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हूँ हूँ कवित्त एक सौ सौ बीस एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जगह का मेला सबसे प्रेम की हर पल जो करता था बातें हर एक दिल में वह करता था खेला एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जगह का मिला जिसके नाम की चर्चाएँ होती थी हर गली गली में, सब में रहकर भी वो सबसे रहता था केला एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जल्द का मिला जिसकी मस्ती में सब होकर फिरते थे दीवालें पर हरीश दुनिया वालों से करता था अलग खेला एक ऐसा जोगी अलबेला जो छोड चला जगह का मिला पूरा
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