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हूँ और हूँ कवित्व एक सौ नवासी हूँ नजर ऐसी लगाऊ जो सकते मेहरबान हो होते भावना हर दिल का कदर दान हो न हो देरी मित्र सभी पे करोड वान हो ज्ञान पैरा सील संतोष की खान हो नजर ऐसी लाओ जो सकते हो नहीं ईश्वर अल्लाह न राम रहमान हो नहीं अच्छा अतुर नाती नादान हो नजर ऐसी लाओ जो सबसे मेहरवान हो । न ऊँच नीच जात पात हो न काजी न पंडित नव हम्म ना खान वो नजर ऐसी लाओ जो सबसे मेहरवान हो एक ही धरती और एक कृषि या सामान वो हरीश अब कभी अखंडता का पूरा ज्ञान हो नजर ऐसी लाओ जो सबके मेहरबान हो न हो रही भावना हर दिल का कदर हो
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