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आज हमारी छुट्टी का आखिरी दिन है । चलो किरन मंदिर चलते हैं । इतने दुख और अपमान के बाद भी उस पत्थर की मूरत के सामने झुकना ही चाहते हैं । तो चली मैं आपका साथ देने जरूर जाऊंगी । भगवान के लिए ऐसी बेकार की बातें नहीं करते बेटा । अच्छे और खराब की परिभाषा तय करने वाले अपने भगवान से आज पूछी लेना मैं की नहीं कि का रास्ता खाई में जाकर ही क्यों खत्म होता है । अब यहाँ क्यों रुक गई? मंदिर के सीढी पर किरण को रूप से देख उसकी माँ ने पूछा समझाओ हाँ मैं यही थी । भगवान के दर पर आकर बिना दर्शन की लौटना ठीक नहीं होता है । बेटा चल रानी बेटी की तरह चुप चाप मेरे पीछे हो । आपकी यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती है । मैं अपनी बात हर हाल में मनवा ही लेती हूँ । कहती हुई किरण माँ के पीछे चलने लगी । बातों बातों में मैं तो अगर बत्ती पकडना बोली गई भगवान की मूरत के सामने पूजा करती हुई माने कहा आप परेशान ना हो, मैं भी बाहर जा कर ले आती हूँ । किरण ने पूजा की थाली माँ को देते हुए कहा जो कुछ भी हम ईश्वर को अर्पित करते हैं, सब नहीं कर तो दिया हुआ है । मच्छी वैसे भी भगवान के दर पर श्रद्धा से माथा टेकना ही सबसे बडी पूजा है । फिर भी यदि अगर बत्ती जलाना ही है तो ये लीजिए । नीरज ने अगर बत्ती माँ की ओर बढाते हुए कहा नीरज तो कहते हुए किरण की माँ खुश होते हुए अगरबत्ती लेने के लिए हाथ बढाने लगी । माँ किरण ने माँ को हाथों की शाहरुख से अगर बत्ती का पैकेट लेने से मना किया, जवाब भी माने मुस्कुरा दिया और अगर बत्ती लेते हुए नीरज से आगे कहा पूजा की सामग्री है पैसा लेना होगा ठीक है हाँ, पैसे ले लूंगा । फिलहाल तो पूजा पर ध्यान दीजिए । कहते हुए नीरज बाहर निकल गया । आप जा रही है परमाणु तो कहा है कि आपको पैसा वो मैं मंदिर के बाहर ले लूंगा । आप लोग आराम से पूजा कीजिए । किरण तुम पुजारी जी से प्रसाद लेकर आओ । मैं बाहर तुम्हारा इंतजार करेंगे । टी कॅश किरन की माँ मंदिर की सीढी पर ही नीरज के बाजू में बैठते हुए कहा की रंजीत तो आई हैं वह तो मेरी जिद के कारण मतलब उन्हें ईश्वर पर भी विश्वास नहीं है । नीरज ने पूछा दो साल पहले तक था पर अब नहीं फॅालोइंग बातों को उस दिन अस्पताल में किरण द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के लिए मैं तुमसे क्षमा प्रार्थी हूँ । आप फिर से वही बात कर रही हैं अम्मा मैंने पहले भी कहा है कि बडे हम से क्षमा की बात करेंगे, मुझे बिलकुल पसंद नहीं है । नीरज ने कहा मेरी किरण दिल की बुरी नहीं, वो जिस विभाग में काम करती है वो तो तुम पत्रकारों का भी कार्य क्षेत्र होता है । इसलिए मेरा निवेदन है कि किरण के लिए मन में कोई पिछली बातों को मत रखना । ये आप क्या कह रही है? हाँ जी, इस घर पर खडे होकर तो सिर्फ उस जगह पिता के सामने ही हाथ जोडना है । कहते हुए नीरज ने माँ के हाथों को नीचे करते हुए आगे कहा बेटे के सामने अम्मा विनती नहीं करते हैं । रही बात अस्पताल वाली तो हाँ उस समय मुझे बुरा लगा था पर अब किरण जी की बातों पर चिंतन कर रहा हूँ । ऐसा चिंतन यही कि आपने जिस काम को मैं समाज सेवा करने का माध्यम समझता हूँ उसे किसी ने गाली क्यों दिया? इतना तो मैं भी जानता हूँ कि सामान्यता मनुष्यों की तरह हर पत्रकार की अलग अलग सोच होती है । पर इसका मतलब ये नहीं कि पत्रकारिता की मूल भावना ही प्रभावित हो, पर सच कहूँ तो किरण जी ने मुझे इस बात पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि पत्रकारिता का क्या कोई ऐसा स्वरूप भी है जिससे लोग नफरत करते हैं और इसीलिए मैं आप लोगों से मिलना भी चाहता था । ये तो अच्छा हुआ कि हमारे यहाँ मुलाकात हो गई, नहीं तो आज मैं किरण जी से मिलने थाने जाने वाला था । अच्छा हुआ कि नहीं गए और कभी थाने जाना भी नहीं । मैंने कहा क्यों? नीरज ने पूछा क्योंकि तुमसे ही नहीं बल्कि किसी भी पत्रकार से बात करना किरण को पसंद नहीं है । मैंने कहा ये तो गलत है । मैं जानती हूँ पर मैं किरण को कुछ कह भी नहीं सकती । मान ने आगे कहा तो हम से मिलना चाहते थे । माथुर सर के बारे में कुछ जानना चाहता हूँ । नीरज ने आगे कहा, मैं उलझन में हूँ और मेरे मन में उठते सवालों का जवाब ही मेरी उलझन को सुलझा सकता हैं और मुझे विश्वास है कि मेरे सवालों का जवाब आप अवश्य देंगे । चाहे वो बात कितनी भी गन्दी और कडवी ही क्यों ना हो तो मैं ये कैसे सोच लिया कि माथुर साहब से संबंधित बातें गंदी भी हो सकती हैं । उस दिन तो नहीं कह रहे थे ना बेटा कि वे तुम्हारे आदर्श थी । फिर अपने ही दिल से पूछो की क्या वे कुछ गलत कर सकते हैं? समाचारपत्रों में जो भी माथुर सर के बारे में पढा था उस से मन बहुत व्यथित है । पर उस दिन किरण जी के द्वारा पत्रकारों के प्रति आक्रोश को देख कर और जितना मैं माथुर सर को जानता हूँ, उसके बाद फिर प्रिंट मीडिया एवं अखबारों की बातों ने मुझे उलझा दिया है । तभी तो आप लोगों से संपर्क करने की कोशिश कर रहा था और संयोग देखिए आप से मुलाकात भी हो गई तो तुम अपने माथुर सर के बारे में क्या सोचते हो? नीरज कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ । जब भी एक और मान सकता है तो दूसरा पहलू ज्यादा सही लगने लगता है । नीरज ने कहा मतलब अब मात्र साहब तुम्हारे आदर्श नहीं है । माँ की आवाज में गंभीरता थी, ऐसा तो नहीं है पर तो मैं आज माथुर सर को आदर्श मानने पर पछतावा नहीं तो तुम सही हो नीरज मानने का । पर हमारे साथ विडंबना है की जो हकीकत है वो सबको हमारे द्वारा रचाई गई कहानी लगती है और जो झूठी बातें परोसी गई हैं, वहीं जमाने के लिए सच तो हो सकता है । तो में भी ऐसा ही लगे क्योंकि इस घटना ने हमें इतना तो जरूर सिखा दिया है कि झूठ की चमक इतना आकर्षक होती है कि उसके चकाचौंध में सच लुप्त होने लगता है । आप मेरी ओर से निश्चिंत रहिए । पत्रकार होने के नाते सच और झूठ की परख है । मुझे रात में छुपी हुई चिंगारी जिस तरह हवा लगते ही सुलग उठती है, उसी तरह नीरज के द्वारा पत्रकार होने के कारण सच को परखने का दावा करने पर दीवार कि वोट में खडी किरण का दिल दादा कोठा । उसने कहा, ऐसे ही सच्चाई पर उसने का दावा करने वाले पत्रकारों के हाथ मेरे पापा के खून से रंगे हुए हैं । उसके बारे में क्या करेंगे आप? माथुर सर का खून लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो मैंने स्वयं देखी है, जिसमें स्पष्ट रूप से आत्महत्या लिखी हुई है । जी नहीं, पापा ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि उनकी हत्या की गई है । हत्या हाँ आप जैसे इमरान पत्रकारों ने मिलकर पापा की हत्या की है । कलम से हत्या अभी अभी आप कह रहे थे कि पत्रकार होने के कारण आप में सच्चाई जानने की क्षमता है आप पत्रकारों में ये गुण होता तो मेरे पापा के बारे में आपके अखबार जुगनू सहित अधिकांश समाचारपत्रों में पापा के बारे में जो झूठी खबर छपी थी वो नहीं होता और ना ही मेरी माँ का सिंदूर उजडता । पर आप लोगों को इन सब से क्या मतलब? आप लोगों को तो चाहिए अखबार के लिए सर्वाधिक चटपटी खबरें फिर चाहे वो खबरें झूठी क्यों हो? ऐसा नहीं है कि रणजी हम लोग जो भी खबरें छापते हैं, पहले उसके तह तक जाने का प्रयास होता है । वही तो मैं कह रही हूँ । पत्रकार महोदय की प्रयास करते हैं पर न पहुंच पाए तो सबसे पहले खबर पहुंचाने की जल्दी में समझौता भी कर लेते हैं । क्योंकि आपके लिए