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इतर भाग 20 in  | undefined undefined मे |  Audio book and podcasts

इतर भाग 20 in Hindi

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182 Listens
AuthorSaransh Broadways
Itar an Audio Book based on pull ton between scientific truth and spiritual belief. writer: सुषम बेदी Voiceover Artist : Kaushal Kishore Author : Susham Bedi
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भाग बीस आत्मिक थकान क्या होती है मैंने कभी महसूस नहीं पर शायद अभिषेक के संदर्भ में उसका अंदाजा लगा सकती हूँ । जो व्यक्ति साल में सिर्फ दो हफ्ते छुट्टी लेता हूँ और बाकी वक्त रोज कम से कम बारह घंटे काम करें जो पढाई और छत्तीस घंटे लगातार काम करके रेजीडेन्सी खत्म करें । फिर सर्जन जैसे तनावभरे डॉक्टरी पेशे की लाइन ले ले और उसमें भी पूरे आत्मसमर्पण के साथ काम करें । उसे आत्मिक थकान तो होगी । किसी को शायद बरनोट होना कहते हैं । यहाँ फिर फटी लेकिन अगर बाबा जी से मुलाकात नहीं हुई होती तो क्या अभिषेक को इस आत्मिक थकान का एहसास होता? क्या तब किसी और रूप में प्रकट होती है थकान? क्या रूप होता है उसका? अगर मैं अभिषेक को छोड देती हूँ तो मेरी अपनी जिंदगी भी क्या रह जाती है ना मेरी कोई औलाद है जिसके सहारे जी लूँ ले देकर मेरा सब कुछ तो अभिषेक की है । जब अभिषेक को मैं जब उसकी चुने हुए रास्ते से हटा नहीं सकी, बहुत कोशिश करके देख ली । कोई आसार नहीं देखते हैं वह जिंदगी के पुराने ढर्रे पर तो लौटे गए ही नहीं तब क्या? क्या बस यही संभावना नहीं बची की मैं ही उसके साथ बनी रहूँ एक और रूपा बस यही नियति रह गई है मेरे लिए रूपा बन जाने की रूपा का अपने साथ सामने बैठाकर अजीब आत्म दया से महसूस हो रही है मुझे कितनी अतिरिक्ति, इतना उलझाव और कितनी छटपटाहट है रूपा की जिंदगी में कभी खुश नहीं देखा इस लडकी को हमेशा यह तो कुछ पाने को लालायित या किसी को चोट करने पर आमादा या फिर कभी ने खत्म होने वाली शिकायतों का सिलसिला? क्या यही नियति मेरे भी सामने हैं? लेकिन ये स्वयं और सहजता है । क्या हर समय के अनुरूप क्या सहज की परिभाषा बदल जाती हैं? मेरे से के लिए क्या है सहज? मेरा अपना व्यक्तित्व, मेरा सोचना समझना मेरा घर मेरा इसने संसार लेकिन अभिषेक के लिए इन्हीं सब चीजों को छोडकर किसी और रास्ते पर सात या पीछे चल पडना क्या सहज हैं? छोड दूँ सोचना बस चल तू अभिषेक के पीछे यह भी तो मेरा सहज हो सकता है । अभिषेक को रोकना मेरे लिए सही है, क्योंकि मेरा समझना मुझे यही बतलाता है । जब दो विश्वासों में टकराव हो तो क्या करना चाहिए, जिसमें बहुजन हिताय हूँ क्या मेरा और अभिषेक का ही भला साथ चलने में नहीं । मैं ज्ञान मार्ग पर हूँ और वह भक्ति मार्ग पर मैं बिना सवाल उठाए चुपचाप समर्पित रहना चाहता है और मेरे भीतर के सवालों के बच्चे लहूलुहान किए दे रहे