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हूँ और कवित छब्बीस जागी है रे जागी है सोई सुरत या जागी है पांच विषय को छोडी साहेब दक्षिण में लागी जागी हैरी जागी है सोई सूरत या जागी है छोड के जगह की माननी बढाई आप ही में हर शांति है पांच विषय से जो है न्यारा उस सही ओर भागी है जागी है रे जागी है सोई सूरत या जागी है काम क्रोध लोग मुंह रु अहंकार भी त्यागी है सच चक्करों को भेद के देखो मेरूदंड चढ जाती है जागी है रे जागी है सोई सूरत या जागी है इंग्लैंड से देखो पिंगला मिलाई सहस्त्र में जाती है ये आनंद ना तीन लोग में संत सभी दर्शाते हैं जागी है तो इच्छा जागी है सोई सूरत या जागी है गुरु दया बिन भेद में लेना जानने सकल ओसामाजी है समझाए से समझे दुनिया विषय भोग में मानती है जागी है रे जागी है तो सोई सूरत या जागी है मानुश मूल मिला है फिर भी न कभी मिल पाती है हरीश कभी मैं सांस हूँ कहता बडे जतन से चाहती है जागी है रे जागी है सोई सुरत दिया जागी है हूँ
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