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हूँ और कवित तेरह बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं है । मिलता ढूंढे जिसे तो बंदे को तेरे ही दिल में रहता हूँ मैं ही नहीं हूँ कहता सम सकीर कहते ढूंढ ले अपने दिल में दिल में ही सबको मिलता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं है मिलता मंदिर और मस्जिदों में जाकर के हमने देखा जो भेड चाहिए था उनसे नहीं है मिलता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं है मिलता पत्थर की मूर्ति पूजे जिसमें नजीव रहता मूर्ति जो जीती जागती उसको न पूजे कोई बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता रहम दया है कहते रहम दया न दिल में सर काटकर गिराव में कैसा दया क्या है बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता मुर्दे को जाके पूछे जीवित को है सताते बे धर्मियों ने ऐसा धंधा बना लिया है बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता नफरत की आंधियों में ये सारा जग घिरा है रे मोर भाव दिल नहीं न किसी के दिखता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता सद्गुरु कबीर ने कहा वह बात सब सही है कुकर्मियों ने जंग को गन्दा बनाओ के रखता है बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता हरीश कभी है कहता सुन लो तुम मेरे बंधु गुरु ज्ञान वो पारस है पारस बना के रहता बेजान मूर्तियों में कुछ भी नहीं मिलता हाँ,
Sound Engineer