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कवित एक सौ छियासी का ही तो बुलाया स्थिरता माया की नगरिया में कुछ नहीं मिलेगा तुम को भ्रम की बज रही है हमें न गुरु भक्ति ना संत की सेवा दाग लगावे कहे बाली उमरिया में कुछ न मिलेगा तो जो को भ्रम की बचत लिया मैं अब भी समय से तो मन मूरख नहीं तो होगी पेशी रोएगा यम की डर वरिया में कुछ न मिलेगा तो को धमकी पचारिया में हरीश कभी तज मोहमाया ये जगह की मिलेगा ठिकाना तुझको साहेब की डर वरिया में कुछ न मिलेगा तुझको भ्रम की बजट दिया मैं कहाँ है तू भुला या फिरता माया की मैं प्रिया में
Sound Engineer