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हूँ और कवित एक सौ चौवन हूँ हम है उस मगहर के वासी जहाँ साहेब कवीर आए छोड काशी सूखा पडा था जहाँ अन्य ना जाल था दुखित हो फिरते थे हर नर नारी शाह थी भूमी यहाँ की हर मन में भी रहती हीरो तासी गदहे का मेला होगी जगह मैं हँसी बिजली खाने जा के साहेब को व्यथा सुनाई साहेब कबीर ने आशीष दिया मुस्काई बिजली खाने कहाँ अति हरषाई साहेब कृपा तुम्हारी तो हर दुःख नसाई जब साहेब ने कहा सब को बुलाई हम चले मगहर काशी बिस राई तब व्यासम् मिथिला के ये वो ले हाई कवीर ये तुम क्या बोले आती सारी दुनिया मुक्ति पाने काशी तो तुम कहाँ चले कवीर मगहर हो उदासी तब कहाँ साहेब ने व्यास सुनु मिथिलावासी तुम किस भ्रम नहीं बडे हो यहाँ काशी जो तुम हो साथ से मिथला के वासी तो तुम भी तो जो और अपना मगहर के पासी तब से कवीर सौरभ धाम है मगहर करी शक कविता का काहे मगहर के वासी हम है उस मगहर के वासी जहाँ साहेब कबीर आई छोड काशी हूँ
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