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हूँ कवित पैसठ कैसे भावों में तो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर मैं सब है खोते काम ना छोटे क्रुद्ध ना छोटे लोग मोह मिल लूटे अहंकार में हर्बल माते निजीकृत इच्छा नए नए फूटते कैसे भाऊ में तो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर्म सब है खोते हर विषयों के बंधन में बंधे हैं क्यों कि बुद्धि के हैं बडे छोटे बहुत ही रिश्ते नाते बनाए सब अंत समय में छोटे कैसे भाऊ में तो ही सब गुरु जी जब मेरे कर मैं सब हैं खोते अब भी ये मान हर नाम आने खाई माया के बडे जोते जन्म जन्म से भरमाते आई एम राजाथ के दो ते कैसे भाव में दो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर्म सब है खोते बहुत लोग मिले यही जगह में पर सब निकले झूठे हरीश कवि अब तुम को ना छोडे चाहे मोहमाया झगडा छूटे कैसे भाऊ में तो ही सद्गुरु जी जब मेरे कर्म सब हैं खोते
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