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कविता के आस पास तुम भी ले लेते थोडी सी वाहिनी जैसा आपने कितने चाहते तुम्हारी पसंद पूछी थी । अनवर की रसोई में से ड्रिंक लेकर जाते ही कविता बोली चाचा जी के सामने पीकर मैं उन्हें अनकम्फर्टेबल नहीं करना चाहती । मुश्किल से तो वह मेरे घर आए हैं । मैंने जवाब दिया सामने ना भी हो क्या चक्कर पी लो, मैं ऐसा नहीं किया कर दी । ॅ मेरे मुझे थोडा सख्त लहजे में निकल गया । एक पल मैं भूली गई की वो मेरी गैस थी लेकिन मैंने तुरंत ही अपने आवास पर नियंत्रण कर लिया और हॉस्टल वाले लहजे में पूछा तो अगले डालो ना बाबा मरना है तो बोली मुझे उसका ये जवाब चुनाव रात उसने बडे चाव से पी थी । मैंने उसके साथ का आनंद उठाया था । कल रात कवि सम्मेलन और डिनर के पश्चात कविता मेरे साथ ही मेरे घर आ गई थी । मेरे कहने के बगैर ही मुझे सच में बहुत अच्छा लगा था । मैंने तो चाचा जी से भी कहा था घर आने के लिए पर बोले मुझे मिलने की खातिर यहाँ दूसरे शहरों से बहुत सारे लेखक मित्र आये हुए हैं । मैं नहीं जाता हूँ और फिर हम मिल तो लिए ही हैं । चलो मैं चलती हूँ तुम्हारे साथ । डॉक्टर साहब तो बीजी आदमी है । कविता बोली थी । शायद उसने कभी चाचा जी के जवाब के साथ मेरे मुरझा गए चेहरे को पढ लिया था । उसने कुछ ही घंटों के साथ के दौरान निकटता बना ली थी । प्रोग्राम के दौरान सारे समय मेरे पास ही बैठी रही थी । घर पहुंचते ही कविता का बेच जग और अपना तो भरा व्यवहार । मुझे और भी अधिक अच्छा लगा था मैंने तो यूँही पूछा था क्या होगी चाय कॉफी वाइन क्या कुछ और कविता रे हंस कर जवाब दिया वाइन तो तुमने इस तरह पूछा है जैसे मैं कैनेडियन हूँ । सारे स्तर पूछने की आदत पडी हुई है । जब भी फ्रेंड्स करती हैं लोग सारी वाली कौन सी बात है । मैं भी फ्रेंड हूँ । चलो अजवाइन पीते हैं । शरीफ हैरान मत हो हम उम्र में सब चलता है और फिर हम वाॅक पर चली गई । वहां पहुंचकर कविता ने हवा में बाहें फैलाकर चारों तरफ देखते हुए कहा कि अगर तुम तो स्वर्ग में रहती हूँ । ऐसे सीन तो फिल्मों में देखे तो या फिर सपनों में? चंद चंद नहीं, समंदर का किनारा चांद की चांदनी को अपनी बाहों में भरने की कोशिश कर रही कविता मुझे भी उसी तरह ही लगी जैसे चाचा जी ने कहा था और फिर उच्चतम की और मूंग करके बैठ गई । मैं उसकी तरफ देखती रही । मुझे लगा कि वह कविता सोच रही होगी । कुछ देर बाद वो बोली ऐसा ही महान होता है । मेरे सपनों का मेरे सपनों कर रहा जाकर मुझे बाहों में भर लेता है । माहौल तो सचमुच का है और कल भाई साहब को भी यहाँ बुलाने के लिए अप्लाई कर देते हैं । मैं घर वाले की बात नहीं कर रही, सपनों के राजा की कर रही हूँ । मुझे लगता है कि कविता ने मेरे मजाक का जवाब उसी लहजे में दिया है । मैं हंस पडी तो वो नहीं, ऐसी मैंने चुप तोडने के लिए कहा । मेरे सपनों का राजकुमार तो अनुभव था और उसी को सच बना लिया । सभी तुम्हारे जैसी किस्मत वाले तो नहीं होते तो बोली किस्मत का तो पता