हैं । तब क्या हमारे रास्ते अलग अलग ही रहेंगे? सब कुछ तो छीना ही जा चुका है । अगले हफ्ते अपार्टमेंट की भी क्लोजिंग बाबा जी ने तो बाहें फैलाकर बस कह दिया है अच्छा क्या अभिषेक अब तुम और अपना हमारे घर में ही रहना । इसकी भी गई तारीख नहीं निकल रही थी । कभी प्रॉसीक्यूटर ही छुट्टी पर तो कभी वकील शहर के बाद एक बार हल्ला करके अब सब खामोश हो चुके थे । फिर भी तलवार तो सिर पर लटक रही थी । जब तक जो भी फैसला नहीं कर देते हैं । अगले दिन अचानक निकाल का फोन आया था । मैं जिनेवा जा रही हूँ क्या? हाँ मैं और कर्मचारी कर रहे हैं । सच ऍम शादी कर रहे हैं अगले महीने पर मैं फिलहाल लौटूंगी नहीं । साल दो साल जिनेवा में ही रहने का इरादा है । एक टेंपरेरी अपार्टमेंट भी मिल रहा है । बहुत बढिया हुआ या तो लेकिन हाँ बोलो वैसे तुमने पुलिस केस किया है ना उसके लिए नहीं होगी वो फॉरगेटिंग मेरे पास वह सब सोचने के लिए फुर्सत नहीं । यहाँ भी बाबाजी ने जो दो बातें मुझसे कही थी, वे दोनों पूरी होने जा रही । मेरी वह किताब वाशिंगटन बाहम जज वाइकिंग प्रकाशन ने स्वीकृत कर ली है । शायद उनमें पावर तो है ही । थोडा बहुत लोगों को प्रभावित करने के लिए चमत्कार कर लेना । कोई इतना बडा पाप नहीं । बट आॅफिस ओके दिन जिनेवा से फोन करूंगी । मैंने अभिषेक से निकाल के जाने की बात बतलाई तो उसने झट से वकील को फोन किया । वकील ने कहा कि सच में अगर मैं देश से ही गायब हो जाती है तो केस खारिज हो जाएगा । एक बहुत बडा बोझ बाबा जी की सर से उतर गया था । अभिषेक के विश्वास पर जो कुछ खरोंचे आई होंगी, वे अपने नामोनिशान समेत गायब हो गई थी । वह मुझसे बोला, देखा तुमने अल्टीमेट ली । सभी बाबा जी की ताकत के सामने सिर्फ नाम आते हैं । बेचारे बाबा जी तो सबका भलाई करते हैं । दुनिया में बे मतलब भला करने वाले लोग रहे ही नहीं । तभी उनकी नियत पर भी शक किया जाता है । पर हम लोग भूल जाते हैं कि हिंदुस्तानी विद्या की तो परंपरा ही यही रही है । शुल्क या पैसे लेने से तो विद्या गायब ही हो जाती है । फिर अब तो तुम्हें बाबा जी की सच्चाई का सबूत मिल गया था । अगले हफ्ते तो अपार्टमेंट की चाबी क्लोजिंग के वक्त खरीदार को सौंप देनी पडेगी । हम आज ही से धीरे धीरे आश्रम में सामान पहुंचाना क्यों नहीं शुरू करते हैं? मेरा दिल फिर से डूबने लगा था । मैंने कच्ची से आवाज में कहा या कोई और चारा नहीं पता नहीं क्या हुआ अभिषेक को एकदम बडा कोटा इतनी स्वार्थी क्यों हो तो एक भले काम में ही लग रहा है पैसा मैं कोई जो या शराब में तो नहीं गवारा जो तो मैं बुरा लगे तीस पैसे से तो आश्रम बनेगा । लोगों का इलाज होगा हमें । हमको तो अपने आप को खुशकिस्मत मानना चाहिए । जिन्हें ऐसा मौका मिला है अपनी व्यक्तिगत जरूरतों के लिए तो हर कोई कमाता खर्च होता है उससे ऊपर उतना तो किसी किसी के ही नसीब में है । ठीक है बताओ पहले कौन से सामान ते करूँ । कपडों के सूटकेस तो इतना