खबरें था अपना तो रोज का काम होता हूँ । फिर उन खबरों से किसी का घरों डरता है तो जुडे उसके बारे में आप की सोचेंगे । आप क्या कहना चाह रही? किरन जी मैं समझ नहीं पा रहा हूँ और कभी समझेंगे भी नहीं नहीं रंजी क्योंकि दर्द का एहसास तो तब होता है जब खुद को चोट पहुंचती । वैसे भी चाहती किसकी ओर क्यों छलनी हुई? इस बात का पता किसी बंदूक को कैसे हो सकता है । ये तो बंदूक चलाने वाले को सोचना चाहिए । आप लोगों के लिए समाचारपत्रों की लोकप्रियता ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है । फिर किसी की इज्जत या जीवन की परवाह क्यों करेंगे आप लोग? ऐसा नहीं होता है की रंजीत आप अवश्य ही किसी गलतफहमी की शिकार हुई है । आपको भी पहले अपने स्तर पर वास्तविकता का पता करना चाहिए । नीरज ने कहा हाँ, वही गलत फहमी तो सिर्फ नहीं हो सकती है क्योंकि हम इंसान जो ठहरे आप लोग तो भगवान है इसलिए जो लिख देते हैं वही सबसे बडा सच होता है । हम इंसानों की किस्मत लिखने वाले बन गए । आप लोग इस तरह व्यंग के बाढ मत चलाइए । किरण जी जो कहना है सीधे सीधे और साफ शब्दों में कही । तो सुनिये समाजसेवा और देश सेवा कर चोला पहनकर ब्लैकमेलिंग का जो धंधा आप लोग खेल रहे हैं इसे बंद कर दीजिए और अपने परिवार को बहुत उत्सुक साधन देने का कोई दूसरा और ईमानदारी का रास्ता ढूंढ ले वरना कोई हम जैसा आप लोगों का सताया हुआ व्यक्ति किसी दिन अपना आपा को बैठा तो आप लोगों के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी । भगवान के लिए जिंदगियों से खेलने का ये गोरखधंधा बंद कर दो और हम गरीबों को भी जीने दें । कहते हुए किरण आसुओं को रोक नहीं पता और आगे बढ गई । किरण जी ने इतना कुछ कह दिया की अब तो आपको बताना ही होगा । हाँ कि माथुर सर ने आत्महत्या क्यों कि ठीक है? नीरज आज मैं तुम्हें माथुर साहब की वह सारी बातें जरूर बताउंगी जो सच है । पर हमारी सच्चाई पर विश्वास करना या न करना तुम पर है । माथुर साहब उस दिन फिर तो आप आते रहना माँ मुझे खाने जाना है, मैं जा रही हूँ लेकिन आप कुछ बताना शुरू करें । इससे पहले आपको याद दिला दूँ की ये महोदय भी पत्रकार ही हैं जिन्हें सच झूठ से नहीं बल्कि सिर्फ अखबारों के लिए खबर से मतलब होता है कहते हुए किरण जाने लगी । किरन की बातों का बुरा नहीं मानना । बेटा किरण के जाते ही उसकी माँ ने कहा तुम्हारी इसी सोच के कारण मेरा मन कर रहा है की तो मैं सच बताना चाहिए । किरण का ये चिडचिडापन सुभ आवत नहीं है बल्कि परिस्थितियों ने उसे बदल दिया है । किसी के भी आक्रोश को मुस्कुराते हुए झेल जाने वाली मेरी बेटी उस वज्रपात को नहीं सह पाई जो हमारे ऊपर उसके पापा के अकस्मात मौत के रूप में गिरा हूँ । एक के बाद एक माथुर साहब और मनीषा की अचानक हुई मौत ने हमें स्तब्ध कर दिया है । इसका सबसे ज्यादा असर किरण के मन पर पड रहा है । हस्ती खेलती मेरी बच्ची का जीवन तो जैसे तूफानों से गिर गया है । माथुर और मैंने हमेशा किरण को आदर्श जीवन की राह दिखाई । विषम परिस्थितियों में भी सच के साथ चलने की प्रेरणा देने वाले उनके पापा को चंद रुपयों के लिए कुछ लोगों ने बदनामी की ऐसी गहरी खाई में धकेल दिया जहाँ से वे उबर ही नहीं पाते और यही किरन की सबसे बडी पी रहा है । मैं तो उसे समझाते समझाते थक गई । कहते हुए किरण की माँ वासियों को लुढकने से पहले ही आंचल में समेटने लगी । नीरज चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाया और कुछ देर तक गहरी खामोशी छाई रही । फिर किरन की माँ ही कहना शुरू किया करीब साल भर पहले की बात है । हमारे घर में खुशियां ही खुशियां थी । पूरे शहर में प्रोफेसर साहब का मान सम्मान था । कॉलेज स्टाफ में वे सब की प्रिया