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हूँ कवित्व एक सौ अठारह छोडा भाई छोडी दा हो पर आई धन के आशा नहीं तो एक दिन बनी गई हैं तो हर एक घर के भाषा पर धन कारण कई लन महाभारत के पासा सिकंदर अंग्रेजन से बड बड खाली गए लंदन हाथ था छोडा भाई छोडी दा हूँ बराए धन की आशा नेता सिपाही जज वकील के कारण देखा भारत देश हवा के इज्जत तिया लुटाता छोडा भाई छोडी हूँ पर आई धन के आशा अब देखो ना पाकिस्तान के कुछ हूँ बुझाता देखा देखी भारत के सुखवा जरी जरी बताता छोडा भाई छोडी दा हो पर आए धन के आशा कहते हरी शक भी सांसद दिल की बात वोट कर मावा के कारण पडेला काल के फंसा छोडा भाई छोडी दा हो पर आई धन के आशा तो
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