सामान वहाँ का समाएगा । कोई वेयर हाउस ले लेंगे । बाद में असम की अपनी इमारत बन जाएगी तो इस्तेमाल हो ही जाएगा । देखना चाहूँ तो फिर तो उस नहीं जिंदगी में पुराने सामान की भी परछाई क्यों हो? बाबा जी के घर के बेडरूम में से एक खाली पडा कमरा हमें दे दिया गया था । जो रूपा इस कमरे का भी इस्तेमाल कर लिया करती थी । छूट के सो में से कपडे निकालकर अलमारी में रखते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अचानक विधवा हो गई हूँ और किसी और के असम में आप ही हूँ । अपने घर से इतना मोह वहाँ रहते हुए महसूस नहीं किया था । इतना अब छोडने पर हो रहा था । दरअसल कुरूपा के कमरे का दरवाजा मेरे सामने ही पडता था । अपनी ड्रेसिंग टेबल के आने में मैं रूपा को अपने कमरे में बिच करते हुए बहुत पूर्ण से देख पा रही थी । मुझे अजीब भी लग रहा था पर निगाहें कभी कबार उधर चली जाती थी । दरवाजा बंद करने की मेरी इच्छा भी नहीं थी । जो भी इतनी होटल हो रही थी । ऍम टेबल के आने में मैंने बाबा जी को देखा । कमरे इतने करीब थे की आवाज भी साफ सुनाई पडती थी । यूँ बाबा जी आपने सहसवार में रूपा से बोल रहे थे । नीचे राजेश बैठा है । वहीं जिसके बेटे को ठीक से सुनाई नहीं देता जाओ जाकर कुछ शॉपिंग कर लो । तुम बडे परदे वाला टीवी सेट वगैरह खरीदने की बात कर रही थी ना । उस दिन रूपा आईने के सामने बैठे लिपस्टिकों के अलग अलग शेड्स लगाकर अपनी शोभा नहीं आ रही थी । अभी जाऊँ और क्या अभी खुश है मैं उसकी बेटे में कुछ फर्क पडा है, खुला खर्च करेगा और ऊपर उठने को हुई तो बाबा जी बोले और सोनू आज रात प्रतिभा कि रीड का ऑपरेशन करना है । रूपा हूँ करती हुई दरवाजे से बाहर निकलने को हुई तो बाबा जी ने दोबारा कहा सुना नहीं रात को ऑपरेशन होगा । रूप आने जाने की जल्दी में ही कहा तो तो क्या अब तुम्हें बताना पडेगा वो सॉरी । मुझे ध्यान ही नहीं रहा इतने दिन से क्या, जो नहीं कोई ऑपरेशन और रूपा ने अलमारी का ताला खोलकर एक दराज में से उभरी हुई इसी थैली निकाली । बाबा जी ने उसे बाहर से ही छूकर महसूस किया । ऐसा लगता था जैसे थैली में पानी बनाओ और फिर मुझे ज्यादा सोचना नहीं पडा । ऑपरेशन के वक्त बहने वाला खून यही होगा । तब से कितने प्रमाण ढूंढती रही थी, कितने अनुमान जोडे थे । इतनी अटकल बच्चों लगाए थे । आज सब कुछ मेरे सामने घट रहा था और मैं देख कर भी देखना नहीं चाहती थी बल्कि चाहती थी बुरी तरह से चाह रही थी कि कोई मुझे झूठा साबित कर दे । काश! मैं झूठी होती या अभिषेक को वो जोड दिखा पाती । अभिषेक तब भी कह देता हूँ पैसा तो चाहिए ही वरना आश्रम का खर्चा कैसे निकलेगा? और थैली देखकर कहता जरूर इसमें ऑपरेशन करने की दवा होगी या ऐसा ही कुछ जो जैसा देखना चाहता है वैसा ही देखता या देख पाता है तो सच्चाई हमेशा ऍफ होती है । ऍम टूट या निरपेक्ष नहीं । जमीन सूरज के इर्द गिर्द घूमती है । इस सच्चाई को तो हम एब्सॉल्यूट मान लेते हैं पर