होने के साथ साथ महाविद्यालय परिवार के चहेते भी थी । सभी वर्गों से अच्छे तालमेल होने के कारण इस छोटे से शहर में उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक रही कि उनके करीबी लोग नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लडने की सलाह देने लगे थे । बहुत सारी अच्छाइयों के साथ जून में ये बुराई भी थी कि वे खुले दिल के व्यक्ति थे और सबको अपने जैसे ही समझते थे । लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह उन्होंने कभी नहीं की और भावुकता एवं दयालु पंथों ने विरासत में मिली थी । इसी बीच कॉलेज में एक नई महिला प्रोफेसर की नियुक्ति हूँ और वह महिला जिसका नाम मनीषा पटेल था, विधवा थी और अपने सास के साथ हमारे घर पर ही ऊपर वाले हिस्से में किराए पर रहने लगी । संयोग से तीन महाबाद ही रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार आया और मनीषा ने माथुर साहब की कलाई पर रेशम की डोर बांध कर भाई बहन के रिश्ते में बंद गई । और तब संबंधों की घनिष्ठता में भीगी पलकों के साथ मनीषा ने अपना दुखडा सुनाया कि इस भरी दुनिया में सास और एक विवाहित मेहनत के अलावा उनका कोई नहीं । दो साल पहले कार दुर्घटना में उसके माँ पिताजी पति हुआ । तीन साल की बेटी की मृत्यु हो गई थी । जब की दुर्घटना के समय उसी कार में सवार होते हुए भी उसे जीवन दान मिल गया और तब से उनकी सांस की नजरों में वो अपने पति को खा जाने वाली डायन बन गई और अब साथ रहने वाली उसकी सास कम जासूस ज्यादा थी हमारे सामने भी जब तक उसकी सास मनीषा को गंदे उन्हाने देने में पीछे नहीं रहती थी । इस तरह दुखियारी मनीषा अपने अच्छे स्वभाव के कारण हमारे परिवार के सदस्य की तरह हो गई । किरण उस समय पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में थी जब छुट्टियों में आई तो वो भी मनीषा से बहुत प्रभावित हूँ । इन्हें अपने पन्नो नजदीकियों के कारण अब मनीषा टैक्सी की जगह मात्र साहब के साथ ही कॉलेज आना जाना करने लगी और इस तरह मनीषा से हमारी नजदीक किया । जगजाहिर तो हुई लोगों की नजरों में भी चढ नहीं लगी । भाई बहन के पवित्र रिश्तों को छोटी सोचने कलंकित रूप दे दिया । कुछ लोगों ने तो दबी जुबान में यहाँ तक कह दिया कि प्रॉफेसर माथुर ने अपनी पत्नी की नजरों में धूल झोकने के लिए मनीषा से राखी बनवाई जबकि पवित्र बंधन की आड में रंगरेलियां मनाई जा रही है । मनीषा का किराए पर रहने वाली बात को भी औपचारिक बताते हुए कुछ संकीर्ण मानसिकता के लोग मानवता के रिश्तों को तार तार करते हुए वासनाओं के दलदल में एक दिए मैंने लोकापवाद की ओर जमा तो साहब का ध्यानाकर्षण किया तो उन्होंने कहा तुम्हारी यही बात मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती कि लोग क्या कह रहे हैं । उस पर झट से विश्वास करने लगती होगी क्या तुम मुझ पर भरोसा नहीं है? ऐसी बात नहीं है । जी पर कभी कभी लोग अपवाद पर ध्यान नहीं देना भी जीवन पर भारी पड जाता है । इसलिए लोगों का क्या है? उनका तो कम ही है कुछ भी कहते रहना विषेशकर वे लोग जिनके पास कोई काम नहीं रहता है । इसीलिए तो खाली दिमाग को शैतान का घर कहा जाता है कि हाँ कर मेरी बातों को फसते हुए टाल दिया । एक दिन कॉलेज से आने के बाद रोज की तरह मैं मात्र आपको चाय के साथ नमकीन पर उसका काम वाली के साथ रसोई में चली गई और आधे घंटे बाद जब मैं प्रोफेसर साहब के पास बातचीत के लिए गए तो अभी तक मेरे द्वारा पडोसी हुई सामग्री जैसे का तैसा रखा दे । मैंने पूछा अरे आप की चाय तो ठंडी हो कि आपने पी यानी जवाब नहीं मिलने पर उनके कंधे को पकडकर जब जोडते हुए मैंने पुना कहाँ क्या हुआ मैं आपसे पूछ रही हूँ । हाँ, तो मैं कुछ कहा की सोच