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हूँ कवित्व अस्सी प्रेम नगर या जाना है साहेब मगन हो जाना है तजकर लोग इलाज मर्यादा भक्ति अब है पद पाना है जाति पाति ऊंच नीच का भेद ये दिल से हटाना है प्रेम नगर या जाना है साढे मगन हो जाना है काम क्रोध, लोभ, मोह अहंकार को मिटाना है मान बडाई राग द्वेष, शेरशाह को तजकर जाना है प्रेम नगर या जाना है साहेब मगन हो जाना है हिन्दू मुस्लिम सिख, ईसाई सब नी झगडा ठाना है तजकर यारो, बेर, भावना, समता भाव जगाना है प्रेम नगर या जाना है साहेब मगन हो जाना है । सत्य दया और आत्म पूजा से बढकर नहीं खा जाना है । हरीश एक कवी सद्गुरु की दया से आवाज गवन मिटाना है ब्रेन नगर या जाना है साहे मदन हो जाना है हाँ,
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