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हूँ और कवित चौबीस मेरे मन सोच समझ ले मोरक् क्यों तो फिरता गली गली ये दुनिया से प्रीत न करना हर पल रहती जली जली स्वार्थ में सब संगी साथी अवसर पर रहते तली टली मेरे मन सोच समझ ले मोरक् क्यों तो फिर गली के लिए बाहर से दो ज्ञानी बनता भीतर मैं ले है भरी भरी पांच विषय की धारा है बहती सबकी हरेक फॅमिली मेरे मन सोच समझ ली मोरक् क्यों तो फिरता गली गली अब भी समय है चेत्र मेरे मन अंत सभी बिसरी बिसरि रीश कभी भवपार सो उतरा जिनकी गुरु से बनी बनी नहीं रेमंड सोच समझ ले मूरख क्यों तो फिरता गाली ली
Sound Engineer