Made with in India
हूँ कवित चौराहा नहीं ज्योत जलाऊं आग की तो बार बार मुझे जाता है गुरु ज्ञान की जोत जली है काल बुझा नहीं पाता है मान मक्का दिल द्वारिका बनी है का या काशी बनाया है गुरु ज्ञान की जोत जली है सब अंधियारा मिटाया है काम क्रोध लोग वो अहंकार को मिटाया है जो तो चलाऊं आग की तो बार बार बच जाता है गुरु गोपाल दया के सागर आवा गमन नशा आया है जब चाहूँ तब खोलो दरवाजा हरीदर्शन मिल जाता है लिखी लिखाई बात कहूँ ना आज मैं अनुभव कहता हूँ जोत जलाऊं आग की तो बार बार मुझे जाता हूँ गंगा यमुना मिलने सरस्वती दो नए नौ बीस शून्य महल है वहीं पर हरीश खूब नहीं हूँ मन की मैं भूल जाता है ज्योत जलाऊं आग की तो बार बार कुछ चाहता है हूँ
Sound Engineer