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हूँ और कवित्व दो सौ बत्तीस जमाने की आदत है ओर को बुरा कहना ओरों को देते नसीहते आप बताएँ करना ऐसी सितम मगर दुनिया के संघ स्थिर नहीं है रहना अपनी तो राहे मंजिल हैं खुद ही मैं खोई रहना मूड करके झूठी दुनिया के संग हम को नहीं है चलना अपनी भी तो आदत है आगे ही चलते रहना हम तो है वह खेवैया हाँ ना आधारों के संग बहना खेल कर के उल्टी नहीं हाँ किनारो पे पहुंचना अब है अखंडित पद पाया नहीं इससे है उतरना हरीश कभी है साथ साथ तो झूठों से क्या है डरना जमाने की आदत है ओर को बुरा कहना और को देते नसीहते आप खाताें करना ।
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