अपने अस्तित्व से इतर कुछ नहीं । विज्ञान द्वारा सुझाए गए इस सच को हमेशा चुनौती देते रहते हैं तो चुनौती देते हैं क्या? इसलिए कि जो कुछ सामने हैं उसी को अंतिम मानकर चलने का हमें साहस नहीं या नश्वरता को चुनौती देकर हम उससे आगे बढ जाना चाहते हैं । क्या जिंदगी के आ गए साबित कर देना चाहते हैं कि हम जिंदगी से बडे हैं । जिंदगी का मतलब जिंदगी है यह मानकर हम उसको दूसरे दूसरे मतलब ठोकते रहते हैं । अगर जिंदगी का मतलब जिंदगी है इस सच को मान लिया जाए तो क्या जिंदगी अपनी पूरी रंगत और खूबसूरती के साथ नहीं जी जाएगी? पर कितने लोग ऐसा समझते स्वीकार पाते हैं । क्या हर कोई जिंदगी में कुछ इतना ढूंढने में लगा है? सीढियों पर किसी के दनदनाते हुए छोडने की आवाज ने मुझे चौंका दिया । ऐसा अधिकार भरे दनदनाते कदम सिर्फ रूपा के ही हो सकते हैं । कमरे में आते ही उसने भरे हुए लिफाफे पलंग पर पटक दिए । बाबा जी ने भी उन कदमों के भाव को पहचाना होगा । घबराए से रूपा के कमरे में गए रूपा दबी आवाज में चिल्ला रही थी । अच्छा बेवकूफ बनाया । मेरा हजार डॉलर के कपडे चुन लिए मैंने और जब काउंटर पर पैसे देने का वक्त आया तो जाना बोले कि मेरी जेब में तो सिर्फ तीस डॉलर है । मैंने कहा तो फिर कार्ड दे दीजिए । कहने लगा कि कार्ड तो में रखता ही नहीं । मुझे तो सारे उल्लू बना जाते हैं । मैंने कहा था ना कि ये सारे कंजूस गुजराती हैं । इनसे एक डॉलर नहीं निकलवा सकते तो सारे पैसे मुझे अपने पर से निकालने पडेगा । अब मत भेजना कभी मुझे इसके साथ शॉपिंग करने मैं तो तंग ही आ गई हूँ । जो भी इस जंजाल से सीधे से अपनी फीस लगाओ और छुट्टी करो ये है क्या की पैसे? पैसे के लिए तरकी भी सोचे योजनाएं बनाऊँ, ज्यादा बोलो मत । नीचे लोग बैठे हैं बोलूंगी मेरे हजार डॉलर बर्बाद कर दिए तो क्या तुमने अपने लिए ही तो खरीदा है किसी और के लिए तो नहीं उससे? क्या मुझे योगी तो शॉपिंग करने नहीं जाना था । कोई बात नहीं । जो हुआ हुआ अब मेरी बदनामी मत करवा हूँ तो मैं भी आदमी आदमी की पहचान होनी चाहिए । मेरी भी तो बदनामी हुई है । अब दुनिया भर से कहता फिरेगा की रूपा ने मुझसे चालाकी से हजार खर्च उठाने की कोशिश की पर मैं तो बच गया । जब तक किसी में भक्ति न हो, मुझ से मत कहलवाया करो । तुम चुप करोगी या नहीं और बाबा जी ने रूपा के चेहरे पर अपने बडे बडे मजबूत हाथों से दो थप्पड जमाए । रूपा गानों को दोनों हाथ से ढके पलंग पर ऑनली लेटकर सिसकने लगी । बाबा जी ने मंदिर में जाकर दरवाजा बंद कर लिया । मैं सुन से अपने कमरे में बैठे यह सारा नाटक देखती रही । लगा कि इस नाटक पर कभी पटाक्षेप होगा ही नहीं । मन हुआ की रूपा को जाकर सहला दूँ पर समझ नहीं पा रही थी कि मेरी क्या भूमिका है । क्या मैं इस नाटक की एक दर्शक हूँ या अभिनेत्री या मात्र पर्दे के पीछे से झांकने की अनधिकार चेष्टा करने वाली कोई ऍम पर किसी की मार खाकर इस तरह चुप हो जाना मुझ से सही