नहीं पर हिम्मत जरूर कि पेरेंट्स की इच्छा के विरूद्ध जाकर विवाह करवाया है । पेरेंट्स के साथ तो व्यक्ति निपट लेता है तो समाज के साथ कैसे लडे । यहाँ बाद दूसरी है इंडिया में और तरह का समाज है । यहाँ तो पंजाबी समाज भी जालंधर मोगे से अलग नहीं । माता पिता यहाँ भी धर्मों जातियों की डिफरेंस की बात करके बच्चों को अपनी पसंद का लाइफ पार्टनर चुनने से रोकते हैं । अनवर हमारे साथ पडता था । यूनिवर्सिटी में पढते हुए ही हम एक दूसरे के करीब आए । हम दोनों में बहुत सारी बातें कॉमन है । बॅास था मुझे अगर मुसलमान के साथ विभाग करवाना है तो समझ ले हमारे लिए मर गई । लेकिन मैं नहीं झुकी तो यहाँ से टोरंटो मूव कर गए । कहते थे न हमें कहीं का नहीं छोडा और ऍम वो भी बहुत खुश नहीं थे । पर वो कभी कभी आ जाते हैं तो हमारे माता पिता भी किसी दिन आने लग पडेंगे । कविता बोली हो मैंने कहा जिस उम्र में तुम ने हिम्मत दिखाई उस उम्र में मेरी हिम्मत ना पडी और अब जब अहमद पडी है तो तलाश में भटक रही हूँ । मुझे लगा जैसे कविता की आवाज बहुत दूर से आ रही हो । कवि सम्मेलन में भी जो कविता उसने पडी थी वो भी भटकन और तलाश की ही कोई बात कहती थी । पूरी तरह तो मेरी समझ में नहीं आई पर कुछ इस तरह था सपनों में निरा राजकुमार आए । जब खुले तो कोई दूसरा हो । दया, सहानुभूति और प्रेम का कुछ मिला जुला भाव मेरे अंदर उसके प्रति पैदा हुआ था । कल रात जब हम सडक पर बैठी चांद की चांदनी का आनंद उठा रही थी और अब उसके छिपकर पीने वाले वाक्य नहीं उस भाव को खींच में बदल दिया था । मैंने उसको वाइन लेने के लिए दोबारा नहीं कहा और चीज काटने लगी । अनवर फिर किचन में आकर बोला, दीप घुस साॅस, ये मैं कर देता हूँ और वह कटी हुई चीज और सोशल के पीस प्लेट में रखने लगा । मैंने दृष्टि खाने पर डाली । जितना मुझे याद था उसके अनुसार मैंने कभी चाचा जी की पसंद का भोजन तैयार किया था । रोटिया में बहुत कम पकाती हूँ । अब कभी चाचा जी आए थे पिछले मैंने पकालीन सोचा कि चाचा जी शायद दूसरी किस्म का खाना पसंद ना करें । रोटियाँ बनाते हुए मेरे मन में ख्याल आया था की इसमें रोटियाँ ना पकाती तो चाचा जी शायद खाने की और देखकर मजाक करते हैं कि मैं कैनेडियन बन गई हूँ तो उसी तरह अपने खातों में पूछा करते हैं मेरी बेटी अभी भी पंजाबी है कि कैनेडियन बन गई । ये बात तो तब से लिखने लगे थे जब उनके खत के जवाब में मैं फोन पर चाचा जी पर बहुत गुस्सा हुई थी । उस खत्म चाचा जी ने मेरे बडे भाई को इंडिया आकर विवाह करवाने के लिए आमंत्रण देते हुए लिखा था कि कनाडा में मतलब जाना वहाँ की लडकियां बहुत खुली होती है । यहाँ से शुद्ध लडकी खोज कर देंगे । खत पढकर मुझे लगा था जिसे कभी चर्चा जी ने मुझे गाली बकि हो । मैंने क्रोध में आकर चाचा जी को फोन मिला दिया और कहा चाचा जी अगर कनाडा की लडकियाँ होती हैं तो आपकी बेटी भी अशुभ हुई फिर पहले तो वो मेरी बात ही ना समझे । जब मैंने उन्हें उनके खत के बारे में बताया तो बोले बेटी बहुत बोलने लग पडी है