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हूँ कवित दो सौ चालीस बहुत हो चुका सफर नफरतों का क्या ओ ट्रेम की रह चलाएं वो जिसमें रोशन ये सारा जमाना आओ हम मिलकर ऐसी ज्योत जलाएं वो वही धर्म दीन जाती के झगडे ईद देवाली एक संघ में मनाई हो हर गली शहर में चर्चाएं हमारी जहां लोगों के दिलों में हो लाखों दुआएं जिस देश नहीं दिया जीवन हमारा उस देश पर सब कुछ लुटाते जाएँ करें सोवरन विवादत एक संघ बैठ कर हरीश मशाल ऐसी बनके जल जाए बहुत हो चुका सफर नफरतों का के आओ अब प्रेम की राहत चलाएं
Sound Engineer