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कवित एक सौ दयाली मैं तो साहेब कवीर निस् गांव होगा । सारी दुविधा मन की मिटा आऊंगा । सर्जिकल जगह की बहन भावना आप ही में रम जाऊंगा । काम क्रोध मद लोग चोर है । अहंकार को माँ भगा आऊंगा मैं तो साहेब कभी नित्त गांव दूंगा । सत्र संगत की पकड डगरिया रागदेश बिसरा आऊंगा जो पापों की गठरी होली यही दिख राउंड दूंगा मैं तो साहेब कभी रणनीति गाऊंगा । मानुष तन मूल मिला है बेयर ठंड गवा हूँगा हरीश कवि गोपाल दया से आवाज गवन नशा आऊंगा मैं तो साहेब कवीर निपटा गांव का सारी तो था, मन की मिट आऊंगा ।
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