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कवित्व एक सौ सतहत्तर जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो जिसको संग लेकर है जाना उससे ही को गवाह रहे हो गाडी बंगले सोहरत हैं ये किस लिए कमा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो मासूमों के मिलते छुरी तुम किस लिए चला रहे हो चोरी बेईमानी से तुम कितनों के दिल दुखा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरह ले जा रहे हो निर्बलों को इतना तुम किस लिए सत्तर रहे हो अपने ही जुल्मों सितम से खुद को ही मिटा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो नफरतें ये दुनिया में तुम किस लिए बढा रहे हो हरीश कभी शांति को ना एक पल की तुम पा रहे हो जिंदगी को दोस्तों तुम किस तरफ ले जा रहे हो
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