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हूँ कवित्व दो सौ बयालीस नादान है वह दुनिया वाले जो भारत को ना समझ सके हमारी उदारता को हमारी कमजोरी समझ रहे थे हम तो सत्य दायां के पुजारी इसलिए वह दनवे थे भारत भूमि है वह भूमी जहाँ बुद्ध कबीर जायदा सोवे तो सोच रही हूँ तुलसी शेख फरीद बुल्लेशाह हुए गांधी भीम रविंद्र ओशो विवेकानंद से हर सके हरीश कभी सांसे हैं कहता अब तक न पहचान ऐसा के नादान है वह दुनिया वाले जो भारत को ना समझ सके
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