में डूबे हो । कॉलेज में कोई बात हुई है क्या? मैंने पूछा प्रोफेसर ने इतना ही कहा आप बहुत परेशान लग रहे हैं । बताइए क्या हुआ हो? कोई खास नहीं । ऐसे कैसे रहने दो । बहुत परेशान लग रहे हैं । तुम्हारी ऐसी जिद करना अच्छा नहीं लगता है मुझे मुझे डाटते हुए ॅ आगे कहा किसी बात के लिए पीछे पड जाती हूँ । जाने बिना पीछा ही नहीं छोडती हूँ और छोडूंगी भी नहीं । आपकी नाराजगी सह सकती हूँ पर मैं आपको कुछ छुपाने नहीं दूंगी । आपका ये परेशान चेहरा मुझे डर आ रहा है । मैंने कहा ऑफिस की बातें में वहीं छोड आता हूँ । पर आज बात कुछ ऐसी हो गई कि मन व्यथित हो गया । वहीं तो मैं जानना चाहती हूँ कि हाँ बताई तो रहा हूँ परेशानी में खुद के बालों पर उंगली घुमाते हुए प्रोफेसर साहब ने आगे कहा, आज कुछ पत्रकार आए थे । कह रहे थे कि पुस्तकालय के लिए सात लाख की पुस्तकें जो खरीदी गई हैं उस पर आपने जो कमीशन का खेल खेला है वो हमें सब पता है । मैंने कहा जब कमिशनखोरी हुई नहीं तो हम जानते थे कि आपका यही जवाब होगा एक पत्रकार ने आगे का जब आरटीआई के तहत आप लोगों को जवाब मिलना ही है तो यहाँ आए हैं । इसलिए प्रोफेसर साहब की हम आपकी बहुत इज्जत करते हैं । कमाल करते हुए बेईमान कहना इज्जत करना होता है क्या? आप तो नाराज हो गए सर चलिए हम मुद्दे पर आते हैं और सौदा कर लेते हैं । उनमें से एक ने कहा कैसा सौदा? मैंने पूछा इस तरह ना समझ बनकर बातें करेंगे तो बात बिगड सकती है सर । दूसरे ने चमचागिरी करते हुए आगे कहा, मैं लोगों को यहाँ लेकर आया हूँ कि कुछ लिखने से पहले आप से बात कर लेते हैं तो बात करूँ किसने रोका आपको? माथुर सर नहीं कहा आजकल तो भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन चुका है । सर पर अकेले खाएंगे तो पकडे जा सकते हैं सर जी फिर वही बात ऐसी बातें ना मुझे करनी है और नहीं सुननी ऍम और कहने लगी आप लोग ये स्पष्ट जानने की पुस्तक की खरीदी समिति के माध्यम से पारदर्शिता के साथ हुई है । कहीं कोई कमीशन नहीं लिया गया है । समिति बनाने की औपचारिकता तो सभी निभाते हैं । सर या तो नाममात्र की होती है या फिर पूरी समिति ही मिल बांटकर खाती है । मैं तो कहता हूँ कि समिति बनाने की औपचारिकता नहीं होनी चाहिए । एक पत्रकार ने कहा क्योंकि अब समिति से भी क्यों परेशानी होने लगी? माथुर नहीं पूछा परेशानी हमें नहीं है । सर संस्था के दृष्टिकोण से उचित नहीं है क्योंकि जब कमीशन अधिक लोगों के बीच बढेगा तो सामान की गुणवत्ता पर भी तो फर्क पडेगा ही । उस पत्रकार ने बेशर्मी से कहा आप लोग स्वयं को पत्रकार कहते हो, नेताओं पर तो पहले से ही भ्रष्टाचार की होड लगी हुई है । उस पर पत्रकारिता के नाम पर तुम लोग भी हिस्सेदारी की बात कहकर कमिशनखोरी को बढावा दोगे तो इस देश का क्या होगा? प्रोफेसर ने कहा देश की चिंता बाद में कर लेना । सहर इस समय अपनी बात की थी । खुद को पत्रकार कहकर पत्रकारिता को क्यों बदनाम कर रहे हो और कान खोलकर सुन लोग ये ब्लैकमेलिंग का धंदा कहीं और जाकर करो । मेरे कॉलेज में कोई कमिशनखोरी नहीं होती है और फिर आपने तो आरटीआई लगवाइए ना । तो जवाब आने तो गलत फहमी दूर हो जाएगी । हिस्सेदारी नहीं देना चाहते तो कोई बात नहीं । हम दोनों को दस दस हजार रुपया दे दीजिए । हमारा समय खराब न करें । एक ने निर्लज्जतापूर्वक कहा समय मेरा खराब कर रहे हो । तुम लोग निकल जाऊँ, मेरे कमरे से छोडी भी । उनमें कार की बातों को भूल जाइए । उनकी गन्दी सोच के कारण आपकी उतना मन खराब कर रहे हैं । वर्तमान में जो बातें प्रचलन में हैं उसके अनुसार उन लोगों ने आपको भी मेरे समझाने के बाद किरण कि पापा उन बातों को भूलकर सेमिनार की तैयारी में जुट गए । पर उनकी सत्यम शिवम