ऍम कहाँ से बन गई । अभी दो साल तो तुझे हुए गए हुए हैं । वो तो मेरे पंजाबी की जन्मी बेटी है । उसके बाद वो हर खत में मजाक के साथ लिखते कि कहीं पंजाब की भी ऍम तो नहीं बन गई । उनके खातों में तरह तरह के मजाक होते हैं । मैं कभी चाचा जी के खत्म वैसे ही चाव से पडती है जैसे उनकी कविताएं । उन दिनों उन्होंने अपनी दो किताबें करीब एक साल के अंतर पर भेजी थी । मैं उनकी कई पंक्तियां गुनगुनाती रहती विशेष करता हूँ । जब मन मार के साथ निकटता हुई थी । अनुभव फिर बोला, गोदी ॅ मैंने अपने और कविता के लिए जूस डाला और चाचा जी के पास चली गयी । लगता ही नहीं था कि वो हर वक्त मजाक करने वाली कभी चाचा जी थे । डॉक्टर साहब कितनी रमणीय जगह पर मकान लिया है । दीप ने कविता बोली हाँ आ गई । बहुत मनमोहन जगह है । चाचा जी ने कहा थैंक्यू आप ही रहूँ । तब तक बैंगलोर में है । यहीं बैठकर कविता लिख हो । मैंने कहा अच्छा जी किंचित मुस्कराये फिर बोल पडे तो कविता पडा करती है छोड दिया चाहिए । अब मैं कविता जीती हूँ । मेरे मुझे अनजाने ही निकल गया । मैंने अपने आप से फायदा क्या था कि चाचा जी के साथ कोई भी गिले शिकवे वाली बात नहीं करूंगी । पर ये खुद ब खुद ही मैं कह बैठी थी । चाचा जी चुप हो गए । कविता बोली ऍम दीप कविता वाली भाषा में बात कर रही है । चाचा जी थोडा सा मुस्कराया और खामोश रहे । अनवर सौं वाली प्लेट लेकर आ गया था । उस ने जब मेरे चाचा जी के आगे की तो वो बोले, भाई मुझे तो पंजाबी खाने के अलावा और कुछ अच्छा ही नहीं लगता । ट्राय कर लीजिए । अगर अच्छा लगे तो छोड दीजिए गा मैंने कहा लेकिन उन्होंने ट्राई भी नहीं किया और सर हिला दिया । चुप्पी फिर बन गई । चुप्पी तोडने के लिए मैंने सोचा की मैं चाची का हाल चाल पूछ लो । मगर वो तो पहले ही चार बार पूछ चुकी थी । समझ में नहीं आया क्या बात करूँ । चाचा जी किसी भी बात को आगे बढाने का सिरा ही नहीं थमा रहे थे । चाचा जी तो बातों की लडकी ही नहीं टूटने दिया करते थे । इसीलिए तो डैडी उन बातों नहीं कहा करते थे । माहौल देखकर मुझे लगा इस तरह चुप बैठे रहना बहुत देर तक नहीं चलेगा । मैं सोचा कि दोनों सब्जियों को थोडी ही देख कर ही लेता हूँ । जब संकेत मिलेगा तो खाना लिया होंगी । मेरे किचन में जाते ही अनवर फिर से ड्रिंक लेने आ गया । आते ही बुला हाॅस्पीटल पाँच दस ही जी हां न बस इतना ही कह पाई । मुझे महसूस हुआ कि चाचा जी अभी तक नाराज ही हैं, फिर नहीं आती । मैंने सोचा मुझे लगा की कविता जबरन लेकर आ गई होगी । सुबह जब मैं कविता को छोडने गई थी तो कार में से उतरकर गले मिलते हुए बोली तुम्हारे पैरेंट्स के बारे में तो नहीं कर सकती, पर डॉक्टर साहब को तुम्हारे घर जरूर लेकर आउंगी । पोस्ट मत करना । यदि उनकी इच्छा हुई तो जब चाहे प्रोग्राम बना लेना । मैंने कहा फोन करूंगी । मैं कहकर वो चली गई थी और फोन करके आज रात के खाने का ही प्रोग्राम बना लिया था । मुझे लगता नहीं था कि चाचा जी घर आएंगे । उन्होंने तभी जवाब दे दिया था जब इमिग्रेशन