नहीं जाता था । मैं उठकर उसके कमरे में चली गई । अपना दायां हाथ मैंने रूपा के सिर पर रख दिया । वह मिली नहीं । मैंने धीरे धीरे उसके बाद फैलाने शुरू कर दिए । मैं किसी तरह उस तक अपनी हमदर्दी पहुंचा देना चाहती थी । कुछ पल बाद उसने करवट लेकर मेरी और देखा । आंखों कि कोरो से आंसुओं की कितनी ही दार आएँ । गालों पर छितरी हुई थी, पर चेहरे पर सहजता लाने की कोशिश करते हुए बोली बैठो भावी मैं दुविधा में थी कि मैं कैसे बताऊँ करूँ कि उनकी लडाई मैंने सुन ली है या नहीं सुनी । रूपा के चेहरे पर सस्ता लाने की कोशिश मुझसे यही कह रही थी की बात को वहीं तक रहने दिया जाए । अभिषेक लौट आए । आपका चेहरा बहुत लाल लग रहा है । पता नहीं किस्मत में यही शायद प्रेशर हाई होगा । कुछ घबराहट से भी हो रही है दवा है । आइए गिलास पानी ला दूँगी । मैं पानी लेने नीचे आई तो देखा बाबा जी भक्तों की महफिल जमाएं भाषण कर रहे हैं । उनका चेहरा हमेशा की तरह शांत और प्रसन्न दिख रहा था । मुझे उस चेहरे पर अजीब तामसिक छाया देखी । मैंने सोचा कि इस शहर को देख क्या कोई कह सकता है कि थोडी देर पहले ही इस आदमी ने अपनी पत्नी को गालियाँ दी है और उसे मारा है । मैं ऊपर आई तो रूपा दोनों गांव में घुटने को घेर पलंग पर बैठी उदास आंखों से छूटने में ताक रही थी । मैंने रूपा का रणचंडी रूप देखा था । कालिका का रूप देखा था मानिनी और अभी सारी का शायद फ्लर्ट कहना बेहतर होगा और जिसमें की प्यास में तडपि रोपा को भी देखा था । पर इतनी गहरी उदासी से घिरी रूपा को मैंने कभी नहीं देखा था । बैठो अभी मुझे पानी का ग्लास लिए खडा देख उसने कहा दवा खा लीजिए साल होंगे । उसने मरे मन से कहा एक लंबी चुप्पी रूपाजी आपको यहाँ कैसा लगता है यहाँ कहाँ अमेरिका में नहीं यहाँ इस माहौल में इतने लोगों के बीच यह तो मेरी जिंदगी है । कुछ लगने नहीं लगने की तो बात ही नहीं । हम लोग पता नहीं कितने सालों से ऐसे ही घूम रहे हैं । अब तो आदत ही पड गई है टिक्कर रहने से वो होने लगती है । बाबा जी तो अमेरिका में आश्रम बनाकर यही टिक जाना चाहते हैं । मैं तो यहाँ से भी कहीं और किसी दूसरे देश में जाना चाहती हूँ । यहाँ बाबा जी को चेले बहुत मिल गए हैं । लेकिन आपको इतने लोगों के साथ पहले लगता था कि मुझे अपनी प्राइवेसी मिले । पर अब जब लोग आस पास नहीं होते तो अकेलापन भी लगने लगता है । कभी लोगों से मन को घबराहट भी होने लगती है । पर शायद कहीं भी विस्तार नहीं । आपको यहाँ पर कैसा लग रहा था? अभी मैं चुप रही । मन का जवाब देना पता नहीं सही होता या नहीं । एक बात करूँगा । अभी मुझे मालूम है आपको जरूर तकलीफ हो रही होगी । पर क्या इतना ही हमारा सौभाग्य नहीं कि हमारे पतियों ने हमें छोड नहीं दिया वरन कौन रोक सकता था बाबा जी को या अभिषेक को ही, अगर वे आपको त्यागकर इस काम में लगते हैं । मैं तो इसीलिए हर तरह से बाबा जी का साथ देती हूँ । मेरे मुंह से निकल पडा मार खाकर भी