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कथित दो सौ अठारह अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे वारों से सृष्टि एक है धरती एक है पवन एक है पानी सूर्या एक है चन्द्रे कहे कुदृष्टि है हजारों से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धन देवारों से एक मानव ने कर्म बनाया कर्म से क्या क्यों जाती मानो ही भाषा का रचयिता भाषा रखा बहुत भाती से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धन देवारों से एक ही बचा हार्ड मान मुत रहे एक ही रह से आते क्या अलग है तुमसे अलग क्या जमाने से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे वाहनों से रूप भाषा से अलग कर दिया अलग कर दिया पार्टी से हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई बहुत जय नहीं रविदासी जब को अलग करने के फेर में खुद से अलग हुआ पापों से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे वारों से धर्म से नीचे हूँ से हैं होते नीति क्या क्योंकि जाती से हरी कभी विचार हैं कहता ये जग के अपराधी से अपनी शिकायत बस इतनी है धर्म के धंधे बारह से
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