के ऑफिस में मिले थे सरीर इमिग्रेशन सर्विसेस के ऑफिस में कभी चाचा जी को देख कर मैं अवाक ही रह गई थी । पहले खयाल आया कि कोई और होगा । छात्र जी को इतने सालों से देखा भी नहीं था । लेकिन मैं ख्यालों में उलझी रही और केबिन में से निकलकर चाचा जी के सामने खडी हुई । ये भी नहीं सोचा कि चाचा जी पहचानने से इनकार भी कर सकते थे । चाचा जी, आप कोई काम बहुत चुपके से रह गए । फिर धीरे ईश्वर में बोलेगा, जी आप कब आएगा? चाची जी का भी आई हैं । मैंने हैरानी में कई सारे प्रश्न एक साथ पूछ लीजिए । काली आए थे, अकेला ही आया हूँ । कुछ लेखक मित्रों के साथ यहाँ कॉन्फ्रेंस होनी है तो या कैसे तो एक टीचर नहीं बन गई थी । टीचर हो जाएगा जी अगले महीने से स्कूल बंद होने वाले हैं । सोचा कि जुलाई अगस्त का महीना इंडिया में बताएं । सर, इमिग्रेशन वालों ने जलंधर में नैनी स्कूल खोला है । वहीं पढाने जाने का विचार है । आप बताओ चाची का क्या हाल चाल है । चलो घर चले नहीं, इतना टाइम नहीं है क्या? थोडे दिन ही है । कल से काॅफी हो जाऊंगा । इसीलिए आज यहाँ आए हैं । सोचा कि पहले पहले काम निपटा लें । चाचा जी बोले और फिर उन्होंने साथ खडी लडकी की ओर इशारा करते हुए कहा ये मेरी अजीजा है । कविता बहुत सुंदर लगती है । इन की बेटी को जालंधर वाले नहीं, स्कूल में एडमिशन लेना है । इसी सिलसिले में आए थे । मैंने कविता को हैलो कहकर चाचा जी से कहा ये क्या बात हुई? ज्यादा जी स्पॉट फेयर कॉन्फ्रेंस के बाद परसों कभी सम्मेलन और डिनर का प्रोग्राम होगा । डॉक्टर साहब, आप मुझे वहाँ बुला लें । चाचा जी के साथ आया व्यक्ति बोला हाँ जी, वहीं जाना तो चाचा जी बोले तो शोर मैंने कहा लेकिन जब चाचा जी के अचानक मिलने के कारण पैदा हुई एक्साइटमेंट कम होने लगी तो मैं दुविधा में पड गई जाऊँ, जानना चाहूँगा । मुझे कभी चाचा जी के शब्दों के अंदर का पर आपन चुभने लगा । उन्होंने एक बार भी अंदर का हाल चाल नहीं पूछा था । नहीं उसको संग लेकर आने के लिए कहा था । एक बार तो खाया है कि मैं नहीं जाउंगी लेकिन फिर सोचा कि अचानक मिले होने के कारण शायद उन्हें सुलझा ही ना हो । मतलब ऍफ डाउट सोच कर मैं खुद भी मुस्कुरा पडी थी । प्रसिद्ध कभी होने के कारण ही उन्हें कॉन्फ्रेंस के लिए बुलाया गया होगा । मैंने सोचा और कवि सम्मेलन में भी जब वह कविता सुनने के लिए उठे खूब तालियां बजी थी उन्होंने अपनी कविता सुनने से पहले वारिश शाह की पंक्तियां पडे नहीं नहीं हो गई । यही पंक्तियां मेरे घर में लगी वारिश शाह की तस्वीर के नीचे लिखी हुई थी की तस्वीर हमें अलवर के एक आर्टिस्ट मित्र ने देते हुए कहा था इसकी असली जगह हमारा घर है । फिर उसने उन पंक्तियों के अर्थ बताए थे । मैं उन पंक्तियों को अक्सर ही गुनगुनाने लगी थी । चाचा जी की कविता की और मेरा ध्यान नहीं गया था । मेरे कानों में तो ये शब्द ही गूंज रहे थे । जू ॅ रबदा है वो काजी अर्श खुदायदाद डालना हैं वे मैं जोडे काज इमान बेचा कौन जमिया जो अंत बनाना ही? और जब चाचा जी अपनी