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वो तो दो सौ तीन मुझे लोग कहते हैं पागल दीवाना ये सच है कि यार हूँ मैं हूँ मस्तान मेरे दी जाने पन से ये खफा है जमाना वजह एक है वो न बन सके परवाना मैं चलता था चलता हूँ चलता रहूंगा अंधेरो में दीपक बनकर चलते हैं जाना मेरी राहे मंजिल हैं निज बेखुदी मिटाना भुलाकर जमाने को है खुद में डूब जाना हरीश क्या करें तो ये जगह वालों से के हैं जिनकी फितरत मिलकर पिछड जाना मुझे लोग रहते हैं पागल दीवाना ये सच है कि यार ओ मैं मस्त
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