अपमान की याद से रूपा की आंखें फिर से की ली हो । सच में कभी कभी मन होता है सब को छोडकर या तो भाग जाऊँ या कुछ खाकर मर जाऊं । हर तरह से मैं ही बुरी पडती हूँ पर कोई और चारा भी नहीं । रूपा सिसकियां भरती रही मुझे अपने आप पर ग्लानि और शोक हो रहा था । मैं फिर यहाँ क्यों आ गई? मुझे इस सब से क्या लेना देना? ऐसा बोल उठी । अभिषेक पता नहीं कब लौटे गाडी तो है ही । मैं घर जाती हूँ । देर नहीं हो गई है । कोई बात नहीं घर जाकर और पैकिंग भी तो करनी है । अपार्टमेंट की क्लोजिंग से एक दिन पहले अभिषेक ने टैंपो मंगवा लिया था कि सारा सामान बाबाजी के ही गैराज में छोड देंगे । सामान हमसे पहले पहुंच गया था और ऍम टिकाया जा रहा था । लेकिन कार से उतरते ही मेरी निगाह सामान की ओर मैं जाकर बाहर लॉन में खडी रूपा पर जम गयी । उसने जो गया रंग की लूंगी और स्लीवलेस करता हूँ । ठीक बाबा जी वाला पहनावा पहन रखा था । लगता था नया नया ही अपने ना आपका बनवाया है । बाल धोकर खुले छोडे हुए थे । चेहरे पर हल्का सा मेकअप था जो गया लिपिस्टिक और जो भी आतंकी ही बिंदी लगाई हुई थी । वजन कम होने के कारण रूपा के नए नक्स पहले से कुछ देखें और ज्यादा आकर्षक लगने लगे थे । मुझे सामना होते हुए बोली मैं जा रही हूँ कहाँ फिर धोनी के साथ टेक्सस अपना नया आश्रम खोलूंगी । क्या बाबा जी के साथ? नहीं? बाबा जी को इस से कुछ लेना देना नहीं है । लेकिन बाबा जी को अभी मेरी जरूरत नहीं । उनकी देखभाल करने वाले बहुत से है यहाँ अब मैं आपको आजमाना चाहती हूँ तुम जरूर कामयाब होगी । रूपा ऐसी ग्लैमरस गुरुवाणी भला किसने देखी होगी और अमेरिकी क्लाइंट्स लाने का काम करेगा? पिरो नी उसे विश्वास है तुम पर वह तो शुरू से ही मुझे शक्ति देखता रहा है । मुझे ही अपने पर भरोसा नहीं था । लगता था सिर्फ बाबा जी ही क्या हुआ था उस पर मेरे भीतर जैसे किसी महासागर का तूफान उमड आया था । लगता था एक पल भी खडी रही तो चकराकर गिर जाउंगी । पता नहीं किस दिशा में मोड दिया है उसमें मुझे और मैं अपने से बेखबर बढती जा रही हूँ । इतना जानती हूँ कोई डर नहीं है मुझे तूफान पर पैर रखकर मैं खुद ही निकल गई हूँ उससे इतर की खोज में क्योंकि वह खोज मेरी अपनी ही है, उसमें कोई और माध्यम नहीं बन सकता है । वह इधर मेरा अपना इधर है, किसी की धंधेबाजी का उपकरण नहीं । उसकी पहचान मुझे खुद ही करनी है । चाहे अधूरी हो या पूरी, अपने स्तर पर ही अपनी क्षमता के अनुरूप ही पहचानोगे उसे वहीं सच्ची पहचान होगी । किसी का बहकावा नहीं होगा कि शरीर को छत्रछाया दिलाने के लिए आत्मा को क्यों धरोवर? देखो जब मौत का सामना करने के लिए हम अकेले पे हथियार हो जाते हैं तो जिंदगी का सामना करने के लिए इतने सामान जुटाने की क्या जरूरत है । जिंदगी उसी मौत का ही तो एक विस्तार है और वह इतर मौत का ही एक चेहरा या जिंदगी का ही एक और विस्तार हूँ ।

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