कविता सुना चुके तो हॉल में काफी देर तक तालियां गूंजती रही । चाचा जी को रात में मेरी प्रशंसा की । बधाई देने के लिए मैं स्टैण्डर्ड पर जाकर बोली । छह बजे कल डिनर पार्टी में आपको लोगों में गिरा देखकर सच में बहुत खुशी हुई । मुझे तो पता ही नहीं था कि मेरे चाचा जी इतने बडे कभी है । चाचा जी मुस्कराए बोले फिर भी नहीं । कविता बोली डॉक्टर साहब तो पंजाबी कविता में अथॉरिटी हैं । जो कविता नहीं पसंद आ जाए वो समझो कामयाब जब से ये आलोचना की तरफ बडे हैं तब से तो कभी लोग उनके आसपास इनसे निकटता बढाने की फिराक में रहते हैं । उनकी कविता की प्रशंसा में ये दो शब्द लिखते हैं । मुझे भी तो चाहता जी से आज थी कि वह मम्मी डैडी से मेरा और अनवर का विभाग कर देने के लिए समझाएंगे और इसी आशा में तो मैंने फोन किया था लेकिन चाचा जी के स्वर में ग्रोथ था तो बोले फिर कैनेडियन बन ही गई । चाचा जी इंडियन बनने में बुराई क्या है? माता पिता का कहना ना मानना और क्या पंजाबी लडकियाँ ऐसा नहीं करती हूँ । बेटा माँ बाप बच्चों के दुश्मन नहीं होते । वो जानते हैं कि बच्चों के लिए क्या सही है और क्या गलत तो मुझे बताओ तो सही किसमें गलत किया है इसमें ठीक भी किया है विभाग करवा के तो ये धर्म बदलना पडेगा और इस धर्म को बचाने में गुरुओं ने चाचा जी ने बात पूरी भी नहीं की थी कि मैं बीच में ही बोल पडी यही बात है तो बेफिक्र हो जाएगा ना मैं धार्मिक हूँ और ना अनवर तो धार्मिक हो या ना हो इसके साथ कोई फर्क नहीं पडता । तुम दो अलग अलग धर्मों से संबंधित हो की सोसाइटी में हम रहते हैं उसमें ये स्वीकार नहीं तो आपने अकेली के बारे में सोचती है । हमारे बारे में नहीं सोचती । हम लोगों को क्या वो दिखाएंगे? मुझे चाचा जी के व्यवहार पर आश्चर्य हुआ । मैंने वासी आवाज में कहा मुझे तो लगता था कि आप मेरे साथ खडा होंगे । आपकी कविता से तो मैंने प्यार करना सीखा है । कविता भावनाओं का प्रकटीकरण होता है और आम जिंदगी भावनाओं कि आश्रय नहीं चला करती । इसे सामाजिक तौर तरीके से किया जाता है इस बात को मारकर । लेकिन मैंने अपनी भावनाओं को नहीं मारा था । चाचा जी की नहीं कविताएं पडने का मोह कम हो गया था । अब चाचा जी से कोई बात करने के लिए इस कविता का सहारा लिया था । ये अलग बात है कि वह अधिक सफल नहीं हो रही थी । इस बार चुप का पत्थर चाचा जी ने ही थोडा बोले चलो दी भोजन का प्रबंध करो मैं तुरंत उठकर किचन में चली गई भोजन करते हुए फिर वही तो ये लोग ये लोग बोल कर कुछ देर तो मैं व्यस्त रही पर जब मुरकियां जमाने की आवाज आई तो मैंने चाचा जी से चलता हूँ प्रश्न कर दिया हूँ अच्छा जी ऐसा लगा हमारा बैंक हुआ बैंक और देखा ही कहाँ अभी कॉन्फ्रेंस में ही बिजी रहे कहकर चाचा जी ने फिर पल्ला छुडाने की कोशिश की पर इस बार मैंने सिर्फ पकडे लिया । इतने लोगों से मिले होंगे कोई फॅमिली आई होगा अधिकतर पंजाबी लोगों से ही मिला हूँ । लगता है बहुत एडवांस हो गए हैं फॅार अपना रहे हैं अच्छा इस बात पर लगा आपको ऐसा तुम्हारे