सुंदरम की इस प्रवृत्ति ने कुछ मानसिकता से ग्रसित लोगों का मनोबल तोडा नहीं, बल्कि झूठे अहंकार में डूबे उस लोगों की धारणा ने विभत्स रूप धारण कर लिया था और प्रोफेसर साहब को सबक सिखाने की जिद में उस कार्यक्रम में वे लोग भी वहाँ चले गए जहां उनका व्याख्यान चल रहा था, जिसमें उन्होंने गुलेरीजी की उनसे कहा था का जिक्र करते हुए निस्वार्थ प्रेम को परिभाषित करने की कोशिश की और यही व्याख्यान हमारे लिए मुसीबत बन गई । कैसी मुसीबत अम्माजी नीरज ने पूछा । कार्यक्रम के अंत में उपस् थित पत्रकारों द्वारा अन्य लोगों के साथ साथ माथुरजी से भी कुछ सवाल जवाब होने लगी । इसी बीच माथुरजी से कॉलेज से मिलने गए पत्रकारों में से एक ने पूछा कि जब उसने कहा था प्रेम की प्रकाष्ठा की बात आप करते हैं आप पूछना क्या जा रहे हैं, मैं समझ नहीं पाया । माथुर साहब की इस जवाब पर गुप्टिल, हसी के साथ दूसरे ने कहा आप बखूबी समझ रहे हैं प्रोफेसर कि हम किसके बारे में कह रहे हैं । फिर भी आप की मासूमियत भरी अनभिज्ञता को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट कर देता हूँ कि ये सवाल मनीषा मैडम और आपके प्रेम संबंधों को लेकर उठाया गया है । इस तरह के सवाल करने से पहले आप लोगों को संबंधों की प्रतिष्ठा के बारे में सोचना चाहिए । मनीषा मेरी छोटी बहन की तरह और उनसे हमारे पारिवारिक संबंध है । हम भी वही कह रहे हैं कि मनीषा जी देखिए मेरे परिवार या उससे संबंधित बातें मेरा व्यक्तिगत मामला है तो आप कुछ और सवाल कर सकते हैं । सवाल करने का हक हमें सवाल उचित है या नहीं, यह बात अब हम पर छोडने तो ठीक रहेगा । प्रोफेसर साहब इस तरह आप हमारे सवालों से बचने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? जी नहीं, मैं आपके किसी सवाल से भाग नहीं रहा हूँ । बस व्यक्तिगत प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहता हूँ । जब आपके व्याख्यान समाज को मार्गदर्शन देने वाला होता है तो आपके व्यक्तित्व का भी तो समाज पर प्रभाव पडेगा । सर इसलिए मैं समझता हूँ कि समाज के सामने आपकी वह व्यक्तिगत बातें भी आनी चाहिए जिसका गलत प्रभाव समाज में पड सकता है । ऐसी कौन सी बात है जिसका जिक्र होना चाहिए । उस पत्रकार को तो जैसे माथुर साहब के इसी प्रश्न का इंतजार था । उसने कहा मनीषा मैडम और आपके ना जाए संबंध । ये बेशक निजी मामला हो सकता है, पर आप लोगों का इस संबंध और उसका खुलापन, कॉलेज की छात्र छात्राएं जो की युवा हैं, उनके मन पर और दिलो दिमाग पर बुरा असर डालेगा, ऐसा कुछ नहीं होगा । कैसे नहीं होगा सर? जब की आपकी प्रेम के किसी घर की दीवार लांघकर गली मोहल्ले से होते हुए आप दोनों के कार्यस्थल तक पहुंच गए हैं तो क्या आप लोगों को अपने रिश्तों पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए या फिर रिश्ता रखना ही है तो इस रिश्ते को कोई नाम ही दे देते हैं । मुझे आजकल तुम जैसे बच्चों की सोच और बेच जब सब कुछ कह देने की बेशर्मी को अपनी क्षमता का नाम देकर कुछ भी पूछना और उसका उत्तर जानने को अपना अधिकार समझने पर मुझे तरह चाहता है । बात को टाल ये नहीं प्रोफेसर हूँ । हम अपने वाजिफ सवाल का जवाब मांग रहें आपसे सलाह नहीं । उस पत्रकार ने हद पार करते हुए कहा, तो ठीक है, मुझे आप के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं देना है । कहते हुए माथुर जी बाहर निकल गए । लेकिन वह दोनों पत्रकार प्रोफेसर साहब का पीछा करते हुए घर तक आ गए और मुझसे कहने लगे कि माथुर डर से का ये कि हम से बात कर ले । इसी में सब की बनाई है । मैं कुछ जवाब दे पा । तीस से पहले मनीषा का आना हुआ और वे लोग उसे रोककर पूछने लगे । मनीषा कुछ कहती इस से पहले ही मात्र