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कवित सत्तर साहे कबीर सवरियां मेरे मेरी सूरत कहीं सिवा तेरे जगह मैं रिश्ते हैं न से घनेरे मेरा कोई भयानक सिवा आते थे वो टी जन्म से भटकते आए भैया ज्ञान ना है मेरे साहे कवीर सवरियां मेरे मेरी सूरत कहीं न सिवा तेरे काम क्रोध लोग वो घेरे अहम का दुख देवे घनेरे कहने को सब कहीं हम तेरे हम ने देखा सब स्वास्थ्य के फेरे साहे कवीर सवरियां मेरे मेरी सूरत नहीं सेवा दे रहे मन में उठे तृष्णाएं घनेरे जिसकारण खाये चौरासी तेरे रागद्वेष शेरशाह मन मेरे तब वहीं आए हम शरण में तेरे साहे कवीर सवरियां मेरे मेरी सूरत कहीं सेवा तेरे मन हर पल विषयों के फेरे कभी ध्यान में करण चाहे तेरे अब हरीश कभी न तुमको छोडे जगमाता याद साढे छोटे घनेरे साहेब कवीर सफर या मेरे मेरी सूरत कहीं सेवा तेरे
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