लिए शायद ही सामान्य बातों पर मुझे कई लडकियों को शराब पीता देखकर जीत लगा । एक लडकी तो मेरे सब चीज भी कर गई तो खुद ही लेती हूँ । मैंने कहा मुझे लगा कि चाचा जी मजाक के साथ कहेंगे तो भी तो कैनेडियन बन गई है और वो बोले सच बताऊँ । मुझे डर था कि तू भी कहीं गिलास भरकर साथ मैं खडी हो जाए । चाय भी शराब का ही असर था कि चाचा जी थोडा सा खुल गए थे । फॅार बोला राउंड तो कुछ नहीं पर हर एक भाई चारे का अपना कल्चर होता है । उस कल्चर पर प्राउड करना चाहिए । दूसरों की देखा देखी अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए । लेडीज का शराब पीना टेन इंडियन कल्चर है, पंजाबी नहीं । मेरे अंदर तीखा प्रश्न उठा । मैंने कविता की तरफ देखा और अपने आप को रोक लिया । ऐसे लडके ड्रिंक कर सकते हैं तो लडकियाँ क्यों नहीं? अंदर बोला अनवर ऍम कहकर मैंने अंदर को पूरा । इस विषय पर अनवर ने अपने अब्बू के साथ भी कई बार बहस की थी । हर बार उनकी बहस अब्बू के उठ कर चले जाने पर ही बंद होती थी । मैं उस तरह का वातावरण पैदा नहीं होने देना चाहती थी इसलिए अनवर को रोक दिया था । अब के साथ बहस करते हुए वो मेरे रोकने के बावजूद चुप नहीं करता था, पर अब कर गया था । फिर मैंने बारी बारी से सभी को ये लो ना ये लो ना में उलझा दिया । भोजन के बाद मैं सोच रही थी की कविताओं से कहे कि वह ऊपर स्टडी रूम में जाकर सोये । कॉस्ट्यूम जहाँ वो कल रात हुई थी, चाचा जी को दे दे चाचा जी को मैं उस तंग कमरे में मैट्रिक्स पर नहीं सुनाना चाहती थी । मेरी सुन जन को कविता ने खुद ही हाल कर दिया । वो लिविंग रूम की ओर इशारा करते ही बोली मैं तो यहाँ लेता हूँ । आज कुछ लिखने का बोर्ड है । बाहर बैठकर लिख होंगे । फिर यहाँ लिविंग रूम में आता हो जाओगे । डॉक्टर सबको गैस्ट्रो वाला बैठ दे दो । बत्ती बंद करके मैं और अनवर ऊपर बेडरूम में चले गए । अनवर तो पढते ही हो गया तो मुझे नींद कहाँ आ रही थी । चाचा जी के मेरे घर आने की खुशी थी । विवाह के बाद मायके वालों की तरफ से कोई पहली बार मेरे घर में आया था । पर चाचा जी आधे खुश नजर नहीं आ रहे थे । उनके आने पर उनके व्यवहार से उठे कई प्रश्न मेरे मन में आकर मेरी नींद उडा रहे थे । अनवर खर्राटे भर लगा था । मेरे सिर में दर्द होने लगा । दिल में आया की उठकर सिर दर्द की गोली लेलो । फिर सोचा कि यदि कविता लिख रही होगी तो डिस्टर्ब होगी । कुछ देर पडी रही । लेकिन जब अधिक देर लेते रहना कठिन हो गया तो मैं देना लाइट जलाए डाॅन की और उत्तरी मुझे संडे पर दो साढे दिखाई दिए । पहले तो मैंने सोचा कि मेरा भ्रम है पर गौर से देखा तो वहाँ चाचा जी और कविता थी । एक दूसरे को अपनी बाहों में जकडे वोटों से होम जुडे हैं । हिंदी कुछ चटक सीट टूट गया । मैंने ऍम चलता हूँ अंदर के मुकाबले बाहर अंधेरा हो गया । मैंने दवाई वाली कैबिनेट खोलने की बजाय वाइन की बोतल उठाई और सडक पर जाकर बोली मैं वाइन ले रही हूँ । यदि तुमने लेनी हो तो गिलास बनाना हूँ ।
Writer
Sound Engineer
Voice Artist