखराज मांगी है तो हार लेखा भाई एक को बोल लिया न निखरी अखियां भरी आई गोरी तनवा हफ्ते का है गुमान करे भाई संघीय साथ ही न हो ये है की हूँ अंत सहारा ही वो वो नारी मुख्य मोडी तोहार नहीं नहीं हाँ बिस राई गोरी धन्यवाद से काहे गुमान करे भाई तहत हरीश कविता का सुना चित्र लाये गुरूदेव दया साधु संगति पार लगाई गोरी धन्यवाद पे काहे गुमान करे भाई माटी के देहिया एक दिन मार्टी में मिली जाये हूँ
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