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हूँ कवित तेरासी छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा यही जगत की आस जो करी हो तो बडी हो काल के फांसा अब भी सोच विचार करो मन चित्त चेत के डारो पासा छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा चौरासी में जाके रामी हूँ माया के बंदा सा पांच विषय की जाल बिछाए सब ही जीत करे ग्रासा छोड जगत कि आसान मेरे मन छोड जगत कि या शाम माँ पिता सुन तो कुटुंब कबीला सब स्वार्थ के नाता बिना भजन कोई काम मन आई हैं मानो हमारी बातें छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा करसत संघ गुरु की दया से मिट जाए कृष्णा त्रासा हरीश कभी विचार के देखो कटी हैं कर्म के फांसा छोड जगत कि आशा मेरे मन छोड जगत कि आशा
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