साहब ने आते ही कहा मनीषा तुम भी डर जाते हैं और आप लोगों को मेरी चेतावनी है कि मेरे निजी मामले में दखलंदाजी ना करें । ऍम सुनिए तो सही । तथाकथित पत्रकार लोग कहते रहे कि प्रोफेसर साहब सुनिए तो सही और उन्होंने दरवाजा बंद कर लिया । इधर मनीषा की सास ने पूरे घर को सिर पर उठा लिया और कहने लगी मैंने तुम्हें बार बार कहा कि तुम्हारे ये लक्षण मुझे पसंद नहीं है । तब तो तुमने भाई बहन के रिश्ते की ओट में अपने गुनाह को छुपा लिया । लेकिन अब जब कि तुम्हारे रंगरेलियों की जानकारी पत्रकारों तक पहुंच चुकी है तो रोते बैठी हूँ । मैंने तुमसे पहले कहा था कि यदि फिर से घर बसाना चाहूँ तो हम तुम्हारा साथ देंगे । लेकिन पिता की उम्र के आदमी के साथ चीन आप जो समझ रही है, ऐसा कुछ नहीं है । तुम्हारे इनासियो में मैं बहने वाली नहीं । रोती हुई मनीषा को उसकी सास ने आगे कहा, अब जो सफाई देना हो अपने माँ पिताजी के सामने ही देना । मैं उन्हें बुला देती हूँ । उन्हें भी तो पता चले कि उनकी विधवा बेटी यहाँ क्या क्या गुल खिला रही है । नई माॅस्को क्यू बेकार में परेशान कर रही है । वो अपने माता पिता की परेशानी का बहुत ख्याल तो और मेरे सामने खुलेआम बेशर्मी कर रही हूँ । मनीषा की सास ने कहा, जैसा सोच रही ऐसा तो कुछ भी नहीं है । मनीषा ने कहा तो फिर पत्रकार लोग तुम्हारे चरित्र पर प्रश्न क्यों कर रहे थे? मनीषा की सांस ने पूछा । मैंने बताया तो की उन्हें कोई गलतफहमी हुई है? मनीषा ने जवाब दिया तो तुम तो सच बता सकती थी उन्हें । मनीषा की सास ने कहा वे लोग मान नहीं रहे तो मैं क्या कर सकती हूँ । मनीषा की भी सहनशक्ति जवाब देने लगी थी तो तुमने मुझे बेवकूफ संजय तुम पर भरोसा कर लुंगी पत्रकार लोग तुम्हारे संबंधों पर शंका कर रहे हैं । इसके पीछे कुछ तो कारण होगा । जहाँ तक मैं जानती हूँ कोई भी पत्रकार जब कोई बात कहता है तो जिम्मेदारी के साथ ही कहता है । मनीषा की सास ने कहा आप कहना क्या चाहती है स्पष्ट कहीं मनीषा की सास तो ऐसे ही सवाल की राह देख रही थी । उसने कहा अब कहने को कुछ रह किया गया है । सरेआम एक अधीर आदमी के साथ मुंह काला कर दी थी, रही है और मेरे सामने सती सावित्री बनने का नाटक करती है । इस तरह मनीषा को उसके साथ ने बहुत बुरा भला कहा । माथुर साहब और मेरे समझाने पर भी उन्हें पत्रकारों की बातों पर ही भरोसा रहा हूँ और उसके चरित्र पर लगे दाग को परिवार और समाज के सामने ले जाने की धमकी देती रही । अनंतता रोती बिलखती मनीषा किसी प्रकार की सफाई देना छोड कमरे में खुद को बंद करके अवसाद की स्थिति में खुद के दुपट्टे से पंखे से लटक किरण की माँ की आंखें बाहर आने से वे कुछ देर के लिए कुछ भी बोल पाने में समर्थ नहीं रही । मैं भी चाहती हूँ कि तुम्हें सभी बातें बताऊँ । कहते हुए किरन की माँ ने आगे कहा, मनीषा की आत्महत्या ने जैसे झूठ पर सच की मुहर लगा दी और वे पत्रकार जब तक महत्व साहब से आपने तथा कथित बीजेपी का बदला लेने के लिए मौके की तलाश कर रहे थे, उन्हें अवसर मिल गया । दूसरे दिन ही एक आदर्शवादी प्रोफेसर ने किया मासूम लडकी का पहले शोषण और फिर की आत्महत्या के लिए मजबूर । इसी तरह मिलते जुलते शीर्षकों के साथ कुछ अखबारों में खबरें छपने से पुलिस भी हरकत में आई और पूछताछ के लिए माथुर साहब को थाने ले जाया गया है । मैंने पुलिस वालों के समक्ष सच बताने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे डांटते हुए कहा, ये दिया पूरा सब जानती तो अपने पति की तरफ दारी नहीं करती हैं और जिस सच की बात कह रही हूँ उसके बारे में पत्रकारों को बताना था । हमने बताया था सर पर पत्रकारों ने हमारी बात नहीं मानी । मैंने गिडगिडाया आपके पति के कारण एक महिला