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हूँ कवित एक सौ सैंतालीस राहम दिल में मुसलमान कहाँ बे जब मैं रहमान का नाम हंसा वे र हमने की कर दरिया वहाँ वे अदीश की बात साथ ही नजर न आवे जब वो खुदा है कायनात का मालिक बताओ कुर्बानी क्यों और से करा है रहम न दिल ने मुसलमान कहाँ है जब चाहे कुर्वानी वो लेते जब दिल चाहे वो जिसको जिला वे रहम न दिल में मुसलमान कहा ईद है अल्लाह का जो सबसे मिला वे इब्लीस बिस्मिल खून खराबे रहम ना दिल ने मुसलमान कहाँ है जिंदगी देवे सौ फरिश्ता कहाँ वे जिसमें हैवानियत वो शैतान कहाँ पे रहम न दिल में मुसलमान कहाँ है क्या हज जाए के हाजी कहाँ पे जब दिल में बदलाव हरीश नजर न आवे रहम न दिल में मुसलमान कहाँ जगह मैं रहमान का ना महासागर एंड
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