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सवित एक सौ पैंतीस सच्चाई से हर पहले ही भाग्य है दुनिया स्मृद्धि जैसे ना लेना चाहते है ये दुनिया झूठ हो के संघ लेते ही जहाँ पे हैं दुनिया हूँ चतुराई से धन कमाते हैं दुनिया सच्चाई से हर पल ही भाग्य है दुनिया हैल्लो रूप कपट से दिल दुखा हुए हैं दुनिया के स्वार्थ बस नहीं है लगाते हैं दुनिया सच्चाई से हर पल ही भाग्य हैं दुनिया हरीश एक कविता का न झूठन संघ में जाऊँ जान मोह माया मैं अरुण झा हैं दुनिया सच्चाई से हर पहले ही भाग्य है दुनिया
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