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हूँ कवित एक सौ उन्नतीस ऐसे पैसे की होड लगी है जब वो कोई बनाडा को कोई बन बैठा जो प्रेम भाव की किरण ना दिखे किसी ओर मतलब ये है जमाना न करें कोई गोर पैसे पैसे की होड लगी है चाहूँ किसी के दिल में यार ऊँ नरहन दया सभी को ठग रहा है सभी के दिल का जोर पैसे पैसे की होड लकी है चहूं राजनेता सिपाही जज, वकील घूसखोर भ्रष्टाचार का अंधेरा है खेला जहूर ऐसे पैसे की वोड लगी है चाहूँ हर किसी की निगाहें हैं पराई वस्तु की ओर पर धन परनारी हरने का है के हिस्सा ये दो पैसे पैसे की होड लगी है जब वो सीधे साठ बच्चों का कहीं पे गुजारा नहीं पदाधिकारियों का है पूरा बलजोर पैसे पैसे की होड लगी है जहाँ वो कहता हरीश कविता का है ज्ञान की अंजोर मान होता है बिखरी जी थे जब वो पैसे पैसे की होड लगी है जब वो
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