की जान चली गई है और आप मामले पर लीपापोती करने में लगी हुई है । यदि पत्रकारों ने आप की बात नहीं सुनी तो इसके पीछे कुछ तो कारण रहा होगा । पुलिस ने कहा और फिर प्रोफेसर साहब को थाने नहीं ले जाने के लिए मैंने पुलिस से मिनती की ओर दो पत्रकारों द्वारा पिछले कुछ दिनों से ब्लैक मेल किए जाने की बात भी बताई पर किसी ने हमारी एक न सुनी । फिर प्रोफेसर सात के मित्रों के पास जाकर मैंने सहायता मांगी तो सब ने यही कहा और तब मैं अकेली ये थाने गई । पर पुलिस ने कहा कि जब तक मनीषा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक प्रोफेसर को पुलिस कस्टडी में ही रखने की बात सुनकर मैं घर लौट आई । दूसरे दिन नाश्ता लेकर जब थाना गई तो पता चला कि माथुर साहब के किसी मित्र की जमानत पर उन्हें रात में ही छोड दिया गया था । अब तक किरन भी आ चुकी थी और हम दोनों माँ बेटी मिलकर सारा दिन रिश्तेदारों मित्रों से माथुर साहब के बारे में पूछते रहे पर उन्हें ढूंढ नहीं पाए । उसी दिन शाम को एक मैसेज वायरल हुआ कि ट्रेन की पटरी के पास एक लाश पडी है जिसका सर दर्द से अलग हो चुका है । किरण के मोबाइल पर इस मैसेज को देखकर हमारे होश उड गए । माथुर साहब भी थे कहते हुए किरण की माँ से सब पडी सॉरी अम्मा, मैंने आपको रुला दिया । नीरज ने कहा तुम की हो सौरी बोल रहे बेटा ये आज तो हमारे साथ ही बन चुके हैं । गाल पर बहे आंसुओं को समझाते हुए किरण की माँ ने आगे कहा माथुर साहब की जेब में हमें एक पत्र मिला जिसमें मुझे संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा था मुझे क्षमा करना किरण की मां मैं हार गया । मैं इस भ्रष्ट दुनिया के लायक नहीं होगा । सोचा था जिस तरह अब तक सच्चाई की ताकत से झूठ का मुँह काला कर के आया हूँ, वैसे ही इस बार भी सब कुछ ठीक हो जाएगा । लेकिन इस बार मुकाबला झूठ से नहीं बल्कि छोटी दुनिया से था जहाँ पर पैसा ही सब कुछ है । चंद रुपयों के लिए मुझे ब्लैक मेल करने वाले पत्रकारों से मैं लड लेता हूँ पर मनीषा की आत्महत्या ने मुझे किसी लडाई के लायक ही नहीं छोडा । पैसे उस बेचारी की भी गलती नहीं है । पवित्र रिश्ते पर कालिक और उस पर अपनों का भी वह वह सहन नहीं कर पाई । थाने से निकलने के बाद मैं घर की ओर ही बढ रहा था तभी उन्हें पत्रकारों से फिर मेरा सामना हुआ और उन्होंने मोटी रकम की मांग करते हुए रुपयों के बदले में आज छपी हुई झूठी खबरों का खंडन करने का प्रस्ताव रखा । उनकी बात ना मानने की स्थिति में मनीषा की मौत को हथियार बनाकर इस तरह की बातें लिखी जाने की बात कर रहे थे जो एक जवान बेटी के बाप के लिए बहुत ही शर्मनाक और जीते जी मरने के सम्मान होता है । मैंने उन ब्लैकमेलरों का घटियापन देख लिया । उन के कारण मनीषा को आत्महत्या करनी पडेगी पर मैं किरण और तुम्हें किसी खतरे में नहीं डाल सकता । इसलिए तुम दोनों से बहुत दूर वहाँ जा रहा हूँ जो दुनिया सच और झूठ से परे हैं और जहाँ कम से कम पत्रकारों का नकाब ओढे इन ब्लैकमेलरों से तो छुटकारा मिल जाएगा किरण का ख्याल रखना और उससे कहना कि मेरे आदर्श को ना अपनाकर इस दुनिया के अनुसार चले अपना ख्याल रखना । तब से आज तक किरण को समझाने की कोशिश कर रही हूँ कि हमारे आंसू प्रोफेसर साहब की जब पर लगे दाग को नहीं हो सकते हैं मेरी कातर किरन ने अपने आंसू तो पोस्ट नहीं पर अपनी आत्म पर लगे गांव को खुला छोड कर सूखने नहीं दे रही है । और इस तरह अपने कुकर्मों से डरने की बात कहने वाले मात्र साहब ने झूठी बदनामियों के सामने घुटने टेक दिए और पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग करने वालों की जीत हो गई ।
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Sound Engineer