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हूँ कवित्त बयालीस कैसे इनको समझाओं में सम सेना मुर्ख नाडी है निकले थे भक्ति करने को क्या कर रहे अनाडी है निजी आतंक का भेद न जाने चलते अगर छाडि है कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी है माया देख वो राई गए हैं बन बैठे दुराचारी है होगी बन के जगह मैं फिरते कुकर्मी बडे भारी है कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी है कहने को तो हरिभक्त है अरे भक्ति नहीं जान रहे हैं सात से संतों का नाम डुबाते ये तो विषय विकारी है कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी है धनसंपत्ति लोग के कारण गोली बंदूक चलाते हैं ग्राम क्रोध की अग्नि में जलते आत्मशांति न पाते हैं कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी हैं उदय अस्त तक ॅ जिनकी सोजन मुझको भागते हैं हरीश कभी मैं साथ हूँ कहता आवाज गवर्नस आते हैं कैसे इनको समझा हूँ मैं समझे ना मुर्ख अनाडी
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