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अजित नाम गुले गुलजार ये कवीर के दो फूल खेले हैं इससे बिखर ने न देना जो आपस में मिले हैं जान एकता के यही से जहाँ को संदेश मिले हैं ये धरती जैसी है कहाँ धरती कहीं पे ताज तो कहीं से लाल किले हैं चाहे पूजा करो या करो इबादत यहाँ पर दूर होते हर एक जिले हैं मगहर जैसी मैं सिल न है कहीं की महफिल महफिलें तो लगती हरीश हरेक फॅमिली है गुले गुलजार ये कबीर के दो फूल खिले हैं ।
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